जन्म: चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को मद्रास प्रेसीडेंसी के तिरुचिरापल्ली में हुआ था।
शिक्षा: उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय में अपनी स्नातक की परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया और भौतिकी में स्वर्ण पदक जीता।
उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से सर्वोच्च सम्मान के साथ अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की।
कॅरियर: उन्होंने कोलकाता में भारतीय वित्त सेवा में शामिल होने पर एक सहायक महालेखाकार के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया।
हालाँकि, उन्होंने IACS (इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस) में शोध करना जारी रखा।
कॅरियर में बदलाव: उन्होंने वर्ष 1917 में अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के पालित चेयर (Palit Chair of Physics) की पेशकश स्वीकार कर ली।
IISc में नियुक्ति: उन्हें वर्ष 1933 में बंगलूरू में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने वर्ष 1948 में अपनी सेवानिवृत्ति तक IISc में कार्य किया।
पुरस्कार
वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन पर उनके कार्य और रमन प्रभाव की खोज के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार दिया गया।
वर्ष 1954 में भारत रत्न दिया गया।
लेनिन शांति पुरस्कार और फ्रैंकलिन पदक सहित कई अन्य पुरस्कार भी प्रदान किए गए।
वर्ष 1930 में ह्यूजेस पदक से सम्मानित किया गया।
उनके सम्मान में: वर्ष 1928 में रमन प्रभाव की उनकी खोज की याद में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है।
रमन प्रभाव एक ऐसी घटना है, जब प्रकाश की एक धारा किसी तरल पदार्थ से होकर गुजरती है, तरल पदार्थ द्वारा प्रकीर्णित प्रकाश का एक अंश भिन्न रंग का होता है।
रमन प्रभाव के बारे में
प्रकाश की तरंगदैर्घ्य में परिवर्तन की घटना को संदर्भित करता है क्योंकि यह अणुओं द्वारा विकीर्णित होता है, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा के स्तर में बदलाव होता है।
रमन प्रभाव, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के पीछे का सिद्धांत है, जिसका उपयोग रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और पदार्थ विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आणविक लक्षण वर्णन तथा पहचान के लिए किया जाता है।
सी. वी. रमन ने वर्ष 1928 में अपने शोध के दौरान ठोस पदार्थों में नहीं, बल्कि तरल पदार्थों में प्रकाश के विकिर्णन का अध्ययन करते हुए रमन प्रभाव की खोज की थी।
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