शास्त्रीय भाषाओं तेलुगु, कन्नड़, मलयालम एवं ओडिया को बढ़ावा देने के लिए विशेष केंद्रों के कामकाज में अधिक स्वायत्तता की माँग की गई है।
शास्त्रीय भाषाओं के लिए केंद्र
एक बार जब किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित किया जाता है, तो शिक्षा मंत्रालय को उक्त शास्त्रीय भाषा के लिए अध्ययन हेतु उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना आवश्यक होता है।
शास्त्रीय भाषा केंद्र की स्थिति: भारत छह शास्त्रीय भाषाओं को मान्यता देता है। तमिल (2004), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगु (2008), मलयालम (2013), एवं ओडिया (2014)।
तेलुगु, कन्नड़, मलयालम एवं ओडिया केंद्र केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL), मैसूर के तत्त्वावधान में कार्य करता है।
तमिल केंद्र स्वायत्त है एवं इसका नाम केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान (Central Institute of Classical Tamil- CICT) है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से सीधे धन प्राप्त करने वाले तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से संस्कृत को बढ़ावा दिया जाता है।
स्वायत्तता की माँग के कारण
फंडिंग की कमी: केंद्रों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे इसकी आयोजन क्षमता में बाधा आती है क्योंकि किसी भी कार्यक्रम या गतिविधि की योजना बनाने से पहले CIIL द्वारा मंजूरी लेनी पड़ती है।
केंद्र के परियोजना निदेशक के पास कोई वित्तीय आहरण शक्ति नहीं है एवं उन्हें CIIL के निदेशक से अनुमोदन लेना होगा।
रिक्त पद: नियमित धन की कमी के कारण अनुसंधान से संबंधित विद्वानों के साथ-साथ प्रशासनिक कर्मचारियों के कई पद रिक्ति हैं।
उदाहरण: शास्त्रीय तेलुगु अध्ययन उत्कृष्टता केंद्र (आंध्र प्रदेश) में स्वीकृत 36 में से केवल 12 कर्मचारी हैं।
प्राथमिकता: केंद्र सरकार का ध्यान स्पष्ट रूप से संस्कृत को बढ़ावा देने पर है, जिसमें वर्ष 2017-18 एवं वर्ष 2019-20 के बीच ₹643.84 करोड़ का बजट खर्च किया गया, जबकि अन्य पाँच शास्त्रीय भारतीय भाषाओं पर केवल ₹29 करोड़ खर्च किए गए।
शास्त्रीय भाषाएँ
एक शास्त्रीय भाषा वह होती है, जिसका अपना साहित्य एवं लिखित लिपि का एक महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन भंडार होता है।
सभी शास्त्रीय भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।
शास्त्रीय भाषा की स्थिति निर्दिष्ट करने के लिए मानदंड: संस्कृति मंत्रालय ऐसे नियम पेश करता है, जिनका भारत में शास्त्रीय भाषा के रूप में वर्गीकृत होने के लिए पालन किया जाना चाहिए।
प्राचीन उत्पत्ति: भाषा में 1,500-2,000 वर्षों की अवधि में इसके प्रारंभिक ग्रंथों/रिकॉर्ड किए गए इतिहास की उच्च प्राचीनता होनी चाहिए।
साहित्यिक विरासत: भाषा में प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का संग्रह होना चाहिए, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।
मौलिकता: साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए एवं किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली जानी चाहिए।
आधुनिक अवतारों से असंततता: उक्त भाषा एवं साहित्य को उसके आधुनिक स्वरूप से अलग होना चाहिए, जिसमें शास्त्रीय भाषा तथा उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक स्पष्ट असंततता होनी चाहिए।
विशेष दर्जे के लाभ: एक बार जब किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित कर दिया जाता है, तो उसे बढ़ावा देने के लिए शिक्षा मंत्रालय द्वारा कुछ लाभ प्रदान किए जाते हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय उक्त भाषाओं में प्रतिष्ठित विद्वानों के लिए 2 प्रमुख वार्षिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार आयोजित करता है।
शास्त्रीय भाषा में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया गया है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध है कि शास्त्रीय टैग प्राप्त भाषाओं के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक निश्चित संख्या में व्यावसायिक पीठें बनाई जाएँ।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) इन भाषाओं को बढ़ावा देने वाली अनुसंधान परियोजनाओं को पुरस्कृत करता है।
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