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Casgevy और Lyfgenia: CRISPR आधारित जीन चिकित्सा

Lokesh Pal February 10, 2024 04:38 170 0

संदर्भ 

सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia) और बीटा-थैलेसीमिया (Beta-Thalassemia) के उपचार के लिए CRISPR आधारित जीन चिकित्सीय पद्धति कैसगेवी (Casgevy) और लाइफजेनिया (Lyfgenia) को खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) से मंजूरी मिल गई है।

संबंधित तथ्य 

  • 12 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स और CRISPR थेरेप्यूटिक्स द्वारा कैसगेवी (Casgevy) तथा ब्लूबर्ड बायो (Bluebird Bio) द्वारा लिफजेनिया (Lyfgenia) का निर्माण किया गया है।
  • चिकित्सीय पद्धति: ये दोनों पद्धतियाँ अलग-अलग तरीकों से कार्य करती हैं, हालाँकि दोनों CRISPR/Cas 9 जीनोम परिवर्तन तकनीक का उपयोग करती हैं।
    • CRISPR/Cas 9 जीनोम एडिटिंग तकनीक पर अनुसंधान के लिए वर्ष 2020 में इमैनुएल चार्पेंटियर और जेनिफर डौडना को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है|

कैसगेवी चिकित्सीय पद्धति (Casgevy Therapy)

  • इस पद्धति में पीड़ित व्यक्ति के रक्त की मूल कोशिकाओं (Stem Cell) का उपयोग किया जाता है, जिन्हें क्रिस्प्रर-कैस9 ( Crispr-Cas9) के उपयोग से परिवर्तित किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया में BCL11A नामक जीन को लक्षित किया जाता है, जो भ्रूण से वयस्क हीमोग्लोबिन बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • यह पद्धति भ्रूण हीमोग्लोबिन बनाने के लिए शारीरिक तंत्रों का उपयोग करती है, जिससे रोगों के लक्षण कम हो जाते हैं|

लाइफजेनिया चिकित्सीय पद्धति (Lyfgenia Therapy) 

  • यह स्वस्थ हीमोग्लोबिन के निर्माण में प्रयुक्त जीन के लिए संक्रमण आवरण (Viral Envelope) का उपयोग करता है।
  • लाइफजेनिया पद्धति में वायरस (लेंटिवायरस, जो HIV परिवार से संबंधित है) के एक हिस्से का उपयोग करके हीमोग्लोबिन निर्मित करने वाले जीन में कार्यात्मक क्षमता विकसित की जाती है।

जीन चिकित्सीय पद्धति (Gene Therapy) 

  • इस आनुवंशिक डिसऑर्डर (Genetic Disorders) के उपचार के लिए दोषपूर्ण जीन को स्वस्थ जीन से बदलने की तकनीक है।
  • यह कृत्रिम विधि है जिसके माध्यम से मानव शरीर की कोशिकाओं में DNA (Deoxyribonucleic acid)  प्रवेश कराया जाता है।
  • इसे पहली बार वर्ष 1972 में विकसित किया गया था।
  • जीन चिकित्सीय पद्धति के दो प्रमुख प्रकार हैं: शारीरिक चिकित्सीय पद्धति (Somatic Gene Therapy) और जर्मलाइन चिकित्सीय पद्धति (Germline Gene Therapy)।

जीन परिवर्तन (Gene Editing)

  • जीन परिवर्तन के द्वारा DNA के विशिष्ट क्रम को परिवर्तित किया जाता है।
  • इसके लिए DNA को जीनोम में डाला, संशोधित या प्रतिस्थापित किया जाता है।
  • इसके लिए CRISPR CAS9 नामक आनुवांशिक परिवर्तन (Genetic Scissor) का उपयोग किया जाता है।
  • इसमें ‘इंजीनीयर्ड न्यूक्लीयस एंजाइम’ (Engineered Nucleus Enzymes) के माध्यम से DNA के विशिष्ट अनुक्रमों को परिवर्तित किया जाता है।

जर्मलाइन परिवर्तन (Germline Editing)

  • इस प्रक्रिया में प्रजनन कोशिकाओं (जैसे शुक्राणु और अंडाणु) या भ्रूण के DNA (Deoxyribonucleic Acid) को संशोधित किया जाता है।
  • शारीरिक कोशिकीय परिवर्तन (Somatic Cell Editing) केवल उपचारित व्यक्ति को प्रभावित करता है, किंतु जर्मलाइन परिवर्तन के द्वारा भावी पीढ़ियों में आनुवंशिक परिवर्तन किए जा सकते हैं।

चिकित्सीय पद्धति का निर्माण और उपयोग 

  • रक्त निष्कासन (Apheresis): इस प्रक्रिया के अंतर्गत, सबसे पहले अस्थि मज्जा से रक्त कोशिकाओं को निकाला जाता है, जिसका उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए होता है।
  • संचयन और परिवर्तन (Harvesting and Editing): कोशिकाओं को विनिर्माण स्थल पर भेजा जाता है, जिसे परिवर्तित और परीक्षण करने में लगभग छह महीने लगते हैं।
  • अनुकूलन (Conditioning): परिवर्तित कोशिकाओं को प्रत्यारोपण करने से पहले अस्थि मज्जा की अन्य कोशिकाओं के समान परिवर्तन के लिए अनुकूलन दवा (Conditioning Medicine) दी जाती है, जिन्हें संशोधित कोशिकाओं द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है।
  • प्रत्यारोपण (Transplantation): पीड़ित को कम-से-कम एक महीने तक अस्पताल के निरीक्षण में रहना पड़ता है ताकि परिवर्तित कोशिकाएँ अस्थि मज्जा में रह सके तथा सामान्य हीमोग्लोबिन के साथ लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण शुरू कर सके।
  • दुष्प्रभाव: मूल कोशिकाओं के सीधे प्रत्यारोपण से मतली (Nausea), थकान, बुखार और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease) 

  • आनुवंशिक विकार (Genetic Disorders): सिकल सेल रोग में आनुवंशिक त्रुटि के कारण लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्द्ध-चंद्राकार (Crescent Shape) हो जाता है।
  • सामान्य कोशिकाओं का आकार चक्र (Disc) की तरह होता है, इसके विपरीत सिकल कोशिकाएँ अपने त्रुटिपूर्ण आकार के कारण वाहिकाओं में आसानी से प्रवाह नहीं कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप रक्त प्रवाह अवरुद्ध होता है।
  • लक्षण: इस रोग के लक्षण गंभीर दर्द, गंभीर संक्रमण, रक्ताल्पता (Anemia), हृदयाघात (Stroke) आदि हैं।
    • उन लोगों में इस रोग के लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं जिन्हें माता-पिता दोनों से एक जोड़ी त्रुटिपूर्ण जीन प्राप्त हुआ हो। किंतु यदि माता या पिता किसी एक से ही जीन प्राप्त हुआ हो, वे सामान्य जीवन जी सकते हैं।
  • भारत में विस्तार: अनुमानतः भारत में प्रत्येक वर्ष 30,000-40,000 बच्चे इस आनुवंशिक रोग के साथ जन्म लेते हैं।

थैलेसीमिया रोग (Thalassaemia Disease)

  • यह एक रक्त संबंधी वंशानुगत (माता-पिता से जीन के माध्यम से बच्चों में जाने वाला) रोग है, जो शरीर में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन के अपर्याप्त निर्माण के फलस्वरूप होता है।
  • लक्षण: थैलेसीमिया के कारण हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है, जिससे थकान, मतली (Nausea), साँस की तकलीफ और दिल की अनियमित धड़कन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
  • भारत में फैलाव: विश्व में सर्वाधिक थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे भारत (लगभग 1-1.5 लाख बच्चे) में हैं ।
  • उपलब्ध उपचार: इस रोग के पीड़ितों को रक्त आधान (Blood Transfusion) की आवश्यकता होती है। रक्त आधान से शरीर में अतिरिक्त आयरन जमा हो जाता है।

क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पलिंड्रोमिक रिपीट (CRISPR) 

  • यह बैक्टीरिया और आर्किया (Archaea) में पाया जाने वाला सरल जीव है। ये विषाणु से उत्पन्न होते हैं जो पहले जीवों पर हमला करते हैं।
  • CRISPR की मदद से भविष्य में ऐसे विषाणुओं को पहचानना आसान हो जाता है एवं उसका मुकाबला भी किया जा सकता है। इस प्रकार CRISPR एक प्रतिरक्षा तंत्र की तरह कार्य करता है।

CRISPR प्रौद्योगिकी: यह तकनीक जीवित जीवों के जीनोम (Genome) को संशोधित करने में मदद करती है। यह विषाणुरोधी प्रतिरक्षा प्रणाली पर आधारित है।

  • उपयोगिता: डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (DNA) को सटीक रूप से संसोधित करने के लिए शोधकर्ता CRISPR का उपयोग करते हैं। इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है-
    • आनुवंशिक रोगों का इलाज
    • सूखा प्रतिरोधी पौधे तैयार करना
    • खाद्य फसलों को संशोधित करना
    • विलोपन परियोजनाएँ 

भारत में CRISPR अनुसंधान के लिए नियामक ढाँचा

  • नई औषधि और रोगविषयक परीक्षण नियम 2019: भारत में CRISPR अनुसंधान संबंधी सख्त कानून हैं, जिसमें जीन थेरेपी प्रोडक्ट (GTP) को ‘नई औषधि और रोगविषयक परीक्षण नियम’ (2019) के तहत नई दवाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण नामक संगठन CRISPR को मंजूरी देता है।
  • आनुवंशिक हस्तक्षेप पर समीक्षा समिति (RCGM)/ आनुवंशिक प्रौद्योगिकी अनुमोदन समिति (GEAC): मौजूदा नियमों के अलावा, राष्ट्रीय GTP दिशा-निर्देशों के आधार पर अतिरिक्त नियम निर्धारित किए जा सकते हैं तथा संबंधित समितियों द्वारा समीक्षा की जा सकती है, जिस आधार पर भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
  • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR): भारत में सभी जैव-चिकित्सीय अनुसंधान को ICMR दिशा-निर्देश (2017) के आधार पर नैतिक अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
    • ICMR दिशा-निर्देश (2017) के अनुसार, भारत में मानव से जुड़े सभी जैव-चिकित्सीय अनुसंधानों के लिए नैतिक प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है।

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