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जातिगत जनगणना

Lokesh Pal May 02, 2025 12:39 17 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार अगली जनगणना के दौरान जातिगत गणना को मंजूरी दी।

जनगणना क्या है?

  • जनगणना एक दशकीय, राष्ट्रव्यापी जनसंख्या सर्वेक्षण है, जो जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा एकत्र करता है।
  • यह वर्ष 1872 से नियमित रूप से आयोजित किया जाता रहा है, उस वर्ष ब्रिटिश शासन के तहत पहली पूर्ण जनगणना हुई थी।
  • स्वतंत्रता के बाद, यह जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत भारत के महापंजीयक द्वारा आयोजित की जाती है।
  • स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने 15 जनगणनाएँ आयोजित की हैं, जिनमें से आखिरी जनगणना वर्ष 2011 में हुई थी।
  • वर्ष 2021 के लिए निर्धारित जनगणना को COVID-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था और अभी तक आयोजित नहीं की गई है।

सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (Socio-Economic and Caste Census-SECC)

  • वर्ष 2011 में शुरू की गई SECC का उद्देश्य परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करना और जाति विवरण एकत्र करना था।
  • यह नियमित जनगणना से अलग थी और वंचितों की पहचान करने और कल्याण लक्ष्यीकरण में सहायता के लिए आयोजित की गई थी।
  • SECC से डेटा सामाजिक न्याय मंत्रालय को सौंप दिया गया।
  • हालाँकि, असंगत जाति नाम प्रविष्टियों (46 लाख से अधिक भिन्नताएँ) और वर्गीकरण चुनौतियों जैसे मुद्दों के कारण SECC से जाति डेटा अप्रकाशित है।

जातिगत जनगणना क्या है?

  • जातिगत जनगणना में जनगणना के दौरान नागरिकों की जाति पहचान संबंधी डेटा एकत्र करना शामिल है।
  • पिछली जाति-वार जनगणना वर्ष 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी।
  • आगामी जनगणना डिजिटल होगी और दो चरणों में विभाजित होगी, दूसरे चरण में जाति डेटा संग्रह की उम्मीद है।
  • जनगणना डेटा दोहराव और विसंगतियों से बचने के लिए ड्रॉप-डाउन जाति निर्देशिका के साथ एक मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करेगी।
    • वर्तमान में केंद्रीय सूची में लगभग 2,650 OBC समुदाय, SC श्रेणी में 1,170 और ST सूची में 890 समुदाय हैं।
    • राज्य सरकारें OBC समूहों की अपनी सूची बनाए रखती हैं।
  • सटीकता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए नए सॉफ्टवेयर और डेटा संग्रह तंत्र का पूर्व-परीक्षण किया जाएगा।
  • डिजिटल जातिगत गणना प्रक्रिया के लिए लगभग 30 लाख अधिकारियों को पुनः प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होगी।

जातिगत जनगणना की माँग

  • राजनीतिक प्रयास: RJD, SP, DMK और JDU समेत अन्य पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन रखने वाली पार्टियों द्वारा जातिगत जनगणना की माँग लंबे समय से की जा रही है।
    • इन दलों का तर्क है कि न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और लक्षित सामाजिक कल्याण नीतियों के लिए सटीक डेटा आवश्यक है।
    • कांग्रेस पार्टी ने भी कई वर्षों की अस्पष्टता के बाद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले जातिगत जनगणना का समर्थन किया।
  • संस्थागत समर्थन: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने वर्ष 2021 से जनगणना में ओबीसी संबंधी डेटा को शामिल करने का आग्रह किया है।
  • न्यायिक निर्देश: जातिगत जनगणना की माँग करने वाली कई याचिकाएँ वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं।
    • वर्ष 1992 के इंद्रा साहनी निर्णय (मंडल आयोग के निर्णय) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जातिगत जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए।
    • हालाँकि वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने जातिगत जनगणना कराने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया और कहा कि यह प्रशासन संबंधी मुद्दा है।
  • राज्य की पहल: बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने स्वतंत्र रूप से जातिगत सर्वेक्षण कराए हैं।
    • अगली जनगणना में जातिगत डेटा शामिल करने का केंद्र का निर्णय इन रुझानों के अनुरूप है, जो शासन और चुनावी राजनीति में जाति-आधारित डेटा की बढ़ती माँग को दर्शाता है।

जातिगत जनगणना के पक्ष और विपक्ष

जातिगत जनगणना के लाभ

जातिगत जनगणना की हानि

लक्षित कल्याण को सक्षम बनाती है: सटीक डेटा सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों के लिए नीतियाँ बनाने में मदद करती है। सामाजिक विभाजन का जोखिम: जाति पर जोर देने से पहचान मजबूत हो सकती है और विभाजन गहरा सकता है।
सकारात्मक कार्रवाई की जानकारी प्रदान करती है: उचित आरक्षण लाभ के लिए ओबीसी के तर्कसंगत उप-वर्गीकरण की सुविधा प्रदान करती है। राजनीतिक बदलाव: डेटा का उपयोग वास्तविक उत्थान के बजाय वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा सकता है।
सामाजिक न्याय संबंधी योजना को बढ़ावा देती है: समावेशी विकास और न्यायसंगत बजट आवंटन को डिजाइन करने में सहायता करती है। प्रशासनिक चुनौतियाँ: लाखों लोगों के जातिगत डेटा को एकत्रित करना और सत्यापित करना त्रुटिपूर्ण हो सकता है।
विधायी सुधारों का समर्थन: वर्ष 2026 के बाद सीट परिसीमन और महिला आरक्षण के प्रभावी कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करेगा। संवैधानिक बाधाएँ: यदि 50% सीमा से अधिक कोटा की माँग की जाती है तो कानूनी मुद्दे उठते हैं।

निष्कर्ष

जनगणना में जाति को शामिल करने का मंत्रिमंडल का निर्णय एक ऐतिहासिक नीतिगत बदलाव है, जिससे भारत में सामाजिक-आर्थिक नीतियों, प्रतिनिधित्व और कल्याण वितरण को नया स्वरूप मिलने की उम्मीद है।

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