केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के मदुरै के अरिटापट्टी (Arittapatti) में टंगस्टन खनन की अनुमति दी।
अरिटापट्टी (Arittapatti) के बारे में
जैव विविधता विरासत स्थल: तमिलनाडु का पहला एवं भारत का 35वाँ जैव विविधता विरासत स्थल।
पारिस्थितिकी महत्त्व: इसमें लैगर फाल्कन, शाहीन फाल्कन एवं बोनेली ईगल सहित 250 पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
यह भारतीय पैंगोलिन, सेलेंडर लोरिस एवं अजगरों का आवास है।
यह सात पहाड़ियों (इंसेलबर्ग) एवं तीन चेक बाँधों से घिरा हुआ है।
ऐतिहासिक महत्त्व: इसमें अनैकोंडन (Anaikondan) झील भी शामिल है, जिसका निर्माण 16वीं शताब्दी के पांडियन शासनकाल के दौरान किया गया था।
सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध, जिसमें महापाषाण संरचनाएँ, चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर, तमिल ब्राह्मी शिलालेख एवं जैन संरचनाएँ शामिल हैं।
जैव विविधता विरासत स्थल (Biodiversity Heritage Site- BHS) के बारे में
BHS उच्च जैव विविधता महत्त्व के पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जिनमें निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक घटक शामिल हैं:
जंगली एवं साथ ही पालतू प्रजातियों या अंतर-विशिष्ट श्रेणियों की समृद्धि।
उच्च स्थानिकवाद
दुर्लभ एवं खतरे वाली प्रजातियों, प्रमुख प्रजातियों, विकासवादी महत्त्व की प्रजातियों की उपस्थिति।
जीवाश्म संस्तरों द्वारा दर्शाए गए जैविक घटकों की पूर्व श्रेष्ठता एवं महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक, नैतिक या सौंदर्य मूल्य हैं तथा उनके साथ मानव जुड़ाव के दीर्घकालिक इतिहास के साथ या उसके बिना, सांस्कृतिक विविधता के रखरखाव के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत में जैव विविधता विरासत स्थल (BHS)
भारत में पहला BHS
नल्लूर इमली ग्रोव, बंगलूरू, कर्नाटक, वर्ष 2007 में घोषित।
नवीनतम जोड़
पश्चिम बंगाल में हल्दीर चार द्वीप एवं बीरमपुर-बागुरान जलपाई (वर्ष 2023)
सिक्किम में तुंगक्योंग धो (Tungkyong Dho) (वर्ष 2023)
गंधमर्दन पहाड़ी (वर्ष 2023) एवं ओडिशा में गुप्तेश्वर वन (वर्ष 2024)।
कानूनी ढाँचा
जैविक विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37(1) के तहत शासित।
राज्य सरकारें, स्थानीय निकायों के परामर्श से, जैव विविधता महत्त्व के क्षेत्रों को अधिसूचित कर सकती हैं।
सामुदायिक भूमिका
BHS की स्थापना स्थानीय प्रथाओं को प्रतिबंधित नहीं करती है, जब तक कि समुदाय द्वारा स्वेच्छा से नहीं अपनाया जाता है।
इस पहल का उद्देश्य संरक्षण को बढ़ावा देते हुए स्थानीय आजीविका को बढ़ाना है।
टंगस्टन के बारे में
टंगस्टन, जिसे ‘वोल्फ्राम’ (Wolfram) के नाम से भी जाना जाता है, एक सघन धातु है, जो भूरे-सफेद से लेकर स्टील-ग्रे तक दिखाई देती है। इसके रणनीतिक महत्त्व के कारण इसे भारत के 30 प्रमुख खनिजों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
मुख्य गुण: टंगस्टन में अद्वितीय भौतिक एवं रासायनिक गुण हैं:-
धातुओं में इसका गलनांक सबसे अधिक 3,422°C होता है।
धातु उच्च तन्यता क्षमता, लोच एवं संक्षारण प्रतिरोध प्रदर्शित करती है।
इसकी उत्कृष्ट तापीय एवं विद्युत चालकता, कम विस्तार गुणांक के साथ मिलकर, इसे औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए बहुमुखी बनाती है।
अनुप्रयोग: टंगस्टन का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:-
प्रकाश: प्रकाश बल्बों एवं वैक्यूम ट्यूबों के लिए फिलामेंट्स का निर्माण।
हीटिंग सिस्टम: विद्युत भट्टियों में हीटिंग घटकों के रूप में।
इस्पात मिश्र: विशेष इस्पात उत्पादों में कठोरता एवं स्थायित्व बढ़ाना।
भारत में भंडार एवंवितरण: भारत का कुल टंगस्टन अयस्क भंडार 89.43 मिलियन टन अनुमानित है, जिसमें लगभग 1,44,650 टन WO₃ है।
भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा कर्नाटक (41%) के पास है, इसके बाद राजस्थान (27%), आंध्र प्रदेश (17%) एवं महाराष्ट्र (11%) का स्थान है।
छोटे भंडार हरियाणा, तमिलनाडु, उत्तराखंड एवं पश्चिम बंगाल में भी पाए जाते हैं।
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