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केंद्रीय योजनाओं को जारी रखने के लिए ‘प्रभावशीलता’ की आवश्यकता

Lokesh Pal June 14, 2025 02:24 30 0

संदर्भ 

केंद्र सरकार अपनी योजनाओं के वित्तपोषण और उन्हें जारी रखने के लिए नए नियम ला रही है। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी धन का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।

संबंधित तथ्य

  • तृतीय-पक्ष मूल्यांकन: केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण रूप से वित्तपोषित सभी योजनाओं के लिए एक स्वतंत्र मूल्यांकन किया जा रहा है।
  • नीति आयोग मूल्यांकन: नीति आयोग उन योजनाओं का मूल्यांकन कर रहा है जो केंद्र और राज्यों (केंद्र प्रायोजित योजनाओं) द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित हैं।
  • समीक्षा के लिए कई योजनाएँ: 54 केंद्रीय योजनाओं और 260 केंद्र प्रायोजित योजनाओं की समीक्षा की जाएगी।

योजना जारी रखने के लिए प्रमुख परिवर्तन

  • सकारात्मक परिणाम की आवश्यकता: योजनाएँ तभी जारी रहेंगी, जब उनके पास सकारात्मक “मूल्यांकन रिपोर्ट” होगी जो दिखाएगी कि उन्होंने अपने लक्ष्य हासिल कर लिए हैं।
  • जारी रखने की स्पष्ट आवश्यकता: योजना को जारी रखने के लिए एक स्पष्ट कारण होना चाहिए, जो इसके प्रदर्शन या इसके लक्ष्यों को विस्तारित करने की आवश्यकता पर आधारित हो।
  • सभी योजनाओं के लिए समाप्ति तिथि: अब प्रत्येक योजना की एक समाप्ति तिथि होगी।
    • प्रभावित योजनाओं की विस्तृत श्रृंखला: इसमें सामाजिक क्षेत्र (स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, जनजातीय कल्याण) और अन्य क्षेत्र (कृषि, बुनियादी ढाँचा, जल, स्वच्छता, पर्यावरण, वैज्ञानिक अनुसंधान) की योजनाएँ शामिल हैं।

नई वित्तीय सीमाएँ

  • व्यय सीमाएँ: जारी योजनाओं के लिए, पाँच वर्षों (16वें वित्त आयोग चक्र) के लिए नियोजित कुल धनराशि आमतौर पर वित्तीय वर्ष 2021-22 और वर्ष 2024-25 के बीच किए गए वार्षिक व्यय के औसत से 5.5 गुना से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • सीमाओं के भीतर लचीलापन: मंत्रालय औचित्य के साथ किसी अन्य योजना पर खर्च कम करने पर किसी एक योजना के लिए अधिक धनराशि की माँग कर सकते हैं।
  • निधि-सीमित योजनाएँ: सभी योजनाएँ एक सख्त बजट के तहत संचालित होंगी, जिसका अर्थ है कि वित्त आयोग चक्र पर खर्च की गई कुल धनराशि स्वीकृत राशि से अधिक नहीं हो सकती।

माँग-आधारित योजनाओं पर प्रभाव (जैसे- मनरेगा [MGNREGA])

  • लाभार्थियों के आधार पर परिव्यय: मनरेगा जैसी माँग-संचालित योजनाओं के लिए बजट वित्त आयोग चक्र में लाभार्थियों की अनुमानित संख्या के आधार पर निर्धारित किया जाएगा।
  • व्यय प्रतिबंध: व्यय स्वीकृत बजट तक ही सीमित रहेगा। किसी भी अव्ययित प्रतिबद्ध निधि को स्वीकृत परिव्यय के भीतर अगले चक्र में ले जाया जा सकता है।
  • परिव्यय में वृद्धि के लिए स्वीकृति: यदि लाभार्थियों की संख्या अनुमान से अधिक बढ़ जाती है, तो मंत्रालयों को बजट बढ़ाने के लिए व्यय विभाग से विशिष्ट स्वीकृति लेनी होगी।

योजनाओं की प्रभावशीलता के मापन में चुनौतियाँ

  • स्पष्ट मापन: सफलता संकेतकों को मापने में स्पष्ट मापदंड की कमी से योजनाओं के वास्तविक प्रभाव को मापना मुश्किल हो जाता है।
  • विश्वसनीयता का मुद्दा: डेटा विकृति और खराब रिकॉर्ड रखने से मूल्यांकन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण योजना का वास्तविक परिणाम विकृत हो जाता है।
  • क्षेत्रीय भिन्नताएँ: जनसांख्यिकीय कारकों, स्थानीय सरकार और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण विभिन्न राज्यों में योजनाओं की प्रभावशीलता अलग-अलग होती है। एक रणनीति जो एक स्थान पर अच्छी तरह से कार्य करती है, वह दूसरे क्षेत्र में वांछित परिणाम नहीं दे सकती है।
  • कार्यान्वयन अंतराल: भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अक्षमताएँ, संसाधन की कमी और जमीनी स्तर पर निगरानी की कमी सरकारी नीतियों के उचित क्रियान्वयन में बाधा डालती है, जिससे अंततः लक्षित लाभार्थियों के लिए लाभ कम हो जाता है।

योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण में लाभार्थियों, नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका

  • प्रतिक्रिया: लाभार्थियों की प्रतिक्रिया यह आकलन करने में बहुत मदद करती है कि क्या कोई नीति उनकी वास्तविक जरूरतों को पूरा करने और आजीविका में सुधार करने के लिए पर्याप्त कुशल है। 
    • सरकारी एजेंसियाँ इस डेटा का उपयोग लक्ष्य को पूरा करने के लिए अनुकूलित नीति निर्माण में करती हैं। 
  • नागरिक समाज की भूमिका: ये संगठन योजनाओं में खामियों, कुप्रबंधन और अक्षमताओं को प्रदर्शित करके पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं। 
    • उनकी सिफारिश अधिकारियों को कमियों को दूर करने के लिए कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करती है। 
  • NGO की भागीदारी: NGO जमीनी स्तर पर कार्य करते हैं, डेटा एकत्र करते हैं, ऑडिट करते हैं, नीतियों की समावेशिता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करते हैं, और समुदायों के साथ सीधे संबंधित होते हैं। 
    • ऐसा करके, वे सुनिश्चित करते हैं कि वंचित समुदायों को नीतियों से लाभ हो रहा है या नहीं एवं संसाधनों के निष्पक्ष आवंटन का समर्थन करते हैं।

केंद्रीय क्षेत्रक योजनाएँ

  • केंद्रीय मंत्रालय इन्हें वित्त पोषण में राज्य की भागीदारी के बिना प्रत्यक्ष रूप से लागू करते हैं,।
  • वे रक्षा, अंतरिक्ष अनुसंधान और प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को लक्षित करते हैं।
    • उदाहरण: PM किसान सम्मान निधि (किसानों के लिए प्रत्यक्ष आय सहायता), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना।

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (Centrally Sponsored Schemes- CSS)

  • इन योजनाओं को आंशिक रूप से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, जबकि शेष राशि राज्य सरकारों द्वारा दी जाती है।
  • राज्य इन्हें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार क्रियान्वित करते हैं, तथा क्रियान्वयन में लचीलापन रखते हैं।
  • वे शिक्षा, कृषि और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों में राज्य के विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • उदाहरण: मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, प्रधानमंत्री आवास योजना (सभी के लिए आवास)।

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