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कार्बन सीमा समायोजन तंत्र

Lokesh Pal July 12, 2025 02:23 11 0

संदर्भ 

ब्रिक्स (BRICS) देशों ने यूरोपीय संघ की कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली (CBAM) की आलोचना की है और इसे एक प्रतिबंधात्मक व्यापार नीति बताया है, जो कम कार्बन अर्थव्यवस्था में उनके परिवर्तन संबंधी प्रयासों को कमजोर करती है।

PWonlyias विशेष

‘कार्बन टैक्स’ एक प्रकार का जुर्माना है, जो व्यवसायों को अत्यधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए देना पड़ता है।

इसका उद्देश्य प्रदूषण के लिए वित्तीय निरुत्साह पैदा करके तथा स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को प्रोत्साहित करके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है।

कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली (CBAM) क्या है?

  • CBAM एक आयात शुल्क है, जो यूरोप द्वारा अन्य देशों में उत्पादित वस्तुओं पर लगाया जाता है, जहाँ ऐसी प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं, जिनसे घरेलू यूरोपीय निर्माताओं द्वारा उत्सर्जित कार्बन उत्सर्जन की सीमा से अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है।
  • यह यूरोपीय संघ (EU) द्वारा वर्ष 2023 में प्रस्तुत एक जलवायु नीति उपकरण है। इसका पूर्ण कार्यान्वयन वर्ष 2026 में शुरू होगा और वर्ष 2023 से वर्ष 2025 तक एक संक्रमणकालीन चरण होगा।
  • उद्देश्य
    • “कार्बन लीकेज” को रोकने के लिए कठोर जलवायु नियमों वाले देशों (जैसे यूरोपीय संघ) से उत्पादन को उन देशों में स्थानांतरित करना, जहाँ पर्यावरण संबंधी नियम शिथिल हैं।
    • उन आयातों पर कर लगाकर प्रतिस्पर्द्धा के स्तर को समान बनाना, जिनका कार्बन उत्सर्जन यूरोपीय संघ के मानकों की अनुमति से अधिक है।

यूरोपीय आयोग की “फिट फॉर 55” पहल के तहत सभी 27 यूरोपीय संघ सदस्य देशों को वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 55% की कमी लाने की आवश्यकता है।

  • CBAM “फिट फॉर 55” पहल का हिस्सा है।
  • CBAM को विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप बनाया गया है।

यह कैसे काम करता है?

  • आयातकों को यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) कार्बन मूल्य से मेल खाने वाले प्रमाण-पत्र खरीदने की आवश्यकता होती है।
  • एक समान कार्बन लागत लागू करके यूरोपीय संघ के उत्पादकों और विदेशी निर्यातकों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करता है।
  • प्रारंभ में यह स्टील, सीमेंट, एल्युमीनियम, उर्वरक, बिजली और लोहे जैसी कार्बन-गहन वस्तुओं पर लागू होता है।
  • उत्सर्जन गणना
    • कार्बन की मात्रा उत्पादन के दौरान प्रत्यक्ष उत्सर्जन के आधार पर निर्धारित की जाती है।
    • यदि निर्यातक देश पहले से ही कार्बन मूल्य आरोपित करता है, तो दोहरे कराधान से बचने के लिए यह राशि CBAM लागत से वसूल की जाती है।

भारत के व्यापार पर CBAM का प्रभाव

  • व्यापार व्यवधान: CBAM यूरोपीय संघ को भारत के निर्यात को महत्त्वपूर्ण रूप से बाधित कर सकता है, विशेष रूप से लोहा, इस्पात, एल्युमीनियम, सीमेंट और उर्वरक जैसे क्षेत्रों में, जो भारत-यूरोपीय संघ व्यापार का एक बड़ा हिस्सा हैं।
  • उच्च निर्यात लागत: CBAM का अनुपालन, जिसमें कार्बन उत्सर्जन प्रमाण-पत्रों की खरीद भी शामिल है, उत्पादन लागत बढ़ा सकता है, जिससे भारतीय उद्योगों की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो सकती है।
  • लौह एवं इस्पात क्षेत्र जोखिम में: भारत के CBAM प्रभावित निर्यात में 76% से अधिक लोहा एवं इस्पात का योगदान है, इसलिए इस क्षेत्र को अनुपालन और अतिरिक्त लागत से संबंधित सबसे गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

BRICS द्वारा CBAM की निंदा क्यों की गई है?

  • एकपक्षीय एवं संरक्षणवादी: यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून और पेरिस समझौते के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जो विकासशील देशों को विकसित देशों द्वारा लागू की गई जलवायु नीतियों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाते हैं।

सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियाँ (CBDR) अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून का एक सिद्धांत है, जो यह स्थापित करता है कि सभी राज्य वैश्विक पर्यावरणीय समस्या को संबोधित करने के लिए जिम्मेदार हैं, परंतु शमन संबंधी उत्तरदायित्व समान नहीं हैं।

  • जलवायु समानता की अनदेखी: पेरिस समझौता “साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों” की अनुमति देता है, यह स्वीकार करते हुए कि विकसित देशों ने ऐतिहासिक रूप से अधिक उत्सर्जन किया है और उन्हें अधिक जिम्मेदारी लेनी होगी।
  • बहुपक्षीय जलवायु सहयोग का उल्लंघन: CBAM को वैश्विक सहमति के बिना पेश किया गया था। बेसिक समूह (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) ने बार-बार चेतावनी दी है कि इस तरह के उपाय वैश्विक जलवायु वार्ताओं में विश्वास और सहयोग को कम करते हैं।

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