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पूँजी खाता परिवर्तनीयता

Lokesh Pal March 06, 2025 03:27 10 0

संदर्भ

49वें सिविल लेखा दिवस समारोह को संबोधित करते हुए 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को वर्तमान प्रति व्यक्ति आय स्तर पर पूर्ण पूँजी खाता परिवर्तनीयता की ओर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

संबोधन के मुख्य अंश

  • सुझाई गई सीमा: उन्होंने इस सुधार पर तभी विचार करने की अनुशंसा की जब प्रति व्यक्ति आय 8,000-10,000 डॉलर तक पहुँच जाए।
  • विनिमय दर प्रबंधन चिंता: पूर्ण परिवर्तनीयता सरकार और RBI से विनिमय दर नियंत्रण हटा देगी।
  • आर्थिक आशावाद: अपनी सावधानी के बावजूद उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति को देखते हुए वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की क्षमता पर विश्वास व्यक्त किया।

भुगतान संतुलन (BoP)

  • भुगतान संतुलन किसी देश और बाकी विश्व के मध्य सभी लेन-देन का रिकॉर्ड होता है।
  • भुगतान संतुलन के दो मुख्य खाते हैं:
    • चालू खाता: इसमें वस्तुओं और सेवाओं (आयात और निर्यात) के व्यापार को शामिल किया जाता है।
    • पूँजी खाता: इसमें निवेश और ऋण जैसे सीमा पार पूँजी लेन-देन से संबंधित जानकारी शामिल होती है।

पूँजी खाता परिवर्तनीयता के बारे में

  • पूँजी खाता परिवर्तनीयता: बिना किसी प्रतिबंध के सीमापार निवेश लेन-देन करने की स्वतंत्रता।
  • पूँजी खाता परिवर्तनीयता की वर्तमान स्थिति: विनियमित।
  • बिना किसी सीमा के पूँजी खाता परिवर्तनीयता
    • भारतीय निवासी: विदेशी संपत्ति अर्जित करने के लिए रुपए को विदेशी मुद्रा में बदलने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
    • अनिवासी भारतीय: भारतीय संपत्तियों में निवेश करने के लिए विदेशी मुद्रा लाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

चालू खाता परिवर्तनीयता के बारे में

  • चालू खाता परिवर्तनीयता: भुगतान करने के लिए प्रतिबंधों के बिना रुपये को विदेशी मुद्राओं में बदलने की स्वतंत्रता (और इसके विपरीत)।
  • भारत 100% चालू खाता परिवर्तनीयता की अनुमति देता है।

आंशिक परिवर्तनीयता

  • चालू खाता: पूर्णतः परिवर्तनीय।
  • पूँजी खाता: अभी भी विनियमित।

भारत के पूँजी खाता ढाँचे के प्रमुख पहलू

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)

  • काफी सीमा तक उदारीकृत लेकिन संवेदनशील उद्योगों में क्षेत्रीय सीमाओं और सरकारी अनुमोदन के अधीन है।
  • क्षेत्रवार सीमाएँ
    • बैंकिंग (निजी): 49% तक स्वचालित मार्ग, उससे अधिक के लिए 74% तक सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
    • जैव प्रौद्योगिकी (ब्राउनफील्ड): 74% तक स्वचालित मार्ग, उससे अधिक के लिए सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
    • रक्षा: 74% तक स्वचालित मार्ग, उससे अधिक के लिए सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
    • स्वास्थ्य सेवा (ब्राउनफील्ड): 74% तक स्वचालित मार्ग, उससे अधिक के लिए सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
    • फार्मास्यूटिकल्स (ब्राउनफील्ड): 74% तक स्वचालित मार्ग, उससे अधिक के लिए सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता होती है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI)

  • प्रतिबंधों के साथ अनुमति: कुछ क्षेत्रों में स्वामित्व सीमाएँ लागू होती हैं।
  • सॉवरेन बॉण्ड: अत्यधिक विदेशी प्रभाव को रोकने के लिए RBI द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर अनुमति दी गई है।

भारतीय निवासियों द्वारा बाह्य निवेश

  • सीमा के साथ अनुमति: उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS) के तहत शासित।
  • विप्रेषण सीमा (Remittance Cap): भारतीय निवासी विदेश में स्टॉक, बॉण्ड या संपत्ति जैसी विदेशी संपत्ति खरीदने के लिए प्रति वर्ष $2,50,000 तक प्रेषित कर सकते हैं।

पूर्ण पूँजी खाता परिवर्तनीयता के लाभ

  • अंतर्वाह को बढ़ावा: मुक्त पूँजी प्रवाह अधिक विदेशी निवेश को आकर्षित करता है, जिससे आर्थिक और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि: अधिक वित्तीय एकीकरण से भारत की अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुँच में सुधार होता है।
  • निवेशक विश्वास: पूँजी खाता का अधिक लचीला होना आर्थिक परिपक्वता और स्थिरता का संकेत देता है, जिससे भारत की ऋण स्थिति में सुधार होता है।

पूर्ण पूँजी खाता परिवर्तनीयता की चुनौतियाँ

  • अस्थिरता: अनियमित पूँजी प्रवाह विनिमय दरों और मुद्रास्फीति में अस्थिरता उत्पन्न कर सकता है।
  • मुद्रा जोखिम: अचानक पूँजी के अंतर्वाह या बहिर्वाह से मुद्रा में अत्यधिक वृद्धि अथवा अवमूल्यन हो सकता है।
  • बाह्य आर्थिक संकट: वैश्विक बाजारों में अधिक जोखिम वित्तीय व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाता है।

पूर्ण पूँजी खाता परिवर्तनीयता (CAC) पर तारापोर समिति की सिफारिशें

  • राजकोषीय समेकन: व्यापक आर्थिक स्थिरता और सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3-3.5% के भीतर बनाए रखना।
  • मौद्रिक नीति के उद्देश्य: घरेलू मुद्रास्फीति दरों को वैश्विक स्तरों के साथ संरेखित करना और स्थिर वित्तीय वातावरण के लिए मुद्रास्फीति के अंतर को प्रतिबिंबित करने के लिए ब्याज दरों को समायोजित करना।
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: निर्णयन प्रक्रिया को प्रभावी करने और पूँजी प्रवाह के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति ढाँचे को मजबूत करना।
  • बैंकिंग प्रणाली सुधार: पुनर्गठन, मजबूत सुरक्षा उपायों और बढ़ी हुई पूँजी गतिशीलता को सँभालने के लिए क्षमता निर्माण के माध्यम से बैंकिंग क्षेत्र के लचीलेपन में सुधार करना।
  • विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता: बाह्य संकटों से निपटने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार सुनिश्चित करना, जो पूर्ण पूँजी खाता परिवर्तनीयता को लागू करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

भारत को आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता देते हुए पूर्ण पूँजी खाता परिवर्तनीयता के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए। हालाँकि यह निवेश वृद्धि और बाजार एकीकरण जैसे लाभ प्रदान करता है, लेकिन अस्थिरता और बाह्य संकट  जैसे जोखिमों के कारण क्रमिक परिवर्तन की आवश्यकता होती है।

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