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केंद्र ने पशु प्रोटीन-आधारित बायोस्टिमुलेंट्स की बिक्री का अनुमोदन वापस ले लिया

Lokesh Pal October 06, 2025 03:22 19 0

संदर्भ

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने धार्मिक और आहार संबंधी संवेदनशीलता का हवाला देते हुए 11 पशु प्रोटीन-आधारित बायोस्टिमुलेंट्स की बिक्री की मंजूरी वापस ले ली है।

संबंधित तथ्य

  • कृषि मंत्रालय की अधिसूचना (30 सितंबर, 2025) ने उर्वरक (अकार्बनिक, कार्बनिक या मिश्रित) (नियंत्रण) आदेश (FCO), 1985 की अनुसूची VI से 11 पशु-व्युत्पन्न बायोस्टिमुलेंट्स को हटा दिया।
    • इनमें मूँग, टमाटर, मिर्च, कपास, खीरा, सोयाबीन, अंगूर और धान के लिए प्रयोग होने वाले प्रोटीन हाइड्रोलाइजेट फॉर्मूले शामिल थे।
  • प्रभावित उत्पादों को पहले ही धान, टमाटर, मिर्च, खीरा, कपास, सोयाबीन, अंगूर और मूँग में प्रयोग के लिए मंजूरी दे दी गई थी।
  • पशु स्रोत: गोजातीय त्वचा, टैन्ड ‘त्वचा’, मुर्गी के पंख, सूअर के ऊतक, कॉड की हड्डियाँ तथा शल्क, और सार्डिन।
  • इन्हें वर्ष की शुरुआत में ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) की संस्तुति के बाद मंजूरी दी गई थी।

बायोस्टिमुलेंट्स क्या हैं?

  • परिभाषा (FCO, 1985): बायोस्टिमुलेंट्स ऐसे पदार्थ या सूक्ष्मजीव होते हैं, जो पोषक तत्त्वों के अवशोषण, वृद्धि, उपज, गुणवत्ता और तनाव सहनशीलता में सुधार के लिए पौधों की प्रक्रियाओं को उत्तेजित करते हैं।
  • ये पौधे के चयापचय पर कार्य करते हैं, लेकिन सीधे पोषक तत्त्व प्रदान नहीं करते (जैसे उर्वरक) या कीटों को नियंत्रित नहीं करते (जैसे- कीटनाशक)।
  • अनुप्रयोग: बायोस्टिमुलेंट्स आमतौर पर तरल रूप में बेचे जाते हैं और फसलों पर प्रत्यक्ष रूप से छिड़के जाते हैं।
  • भारत का बायोस्टिमुलेंट्स बाजार आकार: 355.53 मिलियन अमेरिकी डॉलर (2024) का मूल्यांकन; वर्ष 2032 तक 1,135.96 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान (फॉर्च्यून बिजनेस इनसाइट्स)।

विशेषता बायोस्टिमुलेंट्स उर्वरक कीटनाशकों
कार्य प्राकृतिक पौधों की अभिक्रियाओं को उत्तेजित करना पोषक तत्त्वों की आपूर्ति। कीटों, खरपतवारों या बीमारियों को नियंत्रित करना।
कार्रवाई की विधि प्रत्यक्ष पोषक तत्त्व को जोड़े बिना पादप शरीरक्रिया विज्ञान या मृदा सूक्ष्मजीव पर कार्य करना। मृदा या पौधों में पोषक तत्त्वों की मात्रा को सीधे बढ़ाकर कार्य करें। रासायनिक/जैविक कीट नियंत्रण
उद्देश्य विकास, उपज, गुणवत्ता, तनाव सहनशीलता में सुधार पोषण को बढ़ावा देना फसलों की रक्षा करना।
उदाहरण समुद्री शैवाल के अर्क, अमीनो एसिड, ह्यूमिक पदार्थ यूरिया, DAP (डायमोनियम फॉस्फेट), MOP (म्यूरेट ऑफ पोटाश) कीटनाशक, कवकनाशी, शाकनाशी।

बायोस्टिमुलेंट्स के प्रकार

  • ह्यूमिक और फुल्विक अम्ल – मृदा संरचना और पोषक तत्त्वों के अवशोषण में सुधार करते हैं।
  • समुद्री शैवाल के अर्क – जड़ों की वृद्धि और तनाव प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देते हैं।
  • प्रोटीन हाइड्रोलाइजेट और अमीनो अम्ल – एंजाइम गतिविधि और चयापचय को बढ़ाते हैं।
  • सूक्ष्मजीवी बायोस्टिमुलेंट्स- इनमें लाभकारी जीवाणु या कवक (जैसे- राइजोबैक्टीरिया, माइकोराइजा) होते हैं।
  • चिटोसन और अन्य जैव-पॉलिमर – पौधों की रोग और रोगजनकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करते हैं।
  • अकार्बनिक यौगिक – इनमें सूक्ष्म तत्त्व होते हैं, जो वृद्धि नियमन में सहायता करते हैं।

बायोस्टिमुलेंट्स के लाभ

  • पोषक तत्त्व दक्षता बढ़ाना: पोषक तत्त्वों के अवशोषण और उर्वरक उपयोग की दक्षता में सुधार करना।
  • उपज और गुणवत्ता बढ़ाना: बेहतर पुष्पन, फलन और उत्पादन की गुणवत्ता को बढ़ावा देना।
  • तनाव सहनशीलता बढ़ाना: पौधों को सूखे, लवणता और तापमान के दबाव का सामना करने में मदद करना।
  • पर्यावरण अनुकूल: रसायनों के उपयोग और पर्यावरण प्रदूषण को कम करना।
  • सतत् कृषि का समर्थन करना: जैविक और जलवायु-प्रतिरोधी कृषि लक्ष्यों के साथ संरेखित करना।

बायोस्टिमुलेंट्स से संबंधित चिंताएँ

  • अनियमित बाजार: वर्ष 2021 से पहले कई उत्पाद बिना गुणवत्ता नियंत्रण के बेचे गए।
  • असत्यापित दावे: कुछ निर्माताओं ने असत्यापित प्रदर्शन संबंधी दावे किए।
  • मानकीकरण का अभाव: विभिन्न संरचना और अनिश्चित प्रभावकारिता।
  • परीक्षण चुनौतियाँ: लाभों का वैज्ञानिक रूप से आकलन करना कठिन है।
  • सुरक्षा संबंधी मुद्दे: उचित मानकों के अनुसार उत्पादन न करने पर संदूषण की संभावना।

भारत में बायोस्टिमुलेंट्स के लिए नियामक ढाँचा

  • वर्ष 2011: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के अनुसार, कीटनाशकों या उर्वरकों के विकल्प का दावा करने वाले किसी भी जैव उत्पाद की बिक्री से पहले जाँच की जानी चाहिए, जिससे राज्य स्तर पर शीघ्र जाँच की जा सके।
  • नीति आयोग और कृषि मंत्रालय (2017): बायोस्टिमुलेंट्स के लिए एक नियामक ढाँचे का मसौदा तैयार करना शुरू किया।
  • वर्ष 2021 से पहले: बायोस्टिमुलेंट्स एक दशक से भी अधिक समय तक बिना किसी विशिष्ट नियामक तंत्र के खुले बाजार में बेचे जाते रहे।
  • 2021 के बाद का विनियमन: सरकार द्वारा बायोस्टिमुलेंट्स को  उर्वरक (अकार्बनिक, कार्बनिक या मिश्रित) (नियंत्रण) आदेश (FCO), 1985 के अंतर्गत लाया गया, जिसके तहत कंपनियों को पंजीकरण कराना और सुरक्षा एवं प्रभावकारिता सिद्ध करना आवश्यक हो गया।
  • संक्रमणकालीन प्रावधान: यदि अनुमोदन के लिए आवेदन लंबित हैं, तो कंपनियाँ 16 जून, 2025 तक उत्पाद बेच सकती हैं।
  • केंद्रीय जैव-उत्तेजक समिति (अप्रैल 2021): कृषि आयुक्त की अध्यक्षता में पाँच वर्षों के लिए गठित, जिसमें सात सदस्य हैं।

महत्त्व और निहितार्थ

  • नैतिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता: धार्मिक और आहार संबंधी मान्यताओं के प्रति सरकार के संवेदनशील दृष्टिकोण को दर्शाता है, विशेष रूप से हिंदू और जैन समुदायों के मध्य, जो पशु-व्युत्पन्न कृषि आदानों पर आपत्ति जताते हैं।
  • नियामक सुदृढ़ीकरण: कृषि आदान बाजार में गुणवत्ता, सुरक्षा और पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित करने के व्यापक प्रयास का एक हिस्सा।
  • कृषि व्यवसाय पर प्रभाव: पशु प्रोटीन-आधारित फॉर्मूलेशन का निर्माण या आयात करने वाली कंपनियों को प्रभावित करता है।
  • अनुसंधान और अनुपालन: भविष्य में अंतराल और सुरक्षा पर नया डेटा तैयार करना आवश्यक बनाता है।
  • पर्यावरणीय महत्त्व: अनियमित जैव-आदानों को कम करने से मृदा स्वास्थ्य और उपभोक्ता सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

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