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भारत में केंद्र-राज्य संबंध

Lokesh Pal April 18, 2025 02:52 25 0

संदर्भ

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री (CM) एम.के.स्टालिन ने केंद्र-राज्य संबंधों की पुनः जाँच करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा की।

  • यह कदम लंबे समय से चले आ रहे संघीय विमर्श को पुनर्जीवित करता है, जो वर्ष 1969 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई द्वारा गठित राजमन्नार समिति की याद दिलाता है, जो एक संघवादी और द्रविड़ आंदोलन के नेता थे।

संबंधित तथ्य

  • नवगठित समिति का उद्देश्य संघ-राज्य गतिशीलता को नियंत्रित करने वाले कानूनी और संवैधानिक ढाँचे की समीक्षा करना और राज्य की स्वायत्तता की रक्षा के लिए कदम सुझाना है।
  • यह घोषणा तमिलनाडु और केंद्र के बीच निम्नलिखित मुद्दों पर विवाद के बीच की गई है:
    • NEET(राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा)
    • GST मुआवजा
    • परिसीमन प्रस्ताव
    • भाषा नीति लागू करना।
  • यह घटनाक्रम राज्य की स्वायत्तता के क्षरण की चिंता में निहित है तथा संघ और राज्य सरकारों के बीच लगातार तनाव को दर्शाता है, विशेषकर तब जब प्रत्येक स्तर पर वैचारिक रूप से भिन्न-भिन्न दल शासन करते हैं।

केंद्र-राज्य संबंधों में चुनौतियाँ

  • केंद्रीकरण की प्रवृत्तियाँ: अनुच्छेद-356 (राष्ट्रपति शासन) और 365 (संघ के निर्देशों का अनुपालन) की अक्सर इस बात के लिए आलोचना की जाती रही है कि ये अनुच्छेद केंद्र को राज्य सरकारों को बर्खास्त करने या उनमें हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हैं।
    • उदाहरण: राज्यपाल के हस्तक्षेप (पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, आदि 2021-2024 के बीच) और विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने को लेकर राज्य तथा केंद्र के बीच कई संघर्षों ने दिखाया कि कैसे केंद्रीय अधिकारियों (केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपालों) का प्रयोग़ राज्य सरकारों को रोकने या उन्हें कमजोर करने के लिए किया जा सकता है।
  • वित्तीय निर्भरता: राज्य, वित्त आयोग की सिफारिशों के माध्यम से धन के लिए केंद्र पर निर्भर रहते हैं।
    • उदाहरण: तमिलनाडु, केरल और पंजाब सहित कई राज्यों ने केंद्र द्वारा जीएसटी मुआवजे में देरी का विरोध किया।
  • योजना और नीति का अतिक्रमण: हालाँकि योजना आयोग को नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, लेकिन संसाधन आवंटन और योजना में केंद्र के प्रभुत्व के बारे में आलोचनाएँ बनी हुई हैं।
    • उदाहरण: तमिलनाडु और केरल ने चिंता व्यक्त की है कि नीति आयोग केवल नाम के लिए सलाहकारी निकाय है, क्योंकि शिक्षा, स्वास्थ्य, जल नीति आदि जैसे राज्य के विषयों में वह एक केंद्रीय निरीक्षण तंत्र के रूप में कार्य करता है।

  • राजनीतिक पक्षपात: जब केंद्र और राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दल शासन करते हैं, तो कार्यान्वयन, वित्तपोषण और कानून प्रवर्तन पर टकराव सामान्य बात है।
    • उदाहरण: तमिलनाडु ने ग्रामीण छात्रों की चिंताओं का हवाला देते हुए NEET से छूट देने के लिए कानून पारित किया, लेकिन राज्यपाल ने अपनी सहमति वापस ले ली और इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया, जिससे कार्यान्वयन में देरी हुई।
    • दिल्ली बनाम केंद्र (2023-2024): नौकरशाही पर नियंत्रण को लेकर विवादों के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली को नियंत्रण देने का फैसला सुनाया, लेकिन केंद्र ने इस फैसले को रद्द करते हुए एक अध्यादेश पारित किया। इसे राज्य सरकार के अधिकार को राजनीतिक रूप से कमजोर करने के रूप में देखा गया है।
  • प्रभावी अंतर-राज्य समन्वय का अभाव: अनुच्छेद-263 के तहत अंतर-राज्य परिषद की बैठक शायद ही कभी आयोजित की जाती है और संघीय विवादों को हल करने की इसकी क्षमता का दोहन नहीं किया जाता है।
    • उदाहरण: कावेरी (तमिलनाडु-कर्नाटक) और महानदी (ओडिशा-छत्तीसगढ़) जैसे नदी जल विवाद सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के बावजूद लंबित हैं।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP) के तहत केंद्र द्वारा हिंदी को बढ़ावा दिए जाने के जवाब में तमिलनाडु और कर्नाटक में भाषा थोपने का विरोध प्रदर्शन हुआ।

केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रमुख समितियाँ

राजमन्नार समिति (1969): तमिलनाडु की पहल

पहलू

विवरण

नेतृत्व में डॉ. पी.वी. राजमन्नार (Dr. P.V. Rajamannar)
मुख्य अनुशंसाएँ अनुच्छेद-356 (राष्ट्रपति शासन) को निरस्त करना।

  • अंतर-राज्यीय परिषद को सशक्त बनाना।
  • अनुदानों पर केंद्र के विवेकाधिकार को कम करना।
  • योजना आयोग जैसे संविधानेत्तर निकायों को समाप्त करना।

सरकारिया आयोग (1983-1988): केंद्र सरकार की पहल

अधिदेश केंद्र-राज्य संबंधों की जाँच और समीक्षा करना
सिफारिशें
  • अनुच्छेद-356 का संयम से और सभी विकल्पों को समाप्त करने के बाद ही प्रयोग करना।
  • अंतर-राज्यीय परिषद को मजबूत करना।
  • राज्यपाल की नियुक्ति के लिए मानदंड स्थापित करना।
  • अधिक विषयों को राज्य सूची में स्थानांतरित करना।

पुंछी आयोग (2007-2010): सरकारिया के बाद की समीक्षा

केंद्र बदलते संघीय परिदृश्य में सरकारिया आयोग की सिफारिशों को संशोधित करना।
सिफारिशें
  • अनुच्छेद-356 के दुरुपयोग को सीमित करना।
  • राज्यपालों के लिए निश्चित कार्यकाल।
  • समवर्ती सूची के विषयों में सामंजस्य स्थापित करना।
  • संघ की आपातकालीन शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।

आगे की राह

  • अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना: अंतर-राज्यीय परिषद (Inter State Council-ISC) का पुनर्गठन किया जाना चाहिए ताकि राज्यों और केंद्र के बीच विवादों और नीतिगत मामलों को संबोधित करने के लिए प्रमुख संघीय वार्ता मंच बन सके।
  • समवर्ती सूची में स्पष्टता: समवर्ती सूची (संविधान में सूची III), जो केंद्र और राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र साझा करती है, को ओवरलैपिंग अधिकार क्षेत्र से बचने तथा संघर्षों को कम करने के लिए विषयों के स्पष्ट चित्रण की आवश्यकता है।
  • राजकोषीय संघवाद: वित्त आयोग को राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना धन के वितरण का निर्धारण करने में अधिक स्वायत्तता होनी चाहिए और राज्यों को संसाधनों का हस्तांतरण एक ऐसे सूत्र पर आधारित होना चाहिए, जो राजनीतिक विचारों के बजाय स्थानीय आवश्यकताओं तथा प्राथमिकताओं पर विचार करता हो।
  • राष्ट्रीय नियोजन में राज्य की भागीदारी: राष्ट्रीय नियोजन निकायों (नीति आयोग) को न केवल परामर्श करना चाहिए बल्कि राज्यों को उन चर्चाओं में सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए, जो उनकी आर्थिक नीतियों, शिक्षा प्रणालियों और स्वास्थ्य सेवा ढाँचे को प्रभावित करती हैं।
    • यह राज्य के प्रतिनिधित्व को मजबूत करके और यह सुनिश्चित करके किया जा सकता है कि राष्ट्रीय नीतियाँ स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
  • राजनीतिक परिपक्वता: सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करने का अर्थ है आपसी सम्मान, संवाद और सहयोग को प्राथमिकता देना। महत्त्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के बीच संयुक्त परामर्श बैठकें जैसी पहल प्रतिकूल संबंधों के बजाय सहकारी संबंधों को बढ़ावा दे सकती हैं।

निष्कर्ष 

राजमन्नार समिति के समान एक पैनल का पुनर्गठन भारत के संघीय ढाँचे में निरंतर असहजता को रेखांकित करता है। जबकि संविधान एक अर्द्ध-संघीय संरचना प्रदान करता है पर वास्तविकताएँ अक्सर केंद्रीकरण की ओर झुकती हैं।

  • भारत के लोकतंत्र को फलने-फूलने के लिए, उसे सही अर्थों में सहकारी संघवाद को अपनाना होगा, जहाँ राज्य समान हितधारक होंगे, न कि अधीनस्थ इकाइयाँ।

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