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भारत में चाँदीपुरा वायरस

Lokesh Pal August 30, 2024 02:45 61 0

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में चाँदीपुरा वायरस (Chandipura Virus-CHPV) संक्रमण का वर्तमान प्रकोप पिछले 20 वर्षों में सबसे अधिक माना जा रहा है। 

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES)

  • AES या जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis), जिसे भारत में ‘चमकी फीवर (Chamki Fever) या ‘लीची वायरस’ (Litchi Virus) के नाम से भी जाना जाता है, एक व्यापक शब्द है, जिसका उपयोग ऐसे संक्रमणों के लिए किया जाता है। 
  • प्रभावित जनसंख्या: यह रोग अधिकतर 15 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है। 
  • AES के प्रेरक एजेंट 
    • वायरस, एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के प्राथमिक प्रेरक एजेंट हैं। 
    • उदाहरण: हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस, निपाह वायरस, जीका वायरस, इन्फ्लूएंजा-A वायरस, वेस्ट नाइल वायरस, चांदीपुरा वायरस, खसरा, डेंगू, AES के प्रेरक एजेंट के रूप में पाए जाते हैं। 
  • AES की जटिलताएँ: AES की जटिलताओं में स्मृति हानि, कोमा और यहाँ तक ​​कि मृत्यु भी शामिल हो सकती है। 
  • रोकथाम: AES को टीकाकरण से नहीं रोका जा सकता है। 

चाँदीपुरा वायरस 

  • वर्गीकरण: चाँदीपुरा वायरस रैबडोविरिडे (Rhabdoviridae) परिवार का सदस्य है। 
    • इस परिवार में रेबीज वायरस भी शामिल है।
  • वायरस का प्रभाव: यह वायरस पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी भारत में, विशेष रूप से मानसून मौसम के दौरान, एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के कुछ मामलों और प्रकोप ​​का कारण बनता है। 
  • पहचान: इस वायरस की प्रथम बार पहचान वर्ष 1965 में महाराष्ट्र के एक गाँव चाँदीपुरा में हुई थी। 
  • प्रकार: चाँदीपुरा वायरस एक आवृत RNA वायरस (Enveloped RNA virus) है। 
  • खोज: वर्ष 1965 में इस वायरस की पहली बार भारत में खोज होने के बाद से, इसके अधिकांश मामले भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित रहे हैं। 
    •  हालाँकि, वायरस का भौगोलिक वितरण भारत से बाहर भी फैला हुआ है। 
    • यह वर्ष 1991 और 1992 में पश्चिमी अफ्रीका में सैंडफ्लाई में तथा सेनेगल हेजहॉग में (1990-96) पाया गया था।  
    • वर्ष 1993 में श्रीलंका के जंगली बंदरों में भी चाँदीपुरा वायरस के प्रति एंटीबॉडी पाई गई थीं। 
    • यद्यपि भारत के बाहर इस वायरस से संबंधित कोई मानवीय मामला नहीं देखा गया है। 
  • ट्रांसमिशन वेक्टर
    • प्राथमिक वेक्टर: फीमेल फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाई (Female Phlebotomine Sandfly)
    • अतिरिक्त वाहक: मच्छर और टिक। 
  • संचरण तंत्र: यह वायरस इन कीटों की लार ग्रंथियों में पाया जाता है और इनके काटने से मनुष्यों या अन्य कशेरुकियों में फैल सकता है। 
  • प्रमुख लक्षण: विशिष्ट नैदानिक लक्षण में बुखार, सिरदर्द, थकान, शरीर और मांसपेशियों में दर्द, उल्टी और ऐंठन शामिल हैं। 
  • प्रभाव: चाँदीपुरा वायरस मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रभावित करता है। 
  • केस फैटेलिटी रेशियो: केस फैटलिटी रेशियो (Case Fatality Ratio) अधिक है, जो 56-75%से लेकर है।
  • उपचार: चाँदीपुरा वायरस के उपचार के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल एजेंट नहीं है और अभी तक कोई टीका भी उपलब्ध नहीं है। 
  • हालिया प्रकोप: यह देश में चाँदीपुरा वायरस का यह पहला प्रकोप नहीं है, वर्ष 2003-04 में महाराष्ट्र, गुजरात और आंध्र प्रदेश सहित मध्य भारत के कुछ हिस्सों में इसका प्रकोप हुआ था, जिसके कारण 300 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। 
    • इस वायरस से जुलाई 2024 से अब तक गुजरात में 28 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है। 
  • शीघ्र देखभाल की आवश्यकता: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, शीघ्र देखभाल और गहन सहायक देखभाल से जीवित रहने की दर बढ़ सकती है। 
  • सरकारी पहल: सरकार ने चाँदीपुरा वायरस के वेक्टर नियंत्रण और रोकथाम के लिए राज्य भर में अभियान शुरू किया है। 
    • रोग नियंत्रण के लिए गाँवों में मैलाथियान पाउडर (एक प्रकार का कीटनाशक) का छिड़काव किया जा रहा है। 

चाँदीपुरा वायरस की रोकथाम

  • वेक्टर नियंत्रण
    • सैंडफ्लाई के प्रजनन स्थलों की पहचान करना और उन्हें नष्ट करना। 
    • प्रभावित क्षेत्रों में कीटनाशकों का छिड़काव करना। 
    • उचित अपशिष्ट भंडारण और निपटान सहित स्वच्छता तथा पर्यावरण नियंत्रण बनाए रखना। 
    • खुले में शौच को रोकना। 
    • मक्खियों को पकड़ने के लिए फ्लाई पेपर का उपयोग करना। 
  • प्रजनन स्थल: दीवारों, अंधेरे कमरों, अस्तबलों और भंडारगृहों और दरारों का निरीक्षण करना।

राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP)

  • प्रशासकीय निकाय: राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र  NCVBDC की देखरेख करता है। 
  • कवर की गई बीमारियाँ: मलेरिया, जापानी इंसेफेलाइटिस (JE), डेंगू, चिकनगुनिया, काला अजार और लिम्फैटिक फाइलेरियासिस (Lymphatic Filariasis) 
  • उन्मूलन लक्ष्य: इनमें से तीन बीमारियों अर्थात् मलेरिया, लिम्फैटिक फाइलेरिया और काला अजार को पूर्णत: उन्मूलन के लिए लक्षित किया गया है। 
  • प्रकोप-प्रवण और जलवायु-संवेदनशील रोग: मलेरिया, डेंगू और जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) 
  • नियम और जिम्मेदारियाँ
    • राज्य/संघ राज्य क्षेत्र: NCVBDC के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार। 
    • NCVBDC: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) योजना के अंतर्गत नकदी और वस्तुओं सहित तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 

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