100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

जातीय जनगणना

Lokesh Pal May 03, 2025 02:09 23 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वतंत्रता के पश्चात् पहली बार अगली जनगणना के दौरान जातीय जनगणना को मंजूरी दी।

जातीय जनगणना क्या है?

  • जातीय जनगणना में जनसंख्या गणना के दौरान नागरिकों की जाति संबंधी पहचान पर डेटा एकत्र करना शामिल है।
  • पिछली जातीय जनगणना वर्ष 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी।
  • आगामी जनगणना डिजिटल होगी और दो चरणों में विभाजित होगी, जिसमें दूसरे चरण में जाति आधारित डेटा संग्रह की उम्मीद है।
  • जनगणना डेटा दोहराव तथा विसंगतियों से बचने के लिए ड्रॉप-डाउन जाति निर्देशिका के साथ एक मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करेगी।
    • वर्तमान में केंद्रीय सूची में लगभग 2,650 OBC समुदाय, SC श्रेणी में 1,170 एवं  ST सूची में 890 समुदाय हैं।
    • राज्य सरकारें OBC समूहों की अपनी सूची बनाए रखती हैं।
  • जातीय जनगणना को वर्ष 2021 की जनगणना में एकीकृत किया जाएगा।
  • सटीकता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए नए सॉफ्टवेयर और डेटा संग्रह तंत्र का पूर्व-परीक्षण किया जाएगा।
  • डिजिटल जातीय जनगणना की प्रक्रिया के लिए लगभग 30 लाख अधिकारियों को पुनःप्रशिक्षित करने की आवश्यकता होगी।

जनगणना क्या है?

  • जनगणना एक दशकीय, राष्ट्रव्यापी जनसंख्या सर्वेक्षण है, जो जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा एकत्र करता है।
  • यह वर्ष 1872 से नियमित रूप से आयोजित किया जाता रहा है, उस वर्ष ब्रिटिश शासन के तहत पहली पूर्ण जनगणना हुई थी।
  • स्वतंत्रता के बाद, यह जनगणना अधिनियम 1948 के तहत भारत के महापंजीयक द्वारा आयोजित किया जाता है।
  • स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने 15 जनगणनाएँ आयोजित की हैं, जिनमें से आखिरी जनगणना वर्ष 2011 में हुई थी।
  • वर्ष 2021 के लिए निर्धारित जनगणना को COVID-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था तथा यह अभी तक आयोजित नहीं की गई है।
  • वर्ष 1951 के बाद से सभी जनगणनाएँ वर्ष 1948 के भारतीय जनगणना अधिनियम के तहत आयोजित की गईं।
  • संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत जनगणना एक संघ का विषय (अनुसूची VII के तहत संघ सूची की प्रविष्टि 69) है।

भारत में जातीय जनगणना का इतिहास एवं पृष्ठभूमि

मूल और प्रारंभिक पृष्ठभूमि

  • जाति व्यवस्था विश्व में अत्यधिक लंबे समय से चली आ रही सामाजिक पदानुक्रमों में से एक है, जो 2,000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है, जिसका मूल हिंदू वर्ण श्रेणियों में हैं:
    • ब्राह्मण (पुजारी), क्षत्रिय (शासक), वैश्य (व्यापारी), शूद्र (मजदूर), तथा बहिष्कृत समूह जिन्हें ‘अछूत’ या दलित कहा जाता है।
  • जाति ऐतिहासिक रूप से व्यवसाय, अनुष्ठान शुद्धता, सामाजिक स्थिति और संसाधनों पर आधारित रही है।
  • इसे कठोर अंतर्विवाह, सामाजिक वर्जनाओं और गाँव द्वारा अलगाव के माध्यम से मजबूत किया गया।

ब्रिटिश काल एवं जातीय जनगणना

  • जातीय जनगणना करने का पहला व्यवस्थित प्रयास: वर्ष 1871-72 की जनगणना
    • ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन प्रशासनिक और राजस्व उद्देश्यों के लिए भारतीय समाज को सूचीबद्ध करना चाहता था।
  • उत्तरवर्ती जनगणनाएँ: वर्ष 1881, वर्ष 1891, वर्ष 1901, वर्ष 1911, वर्ष 1921 और वर्ष  1931 सभी में जातीय गणना शामिल थीं।
    • हर्बर्ट रिस्ले के अंतर्गत वर्ष 1901 की जनगणना ने भारतीय समाज को जाति तथा नस्ल के आधार पर वर्गीकृत किया, जिससे सामाजिक रूढ़िवादिता को बल मिला और आधिकारिक अभिलेखों में जातिगत पहचान को पुख्ता किया गया।
  • वर्ष 1931 की जनगणना: अंतिम व्यापक जातीय जनगणना, जिसमें सभी जातियों को शामिल किया गया।
    • इसके आँकड़े स्वतंत्रता के बाद की नीति निर्माण के लिए सांख्यिकीय आधार बन गए, जिसमें मंडल आयोग (वर्ष 1979- 1980) भी शामिल है।

स्वतंत्रता के बाद परिवर्तन: जनगणना से जाति को हटाना

  • वर्ष 1947 के बाद, भारत ने सामान्य जनगणना में जातीय जनगणना जारी न रखने का निर्णय लिया, इसके कारण थे:
    • राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना।
    • देश को जातिगत विभाजन से बचाना।
    • पहचान की राजनीति के स्थान पर आर्थिक और सामाजिक विकास पर ध्यान देना।
  • वर्ष 1951 की जनगणना के बाद केवल अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) की गणना की गई।
    • अन्य जातियों, विशेष रूप से OBC को औपचारिक जनगणना से बाहर रखा गया।

मंडल आयोग (1979-80)

  • वर्ष 1931 की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया गया कि भारत की आबादी में OBC की हिस्सेदारी ~52% है।
  • केंद्र सरकार की नौकरियों और शिक्षा में OBC के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की गई।
  • वैज्ञानिक नीति निर्माण के लिए चुनौती के रूप में अद्यतन जाति डेटा की कमी को उजागर किया गया।

जातीय जनगणना की माँग

  • राजनीतिक दबाव: RJD, SP, DMK, तथा JDU समेत OBC का महत्त्वपूर्ण समर्थन रखने वाली पार्टियों द्वारा जातीय जनगणना की माँग लंबे समय से की जा रही है।
    • इन पार्टियों का तर्क है कि न्यायसंगत प्रतिनिधित्व तथा लक्षित सामाजिक कल्याण नीतियों के लिए सटीक डेटा आवश्यक है।
    • कांग्रेस पार्टी ने भी कई वर्षों की अस्पष्टता के बाद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले जातीय जनगणना का समर्थन किया।
  • संस्थागत समर्थन: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने वर्ष 2021 से जनगणना में OBC डेटा को शामिल करने का आग्रह किया है।
  • न्यायिक निर्देश: जातीय जनगणना की माँग करने वाली कई याचिकाएँ वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं।
    • वर्ष 1992 के इंद्रा साहनी मामले [मंडल आयोग के निर्णय से संबंधित] में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जातीय जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए।
    • हालाँकि वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे शासन का मुद्दा बताते हुए केंद्र सरकार को जातीय जनगणना कराने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।
  • राज्य की पहल: बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने स्वतंत्र रूप से जाति सर्वेक्षण किए हैं।
    • अगली जनगणना में जाति के आँकड़ों को शामिल करने का केंद्र का निर्णय इन रुझानों के अनुरूप है, जो शासन और चुनावी राजनीति में जाति-आधारित आँकड़ों की बढ़ती माँग को दर्शाता है।

हाल के समय में भारत में विभिन्न जातीय जनगणनाएँ

  • सामाजिक-आर्थिक एवं जातीय जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC)
    • वर्ष 2011 में शुरू की गई SECC का उद्देश्य परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करना तथा  जाति विवरण एकत्र करना था।
    • यह नियमित जनगणना से अलग थी और वंचितों की पहचान करने और कल्याण लक्ष्यीकरण में सहायता के लिए आयोजित की गई थी।
    • SECC से डेटा सामाजिक न्याय मंत्रालय को सौंप दिया गया।
    • हालाँकि, असंगत जाति नाम प्रविष्टियों (46 लाख से अधिक भिन्नताएं) और वर्गीकरण चुनौतियों जैसे मुद्दों के कारण SECC से जाति डेटा अप्रकाशित है।
  • बिहार जाति सर्वेक्षण (वर्ष 2023)
    • राज्य सरकार द्वारा जाति-वार जनसंख्या, भूमि-स्वामित्व, आय और शिक्षा की स्थिति का आकलन करने के लिए यह सर्वेक्षण किया गया था।
    • इससे पता चला कि OBC और EBC की जनसंख्या 63.13% है, जबकि उच्च जातियों की जनसंख्या 15.52% है, जो पुरानी धारणाओं को चुनौती देता है।
    • राजनीतिक गति प्रदान करने के बावजूद, इसके प्रमुख परिणाम – जैसे आरक्षण को बढ़ाकर 65% करना – कानूनी रूप से असफल रहे और वित्तीय सहायता योजनाएँ बड़े पैमाने पर लागू नहीं हुईं।
  • कर्नाटक जातीय सर्वेक्षण (वर्ष 2025)
    • कर्नाटक सर्वेक्षण, जिसे वर्ष 2015 में सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण के रूप में शुरू किया गया था, यह देरी के बाद वर्ष 2025 में पूर्ण हुआ और जारी किया गया।
    • इसमें पाया गया कि OBC की आबादी 69.6% है, जबकि वोक्कालिगा और लिंगायत जैसे प्रमुख समूहों की संख्या अपेक्षा से कम बताई गई।
    • इस रिपोर्ट में OBC कोटा बढ़ाने और एक नई सबसे पिछड़ी श्रेणी बनाने की सिफारिश की गई थी, लेकिन इसका विरोध हुआ और अभी तक प्रमुख नीतिगत बदलावों को प्रभावित नहीं किया है।
  • तेलंगाना जाति सर्वेक्षण (वर्ष 2024– वर्ष 2025)
    • तेलंगाना का सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, राजनीतिक और जातिगत सर्वेक्षण मात्र 50 दिनों में पूरा हो गया, जिसमें लगभग 97% आबादी को शामिल किया गया।
    • इसमें पिछड़ी जातियों की संख्या 56.33%, अनुसूचित जातियों की संख्या 17.43%, अनुसूचित जनजातियों की संख्या 10.45% और मुसलमानों की संख्या 12.56% बताई गई, जिसके कारण त्वरित नीतिगत कार्रवाई की गई।
    • यह राज्य अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण को लागू करने वाला पहला राज्य बन गया और पिछड़ी जातियों के आरक्षण कोटे में पर्याप्त वृद्धि की, जिससे सर्वेक्षण के परिणामों पर कार्रवाई करने की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का पता चला।

भारत में जाति आधारित तथा सामाजिक न्याय से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद-15 – भेदभाव का निषेध

  • धारा (1): धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
  • धारा (4): राज्य को जाति-आधारित सकारात्मक कार्रवाई सहित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है।

अनुच्छेद-16 – सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता

  • धारा (1): जाति, धर्म या अन्य कारकों के आधार पर भेदभाव के बिना सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता की गारंटी देता है।
  • धारा (4): राज्य को सार्वजनिक रोजगार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देता है, यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें सरकारी नौकरियों तक उचित पहुँच प्राप्त हो।

अनुच्छेद-17 – अस्पृश्यता का उन्मूलन

  • किसी भी रूप में अस्पृश्यता को समाप्त करता है तथा इसके अभ्यास पर रोक लगाता है। 
  • उल्लंघन के लिए दंड: यह कानून के तहत दंडनीय अपराध है।

अनुच्छेद-46 – अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना

  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत: राज्य अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes- SC), अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes- ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (Other Backward Classes- OBC) के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा और उन्हें सामाजिक अन्याय एवं शोषण से बचाएगा।

अनुच्छेद-330 – जनता का प्रतिनिधित्व (आरक्षित सीटें)

  • अनुसूचित जातियों (SC) तथा अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में आरक्षित सीटें आवंटित करता है।

अनुच्छेद-335 – सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे

  • अनुच्छेद-335 में यह प्रावधान है कि सार्वजनिक सेवाओं में पदोन्नति के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर इस प्रकार विचार किया जाना चाहिए, जिससे उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके, लेकिन इसमें इस बात पर भी जोर दिया गया है कि उनके दावों से प्रशासन की कार्यकुशलता प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

अनुच्छेद-340 – पिछड़े वर्गों की स्थिति की जाँच के लिए आयोग

  • राष्ट्रपति को पिछड़े वर्गों की स्थिति, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और उनके उत्थान के लिए आवश्यक उपायों की जाँच करने के लिए एक आयोग नियुक्त करने का अधिकार देता है।
  • OBC की स्थिति का मूल्यांकन करने और सकारात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने के लिए काका कालेलकर आयोग (1953) और मंडल आयोग (1979) की स्थापना इसी अनुच्छेद के तहत की गई थी।

अनुच्छेद-341 और 342 – अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ

  • अनुच्छेद-341: यह परिभाषित करता है कि अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) कौन होगी, ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़ी जातियों का एक विशेष वर्ग, जो आरक्षित सीटों और लाभों का हकदार है।
  • अनुच्छेद-342: यह परिभाषित करता है कि अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) कौन होगी, जो SC के समान सुरक्षा और लाभों का हकदार एक अन्य समूह है।

जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों है?

  • सामाजिक और आर्थिक असमानताओं की पहचान करना: जाति जनगणना समूहों में शिक्षा, आय और संसाधनों में अंतर को उजागर करती है।
    • उदाहरण के लिए, बिहार के सर्वेक्षण से पता चला कि OBC/EBC जनसंख्या का 63% हिस्सा हैं, लेकिन वे लगातार पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं।
  • साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सक्षम करना: सटीक डेटा वंचित जातियों के लिए लक्षित कल्याणकारी योजनाओं को डिजाइन करने में मदद करता है।
    • तेलंगाना ने अपने सर्वेक्षण का उपयोग BC आरक्षण बढ़ाने और उचित लाभ के लिए SC कोटा को उप-वर्गीकृत करने के लिए किया।
  • पुराने जनसंख्या अनुमानों को अद्यतित करना: वर्तमान नीतियाँ वर्ष 1931 के जाति डेटा पर निर्भर करती हैं, जो अब जमीनी हकीकत को नहीं दर्शाती हैं।
    • बिहार ने खुलासा किया कि OBC संख्या पहले की अपेक्षा बहुत अधिक है, जिसने आरक्षण बहस को नया रूप दिया है।
  • कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में सुधार: जाति-स्तर, गाँव-स्तर के डेटा विकास कार्यक्रमों के सटीक कार्यान्वयन को सक्षम बनाते हैं।
    • BPL परिवारों को ₹2 लाख देने की बिहार की योजना इसके सर्वेक्षण निष्कर्षों से सूचित की गई थी।
  • अंतर-समूह असमानताओं को संबोधित करना: सर्वेक्षण व्यापक समूहों के भीतर असमानताओं को उजागर करते हैं, जिससे निष्पक्ष आंतरिक आवंटन संभव होता है।
    • तेलंगाना ने सबसे अधिक हाशिए पर पड़ी जातियों को बेहतर ढंग से लक्षित करने के लिए SC कोटा को तीन समूहों में विभाजित किया।
  • सकारात्मक कार्रवाई और सामाजिक न्याय को मजबूत करना: अद्यतित डेटा यह सुनिश्चित करता है कि आरक्षण और कोटा वर्तमान जातिगत वास्तविकताओं के साथ संरेखित हों।
    • कर्नाटक की रिपोर्ट ने उपेक्षित OBC वर्गों के लिए सबसे पिछड़ा वर्ग (Most Backward Classes- MBC) समूह बनाने का प्रस्ताव दिया।
  • सार्वजनिक जागरूकता तथा राजनीतिक जवाबदेही को बढ़ावा देना: जातिगत डेटा प्रकाशित करने से सार्वजनिक बहस छिड़ती है और सरकारें सामाजिक समानता पर कार्य करने के लिए प्रेरित होती हैं।
    • बिहार के सर्वेक्षण ने यादव और कुर्मी जैसी OBC उप-जातियों के बीच राजनीतिक लामबंदी को बढ़ावा दिया।

जातीय जनगणना के नुकसान

  • जातिगत विभाजन को मजबूत करना: जातीय जनगणना से जातिगत पहचान को समाप्त करने के बजाय उसे मजबूत करने का जोखिम है।
    • इस डेटा से जातिगत चेतना बढ़ सकती है तथा जाति आधारित पहचान पर अधिक जोर दिया जा सकता है, जिससे एकता के बजाय सामाजिक विभाजन को बढ़ावा मिलेगा।
  • राजनीतिक दुरुपयोग और शोषण: राजनेता चुनावी लाभ के लिए जातिगत डेटा में हेर-फेर कर सकते हैं, जिससे वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए, राजनीतिक दल उन समुदायों से समर्थन प्राप्त करने के लिए विशिष्ट समूहों के लिए आरक्षण या कोटा बढ़ाने की माँग करने के लिए जाति-आधारित डेटा का उपयोग कर सकते हैं।
  • उप-जातियों के बीच तनाव का निर्माण: विस्तृत जाति डेटा बड़ी श्रेणियों के भीतर उप-जातियों के बीच असमानताओं को प्रदर्शित करके अंतर-जाति संघर्षों को बढ़ा सकता है।
    • तेलंगाना में, SC कोटे के भीतर उप-वर्गीकरण ने विभिन्न SC उप-जातियों के बीच तनाव पैदा किया, जिसमें कुछ ने लाभों के असमान आवंटन का दावा किया।
  • कानूनी और संवैधानिक चुनौतियाँ: नया जातिगत डेटा आरक्षण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% सीमा से आगे बढ़ा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, बिहार में आरक्षण सीमा को बढ़ाकर 65% करने के प्रस्ताव को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसकी संवैधानिकता पर संदेह जताया।
  • प्रशासनिक जटिलता: राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत डेटा एकत्र करना और उसका प्रसंस्करण करना तार्किक रूप से चुनौतीपूर्ण है।
    • SECC, 2011 ने जातिगत नामों (46 लाख से अधिक भिन्नताओं के साथ) के प्रबंधन की कठिनाई को दर्शाया, जिससे डेटा वर्गीकरण और मानकीकरण में समस्याएँ पैदा हुईं।
  • अनपेक्षित सामाजिक तनाव का जोखिम: जातिगत डेटा प्रकाशित करने से सामाजिक और अंतर-जाति तनाव उत्पन्न हो सकता है, जो राजनीतिक रूप से संवेदनशील है।
    • कर्नाटक में, जातिगत सर्वेक्षण के निष्कर्षों के कारण प्रमुख जातियों (वोक्कालिगा, लिंगायत) ने विरोध किया, जिन्होंने महसूस किया कि उनकी संख्या कम बताई गई थी, जिसके कारण नए सर्वेक्षणों की माँग हुई।
  • लागत और वित्तीय बोझ: जाति जनगणना करना महंगा और संसाधन-गहन है, विशेषतः जब बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण किए जाते हैं।
    • बिहार सर्वेक्षण, नीति निर्माण के लिए उपयोगी होने के बावजूद, इस पैमाने पर जातिगत डेटा संग्रह करने के वित्तीय बोझ को दर्शाता है।
  • जटिल कार्यप्रणाली और डेटा संग्रह: राष्ट्रीय स्तर पर सटीक जातीय जनगणना करने की जटिलता में डेटा संग्रह, सत्यापन और वर्गीकरण में चुनौतियाँ शामिल हैं।
    • SECC, 2011 में डेटा सत्यापन तथा मानकीकरण में समस्याएँ आईं, जिससे विभिन्न समुदायों में जाति से संबंधित जानकारी को समेकित करना मुश्किल हो गया।
  • डेटा असंगतताएँ और वर्गीकरण मुद्दे: क्षेत्रों में जाति के नाम और पहचान में काफी भिन्नता है, जिससे जाति श्रेणियों को मानकीकृत करना मुश्किल हो जाता है।
    • SECC, 2011 में, 46 लाख से अधिक जाति नाम भिन्नताएँ दर्ज की गईं, जिससे वर्गीकरण में असंगतताएँ पैदा हुईं और सटीक डेटा विश्लेषण में बाधा उत्पन्न हुई।
  • नैतिक चिंताएँ और गोपनीयता संबंधी मुद्दे: जाति आधारित डेटा एकत्र करने से संवेदनशील जानकारी को कैसे संगृहीत, साझा और उपयोग किया जाता है, इस बारे में महत्त्वपूर्ण गोपनीयता चिंताएँ पैदा होती हैं।
    • डेटा के दुरुपयोग या जाति आधारित भेदभाव के डर से लोग अपनी जाति की सही रिपोर्ट करने से हतोत्साहित हो सकते हैं, जिससे जनगणना डेटा की अखंडता प्रभावित होती है।

क्या भारत में जाति अभी भी प्रासंगिक है?

  • सामाजिक संदर्भ में जाति: जाति भारत के सामाजिक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो आपसी वार्ता, विवाह और सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है।
    • जाति आधारित सजातीय विवाह मजबूत बना हुआ है, जिसमें 90% से अधिक विवाह जाति के भीतर होते हैं (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण)।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में, जातिगत नेटवर्क अभी भी नौकरियों, भूमि और शिक्षा तक पहुँच को नियंत्रित करते हैं।
  • राजनीति में जाति: भारतीय राजनीति में जाति एक शक्तिशाली पक्ष बनी हुई है, जिसमें पार्टियाँ वोट हासिल करने के लिए जाति के आधार पर लामबंद होती हैं।
    • बिहार के जाति सर्वेक्षण से पता चला है कि OBC और EBC जनसंख्या का 63.13% हिस्सा बनाते हैं, जिससे आरजेडी और जेडी(यू) जैसे राजनीतिक दलों को समर्थन को मजबूत करने के लिए इन समूहों को शामिल करने के लिए प्रेरित किया गया।
  • जाति के आधार पर आर्थिक असमानताएँ बनी: आर्थिक असमानताएँ जाति के साथ गहराई से जुड़ी हुई हैं। सकारात्मक कार्रवाई के बावजूद, SC, ST और OBC जैसे हाशिए पर पड़े समूह आर्थिक पिछड़ेपन का सामना करना जारी रखते हैं।
    • NFHS-4 के अनुसार, SC/ST समुदायों के परिवारों का प्रति व्यक्ति व्यय सामान्य जाति के परिवारों की तुलना में कम है, जो आर्थिक असमानता को दर्शाता है।
  • जाति एवं शिक्षा: हाशिए पर पड़े समुदायों में शिक्षा के स्तर में वृद्धि के बावजूद, शिक्षा तक पहुँच में जाति आधारित भेदभाव अभी भी मौजूद है।
    • SECC, 2011 के डेटा और रिपोर्ट SC और ST के बीच कम साक्षरता दर और स्कूलों में उच्च ड्रॉपआउट दरों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पर प्रकाश डालती हैं।
  • शहरीकरण में जाति: घट रही है लेकिन अभी भी मौजूद: जबकि शहरी क्षेत्रों (विशेष रूप से आईटी और सेवा क्षेत्रों में) में जाति की भूमिका कम होती जा रही है, फिर भी यह आवास, नौकरियों और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करती है।
    • शहरीकरण के बावजूद, हाउसिंग सोसायटी और कार्यस्थल भेदभाव अक्सर जाति आधारित पूर्वाग्रहों को दर्शाते हैं।
  • जातिगत और सकारात्मक कार्रवाई: शिक्षा, रोजगार और राजनीति में आरक्षण जैसी सकारात्मक कार्रवाई नीति निर्माण में जाति केंद्रित बनी हुई है।
    • मंडल आयोग की सिफारिशों (1979) में OBC आबादी का अनुमान लगाने के लिए जाति आधारित आँकड़ों का प्रयोग किया गया था और यह आरक्षण प्रणाली को सूचित करता है।
  • जाति आधारित और सामाजिक न्याय आंदोलन: दलित अधिकारों का समर्थन करने वाले आंदोलन (जैसे- अंबेडकरवादी बौद्ध धर्म या भीम आर्मी) सम्मान, समानता और न्याय के लिए अपनी लड़ाई में जाति पर जोर देते हैं।
    • 1970 के दशक में दलित पैंथर्स (महाराष्ट्र) और हाल ही में दलितों के नेतृत्व वाली राजनीतिक पार्टियाँ दर्शाती हैं कि जाति पहचान और सामाजिक न्याय की वकालत का एक मुख्य हिस्सा बनी हुई है।

भारत में जातीय जनगणना के संदर्भ में आगे की राह

  • मानकीकरण और सुसंगत वर्गीकरण सुनिश्चित करना: SECC, 2011 जैसी समस्याओं से बचने के लिए, राज्यों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए एक मानकीकृत राष्ट्रीय जाति सूची विकसित की जानी चाहिए।
    • भारत के महापंजीयक जाति श्रेणियों और उप-जातियों के लिए एक एकीकृत ढाँचा विकसित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ काम कर सकते हैं।
  • डेटा संग्रह को पारदर्शी और समावेशी बनाना: जातीय जनगणना को पक्षपात या हेर-फेर से बचने के लिए हाशिए पर पड़े समुदायों के साथ पर्याप्त परामर्श के साथ पारदर्शी तरीके से आयोजित किया जाना चाहिए।
  • सटीक डेटा संग्रह और वर्गीकरण सुनिश्चित करने के लिए नागरिक समाज संगठनों, राजनीतिक दलों और स्वतंत्र विशेषज्ञों को शामिल करना।
  • डेटा की गुणवत्ता और उचित सत्यापन सुनिश्चित करना: पिछले सर्वेक्षणों में डेटा की असंगतियों को देखते हुए, जाति डेटा को सटीक और दोहराव से मुक्त सुनिश्चित करने के लिए कठोर सत्यापन प्रक्रियाओं की आवश्यकता है।
    • जाति से संबंधित डेटा को सुसंगत बनाने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम जैसी तकनीक का उपयोग करना।
  • लक्षित नीति कार्यान्वयन के लिए डेटा का उपयोग करना: जातीय जनगणना को नीति-निर्माण को सीधे सूचित करना चाहिए, यह सुनिश्चित करके कि आरक्षण जैसी सकारात्मक कार्रवाई नीतियाँ वर्तमान और सटीक डेटा पर आधारित हैं।
    • कल्याणकारी योजनाओं, आरक्षण कोटा और विकास पहलों को परिष्कृत करने के लिए जाति आधारित डेटा का उपयोग करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि सबसे वंचित समूहों को पर्याप्त समर्थन मिले।
  • कानूनी और संवैधानिक स्पष्टता सुनिश्चित करना: विशेष रूप से आरक्षण नीतियों पर इसके प्रभाव के संबंध में जातीय जनगणना के लिए स्पष्ट कानूनी समर्थन होना चाहिए।
    • जनगणना अधिनियम (1948) में संशोधन करना या नया कानून पेश करना, जो संवैधानिक सीमाओं (जैसे 50% आरक्षण सीमा) का उल्लंघन किए बिना डेटा-संचालित शासन के लिए जातीय जनगणना को अनिवार्य बनाता है।
  • राजनीतिक लाभ से अधिक सामाजिक न्याय पर ध्यान देना: जाति डेटा के राजनीतिक शोषण से बचने के लिए, जातीय जनगणना डेटा का उपयोग केवल सामाजिक न्याय तथा शासन उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए, न कि वोट बैंक की राजनीति के लिए।
    • जाति आधारित डेटा के उपयोग की निगरानी के लिए एक गैर-पक्षपाती निकाय की स्थापना करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि इसका उपयोग नीति विकास के लिए किया जाए, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।
  • जन जागरूकता और भागीदारी को मजबूत करना: जन जागरूकता अभियानों से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि नागरिक जाति डेटा संग्रह के महत्त्व और गोपनीयता को समझें।
    • जातीय जनगणना की आवश्यकता को समझाने, दुरुपयोग के बारे में आशंकाओं को दूर करना तथा प्रक्रिया में व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित करना।

निष्कर्ष

आगामी वर्ष 2021 की जनगणना के लिए स्वीकृत जातीय जनगणना, डेटा-संचालित शासन के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह अद्यतन जाति जनसांख्यिकी प्रदान करके, सकारात्मक कार्रवाई और लक्षित कल्याण को मजबूत कर सकती है, लेकिन इसकी सफलता जाति विभाजन या राजनीतिक दुरुपयोग को मजबूत करने से बचने के लिए पारदर्शी, मानकीकृत कार्यान्वयन पर निर्भर करती है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.