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महासागरों के रंग में परिवर्तन

Lokesh Pal April 14, 2025 03:25 10 0

संदर्भ

हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, जापानी शोधकर्ताओं ने प्रस्तावित किया है कि पृथ्वी के प्राचीन महासागरों का रंग हरा था, नीला नहीं था, क्योंकि ऐसा महासागरीय रसायन विज्ञान और प्रारंभिक प्रकाश संश्लेषण गतिविधियों में परिवर्तन के कारण हुआ था।

प्राचीन महासागरों के बारे में

  • भू-वैज्ञानिक चिह्नांकन: 3.8 से 1.8 अरब वर्ष पूर्व निर्मित पट्टित लौह संरचनाएँ आर्कियन एवं पैलियोप्रोटेरोजोइक युगों के दौरान पृथ्वी के प्रारंभिक महासागरीय रसायन विज्ञान और वायुमंडलीय स्थितियों में हुए परिवर्तनों को दर्ज करती हैं।
  • वायुमंडल: आर्कियन युग के दौरान, पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी थी और केवल अवायवीय प्रकाश संश्लेषक जीव ही जीवित थे, जो एक उपोत्पाद के रूप में ऑक्सीजन का उत्पादन करते थे, जो प्रारंभ में महासागरों में घुले हुए लोहे के साथ बँध जाता था।
  • संक्रमण: ऑक्सीजन के संचयन के कारण अंततः ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट (Great Oxidation Event) हुआ, जिसने पृथ्वी के वायुमंडल को मौलिक रूप से परिवर्तित कर दिया और जटिल जीवन को जन्म दिया।
    • आर्कियन युग 1.5 अरब वर्षों तक विस्तृत था, जिसके दौरान पृथ्वी के महासागरों का रंग संभवतः धीरे-धीरे और रुक-रुक कर परिवर्तित होता रहा, जिससे शैवालों में दोहरे वर्णक के उपयोग जैसे विकासवादी अनुकूलन प्रभावित हुए।

हरित महासागरों के साक्ष्य

  • अवलोकन: शोधकर्ताओं ने पाया कि जापान के इवो जीमा द्वीप (Iwo Jima Island) के आसपास का जल, ऑक्सीकृत आयरन [Fe(III)] की उपस्थिति के कारण हरा दिखाई देता है, जो प्राचीन महासागर की स्थिति का संकेत देता है।
  • विकास: नीले-हरे शैवाल, हालाँकि तकनीकी रूप से बैक्टीरिया हैं, लेकिन इनका विकास क्लोरोफिल और फाइकोएरिथ्रोबिलिन (Phycoerythrobilin-PEB) जैसे वर्णकों के साथ हुआ, जिससे वे परिवर्तित प्रकाश स्थितियों वाले हरे जल में पनपने में सक्षम हुए।
  • सिमुलेशन: कंप्यूटर मॉडल दर्शाते हैं कि प्रारंभिक प्रकाश संश्लेषण द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन ने जल में पर्याप्त ऑक्सीकृत लौह कणों को उत्पन्न किया, जिससे मुक्त ऑक्सीजन के एकत्रीकरण से पहले ही समुद्र की सतह हरी हो गई।
  • उपयुक्त ग्रहों की खोज के लिए महत्त्वपूर्ण: अंतरिक्ष से हल्के हरे रंग के दिखाई देने वाले ग्रह प्रारंभिक प्रकाश संश्लेषी जीवन रूपों के लिए आशाजनक उम्मीद हो सकते हैं, जो अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज में नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
  • समुद्री जीवन के लिए निहितार्थ: गहरे नीले रंग के जल में कम जीवन होता है, जबकि हरे जल में अधिक फाइटोप्लैंकटन की उपस्थिति का संकेत मिलता है।

जल का रंग नीला होने का कारण

  • प्रकाश का चयनात्मक अवशोषण: जल सूर्य के प्रकाश की विभिन्न तरंगदैर्ध्य को अलग-अलग मात्रा में अवशोषित करता है।
    • लाल, नारंगी और पीले रंग की तरंगदैर्ध्य (दीर्घ तरंगदैर्ध्य) जल द्वारा अधिक आसानी से अवशोषित कर ली जाती हैं, जबकि नीली एवं बैंगनी तरंगदैर्ध्य (लघु तरंगदैर्ध्य) अधिक गहराई तक प्रवेश करती हैं।
    • इससे स्वच्छ जल में दृश्यमान स्पेक्ट्रम पर नीला प्रकाश प्रभावशाली हो जाता है।
  • नीले प्रकाश का प्रकीर्णन: जब सूर्य का प्रकाश जल में प्रवेश करता है, तो नीला प्रकाश का अपनी लघु तरंगदैर्ध्य (रेले प्रकीर्णन) के कारण सभी दिशाओं में प्रकीर्णित हो जाता है।

महासागरीय परिवर्तनों की भविष्य की संभावनाएँ

  • बैंगनी: यदि पृथ्वी के महासागरों में सल्फर की मात्रा अधिक हो गई, संभवतः तीव्र ज्वालामुखी गतिविधियों और कम ऑक्सीजन के कारण, तो बैंगनी सल्फर बैक्टीरिया प्रभावी हो सकते हैं, जिससे महासागर बैंगनी हो सकते हैं।
  • लाल: लाल महासागरों का उद्भव तीव्र उष्णकटिबंधीय जलवायु, चट्टानों के क्षरण से लोहे के उच्च ऑक्सीकरण या अत्यधिक पोषक अपवाह से उत्पन्न लाल ज्वार शैवाल की प्रबलता के कारण हो सकता है।
  • अवधि का बढ़ना: जैसे-जैसे सूर्य की अवधि बढ़ती जाएगी और यह गर्म होता जाता है, बढ़ता हुआ UV विकिरण और वाष्पीकरण गहरे जल में बैंगनी सल्फर बैक्टीरिया को बढ़ावा दे सकता है, जिससे नीला रंग कम हो सकता है तथा तटीय महासागरों का रंग अधिक भूरा, हरा या बैंगनी हो सकता है।
  • वाष्पीकरण: अंततः, जैसे-जैसे सूर्य का विस्तार होगा और पृथ्वी की सतह गर्म होगी, महासागर पूरी तरह से वाष्पित हो जाएँगे, जिससे महासागरों के रंग में परिवर्तन का अंतिम चरण समाप्त हो जाएगा।

निष्कर्ष

भू-वैज्ञानिक दृष्टिकोण में, महासागर का रंग स्थिर नहीं होता है, बल्कि वायुमंडलीय, रासायनिक और जैविक परिवर्तनों के साथ विकसित होता है, जिससे महासागरों का गतिशील परिवर्तन अपरिहार्य हो जाता है।

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