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जनगणना में देरी और इसके चिंताजनक प्रभाव

Lokesh Pal August 06, 2024 04:04 106 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय बजट 2024-25 में जनगणना के लिए ₹1,309.46 करोड़ आवंटित किए गए, जो वर्ष 2021-22 से काफी कम है, जब दशकीय प्रक्रिया के लिए ₹3,768 करोड़ आवंटित किए गए थे, जिससे काफी देरी का संकेत मिलता है।

  • वर्ष 2021 की जनगणना, जो पहले 2020 में शुरू होने वाली थी, अभी भी स्थगित है।

जनगणना के बारे में 

भारत में जनगणना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है। संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के संदर्भ में संविधान में जनगणना अभ्यास का बार-बार उल्लेख किया गया है।

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
    • प्राचीन एवं मध्यकालीन काल
      • ऋग्वेद: ऋग्वेद से पता चलता है कि भारत में 800-600 ईसा पूर्व के दौरान किसी प्रकार की जनसंख्या गणना की जाती थी।
      • अर्थशास्त्र: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कौटिल्य द्वारा लिखित इस ग्रंथ में कराधान के लिए राज्य की नीति के एक उपाय के रूप में जनसंख्या के आँकड़ों के संग्रह का प्रावधान किया गया था।
      • आइन-ए-अकबरी: मुगल राजा अकबर के शासनकाल के दौरान, प्रशासनिक रिपोर्ट ‘आइन-ए-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योग, धन और कई अन्य विशेषताओं से संबंधित व्यापक डेटा भी शामिल था।
    • स्वतंत्रता-पूर्व काल: जनगणना का इतिहास वर्ष 1800 से शुरू हुआ, जब इंग्लैंड ने अपनी जनगणना शुरू की थी।
      • इसी क्रम में, इलाहाबाद (1824) और बनारस (1827-28) में जेम्स प्रिंसेप द्वारा जनगणना आयोजित की गई।
      • किसी भारतीय शहर की पहली पूर्ण जनगणना वर्ष 1830 में हेनरी वाल्टर द्वारा ढाका में की गई थी।
      • पहली गैर-समकालिक जनगणना: यह भारत में गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासनकाल के दौरान वर्ष 1872 में आयोजित की गई थी।
      • पहली समकालिक जनगणना: पहली समकालिक जनगणना ब्रिटिश शासन के तहत वर्ष 1881 में डब्ल्यू. सी. प्लॉडेन (भारत के जनगणना आयुक्त) द्वारा की गई थी।
    • स्वतंत्र भारत : स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना वर्ष 1951 में हुई थी, जो इसकी सतत् शृंखला की सातवीं जनगणना थी।
      • इस जनगणना की गणना अवधि 9 से 28 फरवरी, 1951 तक थी।
  • संचालित: दसवर्षीय जनगणना गृह मंत्रालय के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा संचालित की जाती है।
    • वर्ष 1951 तक, जनगणना संगठन प्रत्येक जनगणना के लिए तदर्थ आधार पर स्थापित किया जाता था।
  • उल्लेखित: जनसंख्या जनगणना भारतीय संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत एक संघ का विषय है।
    • यह संविधान की सातवीं अनुसूची की क्रम संख्या 69 पर सूचीबद्ध है।
  • आवधिकता: यह कानूनी आवश्यकता नहीं बल्कि जनगणना की उपयोगिता है जिसने इसे एक स्थायी नियमित अभ्यास बना दिया है।
    • संविधान में यह नहीं बताया गया है कि जनगणना कब की जानी है या इसकी आवृत्ति क्या होनी चाहिए।
    • भारत की जनगणना अधिनियम 1948, जो जनगणना करने के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, में भी इसके समय या आवधिकता का उल्लेख नहीं किया गया है।
      • इसलिए, कोई संवैधानिक या कानूनी आवश्यकता नहीं है कि जनगणना प्रत्येक 10 वर्ष में की जाए।
      • हालाँकि, यह अभ्यास वर्ष 1881 से प्रत्येक दशक के पहले वर्ष में किया जाता रहा है।
        • कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2021 की जनगणना स्थगित करनी पड़ी, जो भारत के जनगणना संचालन के 150 वर्ष के इतिहास में पहली बार हुआ है।
        • अधिकांश अन्य देश भी अपनी जनगणना के लिए 10-वर्षीय चक्र का पालन करते हैं।
        • ऑस्ट्रेलिया जैसे देश हैं, जो प्रत्येक पाँच वर्ष में जनगणना करते हैं।
  • अनुसूची: जनगणना अनिवार्य रूप से एक दो-चरणीय प्रक्रिया है, जिसमें घरों की सूची बनाना और गणना करने का कार्य शामिल है, जिसके बाद वास्तविक जनसंख्या की गणना की जाती है।
    • जनगणना वर्ष से पहले वर्ष के मध्य में घरों की सूची बनाना और गणना करने का कार्य होता है। जनसंख्या की गणना फरवरी के दो से तीन सप्ताह में होती है।
      • जनगणना द्वारा प्रकट किए गए आँकड़े जनगणना वर्ष में 1 मार्च की मध्य रात्रि तक भारत की जनसंख्या को दर्शाते हैं।
      • फरवरी में गणना अवधि के दौरान हुए जन्म और मृत्यु का लेखा-जोखा रखने के लिए, गणनाकर्ता संशोधन करने हेतु मार्च के प्रथम सप्ताह में पुनः घरों में जाते हैं।
    • इसके अलावा भी कई मध्यवर्ती चरण हैं और जनगणना की तैयारी आमतौर पर तीन से चार वर्ष पहले शुरू हो जाती है। संपूर्ण डेटा के संकलन और प्रकाशन में भी महीनों से लेकर कुछ वर्ष तक का समय लग जाता है।
  • अपनाई गई प्रक्रिया 
    • प्रश्न और प्रपत्र: जनगणना डेटा प्रत्येक घर में जाकर और प्रश्न पूछकर तथा जनगणना प्रपत्र भरकर विवरण एकत्र करके लिया जाता है।
    • गोपनीय जानकारी: प्रक्रिया के दौरान एकत्रित की गई जानकारी गोपनीय होती है। वास्तव में, यह जानकारी न्यायालयों के लिए भी सुलभ नहीं है।
    • डेटा प्रोसेसिंग केंद्रों तक परिवहन: फॉर्म को देश भर के 15 शहरों में स्थित डेटा प्रोसेसिंग केंद्रों तक पहुँचाया जाता है।
    • इंटेलिजेंस करेक्टर रिकग्नीशन (Intelligent Character Recognition- ICR) सॉफ्टवेयर: यह तकनीक भारत में जनगणना 2001 में आई थी और यह दुनिया भर की जनगणनाओं के लिए मानक बन गई है।
    • डेटा की स्कैनिंग और निष्कर्षण: इसमें उच्च गति पर जनगणना प्रपत्रों की स्कैनिंग और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का उपयोग करके स्वचालित रूप से डेटा निकालना शामिल है।

जनगणना कराने की आवश्यकता

जनगणना प्राथमिक, प्रामाणिक आँकड़े तैयार करती है, जो प्रत्येक सांख्यिकीय उद्यम की रीढ़ बन जाती है तथा समस्त योजना, प्रशासनिक और आर्थिक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को सूचित करती है।

  • भविष्य की दिशा तय करने के लिए: जनसंख्या जनगणना स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर मानव संसाधन, जनसांख्यिकी, संस्कृति और आर्थिक संरचना की स्थिति के बारे में बुनियादी आँकड़े प्रदान करती है। यह सारी जानकारी राष्ट्र के भविष्य की दिशा तय करने और उसे आकार देने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • विकास पर प्रभाव: यह वह आधार है जिस पर प्रत्येक सामाजिक, आर्थिक और अन्य संकेतक निर्मित होते हैं। विश्वसनीय डेटा की कमी से भारत के हर संकेतक पर असर पड़ने की संभावना है और सभी प्रकार की विकासात्मक पहलों की प्रभावकारिता और दक्षता प्रभावित हो सकती है।
  • सामाजिक न्याय: वर्ष 2011 के बाद जनगणना के अभाव में, हमारे देश की अधिकांश आबादी कई योजनाओं, लाभों और सेवाओं तक पहुँचने में असमर्थ है।
  • महिला सशक्तीकरण: संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने वाले पिछले साल संसद में पारित महिला आरक्षण अधिनियम का कार्यान्वयन जनगणना के आयोजन का इंतजार कर रहा है।
  • निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन: संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 में विशेष रूप से यह प्रावधान किया गया है कि निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण वर्ष 2026 के बाद आयोजित पहली जनगणना के बाद ही किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) पर स्पष्टीकरण: NPR में नए प्रश्नों को शामिल करने का कुछ राज्यों और नागरिक समूहों द्वारा विरोध किया गया है क्योंकि नागरिकता नियम, 2003 के अनुसार, NPR राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के संकलन की दिशा में पहला कदम है।
    • हालाँकि, केंद्र ने स्पष्ट किया है कि NPR डेटा का उपयोग एनआरसी की तैयारी में नहीं किया जाएगा।
    • अगली जनगणना के लिए NPR के प्रारूप में “मातृभाषा, पिता और माता का जन्म स्थान और अंतिम निवास स्थान” जैसे प्रश्न हैं – जो वर्ष 2010 में तैयार की गई वर्ष 2011 की जनगणना के NPR में नहीं थे।
      • NPR का निर्माण: देश में सामान्य निवासियों का एक व्यापक डेटाबेस बनाने के लिए, गाँवों और कस्बों तथा अन्य ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों के विवरण के साथ NPR पहली बार वर्ष 2010 में जनगणना 2011 के हाउसलिस्टिंग व आवास जनगणना चरण के दौरान तैयार किया गया था।
      • वर्ष 2015 में जन्म, मृत्यु और प्रवास के कारण होने वाले बदलावों को शामिल करते हुए इसे अपडेट किया गया। यह प्रक्रिया नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत शुरू की गई थी।
  • जाति संबंधी जानकारी: हाशिए पर पड़े समुदायों की आर्थिक भलाई को ठीक से समझने के लिए केंद्र द्वारा जाति-आधारित जनगणना कराए जाने की माँग बढ़ रही है।
    • अब केंद्र को यह निर्णय लेना है कि अगली जनगणना में जाति संबंधी जानकारी एकत्रित की जाए या नहीं।

जनगणना आयोजित करने का महत्त्व

भारतीय जनगणना भारत के लोगों की विभिन्न विशेषताओं पर विविध सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत है, जिसका उपयोग शोधकर्ताओं और जनसांख्यिकीविदों द्वारा जनसंख्या की वृद्धि और प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने और अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है।

  • बेहतर शासन: जनगणना के आँकड़े नीति निर्माताओं और निर्णयकर्ताओं को सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे वे प्रभावी नीतियाँ तैयार कर सकते हैं, संसाधन आवंटित कर सकते हैं तथा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढाँचे एवं सामाजिक कल्याण जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए योजना बना सकते हैं।
  • सीमांकन तथा चुनावी प्रतिनिधित्व: जनगणना के आँकड़े चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों के लिए सीटों की संख्या और सीमाओं को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और जनसंख्या के आकार तथा वितरण के आधार पर निष्पक्ष प्रतिनिधित्व और राजनीतिक शक्ति का आनुपातिक आवंटन सुनिश्चित करते हैं।
  • अनुदान देना तथा संसाधन आवंटन: जनगणना के आँकड़े जनसंख्या के आकार और जनसांख्यिकीय आधार पर संसाधनों और सेवाओं के न्यायसंगत वितरण में मदद करते हैं और स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों और अन्य आवश्यक सुविधाओं जैसी सार्वजनिक सेवाओं के लिए धन के आवंटन का निर्धारण करने में मदद करते हैं।
    • वित्त आयोग जनगणना के आँकड़ों से उपलब्ध जनसंख्या के आँकड़ों के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान करता है।
    • जनगणना के आँकड़े सामाजिक गतिशीलता को समझने, असमानताओं की पहचान करने और सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए रणनीति विकसित करने में मदद करते हैं।
    • जनगणना के आँकड़े व्यापारिक घरानों और उद्योगों के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं, ताकि वे अपने व्यवसाय को मजबूत कर सकें और अधिक अछूते क्षेत्रों में प्रवेश करने की योजना बना सकें।
  • परिवर्तनों की निगरानी: जनगणना के नियमित आयोजन से जनसंख्या का व्यापक और अद्यतन डेटा उपलब्ध होता है। वे समय के साथ जनसंख्या वृद्धि, प्रजनन दर, मृत्यु दर, प्रवासन प्रवृत्तियों और अन्य जनसांख्यिकीय संकेतकों में परिवर्तनों की निगरानी करने में मदद करते हैं।
  • पर्यावरणीय पहलू: जनगणना और सर्वेक्षण सूचना के लिए उपलब्ध कराए जा रहे हैं और इससे कृषि, वायु और जलवायु, ऊर्जा, पर्यावरण व्यय, मत्स्यपालन, जल आदि सहित पर्यावरण संबंधी आँकड़ों का विश्लेषण करने में मदद मिल सकती है।

विलंबित जनगणना से संबंधित चिंताएँ

वर्ष 2021 की जनगणना में देरी से भारत के राजनीतिक और प्रशासनिक ढाँचे, विशेष रूप से लोकसभा सीटों के संतुलन पर काफी प्रभाव पड़ता है।

  • विलंबित परिसीमन: जनगणना के स्थगन से परिसीमन प्रक्रिया में देरी होती है, जो नवीनतम जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • लोकसभा की वर्तमान संरचना वर्ष 1971 की जनगणना पर आधारित है और आगे की देरी से पुराने डेटा का उपयोग जारी है, जिससे निष्पक्ष प्रतिनिधित्व प्रभावित होता है।
  • असंतुलित प्रतिनिधित्व: तीव्र जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों का प्रतिनिधित्व कम रह सकता है, जबकि धीमी वृद्धि वाले राज्यों का प्रतिनिधित्व असमानुपातिक रह सकता है।
    • उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों को दक्षिणी राज्यों की कीमत पर अधिक सीटें मिल सकती हैं, जिनकी जनसंख्या वृद्धि दर धीमी है।
  • सामाजिक-राजनीतिक तनाव में वृद्धि: संसाधन आवंटन और राजनीतिक शक्ति के संबंध में क्षेत्रीय असमानताओं और तनावों में संभावित वृद्धि, विशेष रूप से उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच।
    • दक्षिणी राज्यों ने पुरानी जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर पुनर्आवंटन के कारण राजनीतिक प्रभाव खोने की चिंता व्यक्त की है।
  • अप्रचलित नीतिगत ढाँचे: पुराने आँकड़ों पर आधारित नीतियाँ वर्तमान जनसांख्यिकीय वास्तविकताओं को संबोधित नहीं कर सकती हैं, जिससे अकुशलताएँ पैदा होती हैं।
    • स्वास्थ्य और शिक्षा नीतियाँ जनसंख्या की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल हो सकती हैं, जिससे सेवा वितरण और योजना पर असर पड़ सकता है।
  • नीति एवं नियोजन चुनौतियाँ: प्रभावी नीति निर्माण और विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए सटीक जनसंख्या आँकड़े आवश्यक हैं।
    • जनगणना के विलंबित आँकड़ों से धन तथा संसाधनों का वितरण प्रभावित होता है, जिससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कार्यक्रम प्रभावित होते हैं, जो अद्यतन जनसंख्या आँकड़ों पर निर्भर होते हैं।
    • केंद्र सरकार को प्रत्येक राज्य को परिवारों और मजदूरों की संख्या के आधार पर वार्षिक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme- MGNREGS) निधि आवंटित करनी होती है। यह डेटा जनगणना से प्राप्त होता है। हालाँकि, ऐसी संख्या के अभाव में, केंद्र सरकार प्रत्येक राज्य सरकार के व्यय और पिछले वित्तीय वर्ष के अव्ययित धन के आधार पर धन आवंटित करती है।

जनगणना शीघ्रातिशीघ्र कराने के लिए सरकार द्वारा की गई कार्रवाई

कोविड-19 महामारी के कारण हुई देरी के बाद जल्द-से-जल्द जनगणना कराने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:

  • वर्षं 2025-2026 की जनगणना बजट में प्रावधान: यह आवश्यक है कि वर्ष 2025- 2026 की जनगणना बजट में पर्याप्त प्रावधान किए जाएँ, ताकि स्थगित की गई वर्ष 2021 की जनगणना वर्षं 2025 में प्रथम चरण के पूरा होने पर यथाशीघ्र, वर्ष 2026 में आयोजित की जा सके, जिसमें घरों की सूची बनाना और आवासों की गणना तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) को अद्यतन करना शामिल होगा।
  • प्रारंभिक व्यवस्थाएँ करना: जनगणना के लिए प्रारंभिक व्यवस्थाएँ, जैसे कि प्रशासनिक क्षेत्रों के अद्यतन मानचित्र और सूचियाँ तैयार करना, जनगणना प्रश्नावली के प्रारूप का पूर्व-परीक्षण, अधिकारियों और मुख्य कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना, जो जनगणना के आँकड़ों को डिजिटल रूप से (अर्थात् मोबाइल ऐप पर) एकत्रित करने के लिए बड़ी संख्या में क्षेत्रीय कर्मचारियों को प्रशिक्षित करेंगे, क्षेत्रीय कार्य की योजना बनाना, लॉजिस्टिक्स, बजट बनाना – ये सभी कार्य जनगणना की प्रत्याशा में पिछले कुछ वर्षों से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जनगणना निदेशालयों में किए जा रहे हैं।
  • बजटीय आवंटन: वर्ष 2024-25 के बजट में आवंटित ₹1,309.46 करोड़ की राशि का उपयोग जनगणना विभाग द्वारा कई प्रारंभिक गतिविधियों जैसे कि गणना क्षेत्रों को अंतिम रूप देना, प्रश्नावली को अंतिम रूप देना, प्रस्तावित डिजिटल जनगणना में मुख्य कर्मचारियों का पुनश्चर्या प्रशिक्षण और सारिणीकरण योजना को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।

आगे की राह

संसद में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व और प्रभावी शासन के लिए जनगणना प्रक्रिया में तेजी लाना बहुत आवश्यक है। निम्नलिखित कुछ सुझाए गए उपाय हैं जिन्हें अपनाने की आवश्यकता है:

  • डिजिटल-प्रथम जनगणना की आवश्यकता: आगामी जनगणना डिजिटल मोड और कागजी अनुसूचियों (प्रश्नावली/प्रपत्र) दोनों के माध्यम से की जाने वाली पहली जनगणना होगी।
    • गृह मंत्रालय ने दिसंबर में संसद को सूचित किया था कि आँकड़ों के संग्रह के लिए मोबाइल और वेब एप्लीकेशन तथा विभिन्न जनगणना-संबंधी गतिविधियों के प्रबंधन और निगरानी के लिए एक पोर्टल (CMMS) का विकास अब तक 24.84 करोड़ रुपये की लागत से किया जा चुका है।
    • अमेरिका जैसे देशों ने महामारी के दौरान सफलतापूर्वक डिजिटल जनगणना का संचालन किया।
  • चरणबद्ध जनगणना दृष्टिकोण: जनगणना 1-2 वर्षों में आयोजित की जा सकती है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2024 में शहरी क्षेत्रों से तथा वर्ष 2025 में ग्रामीण क्षेत्रों से होगी। चरणबद्ध दृष्टिकोण से संसाधनों का बेहतर आवंटन संभव होगा और विभिन्न क्षेत्रों में रसद संबंधी चुनौतियों का समाधान हो सकेगा।
    • ब्राजील ने अपनी वर्ष 2022 की जनगणना के लिए इस चरणबद्ध दृष्टिकोण का सफलतापूर्वक उपयोग किया।
  • अंतर को पाटना: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ( National Family Health Survey- NFHS) और आर्थिक सर्वेक्षण जैसे सर्वेक्षणों के आँकड़ों का उपयोग पूर्ण जनगणना होने तक नीतिगत निर्णय लेने के लिए किया जाना चाहिए।
    • राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने सिफारिश की है कि जनगणना पूरी होने तक नीति नियोजन के लिए अंतरिम जानकारी उपलब्ध कराने हेतु विभिन्न सर्वेक्षणों के आँकड़ों को एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • आवश्यक संकेतकों के साथ सीमित जनगणना: डेटा एकत्र करने को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। आवश्यक संकेतकों पर ध्यान केंद्रित करने वाली सीमित जनगणना शासन के लिए महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान कर सकती है।
  • जनगणना कार्यों का विकेंद्रीकरण: प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए केंद्रीय समन्वय के साथ जनगणना कार्यों का संचालन करने के लिए राज्यों को सशक्त बनाना।
    • भारत संघ बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (वर्ष 2002) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने शासन में विकेंद्रीकरण के महत्त्व पर जोर दिया।
  • उप-वर्गीकरण: न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग ने कहा कि इस तरह के उप-वर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक मानदंड विकसित करने हेतु देशव्यापी सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना आवश्यक है।
    • यह उन सभी राज्यों के लिए भी आवश्यक होगा, जिनके पास जाति संरचना में व्यापक विविधता को देखते हुए अपनी स्वयं की राज्य-स्तरीय अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes- OBC) सूचियाँ हैं।
    • भारत में अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच आरक्षण लाभों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिए 2 अक्टूबर, 2017 को रोहिणी आयोग की स्थापना की गई थी।

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