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Lokesh Pal
October 16, 2025 02:41
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संविधान लागू होने के 75 वर्ष बाद, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर हमला, आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार द्वारा आत्महत्या तथा अन्य दलित अत्याचार संबंधी घटनाएँ दर्शाती हैं कि जातिगत पूर्वाग्रह अभी भी संस्थाओं और समाज में व्याप्त है, जो संवैधानिक नैतिकता को कमजोर कर रहा है।
जातिगत भेदभाव भारत में अधूरी नैतिक क्रांति का द्योतक है। हालाँकि कानून राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, लेकिन सच्ची समानता के लिए सामाजिक और नैतिक परिवर्तनों की आवश्यकता है। जैसा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि केवल राजनीतिक समानता सामाजिक असमानता को समाप्त नहीं कर सकती। वास्तविक न्याय और मानवीय लोकतंत्र की स्थापना के लिए जनमानस में संवैधानिक नैतिकता, सम्मान और न्याय की भावना को दृढ़ करना अनिवार्य है।
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