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चुनावों को निष्पक्ष और प्रतिनिधित्त्वपूर्ण बनाए रखने की चुनौती

Lokesh Pal May 01, 2024 06:30 123 0

संदर्भ 

दुनिया भर में चुनाव का आधार भावनाओं, आशाओं, परस्पर विरोधी विचारधाराओं और कभी-कभी हिंसा की घटनाओं के जटिल मिश्रण का प्रतिनिधित्व होता है।

प्राचीन चुनावी प्रथाएँ (Ancient Electoral Practices)

  • प्राचीन एथेंस: लगभग 2,500 वर्ष पहले प्राचीन एथेंस में चुनाव का प्रारंभिक रूप देखा जा सकता था जहाँ उम्मीदवार की जीत उसके भाग्य पर निर्भर करती थी। सभी उपयुक्त उम्मीदवारों में से किसी एक को यादृच्छिक रूप से चुना जाता था।
    • जीत की प्रक्रिया यादृच्छिक तरीके से होती थी, इसलिए प्रचार या उम्मीदवार के प्रभाव का लाभ चुनाव में नहीं लिया जा सकता था।
  • चोल शासकों द्वारा कुदावोलाई प्रणाली: तमिलनाडु के उथिरामेरुर में दसवीं शताब्दी के चोल शिलालेखों से ‘कुदावोलाई’ प्रणाली (Kudavolai System) के माध्यम से ग्राम प्रतिनिधियों को चुनने की प्रथा की जानकारी मिलती है।
    • लोग जिन उम्मीदवारों को वोट देते थे, उनमें से किसी एक को यादृच्छिक रूप से चुनकर अंतिम रूप से चुना जाता था।

फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली (First Past the Post System)

  • परिचय: यह एक चुनावी प्रणाली है जिसमें मतदाता किसी एक ही उम्मीदवार को वोट कर सकता है, तथा सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार चुनाव जीतता है।
    • यह सरल और सबसे पुरानी चुनावी प्रणालियों में से एक है।
  • प्रक्रिया: मतदाताओं को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा नामांकित या निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची प्रस्तुत की जाती है।
  • मतदाता अपने मतपत्र या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर निशान लगाकर किसी एक उम्मीदवार को अपना वोट देते हैं। किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
    • इस प्रणाली का तात्पर्य है कि विजेता को बहुमत प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि केवल अन्य सभी उम्मीदवारों से अधिक वोट प्राप्त करना है।
  • अनुमोदन मतदान प्रणाली (Approval Voting System): भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य देशों में अपनाई जाने वाली इस प्रणाली को सामाजिक सिद्धांतकारों और गणितज्ञों द्वारा यादृच्छिक विकल्प के बाद अनुमोदन मतदान प्रणाली कहा गया है।

FPTP की कमियाँ 

  • लोकप्रिय वोट और सीट आवंटन के बीच विसंगतियाँ: आलोचकों ने कई चुनावों के पश्चात सीट शेयर और उस राजनीतिक दल को प्राप्त वोट शेयर के बीच उल्लेखनीय असंगति की ओर इशारा किया है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को 54% लोकप्रिय वोट मिले तथा उसने 96% सीटें जीतीं, जबकि भारतीय जनता पार्टी 32% वोट प्राप्त करने के बावजूद केवल 4% सीटें जीत सकी।
  • वोट शेयर की चुनौतियाँ: आमतौर पर, विजेता उम्मीदवार को 50% से भी कम वोट शेयर प्राप्त होता है। आज तक लोकसभा चुनाव में भारत में कोई भी सरकार प्रचंड बहुमत के बावजूद कभी भी 50% वोट शेयर को पार नहीं कर पाई है।
    • उम्मीदवारों को चुनने की प्रक्रिया के रूप में FPTP लोगों की इच्छा को पूरी तरह से प्रतिबिंबित करने में विफल रहती है।
    • वर्ष 1918 के बाद से केवल एक बार वर्ष 1931 में ब्रिटेन में किसी सरकार का वोट शेयर 50% से अधिक था। कहा जा सकता है कि संसदीय सीटों के बजाय वोट-शेयर के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाए तो भारत और ब्रिटेन पर हमेशा ‘अल्पसंख्यक’ सरकारों का शासन रहा है।

बेहतर चुनावी प्रणाली के निर्माण हेतु गणितीय विश्लेषण

  • कॉन्डोर्सेट प्रणाली (Condorcet Systems)
    • परिचय: इस चुनावी प्रणाली में जीतने वाले उम्मीदवार को औपचारिक वोटों की कुल संख्या का पूर्ण बहुमत हासिल करना होता है। इसका मतलब है कि प्रत्येक विजेता उम्मीदवार को कुल औपचारिक वोटों का 50 प्रतिशत से अधिक मिलना चाहिए।
    • वरीयता रैंकिंग के माध्यम से मतदाता प्राथमिकताओं का विश्लेषण: इसमें मतदाता वरीयता रैंकिंग के आधार पर उम्मीदवारों की सूची बनाते हैं। इसके बाद, प्रत्येक उम्मीदवार की तुलना हर दूसरे उम्मीदवार से की जाती है।
    • दो चरणों वाली चुनाव प्रक्रिया के लिए व्यापक प्रक्रिया: यह दो चरणों वाली चुनाव प्रक्रिया के लिए एक व्यापक प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है।
      • यह चुनावी प्रणाली गारंटी प्रदान करती है कि अन्य उम्मीदवार के खिलाफ प्रत्येक विजेता उम्मीदवार को 50% से अधिक वोट मिले हैं तथा वह सबसे पसंदीदा उम्मीदवार होता/ होती है।
    • प्रणाली से संबंधित चिंता: हालाँकि FPTP की तुलना में कॉन्डोर्सेट प्रणाली को बेहतर कहना मुश्किल है और किसी भी राष्ट्रीय चुनाव में इसका उपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि यह प्रणाली मतदाताओं को किसी विशेष उम्मीदवार के चुनाव को प्रतिबंधित करता है।
  • बोर्डा प्रणाली (Borda System)
    • रैंक-आधारित मतदान प्रणाली (Rank-based Voting System- RVS): इस प्रणाली में मतदाताओं को मतपत्र पर प्रत्येक उम्मीदवार को रैंक करने की सुविधा मिलती है तथा वोट पुनर्वितरण की प्रक्रिया के माध्यम से विजेता को कम-से-कम 50% वोट मिलने की गारंटी होती है।
    • वोट पुनर्वितरण की रणनीतियाँ: वोटों का पुनर्वितरण प्रचलित पद्धति के साथ कई अन्य रूप ग्रहण कर सकता है। उदाहरण के लिए, दूसरी और कभी-कभी तीसरी वरीयता के वोटों का संचय हो जाता है, परिणामस्वरूप कोई उम्मीदवार 50% वोट शेयर प्राप्त नहीं कर पाता।
      • भारत के राष्ट्रपति का चुनाव RVS प्रणाली से होता है।
    • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: कॉन्डोर्सेट प्रणाली की तरह, बोर्डा प्रणाली भारत जैसे विशाल देश के बड़े चुनावों में लागू करना जटिल और चुनौतीपूर्ण है।
      • वर्ष 1969 में राष्ट्रपति पद के 15 उम्मीदवारों में से किसी को भी प्रथम वरीयता के लिए 50% वोट हासिल नहीं हुए थे।
      • दूसरी वरीयता के वोट जोड़ने के बाद वी.वी. गिरि (जिनके पास प्रथम वरीयता के 48% वोट थे) ने 50.8% का आँकड़ा छू लिया और नीलम संजीव रेड्डी को हराकर विजेता घोषित हुए।

चुनाव को निष्पक्ष रखने में गणित एवं तकनीक की मदद 

  • चुनावी प्रक्रियाओं में स्वरूप का खुलासा: चुनाव डेटा के विश्लेषण ने चुनावी प्रक्रिया के महत्वपूर्ण कारकों के वितरण में परिलक्षित स्वरूप का खुलासा किया है।
    • वोटों का गणित चुनाव प्रक्रियाओं की असंगत प्रकृति को स्पष्ट करता है।
  • क्रमिक नम्यता: चुनावों में स्पष्ट अव्यवस्था के बावजूद मतदान के पैटर्न में लचीलापन देखा जा सकता है क्योंकि भौगोलिक स्थानों, मतदान प्रतिमानों या सांस्कृतिक संदर्भों जैसी बारीक जटिलताओं के बावजूद इसे अप्रभावित रखा जा सकता है।
    • इस प्रकार, गणितीय विश्लेषण चुनावी प्रक्रिया के संबंध में एक बेहतर समझ प्रदान करता है, जबकि तकनीकी परिप्रेक्ष्य इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित तरीके से लागू करने में सहायक है।

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