100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) में केंद्रीकरण

Lokesh Pal December 16, 2025 03:44 13 0

संदर्भ

हाल के विधायी कदम, विशेष रूप से प्रस्तावित भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) विधेयक, 2025 का मसौदा और इससे पहले का भारतीय प्रबंधन संस्थान (संशोधन) अधिनियम, 2023, स्वायत्त उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) को केंद्रीकृत करने के लिए केंद्र सरकार के समन्वित प्रयास को करते हैं।

संबंधित तथ्य

  • हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विकसित भारत शिक्षा प्राधिकरण विधेयक को मंजूरी दी है, जिसमें भारत में उच्च शिक्षा के लिए एक एकीकृत नियामक निकाय का प्रस्ताव है।
  • यह विधेयक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) जैसे मौजूदा वैधानिक निकायों को प्रतिस्थापित करना चाहता है।
  • पहले इसे उच्च शिक्षा आयोग (HECI) विधेयक के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब विकसित भारत की परिकल्पना को प्रतिबिंबित करने के लिए इसका नाम बदलकर विकसित भारत शिक्षा प्राधिकरण विधेयक कर दिया गया है।

उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) के बारे में

  • उच्च शिक्षा संस्थान ‘नॉलेज इकॉनमी’ का आधारस्तंभ  होते हैं, जो मानव पूँजी निर्माण, नवाचार और सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देते हैं।
  • भारत में, HEIs जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए बहुत आश्यक है, साथ ही नई शिक्षा नीति (NEP), 2020 द्वारा शुरू किए गए सुधारों के तहत गुणवत्ता, समानता, गवर्नेंस और रोजगार के लगातार सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान भी करते हैं।

उच्च शिक्षा में भारत का परिवर्तन

  • मौजूदा स्थिति: देश में पंजीकृत विश्वविद्यालय/विश्वविद्यालय-स्तरीय संस्थानों की कुल संख्या 1,168 है। इसके अतिरिक्त 45,473 कॉलेज तथा 12,002 स्वतंत्र संस्थान कार्यरत हैं।
  • वैश्विक दृश्यता: पिछले एक दशक में वैश्विक रैंकिंग में भारत की उपस्थिति में 318% की प्रभावशाली वृद्धि हुई है। यह वृद्धि G20 देशों में सर्वाधिक है, जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की बढ़ती वैश्विक पहचान को दर्शाती है।
  • समावेशिता: सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEDGs) के लिए नामांकन में वर्ष 2011 से 2022 के दौरान उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, जो उच्च शिक्षा तक पहुँच और समान अवसरों के विस्तार को दर्शाती है।
    • OBC वर्ग के नामांकन में 80.9% की वृद्धि हुई है।
    • अनुसूचित जाति (SC) के नामांकन में 76.3% की वृद्धि दर्ज की गई है (जो पात्र जनसंख्या के 15% से बढ़कर लगभग 26% हो गई है)।
    • अनुसूचित जनजाति (ST) के नामांकन में 106.8% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है (जो पात्र जनसंख्या के 11% से बढ़कर 21% तक पहुँच गई है)।
  • लैंगिक समानता: राष्ट्रीय लैंगिक समानता सूचकांक (GPI) वर्ष 2021-22 में 1.01 के स्कोर तक पहुँच गया, जो उच्च शिक्षा संस्थानों में लैंगिक समानता की दिशा में एक सफल प्रगति का संकेत देता है।
    • देश में 17 विश्वविद्यालय (जिनमें से 14 राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय हैं) तथा 4,470 कॉलेज केवल महिलाओं के लिए संचालित किए जा रहे हैं।

उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) में केंद्रीकरण के बारे में

  • उच्च शिक्षा में केंद्रीकरण से आशय उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) के प्रशासन, वित्तपोषण, प्रवेश प्रक्रिया और पाठ्यक्रम से जुड़े अधिकारों का केंद्र सरकार के पास बढ़ते हुए संकेंद्रण से है। यह प्रक्रिया प्रायः संस्थागत स्वायत्तता और राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए आगे बढ़ती हुई देखी जाती है।

उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) का ऐतिहासिक विकास: समन्वय से नियंत्रण की ओर

  • संवैधानिक आधार (1950 का दशक): विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 ने उच्च शिक्षा में समन्वय और मानकों के अनुरक्षण के लिए प्रारंभिक ढाँचा स्थापित किया।
    • हालाँकि, इसकी विधायी शक्ति संघ सूची की प्रविष्टि 66 के अंतर्गत संघ सरकार को प्राप्त समन्वय एवं मानक निर्धारण के अधिकार से आती है।
  • संवैधानिक परिवर्तन (1976): 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची (प्रविष्टि 25) में स्थानांतरित किया गया।
    • यद्यपि इससे राष्ट्रीय स्तर पर मानकीकरण संभव हुआ, परंतु हाल के वर्षों में संघ सरकार के कई कदमों की आलोचना इस आधार पर की जाती रही है कि वे इस भूमिका की सीमाओं से आगे बढ़ते हैं।
  • हालिया प्रवृत्तियाँ (वर्ष 2014 के बाद): इस अवधि में केंद्र के नियंत्रण में तेजी देखी गई है, जिसे प्रायः व्यापक ‘3Cs संकट’ से जोड़ा जाता है:-
    • केंद्रीकरण, वाणिज्यीकरण (जैसे- ऋण-आधारित वित्तपोषण) तथा वैचारिक प्रभाव।
    • इन प्रवृत्तियों ने मिलकर समानता और सहकारी संघवाद की भावना, दोनों को कमजोर किया है।

उच्च शिक्षा में नियामक निकाय

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC): UGC अधिनियम, 1956 द्वारा स्थापित, यह विश्वविद्यालय शिक्षा के मानकों का समन्वय और रखरखाव करता है और विश्वविद्यालयों को अनुदान प्रदान करता है।
  • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AITC): AITC अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित, यह गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देता है और विनियमित करता है तथा तकनीकी संस्थानों के लिए मानदंड निर्धारित करता है।
  • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC): भारतीय चिकित्सा परिषद संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) का स्थान लेने वाला यह आयोग चिकित्सा शिक्षा और मानकों को विनियमित करता है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR): कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के अधीन एक स्वायत्त संगठन, जिसकी स्थापना वर्ष 1929 में हुई थी, कृषि शिक्षा और अनुसंधान का प्रबंधन करता है।
  • राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE): राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 द्वारा गठित, यह शिक्षकों की शिक्षा को विनियमित करता है और शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के लिए मानदंड निर्धारित करता है।

भारतीय उच्च शिक्षा – प्राचीन काल से आधुनिक काल तक

  • प्राचीन भारतीय उच्च शिक्षा (10वीं शताब्दी ईस्वी से पहले)
    • दर्शन: शिक्षा समग्र थी, जिसमें केवल अकादमिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और कौशल विकास पर भी समान रूप से ध्यान दिया जाता था।
    • गुरुकुल प्रणाली
      • गुरु-शिष्य परंपरा में ज्ञान के मौखिक प्रसारण पर जोर दिया जाता है।
      • प्रसिद्ध गुरुकुल: काशी, उज्जैन और पुष्पगिरि में स्थित हैं।
  • प्रारंभिक विश्वविद्यालय
    • तक्षशिला (छठी शताब्दी ईसा पूर्व-पाँचवीं शताब्दी ईस्वी): विश्व का पहला प्रमाणित विश्वविद्यालय।
      • प्रमुख विद्वान: चाणक्य (अर्थशास्त्र), पाणिनि (संस्कृत व्याकरण), चरक (चिकित्सा)।
    • नालंदा विश्वविद्यालय (पाँचवीं शताब्दी ईस्वी – बारहवीं शताब्दी ईस्वी): 10,000 से अधिक छात्रों और 2,000 शिक्षकों वाला पहला आवासीय विश्वविद्यालय
      • चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया और फारस के विद्वानों को आकर्षित किया।
      • बख्तियार खिलजी द्वारा नष्ट किया गया (1193 ईस्वी)।
    • विक्रमशिला विश्वविद्यालय (8वीं-12वीं शताब्दी ईस्वी): बौद्ध अध्ययन और तांत्रिक शिक्षा के लिए प्रसिद्ध।
    • इस काल में वल्लभी, ओदंतपुरी और पुष्पगिरि विश्वविद्यालय भी विद्यमान थे।
    • प्राचीन उच्च शिक्षा की विशेषताएँ
      • व्यावहारिक ज्ञान के साथ बहुविषयक दृष्टिकोण।
      • अंतरराष्ट्रीय छात्रों वाला वैश्विक ज्ञान केंद्र।
      • विशाल पुस्तकालयों से युक्त आवासीय व्यवस्था (उदाहरण के लिए, नालंदा में धर्मगंज नामक पुस्तकालय था)।
  • मध्यकालीन युग (10वीं-18वीं शताब्दी ईस्वी)
    • आक्रमणों और विनाशों के कारण प्राचीन विश्वविद्यालयों का पतन हुआ।
    • अरबी, फारसी, कानून और धर्मशास्त्र पर केंद्रित मदरसों (इस्लामी शिक्षा केंद्रों) का उदय हुआ।
    • मुगल काल में दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी में शिक्षा केंद्रों की स्थापना हुई।
    • सम्राट अकबर केदीन-ए-इलाही’ धर्म ने विभिन्न धर्मों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।
    • हिंदू मंदिरों और मठों में अनौपचारिक शिक्षा परंपराएँ जारी रहीं।
  • औपनिवेशिक काल (18वीं-20वीं शताब्दी)
    • स्वदेशी शिक्षण केंद्रों का विनाश और ब्रिटिश शिक्षा नीतियों का थोपना।
    • माउंट स्टुअर्ट एल्फिंस्टन के कार्यवृत्त (1823) और मैकाले के कार्यवृत्त (1835) के कारण पारंपरिक भारतीय ज्ञान पर अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा मिला।
    • आधुनिक विश्वविद्यालयों की स्थापना
      • लंदन विश्वविद्यालय के मॉडल पर आधारित कलकत्ता विश्वविद्यालय, बॉम्बे विश्वविद्यालय और मद्रास विश्वविद्यालय (1857)
      • इन विश्वविद्यालयों का मुख्य ध्यान वैज्ञानिक अनुसंधान के स्थान पर प्रशासनिक और लिपिकीय शिक्षा पर था।
    • राष्ट्रवादी शिक्षा आंदोलनों का उदय
      • रवींद्रनाथ टैगोर का विश्वभारती विश्वविद्यालय (वर्ष 1921 में शांतिनिकेतन में)
      • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) (वर्ष 1916 में मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित किया गया)।
      • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) (वर्ष 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित किया गया)।
  • स्वतंत्रताोत्तर युग (1947-2000 का दशक)
    • केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से उच्च शिक्षा के प्रसार पर ध्यान केंद्रित करना।
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और भारतीय प्रबंधन संस्थानों (IIMs) की स्थापना की गई।
      • भारत की स्वतंत्रता के बाद के औद्योगीकरण को गति देने के लिएविश्व स्तरीय इंजीनियरों को तैयार करने वाले संस्थानों के निर्माण हेतु सरकारी समिति’ (1945) की अनुशंसाओं के फलस्वरूप, पहला IIT वर्ष 1951 में खड़गपुर में स्थापित किया गया।
      • 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में, भारत के योजना आयोग ने भारत में गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रबंधन संस्थानों की स्थापना की अनुशंसा की, जिसके बाद पहला IIM वर्ष 1961 में कलकत्ता में स्थापित किया गया।
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम, 1956 उच्च शिक्षा को विनियमित करने के लिए बनाया गया है।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों (NEP 1968, 1986, 1992) का उद्देश्य सार्वभौमिक पहुँच और अनुसंधान विकास था।
    • 1990 और 2000 के दशकों में तीव्र निजीकरण हुआ।
  • समकालीन उच्च शिक्षा (2000-वर्तमान)
    • विश्व की दूसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली (1,100 से अधिक विश्वविद्यालय, 50,000 से अधिक कॉलेज)।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020:
      • बहुविषयक विश्वविद्यालय और समग्र शिक्षा।
      • वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात (GER) का लक्ष्य 50%।
      • अकादमिक क्रेडिट बैंक (ABC), प्रवेश और निकास के कई विकल्प।
    • डिजिटल शिक्षा पर बल (स्वयं, NPTEL, ई-पाठशाला)
    • अनुसंधान एवं विकास में निवेश और वैश्विक सहयोग।

उच्च शिक्षा संस्थानों से संबंधित हालिया घटनाक्रम

यद्यपि संवैधानिक रूप से वैध होने के बावजूद, उच्च शिक्षा प्रशासन तेजी से कार्यपालिका-केंद्रित होता जा रहा है, जिसमें नियम और अनुमोदन संस्थानों को आकार दे रहे हैं, जिससे संसदीय निगरानी और लोकतांत्रिक जवाबदेही कमजोर हो रही है।

  • भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM): IIM (संशोधन) अधिनियम, 2023 ने IIM को पूर्व में प्राप्त संप्रभुता को प्रभावी रूप से निरस्त कर दिया है।
    • इस अधिनियम के अनुसार, निदेशकों की नियुक्तियों और सभी प्रमुख नीतिगत निर्णयों को अब शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है। इसका अंतर्निहित संदेश यह है कि स्वायत्तता निरस्त की जा सकती है।
  • भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) विधेयक, 2025 का मसौदा: इस प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य वैधानिक अधीनता स्थापित करना है।
    • इसका उद्देश्य समकक्षों द्वारा शासित भारतीय सांख्यिकी संस्थान को एक संस्था से वैधानिक निकाय में परिवर्तित करना है, जिसमें धारा 17 (5) विशेष रूप से यह अनिवार्य करती है कि बोर्ड केंद्र सरकार के प्रति उत्तरदायी होगा।
  • सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (CUET): CUET की शुरुआत प्रवेश संबंधी एकरूपता और केंद्रीकृत नियंत्रण को दर्शाती है।
    • एक ही परीक्षा लागू करने से एक ‘समरूपता संबंधी जाल’ का निर्माण होता है, जिससे विविध क्षेत्रीय पाठ्यक्रमों के हाशिए पर चले जाने का खतरा होता है और राज्य बोर्डों के उन छात्रों को संभावित रूप से नुकसान हो सकता है जिनके पास केंद्रीकृत कोचिंग संसाधनों तक पहुँच नहीं है।
  • विश्वभारती विश्वविद्यालय: यह संस्थान रूढ़िवादिता के दबाव का सामना कर रहा है।
    • NEP 2020 और राष्ट्रीय कर्मयोगी जैसे कार्यक्रमों की कठोर संरचनाओं का पालन करने का दबाव स्वतंत्र, स्थानीय अनुसंधान के लिए इसके अद्वितीय विजन को कमजोर कर रहा है, जिससे स्थानीय ज्ञान प्रणालियों का क्षरण हो रहा है।
  • परख (PARAKH): समग्र विकास के लिए ज्ञान के प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और विश्लेषण की पहल (परख) का उद्देश्य NCERT के माध्यम से केंद्रीकृत मूल्यांकन मानकों को लागू करना है, जिससे राज्य बोर्डों की उपेक्षा का खतरा है।
  • केंद्रीकरण के एक उपकरण के रूप में वित्तीय संघवाद: केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं, प्रदर्शन-आधारित अनुदानों और HEFA-आधारित ऋणों जैसे वित्तीय साधनों के माध्यम से केंद्रीकरण को तेजी से मजबूत किया जा रहा है, जिससे विश्वविद्यालय वित्तीय रूप से निर्भर संस्थानों में परिवर्तित हो रहे हैं, जहाँ स्वायत्तता केवल कानून के बजाय वित्तपोषण शर्तों द्वारा सीमित है।

केंद्रीकृत उच्च शिक्षा प्रशासन सुधारों का औचित्य

भारत सरकार इस केंद्रीकरण को निम्नलिखित आवश्यकताओं के आधार पर उचित ठहराती है:-

  • संस्थागत विफलताओं का समाधान: केंद्रीय निगरानी के अभाव में शिक्षण संस्थानों’ (निम्न गुणवत्ता वाले निजी/मानित विश्वविद्यालयों) की बढ़ती संख्या और स्वायत्तता के संदर्भ में वित्तीय गबन या शैक्षणिक गड़बड़ी के मामलों को स्वीकार करना।
    • मानकीकृत शासन मॉडल, कुछ सीमा तक, इन कमियों का एक आवश्यक समाधान है।
  • जवाबदेही और कुप्रबंधन निवारण: सार्वजनिक धन का कुशल उपयोग सुनिश्चित करना और वित्तीय या शैक्षणिक कदाचार को रोकना।
    • NEP 2020 सरल लेकिन सख्त’ विनियमन का समर्थन करती है।
  • राष्ट्रीय सामंजस्य और मानकीकरण: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिए प्रमुख संस्थानों का सामंजस्य स्थापित करना और यह सुनिश्चित करना कि अनुसंधान परिणाम राष्ट्रीय रणनीतिक लक्ष्यों (जैसे- आत्मनिर्भर भारत) के अनुरूप हों, जिसका उद्देश्य वैश्विक शैक्षणिक प्रतिष्ठा में सुधार करना है।
    • इसे मानकीकरण के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग (QS/THE) में सुधार के लिए एक आवश्यक कदम के रूप में देखा जाता है।
  • शासन व्यवस्था का आधुनिकीकरण: दशकों पुराने शासन ढाँचे (जैसे- ISI अधिनियम, 1959) को एकीकृत राष्ट्रीय शैक्षिक परिदृश्य के अनुरूप अद्यतन करना।

केंद्रीकरण से उत्पन्न चुनौतियाँ और चिंताएँ

अधीनता की ओर बढ़ती प्रवृत्ति गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करती है, जो प्रमुख शासन संबंधी विषयों से परस्पर संबंधित हैं:-

  • सहकारी संघवाद का क्षरण: केंद्रीय नियंत्रण को समवर्ती सूची में कानूनी और राजनीतिक अतिक्रमण के रूप में देखा जा रहा है, जो केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों को सहकारी संघवाद (मिलकर कार्य करना) से जबरन नियंत्रण (दबावयुक्त संघवाद) में बदल रहा है।
    • यद्यपि शिक्षा समवर्ती सूची में आती है, फिर भी केंद्र सरकार की वर्तमान कार्रवाइयों से अनुच्छेद 254 के तहत उल्लंघन किए बिना वास्तविक रूप से केंद्रीय प्रभुत्व स्थापित होने का खतरा है, जिससे उच्च शिक्षा संबंधी नीति निर्माण में राज्यों की भूमिका लगभग समाप्त हो जाएगी।
    • राजनीतिक प्रतिरोध: तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों ने केंद्रीय नीतियों (जैसे कि CUET) का सक्रिय रूप से विरोध किया है, उनका तर्क है कि ये नीतियाँ विशिष्ट क्षेत्रीय आवश्यकताओं और राज्य सरकारों की संवैधानिक भूमिका की अनदेखी करती हैं।
    • विरोधाभासी विचार: केंद्रीय निकायों ने भी चेतावनी दी है:-
      • लोकसभा की शिक्षा संबंधी स्थायी समिति (2024-25) ने VBSA विधेयक जैसी नीतियों में निहित ‘अति-केंद्रीकरण’ की स्पष्ट रूप से आलोचना की और राज्यों के साथ व्यापक परामर्श की सिफारिश की।
      • नीति आयोग की वर्ष 2025 की रिपोर्ट में विरोधाभासी रूप से राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए नई नीति के ‘विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन’ का समर्थन किया गया था।
  • सामाजिक-आर्थिक विभाजन और क्षेत्रीय असमानता का गहराना: मानकीकृत परीक्षाओं (CUET/PARAKH) के माध्यम से प्रवेश प्रक्रिया को एकरूप बनाने का प्रयास एक समरूपता संबंधी जाल’ का निर्माण करता है जो मौजूदा असमानताओं को और मजबूत करता है।
    • उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रकारों पर असमान प्रभाव: केंद्रीकरण का बोझ असमान रूप से वितरित है, जिसमें राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालय, जो नामांकित छात्रों के 80% से अधिक को शिक्षित करते हैं, असमान नीतिगत और वित्तीय बाधाओं का सामना करते हैं, जबकि राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों को प्रायः अधिक दृश्यता और संसाधन प्राप्त होते हैं।
    • वंचित समूहों को नुकसान: ग्रामीण क्षेत्रों या वंचित पृष्ठभूमि के छात्र आमतौर पर राष्ट्रीय परीक्षाओं के लिए आवश्यक महंगे, विशेष कोचिंग का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं, जिससे शहरी और धनी छात्रों को लाभ मिलने का खतरा रहता है।
    • पिछड़े राज्यों की उपेक्षा: केंद्रीकृत अधिदेश उन राज्यों की उपेक्षा करते हैं जिनका विकास सूचकांक लगातार कम है (उदाहरण के लिएबिहार का लगभग 14% विकास सूचकांक बनाम तमिलनाडु का लगभग 50%), जिन्हें एकसमान नियमों के बजाय स्थानीय स्तर पर अनुकूलित समाधानों की आवश्यकता है।
  • शैक्षणिक स्वतंत्रता और नवाचार पर हमला: केंद्रीकरण विश्वविद्यालय की आलोचनात्मक मंच’ के रूप में भूमिका को मौलिक रूप से कमजोर करता है, जो स्वतंत्र चिंतन और असहमति के लिए एक आवश्यक केंद्र है।
    • नैतिक जोखिम: केंद्रीकरण अकादमिक नैतिकता को नौकरशाही अनुपालन से प्रतिस्थापित करके नैतिक जोखिम उत्पन्न करता है, जिससे सार्वजनिक संस्थानों की अखंडता एवं निष्पक्षता खतरे में पड़ जाती है।
    • हितधारक स्तर पर प्रभाव: नौकरशाही निगरानी संकाय सदस्यों के बीच संविदाकरण और अनुपालन को बढ़ावा देती है, एकसमान मूल्यांकन लागू करती है जो छात्रों के लिए क्षेत्रीय और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को कम करती है, और कुलपतियों को अकादमिक नेतृत्त्वकर्त्ताओं के बजाय प्रशासनिक कार्यवाहक बना देती है।
    • आज्ञाकारिता को प्राथमिकता: यह प्रवृत्तिआलोचना’ (स्वतंत्र मूल्यांकन) की तुलना में अनुरूपता’ (नियमों का पालन) को प्राथमिकता देती है, जो संस्थानों में अविश्वास का संकेत देती है और उन्हें मात्र सरकारी विस्तार में बदलने का जोखिम उत्पन्न करती है।
    • अनुसंधान एवं विकास में बाधा: नौकरशाही नियंत्रण स्वतंत्र, अत्याधुनिक अनुसंधान में बाधा उत्पन्न कर सकता है। भारत का सकल अनुसंधान एवं विकास व्यय (GERD) GDP का केवल 0.64% (2023-24) है, जो वैश्विक औसत से काफी कम है।
  • वैश्विक प्रतिष्ठा को खतरा और प्रतिभा पलायन: नौकरशाही हस्तक्षेप और राजनीतिकरण अकादमिक स्वतंत्रता को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचाते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए गुणवत्ता का एक प्रमुख मापदंड है।
    • वैश्विक रैंकिंग में ठहराव: QS, 2026 रैंकिंग में भारतीय संस्थानों की संख्या में वृद्धि (46 संस्थान) हुई, लेकिन अकादमिक स्वतंत्रता और अनुसंधान प्रभाव मानकों में लगातार कम अंकों के कारण कोई भी संस्थान वैश्विक शीर्ष 100 में जगह नहीं बना पाया।
    • प्रतिभा का पलायन: यह वातावरण शीर्ष वैश्विक शिक्षकों और शोधकर्ताओं को भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में शामिल होने से हतोत्साहित करता है, जो सीधे तौर पर प्रतिभा पलायन में योगदान देता है और वैश्विक ज्ञान केंद्र बनने के भारत के लक्ष्य को कमजोर करता है।
  • विश्वविद्यालय, लोकतंत्र और संवैधानिक नैतिकता: विश्वविद्यालय लोकतांत्रिक समाजीकरण के महत्त्वपूर्ण केंद्र हैं, जो संवैधानिक नैतिकता, विवेकपूर्ण असहमति और स्वतंत्र अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं; अत्यधिक केंद्रीय नियंत्रण से इनके राज्य के प्रशासनिक विस्तार मात्र बनकर रह जाने का खतरा है, जिससे इनकी लोकतांत्रिक भूमिका कमजोर हो सकती है।
  • कानूनी और न्यायिक चेतावनियाँ: न्यायपालिका और संसदीय समितियों दोनों ने ही केंद्रीकरण की इस प्रवृत्ति के प्रति बार-बार आगाह किया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक टी.एम.ए पाई फाउंडेशन मामले (2002) में संस्थागत स्वायत्तता को मौलिक अधिकार [अनुच्छेद 19(1)(g)] घोषित किया और राज्य के अत्यधिक हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दी।
    • न्यायिक हस्तक्षेप: हाल ही में NEP से संबंधित याचिकाओं (उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2025 में CUET के भाषा पूर्वाग्रह से संबंधित याचिका) में, सर्वोच्च न्यायालय ने आलोचनात्मक टिप्पणियाँ करते हुए चेतावनी दी है कि एकसमान नियम लागू करने से अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है।
    • संसदीय समीक्षा: संसदीय समितियों ने भी चिंता व्यक्त की है और ‘अत्यधिक केंद्रीकरण के बिना’ एक सरल नियामक संरचना की सिफारिश की है।

डेटा संक्षेप: प्रगति और NEP लक्ष्य

मापदंड  नवीनतम आँकड़े लक्ष्य प्रगति एवं चुनौतियों पर टिप्पणी
सकल नामांकन अनुपात (GER): लगभग 29.2% (आयु वर्ग 18–23 वर्ष) वर्ष 2035 तक 50% (राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार)। महत्त्वाकाँक्षी NEP लक्ष्य की ओर धीमी लेकिन निरंतर प्रगति दर्ज की जा रही है।
क्षेत्रीय सकल नामांकन अनुपात (GER) में असमानता बिहार: लगभग 14% बनाम 

तमिलनाडु: लगभग 50%

कोई नहीं

यह कथनएक ही नीति सभी पर लागू’ जैसी केंद्रीय नीति की उस विफलता को उजागर करता है, जो गहराई से व्याप्त क्षेत्रीय असमानताओं का प्रभावी समाधान करने में सक्षम नहीं है।

अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश (GERD) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 0.64% (2023-24) वैश्विक औसत: 2.4%

गंभीर अपर्याप्त निवेश यह दर्शाता है कि अनुसंधान का सूक्ष्म प्रबंधन (माइक्रोमैनेजमेंट) किस प्रकार वास्तविक नवाचार को बाधित और कुंठित कर सकता है।

वैश्विक रैंकिंग में वृद्धि QS, 2026 में 46 संस्थान (कोई शीर्ष 100 में नहीं) शीर्ष 100/ विश्व स्तरीय

दृश्यता में 318% की वृद्धि के बावजूद, शैक्षणिक स्वतंत्रता के निम्न स्तर के कारण शीर्ष  स्तर पर प्रगति सीमित बनी हुई है।

स्वायत्तता आधारित उच्च शिक्षा प्रशासन पर वैश्विक सहमति

प्रमुख वैश्विक विश्वविद्यालय उच्च स्वायत्तता और उच्च जवाबदेही को बढ़ावा देने वाले मॉडल के तहत विकसित हो रहे हैं:-

  • OECD/यूरोपीय मॉडल: सरकारें रणनीतिक वित्तपोषक के रूप में कार्य करती हैं, ब्लॉक अनुदान प्रदान करती हैं और व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करती हैं, लेकिन इनपुट (संकाय नियुक्तियाँ, पाठ्यक्रम) के सूक्ष्म प्रबंधन से दूरी बनाए रखती हैं। कठोर, स्वतंत्र परिणाम-आधारित मूल्यांकन और मान्यता निकायों के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
  • विकेंद्रीकृत सफलता (उदाहरण के लिए, फिनलैंड): शिक्षक-नेतृत्व वाली शासन प्रणाली और विकेंद्रीकृत निर्णय लेने की प्रक्रिया विश्व स्तरीय शैक्षिक मानक स्थापित करने में प्रभावी सिद्ध हुई है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहमति: यूनेस्को के वर्ष 2024 के विश्व उच्च शिक्षा सम्मेलन ने बौद्धिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और शैक्षणिक निर्णय लेने की प्रक्रिया के राजनीतिकरण को रोकने के लिए ‘जवाबदेही के साथ स्वायत्तता’ के वैश्विक आह्वान को दोहराया।
    • जर्मनी और कनाडा जैसी संघीय प्रणालियाँ उच्च शिक्षा पर प्राथमिक अधिकार उप-राष्ट्रीय सरकारों को सौंपती हैं, जबकि संघीय स्तर समन्वय, वित्त पोषण सहायता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा पर ध्यान केंद्रित करता है, यह दर्शाता है कि मजबूत मानक संस्थागत स्वायत्तता के साथ सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।

आगे की राह

  • संवैधानिक संवाद: समवर्ती सूची और सहकारी संघवाद की भावना को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र को राज्यों के साथ सार्थक परामर्श करना चाहिए।
  • परिणाम-आधारित जवाबदेही: यश पाल समिति (2009) द्वारा रेखांकित किए गए अनुसार, नियुक्तियों जैसे इनपुट को नियंत्रित करने के बजाय, NAAC जैसे स्वतंत्र निकायों के माध्यम से परिणामों (जैसे- अनुसंधान का प्रभाव और स्नातक रोजगार क्षमता) की निगरानी और मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • शैक्षणिक शासन का संरक्षण: शासी निकायों में प्रतिष्ठित शिक्षाविदों और समकक्ष विशेषज्ञों का वर्चस्व होना चाहिए। शासन सुधार से क्षमता निर्माण और संस्थागत विश्वास का निर्माण होना चाहिए, न कि आदेश-और-नियंत्रण संरचनाओं को थोपना।
  • आंतरिक लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाना: साझा शासन को बढ़ावा देना, अकादमिक परिषदों और संकाय निकायों को अकादमिक मामलों पर सर्वोच्च प्राधिकारी बनाना, जो UGC अधिनियम, 1956 के मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप हो।
  • सूक्ष्म प्रबंधन के बिना जवाबदेही को क्रियान्वित करना: प्रभावी जवाबदेही के लिए निश्चित कार्यकाल वाले स्वतंत्र शासी बोर्ड, पारदर्शी परिणाम डैशबोर्ड, सहकर्मी समीक्षा आधारित मान्यता और छात्रों, पूर्व छात्रों और अकादमिक सहयोगियों को शामिल करने वाले सामाजिक जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता होती है, न कि इनपुट स्तर के नौकरशाही नियंत्रण की।

निष्कर्ष

उच्च शिक्षा संस्थानों के अत्यधिक केंद्रीकरण से ज्ञान-महाशक्ति बनने हेतु आवश्यक बौद्धिक गतिशीलता के दबने का जोखिम उत्पन्न होता है। वास्तविक सुधारों की दिशा नौकरशाही नियंत्रण से हटकर संस्थागत स्वायत्तता की ओर होनी चाहिए। साथ ही, विद्या (ज्ञान) की मूल भावना का पुनर्जीवन आवश्यक है, ताकि विश्वविद्यालयों को आलोचनात्मक अनुसंधान के वैश्विक केंद्रों (आधुनिक नालंदा) के रूप में सशक्त बनाया जा सके और नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों की प्रभावी प्राप्ति हो सके।

अभ्यास प्रश्न

प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थानों की शासन संरचना में विधायी प्रावधानों (जैसे- ISI विधेयक 2025 और IIM संशोधन अधिनियम 2023) के माध्यम से किए गए परिवर्तन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए कि क्या यह परिवर्तन सहकारी संघवाद के सिद्धांतों और भारतीय शिक्षा नीति में संवैधानिक अधिदेशों के अनुरूप है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.