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“रसायन उद्योग: वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना”: नीति आयोग की रिपोर्ट

Lokesh Pal July 07, 2025 02:56 7 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ‘रसायन उद्योग: वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना’ (Chemical Industry: Powering India’s Participation in Global Value Chains) जारी की।

रसायन एवं पेट्रोरसायन क्या हैं?

  • रासायनिक पदार्थ पदार्थ का एक रूप है, जिसमें स्थिर रासायनिक संरचना और विशिष्ट गुण होते हैं।
    • पेट्रोकेमिकल्स पेट्रोलियम को रिफाइन करके प्राप्त किए जाने वाले रासायनिक उत्पाद हैं।
    • वे अन्य जीवाश्म ईंधन, जैसे कोयला या प्राकृतिक गैस और मक्का, ताड़ के फल या गन्ना जैसे नवीकरणीय स्रोतों से भी प्राप्त होते हैं।

भारत के रसायन उद्योग का भौगोलिक वितरण

  • भारत में रसायन उद्योग भौगोलिक दृष्टि से कुछ प्रमुख राज्यों में केंद्रित है:
    • गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल।
  • भौगोलिक वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
    • कच्चे माल तक पहुँच: गुजरात, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों में पेट्रोकेमिकल फीडस्टॉक और अन्य कच्चे माल प्रचुर मात्रा में हैं, जो रसायनों के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • बंदरगाहों से निकटता: गुजरात और महाराष्ट्र में कांडला और मुंबई जैसे प्रमुख बंदरगाहों तक आसान पहुँच है, जिससे रसायनों के निर्यात और आयात में सुविधा होती है।
    • शोधन क्षमता: गुजरात, महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में पेट्रोकेमिकल उद्योग के लिए आवश्यक पर्याप्त शोधन क्षमताएँ हैं, जो रासायनिक उत्पादन के लिए एक स्थिर फीडस्टॉक आपूर्ति प्रदान करती हैं।
    • बुनियादी ढाँचा: गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में उन्नत बुनियादी ढाँचा बड़े पैमाने पर विनिर्माण का समर्थन करता है, जिससे कुशल रसद और वितरण नेटवर्क सुनिश्चित होता है।
    • सरकारी सहायता और नीतियाँ: गुजरात, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में पेट्रोलियम, रसायन तथा पेट्रोकेमिकल निवेश क्षेत्रों (PCPIR) की स्थापना समर्पित बुनियादी ढाँचे एवं नीतिगत समर्थन के साथ क्लस्टर-आधारित औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है।

भारत के रसायन उद्योग की वर्तमान स्थिति

  • वैश्विक स्थिति: भारत दुनिया में रसायनों का छठा सबसे बड़ा उत्पादक और एशिया में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • GDP में योगदान: रसायन उद्योग भारत के GDP में लगभग 7% का योगदान देता है, जो देश की आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • बाजार का आकार: वर्ष 2023 में, घरेलू रसायन बाजार का मूल्य लगभग 220 बिलियन डॉलर था।
  • वैश्विक रसायन खपत: भारत की वर्ष 2023 में वैश्विक रासायनिक खपत का केवल 3-3.5% हिस्सा था, जो इसके बढ़ते घरेलू बाजार की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।
  • निर्यात और आयात असंतुलन
    • व्यापार घाटा: वर्ष 2023 में, भारत ने 75 बिलियन डॉलर के रसायन आयात किए, जबकि 44 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 31 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
    • आयात में वृद्धि: वर्ष 2000 से, भारत प्लास्टिक, अकार्बनिक और पेट्रोकेमिकल जैसे रसायनों के बढ़ते आयात के कारण शुद्ध शून्य व्यापार संतुलन से बढ़ते घाटे की ओर बढ़ गया है।
    • मुख्य आयात भागीदार: सबसे अधिक रासायनिक आयात चीन (30-35%) से होता है, उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण कोरिया जैसे देश आते हैं।

नीति आयोग रिपोर्ट (विजन 2030) में विकास अनुमान

  • बाजार का आकार एवं वृद्धि
    • वर्ष 2030 तक: बढ़ती घरेलू खपत और वैश्विक माँग के कारण बाजार का आकार 400-450 बिलियन डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
    • वर्ष 2040 तक: उद्योग के 10-11% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ 850-1000 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • वैश्विक रसायन बाजार में भारत की हिस्सेदारी
    • वर्ष 2030 तक: यह हिस्सा बढ़कर 5-6% होने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2040 तक: भारत का लक्ष्य वैश्विक रासायनिक बाजार में 10-12% हिस्सेदारी प्राप्त करना है।
  • निर्यात: वर्ष 2030 तक रासायनिक निर्यात में 35-40 बिलियन डॉलर की वृद्धि करना है।
  • रोजगार: रासायनिक क्षेत्र में वर्ष 2030 तक 7,00,000 से 1 मिलियन नौकरियाँ सृजित होने का अनुमान है।
  • व्यापार संतुलन: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक रसायनों में शुद्ध-शून्य व्यापार संतुलन हासिल करना है, आयात पर निर्भरता कम करना और आत्मनिर्भर बनना है।

भारत के रसायन उद्योग के प्रमुख क्षेत्र

  • पेट्रोकेमिकल्स: यह सबसे बड़ा खंड है, जिसमें पॉलिमर, सिंथेटिक फाइबर और प्रदर्शन प्लास्टिक शामिल हैं।
    • उपभोग मूल्य: वर्ष 2023 में $65-75 बिलियन होने का अनुमान है।
    • फोकस: मुख्य रूप से कमोडिटी-ग्रेड उत्पाद, लेकिन अधिक उन्नत, मूल्य वर्द्धित उत्पादों में विविधता लाने की आवश्यकता है।
  • विशेष रसायन: ये उच्च मूल्य वाले रसायन हैं, जिनका उत्पादन कम मात्रा में होता है, जिनमें कृषि रसायन, पेंट, कोटिंग्स और सर्फेक्टेंट शामिल हैं।
    • बाजार का आकार: अनुमानित $40-45 बिलियन।
    • योगदान: भारत के कुल रासायनिक निर्यात का 50% से अधिक हिस्सा इसी क्षेत्र से आता है।
    • विकास: यह एक अत्यधिक शोध-गहन क्षेत्र है, जो फार्मास्यूटिकल्स और कृषि जैसे विभिन्न अंतिम उपयोग उद्योगों में नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • अकार्बनिक रसायन: निर्माण, जल उपचार और खाद्य प्रसंस्करण (जैसे उर्वरकों में अमोनिया) जैसे औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए उपयोग किए जाने वाले रसायन।
    • बाजार का आकार: अनुमानित $15-20 बिलियन
    • महत्त्व: ये रसायन भारत के औद्योगिक आधार के लिए मौलिक हैं और विनिर्माण तथा कृषि जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अन्य रसायन (सामान्य): उर्वरक, फार्मास्यूटिकल्स (टीके, इंजेक्शन), चिकित्सा उपकरण और व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद (जैसे- साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट)।
    • बाजार में योगदान: यह श्रेणी बाजार में खपत में लगभग 90 बिलियन डॉलर का योगदान देती है।
    • विविधता: इसमें स्वास्थ्य सेवा से लेकर व्यक्तिगत देखभाल और औद्योगिक वस्तुओं तक के विविध क्षेत्रों के रसायन शामिल हैं।

रासायनिक क्षेत्र में वृद्धि के लिए नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित हस्तक्षेप

  1. भारत में विश्व स्तरीय रासायनिक केंद्र स्थापित करना: मौजूदा क्लस्टरों का पुनरुद्धार करना और नए बनाना।
    • रासायनिक केंद्र का प्रबंधन करने और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए धन मुहैया कराने हेतु सशक्त केंद्रीय समिति।
  2. मौजूदा बंदरगाह बुनियादी ढाँचे का विकास करना: रासायनिक व्यापार में अंतराल को दूर करने के लिए बंदरगाहों के लिए एक रासायनिक समिति बनाना।
    • 8 उच्च क्षमता वाले रासायनिक क्लस्टर विकसित करना।
  3. रसायनों के लिए परिचालन सब्सिडी योजना शुरू करना: आयात बिलों, निर्यात क्षमता और अन्य प्रमुख कारकों के आधार पर वृद्धिशील उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
    • एक निश्चित अवधि के लिए वृद्धिशील बिक्री पर चयनित प्रतिभागियों को प्रोत्साहन प्रदान करना।
  4. आत्मनिर्भरता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास तथा उपयोग करना: उद्योग अकादमिक सहयोग के माध्यम से नवाचार के लिए अनुसंधान और विकास निधि वितरित करना।
    • विदेशी प्रौद्योगिकियों तक पहुँचने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना।
  5. पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ पर्यावरण मंजूरी को तेजी से आगे बढ़ाना: निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए DPIIT के तहत एक ऑडिट समिति के साथ पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया को सरल और तेज करना।
  6. उद्योग विकास का समर्थन करने के लिए FTA सुरक्षित करना: FTA पर बातचीत करना जिसमें महत्त्वपूर्ण कच्चे माल के लिए टैरिफ कोटा और शुल्क छूट जैसे प्रावधान शामिल हों।
    • FTA के बारे में जागरूकता बढ़ाना और बेहतर उपयोग के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
  7. रासायनिक उद्योग में प्रतिभा और कौशल उन्नयन: कुशल श्रम माँगों को पूरा करने के लिए ITI और विशेष प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार करना।
    • पेट्रोकेमिकल्स और औद्योगिक सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में प्रासंगिक पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए संकाय प्रशिक्षण को उन्नत करना और उद्योग-अकादमिक साझेदारी को बढ़ावा देना।

भारत-जापान मुक्त व्यापार समझौता (CEPA) (2011)

  • CEPA के कारण जापान से आयात में वृद्धि हुई है, जिससे रसायनों, विशेष रूप से पेट्रोकेमिकल्स और विशेष रसायनों में व्यापार घाटा बढ़ रहा है।
  • जापान के साथ भारत का आयात-निर्यात अनुपात खराब हो गया है, जो मूल नियमों और तकनीकी बाधाओं के कारण भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौतियों को दर्शाता है।
  • भारत को व्यापार संतुलन में सुधार और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए CEPA की शर्तों, विशेष रूप से मूल नियमों को संशोधित करने की आवश्यकता है।

भारत के रासायनिक उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ

  • आयात पर उच्च निर्भरता
    • व्यापार घाटा: वर्ष 2023 में, भारत को रसायनों में लगभग 31 बिलियन डॉलर के महत्त्वपूर्ण व्यापार घाटे का सामना करना पड़ा।
    • आयात पर भारी निर्भरता: भारत प्रोपलीन और एथिलीन जैसे प्रमुख फीडस्टॉक्स का आयात करता है, जिनका उपयोग पॉलीएथिलीन और पॉलीप्रोपाइलीन के उत्पादन में किया जाता है, जिससे घरेलू उत्पादन क्षमता सीमित हो जाती है।
  • सीमित फीडस्टॉक उपलब्धता
    • संकेंद्रित उत्पादन: यह उद्योग थोक रसायनों पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन उच्च-मूल्य, विशेष रसायनों में विविधता का अभाव है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में बाधा उत्पन्न होती है।
    • फीडस्टॉक असंतुलन: भारत में प्रोपलीन जैसे प्रमुख फीडस्टॉक का घरेलू उत्पादन अपर्याप्त है, जिसमें 95% पॉलीप्रोपाइलीन के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 70% है।
  • बुनियादी ढाँचे संबंधी समस्या
    • बुनियादी ढाँचे की कमी: अपर्याप्त भंडारण, परिवहन और बंदरगाह बुनियादी ढाँचे के कारण रसद लागत बढ़ जाती है, जिससे कुशल रासायनिक व्यापार में बाधा आती है।
    • सामान्य उपयोगकर्ता सुविधाओं की कमी: क्लस्टरों में उद्योगों के लिए अपर्याप्त साझा बुनियादी ढाँचे के कारण अकुशलता और उच्च लागत होती है।
  • विनियामक बाधाएँ
    • पर्यावरण मंजूरी: भारत में पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया प्रायः धीमी होती है, जिससे नए संयंत्रों की स्थापना तथा विस्तार प्रयासों में देरी होती है।
    • जटिल विनियामक ढाँचा: सुरक्षा, पर्यावरण अनुपालन और लाइसेंसिंग जैसे क्षेत्रों में विनियामक बाधाएँ उद्योग के अभिकर्ताओं के लिए महत्त्वपूर्ण बाधाएँ पैदा करती हैं।
  • कुशल श्रमिकों की कमी
    • प्रतिभा की कमी: उद्योग में 30% प्रतिभा की कमी है, विशेषतः हरित रसायन और नैनो प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में, जो नवाचार को सीमित करता है।
    • उद्योग-संबंधित प्रशिक्षण की कमी: हालाँकि विशेष पाठ्यक्रमों की माँग बढ़ रही है, लेकिन उद्योग की आवश्यकताओं के हिसाब से व्यावसायिक प्रशिक्षण अपर्याप्त है।
  • कम अनुसंधान एवं विकास निवेश
    • अनुसंधान और विकास (R&D) फंडिंग: रसायन क्षेत्र में अनुसंधान और विकास (R&D) में भारत का निवेश कुल राजस्व का 0.7% है, जो वैश्विक औसत 2.3% से काफी कम है।
    • नवाचार संबंधी बाधाएँ: कम अनुसंधान एवं विकास निवेश विशेष रसायनों के विकास को सीमित करता है, जिसमें अधिकांश नवाचार बाहरी सहयोग पर निर्भर होते हैं।
  • तकनीकी प्रगति का अभाव
    • पुरानी तकनीक: कई रासायनिक संयंत्र पुरानी तकनीक का उपयोग करते हैं, जिससे दक्षता कम हो जाती है और उच्च मूल्य वाले रसायनों की ओर बदलाव में बाधा आती है।
    • आयातित तकनीकों पर निर्भरता: भारत का रासायनिक उद्योग अभी भी विनिर्माण प्रक्रियाओं के लिए विदेशी तकनीक पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे घरेलू तकनीकी नवाचार की संभावना सीमित हो जाती है।
  • सीमित पिछड़ा एकीकरण
    • पेट्रोकेमिकल निर्भरता: भारत की प्रोपलीन और एथिलीन जैसे आयातित पेट्रोकेमिकल फीडस्टॉक्स पर निर्भरता आत्मनिर्भरता तथा लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करती है।

हरित रसायन (ग्रीन केमिस्ट्री) के बारे में

  • हरित रसायन रासायनिक उत्पादों और प्रक्रियाओं का एक प्रकार है, जो खतरनाक पदार्थों के उत्पादन को कम या समाप्त कर देता है, जिसका उद्देश्य रासायनिक उद्योग को पर्यावरण के प्रति अधिक अनुकूल और सतत् बनाना है।
  • हरित रसायन के लाभ
    • मानव स्वास्थ्य: पर्यावरण में हानिकारक रसायनों के उत्सर्जन को कम करता है, जिससे स्वच्छ वायु और जल प्राप्त होता है और सुरक्षित उपभोक्ता उत्पाद प्राप्त होते हैं।
    • पर्यावरण संरक्षण: ऐसे रसायन प्रदूषण को कम करते हैं, जो या तो हानिरहित पदार्थों में विघटित हो जाते हैं अथवा आगे के उपयोग के लिए पुनर्प्राप्त किए जाते हैं।
    • लागत दक्षता: प्रतिक्रिया को बढ़ाकर अपशिष्ट को कम करता है, और ऊर्जा दक्षता में सुधार करता है, जिसके परिणामस्वरूप निर्माताओं के लिए परिचालन लागत कम होती है।
    • स्थायित्व: हरित भंडार और पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं के उपयोग को बढ़ावा देता है, पारंपरिक संसाधनों पर निर्भरता को कम करता है और पर्यावरणीय क्षति को कम करता है।
    • आर्थिक विकास: पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों और प्रक्रियाओं के विकास को सुविधाजनक बनाता है, जो उपभोक्ता माँग को आकर्षित कर सकते हैं और व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ा सकते हैं।

रसायन उद्योग में भारत के लिए अवसर

  • घरेलू माँग में वृद्धि
    • बढ़ती डिस्पोजेबल (प्रयोज्य) आय: भारत की डिस्पोजेबल आय द्वारा वर्ष 2030 तक घरेलू उपभोग वृद्धि में $1.5 ट्रिलियन का योगदान करने का अनुमान है।
    • शहरीकरण और नए परिवार: भारत में वर्ष 2030 तक 140 मिलियन नए परिवारों के उपभोक्ता वर्ग में प्रवेश करने की उम्मीद है, जिनमें से प्रत्येक परिवार वार्षिक रूप से $10,000 से अधिक कमाएगा।
    • क्षेत्र विकास: रसायन उद्योग फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव, टेक्सटाइल और कृषि जैसे कई डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों के लिए आवश्यक है, जो स्वयं उच्च विकास का अनुभव कर रहे हैं।
  • बढ़ती वैश्विक माँग
    • आपूर्ति शृंखला विविधीकरण: वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ विशेष रूप से महामारी के बाद और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण विविधीकृत हो रही हैं।
      • अपने मजबूत विनिर्माण आधार के साथ भारत रासायनिक उत्पादों के लिए एक महत्त्वपूर्ण आपूर्ति शृंखला साझेदार बनने की स्थिति में है।
    • निर्यात क्षमता: चूँकि वैश्विक कंपनियाँ चीन से अपनी कंपनियों को हटा रही हैं, इसलिए भारत रंग, पेंट, कृषि रसायन और स्वाद/सुगंध जैसे विशेष रसायनों के निर्यात को बढ़ाकर इस कमी को पूरा कर सकता है।
      • अकेले विशेष रसायनों का निर्यात वर्ष 2030 तक 45 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • फीडस्टॉक उपलब्धता और नवाचार
    • उच्च-मूल्य वाले उत्पादों की ओर बदलाव: भारत की थोक रसायनों पर निर्भरता की जगह मूल्य वर्द्धित रसायनों पर बढ़ते ध्यान के साथ ली जा रही है।
      • उदाहरण के लिए: भारत के 95% प्रोपलीन का उपयोग  पॉलीप्रोपाइलीन के लिए किया जाता है (विश्व स्तर पर केवल 70% की तुलना में)।
      • भारत के 75% एथिलीन का उपयोग पॉलीएथिलीन के रूप में किया जाता है (विश्व स्तर पर 63% की तुलना में)।
    • R&D निवेश: आत्मनिर्भरता बढ़ाने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए हरित रसायन और विशेष रसायनों में निवेश महत्त्वपूर्ण है।
  • कुशल कार्यबल विकास
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान: विशेष रूप से हरित रसायन, नैनो प्रौद्योगिकी और प्रक्रिया सुरक्षा में कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए, भारत व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार कर रहा है।
    • उद्योग-अकादमिक सहयोग: पेट्रोकेमिकल्स, पॉलिमर विज्ञान और औद्योगिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में उद्योग-संबंधित पाठ्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं।
  • पर्यावरण एवं स्थिरता रुझान
    • हरित रसायन: सतत् विकास के बढ़ने के साथ, हरित रसायनों (जैसे जैव-आधारित रसायन और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक) की माँग बढ़ेगी। भारत का रसायन क्षेत्र अपने बाजार हिस्से का विस्तार करने के लिए इस प्रवृत्ति का लाभ उठा सकता है।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था: भारतीय रसायन उद्योग स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए पुनर्चक्रण और अपशिष्ट को कम करने जैसे चक्रीय अर्थव्यवस्था सिद्धांतों को अपना रहा है।
  • बुनियादी ढाँचा विकास
    • रासायनिक केंद्र: साझा बुनियादी ढाँचे के साथ विश्व स्तरीय रासायनिक केंद्रों की स्थापना से रसद लागत को कम करने और रसायन आपूर्ति शृंखला की दक्षता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
    • बंदरगाह बुनियादी ढाँचा: रसायनों को अधिक कुशलता से प्रबंधित करने के लिए बंदरगाहों को उन्नत करना और 8 उच्च क्षमता युक्त रासायनिक समूहों के विकास से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।

वैश्विक केस स्टडी

  • जुरोंग केमिकल पार्क, सिंगापुर: जुरोंग द्वीप एक वैश्विक रासायनिक केंद्र है, जिसमें 100 से अधिक रासायनिक कंपनियाँ हैं तथा बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी में $40 बिलियन का निवेश है।
    • साझा उपयोगिताएँ, रसद और कार्बन कैप्चर तथा स्टोरेज (CCS) जैसी स्थिरता पहल प्रदान करती हैं, जिससे परिचालन लागत कम होती है।
    • भारत रासायनिक केंद्र विकसित करने के लिए जुरोंग के एकीकृत बुनियादी ढाँचे और सरकारी सहायता मॉडल को अपना सकता है।
  • चीन के रसायन उद्योग की विकास कहानी: पेट्रोकेमिकल्स और प्लास्टिक में बड़े पैमाने पर निवेश के कारण वर्ष 2000 से वैश्विक रसायन उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 6% से बढ़कर 33-35% हो गई है।
    • मजबूत सरकारी समर्थन, घरेलू फीडस्टॉक की उपलब्धता और अनुसंधान एवं विकास पर मजबूत ध्यान ने चीन के रसायन उद्योग को फलने-फूलने में मदद की।
    • भारत को वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए अनुसंधान एवं विकास, घरेलू फीडस्टॉक और नीति समर्थन में निवेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • एंटवर्प बंदरगाह, बेल्जियम: एंटवर्प बंदरगाह एक प्रमुख रासायनिक केंद्र है, जो प्रतिवर्ष 60 मिलियन टन रसायनों का प्रबंधन करता है, जिसमें उन्नत रासायनिक भंडारण, हैंडलिंग और परिवहन सुविधाएँ हैं।
    • यह बंदरगाह संचालन और स्थिरता में सुधार के लिए स्वचालित प्रणालियों, हरित परियोजनाओं और ऊर्जा-कुशल समाधानों को एकीकृत करता है।
    • भारत कुशल रसद और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के लिए एंटवर्प के समान विशेष रासायनिक बुनियादी ढाँचा बना सकता है और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।

रासायनिक उद्योग के लिए सरकारी योजनाएँ और पहल

  • रासायनिक संवर्द्धन विकास योजना (CPDS 1997): ज्ञान सृजन (अध्ययन, सर्वेक्षण, प्रचार सामग्री), सेमिनार, सम्मेलन और पुरस्कार प्रदान करना रसायन उद्योग के विकास तथा वृद्धि को सुगम बनाता है।
    • नीतिगत निर्णयों को सूचित करने के लिए कार्यशालाएँ, सेमिनार और अध्ययन आयोजित करने के लिए उद्योग संघों तथा संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • संशोधित: उद्योग के उभरते रुझानों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए इस योजना को वर्ष 2017 तथा वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था।
  • अम्ब्रेला योजना: पेट्रोकेमिकल्स की नई योजना
    • उत्कृष्टता केंद्र (CoE) की स्थापना: CoE की स्थापना नए उत्पादों को विकसित करने, प्रौद्योगिकियों में सुधार करने और बायोपॉलिमर, रीसाइक्लिंग प्रक्रियाओं और जल उपचार सहित पेट्रोकेमिकल्स में प्रक्रियाओं को नया रूप देने के लिए की जाती है।
      • CoE की संख्या: पेट्रोकेमिकल उद्योग के आधुनिकीकरण में सहायता के लिए 18 CoE को मंजूरी दी गई है।
    • प्लास्टिक पार्क स्थापित करने की योजना: प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग को मजबूत करने के लिए अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचे तथा सामान्य सुविधाओं के साथ प्लास्टिक पार्क स्थापित करना।
      • वित्तपोषण: सरकार परियोजना लागत का 50%, प्रति परियोजना 40 करोड़ रुपये तक, प्रदान करती है।
      • पार्कों की संख्या: प्लास्टिक क्षेत्र में निवेश, उत्पादन और निर्यात बढ़ाने के लिए 10 प्लास्टिक पार्कों को मंजूरी दी गई है।
  • पेट्रोलियम, रसायन और पेट्रोकेमिकल निवेश क्षेत्र (Petroleum, Chemical and Petrochemical Investment Regions-PCPIRs)
    • PCPIR नीति, 2007: एकीकृत और पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण के माध्यम से पेट्रोलियम, रसायन और पेट्रोकेमिकल क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करना और रोजगार सृजित करना।
      • व्यापार वृद्धि के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढाँचे, उपयोगिताओं और रसद के साथ क्लस्टर-आधारित विकास को बढ़ावा देता है।
    • स्वीकृत PCPIR: विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), दाहेज (गुजरात) और पारादीप (ओडिशा) में औद्योगिक विकास और निवेश को बढ़ावा देने के लिए तीन स्वीकृत PCPIR हैं।

भारत के रासायनिक उद्योग के लिए आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार में निवेश: उत्पादन में विविधता लाने तथा वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए उच्च मूल्य वाले विशेष रसायनों, हरित रसायन तथा बायोपॉलिमर के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: उत्पादन तथा निर्यात प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए साझा उपयोगिताओं, रसद तथा बंदरगाहों सहित एकीकृत बुनियादी ढाँचे के साथ विश्व स्तरीय रासायनिक केंद्रों की स्थापना करना।
  • घरेलू उत्पादन को मजबूत बनाना: खाद्य स्टॉक की उपलब्धता में सुधार करके तथा विशेष रूप से पेट्रोकेमिकल्स तथा विशेष रसायनों में घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाकर आयात निर्भरता को कम करना।
  • कौशल विकास: भविष्य के लिए तैयार कार्यबल सुनिश्चित करने के लिए हरित रसायन, नैनो प्रौद्योगिकी तथा प्रक्रिया सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रम प्रदान करके व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार करके कुशल श्रम अंतर को संबोधित करना।
  • स्थायित्व तथा हरित रसायन: वैश्विक पर्यावरणीय रुझानों के साथ सामंजस्य स्थापित करने तथा उद्योग की हरित क्रेडिट को बढ़ाने के लिए पुनर्चक्रण, ऊर्जा दक्षता तथा जैव-आधारित रसायनों सहित स्थायी प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • विनियामक और नीतिगत सुधार: पर्यावरणीय मंजूरी सहित विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और विदेशी निवेश, नवाचार तथा निर्यात को बढ़ावा देने वाली अनुकूल नीतियाँ लागू करना।
  • वैश्विक बाजार विस्तार: विशेष रसायनों और प्लास्टिक के निर्यात में वृद्धि करना, वैश्विक व्यापार बदलावों और मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का लाभ उठाना, भारत को वैश्विक रासायनिक आपूर्ति शृंखला में एक प्रमुख अभिकर्ता के रूप में स्थापित करना।

निष्कर्ष 

भारत के रसायन उद्योग में वैश्विक नेतृत्व प्राप्त करने की अपार संभावनाएँ हैं। इस संभावना को बढ़ावा देने में तेजी से बढ़ता घरेलू बाजार, निर्यात में निरंतर वृद्धि, और सरकार की रणनीतिक पहलें प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। हालाँकि, आयात पर निर्भरता, बुनियादी ढाँचे की अपर्याप्तता और कुशल श्रमिकों की कमी जैसी चुनौतियाँ इस मार्ग में बाधा बन सकती हैं। इन चुनौतियों का समाधान करते हुए यदि उद्योग नवाचार, स्थिरता और नियामक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करता है, तो भारत न केवल वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सकता है, बल्कि वर्ष 2030 और 2040 तक निर्धारित अपने महत्त्वाकांक्षी विकास लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सकता है।

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