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कार्बन फार्मिंग (Carbon Farming)

Lokesh Pal May 08, 2024 07:00 281 0

संदर्भ

कार्बन फार्मिंग (Carbon Farming) कृषि उत्पादकता और मृदा की गुणवत्ता में सुधार करते हुए पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करने और कृषि परिदृश्य में कार्बन भंडारण को बढ़ाकर और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकती है।

कार्बन फार्मिंग क्या है?

  • परिचय: यह पुनर्योजी कृषि पद्धतियों को लागू करके कार्बन एवं कृषि की अवधारणाओं को जोड़ता है।
    • विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों (Agro-Climatic Zones) में इस प्रक्रिया को अपनाना आसान है।
    • यह मृदा के क्षरण, जल की कमी और जलवायु परिवर्तनशीलता से संबंधित चुनौतियों को सुधारने में मदद कर सकता है।

  • कार्बन फार्मिंग (Carbon Farming) के सामान्य रूप: इसमें रोटेशनल ग्रेजिंग (Rotational Grazing), कृषि वानिकी (Agroforestry), संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture), एकीकृत पोषक तत्त्व प्रबंधन (Integrated Nutrient Management), कृषि-पारिस्थितिकी (Agro-Ecology), पशुधन प्रबंधन (Livestock Management) और भूमि पुनर्स्थापन (Land Restoration) शामिल है।

कार्बन (Carbon): यह सभी जीवित जीवों और कई खनिजों में पाया जाता है। यह पृथ्वी पर जीवन के लिए मौलिक है और प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis), श्वसन (Respiration) तथा कार्बन चक्र सहित विभिन्न प्रक्रियाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

फार्मिंग: यह भोजन, फाइबर, ईंधन या अन्य संसाधनों के लिए भूमि पर खेती करने, फसलें उगाने और पशुधन के जीवन यापन की प्रथा है।

  • इसमें फसलों के रोपण और कटाई से लेकर पशुधन के प्रबंधन और कृषि बुनियादी ढाँचे को बनाए रखने तक गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।

  • कार्बन फार्मिंग के लिए इष्टतम स्थितियाँ (Optimal Conditions for Carbon Farming): दीर्घ अवधि वाला मौसम, पर्याप्त वर्षा और पर्याप्त सिंचाई वाले क्षेत्र वनस्पति विकास के माध्यम से कार्बन को अलग करने के लिए सर्वोत्तम स्थितियाँ प्रदान करते हैं।
    • पर्याप्त वर्षा एवं उपजाऊ मृदा वाले क्षेत्रों में, कृषिवानिकी (Agroforestry) अर्थात्  फसलों के साथ वृक्षों एवं झाड़ियों को एकीकृत करना और संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture) अर्थात् मृदा का क्षरण न होने देना जैसी प्रथाओं के माध्यम से कार्बन पृथक्करण की संभावना विशेष रूप से अधिक हो सकती है।

कार्बन फार्मिंग (Carbon Farming) के लाभ 

  • कृषि आय का विविधीकरण (Diversification of Farm Income): सिल्वोपास्चर (Silvopasture) और एली क्रॉपिंग (Alley Cropping) सहित कृषिवानिकी प्रथाएँ वृक्षों एवं झाड़ियों में कार्बन को अलग करके कृषि आय में विविधता ला सकती हैं।
  • मृदा गुणवत्ता में वृद्धि: संरक्षण कृषि, मृदा क्षरण को कम करने और जैविक सामग्री को बढ़ाने में मदद कर सकती है, विशेषकर अन्य गहन कृषि गतिविधियों वाले स्थानों में।
    • संरक्षण कृषि तकनीकों में जीरो टिलेज (Zero Tillage), क्राप रोटेशन (Crop Rotation), कवर क्रापिंग (Cover Cropping) और फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) शामिल हैं।

सिल्वोपास्चर (Silvopasture): यह एक ही भूमि पर वृक्षों और पशुधन चराने के संचालन का एकीकरण है। इन प्रणालियों को वन उत्पादों और चारा दोनों के लिए गहनता से प्रबंधित किया जाता है, जिससे लघु और दीर्घकालिक आय स्रोत उपलब्ध होते हैं।

एले क्राॅपिंग (Alley cropping): इसे गलियों का निर्माण करने के लिए पेड़ों या झाड़ियों की पंक्तियों के रोपण के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसके भीतर कृषि या बागवानी फसलों का उत्पादन किया जाता है।

इंटरक्राॅपिंग  (Intercropping): यह दो या दो से अधिक फसलों को पास-पास उगाने की प्रथा है।

जैविक खेती (Organic Farming): इस प्रकार की खेती में रसायनों के स्थान पर जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कोई आनुवंशिक संशोधन नहीं किया जाता है।

  • मृदा उर्वरता को बढ़ावा देना: एकीकृत पोषक तत्त्व प्रबंधन प्रथाएँ मिट्टी की उर्वरता को बढ़ावा देती हैं और जैविक उर्वरकों और खाद का उपयोग करके उत्सर्जन को कम करती हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में लचीलापन: फसल विविधीकरण और इंटरक्राॅपिंग जैसे कृषि-पारिस्थितिकी दृष्टिकोण पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन के लिए लाभकारी हैं।
  • मेथेन उत्सर्जन को कम करना: पशुधन प्रबंधन रणनीतियाँ जिसमें रोटेशनल ग्रेजिंग, फीड गुणवत्ता का अनुकूलन और पशु अपशिष्ट का प्रबंधन शामिल है, जो मेथेन उत्सर्जन को कम कर सकती है और चरागाह भूमि में संगृहीत कार्बन की मात्रा को बढ़ा सकती है।

कार्बन फार्मिंग की चुनौतियाँ 

  • सीमित जल उपलब्धता: यह पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है, इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पृथक्करण की क्षमता को सीमित कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए, कवर क्रॉपिंग जैसी प्रथाएँ, जिनमें मुख्य फसल चक्रों के बीच अतिरिक्त वनस्पतियों की आवश्यकता होती है, पानी की अतिरिक्त माँग के कारण व्यवहार्य नहीं हो सकती हैं।
  • कार्बन फार्मिंग (Carbon farming) गर्म और शुष्क क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जहाँ पानी की उपलब्धता सीमित है।

कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration): यह एक जलवायु परिवर्तन शमन तकनीक है, जहाँ CO2 को वायुमंडल में उत्सर्जित होने के बजाय विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं से एकत्र किया जाता है। एकत्र की गई CO2 को अनिश्चित काल तक वायुमंडल से बाहर रखने के लक्ष्य के साथ उपसतह में संगृहीत किया जाता है।

  • कार्बन पृथक्करण के लिए पौधे का चयन: कौन से पौधे उगाने हैं, यह चुनना भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सभी प्रजातियाँ समान मात्रा में या समान प्रभावी तरीके से कार्बन को कैप्चर एवं संगृहीत नहीं करती हैं।
  • वित्तीय बाधाएँ: कार्बन कृषि पद्धतियों को अपनाने से किसानों को उन्हें लागू करने की लागत पर नियंत्रण पाने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता हो सकती है।
    • भारत में, छोटे पैमाने के किसानों के पास स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं (Sustainable Land Management Practices) और पर्यावरण सेवाओं (Environmental Services) में निवेश करने के लिए संसाधनों की कमी हो सकती है।

वैश्विक कार्बन फार्मिंग योजनाएँ 

  • शिकागो क्लाइमेट एक्सचेंज और कार्बन फार्मिंग इनिशिएटिव, ऑस्ट्रेलिया: यह कृषि में कार्बन शमन गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के प्रयासों को प्रदर्शित करता है।
    • प्रक्रियाओं में बिना जुताई की खेती (मिट्टी की जुताई किए बिना फसल उगाना) से लेकर पुनर्वनीकरण और प्रदूषण में कमी तक शामिल हैं।
  • केन्या की कृषि कार्बन परियोजना (Kenya’s Agricultural Carbon Project): यह आर्थिक रूप से विकासशील देशों में जलवायु शमन (Climate Mitigation) और अनुकूलन एवं खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए कार्बन फार्मिंग की क्षमता पर प्रकाश डालती है।
  • 4 प्रति 1000 पहल (4 per 1000 initiative): इसे वर्ष 2015 में पेरिस में COP21 जलवायु वार्ता के दौरान लॉन्च किया गया था और इसका उद्देश्य सतत् प्रथाओं के माध्यम से मृदा कार्बनिक कार्बन (Soil Organic Carbon- SOC) पृथक्करण को बढ़ाना है।

कार्बन फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल 

(Government Initiatives  to Boost Carbon Farming)

  • ग्रीन क्रेडिट योजना (Green Credit Scheme): इसका उद्देश्य कृषि सहित सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना एवं समर्थन करना है।
  • प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Natural Farming- NMNF): इसके तीन मुख्य उद्देश्य हैं-
    • कृषि उत्पादकता और आय में निरंतर वृद्धि
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन एवं लचीलापन अपनाना
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना

भारत में क्या अवसर हैं?

  • जैविक खेती की व्यवहार्यता (Viability of Organic Farming): भारत में जमीनी स्तर की पहल और अग्रणी कृषि अनुसंधान कार्बन को अलग करने के लिए जैविक खेती की व्यवहार्यता का प्रदर्शन कर रहे हैं।
    • इस संबंध में, भारत में कृषि-पारिस्थितिकी प्रथाओं से महत्त्वपूर्ण आर्थिक लाभ मिल सकता है, जिसमें लगभग 170 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि से 63 बिलियन डॉलर का मूल्य उत्पन्न होने की संभावना है।
  • भौगोलिक क्षेत्रों में उपयुक्तता (Suitability Across Geographic Regions): व्यापक कृषि भूमि वाले क्षेत्र, जैसे कि सिंधु-गंगा के मैदान और दक्कन का पठार, कार्बन फार्मिंग को अपनाने के लिए उपयुक्त हैं, जबकि हिमालय क्षेत्र का पहाड़ी इलाका कम अनुकूल है।

  • तटीय क्षेत्रों में लवणीकरण की संभावना अधिक होती है और संसाधनों तक सीमित पहुँच होती है, जिससे पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाना सीमित हो जाता है।
  • खाद्य सुरक्षा बढ़ाना (Enhancing Food Security): कार्बन क्रेडिट प्रणालियाँ पर्यावरणीय सेवाओं के माध्यम से अतिरिक्त आय प्रदान करके किसानों को प्रोत्साहित कर सकती हैं।
    • कृषि संबंधी मिट्टी 20-30 वर्षों में 3-8 बिलियन टन CO2 अवशोषित कर सकती है।
    • यह व्यवहार्य उत्सर्जन कटौती और जलवायु के अपरिहार्य स्थिरीकरण के बीच अंतर को कम कर सकता है।
    • इस प्रकार, भारत में जलवायु परिवर्तन को कम करने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए कार्बन फार्मिंग भी एक स्थायी रणनीति हो सकती है।

निष्कर्ष 

कार्बन फार्मिंग को बढ़ाने के लिए सीमित जागरूकता, अपर्याप्त नीति समर्थन, तकनीकी बाधाओं का समाधान करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता होगी। मृदा गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधता को बढ़ाने और इसे अपनाने वालों के लिए आर्थिक अवसर पैदा करते हुए जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्बन फार्मिंग को बढ़ावा देना भारत के हित में है।

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