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वर्ष 2025 का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार

Lokesh Pal October 10, 2025 03:22 12 0

संदर्भ 

वर्ष 2025 का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉब्सन और ओमर याघी को ‘मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स’ (MOFs) के क्षेत्र में अग्रणी कार्य के लिए प्रदान किया गया है, ये ऐसे पदार्थ हैं, जिनकी विशिष्ट छिद्रयुक्त संरचना (Porous Structure) अनेक वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुप्रयोगों को संभव बनाती है।

मेटल–ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (MOFs) के बारे में

  • संरचना: MOFs ऐसे क्रिस्टलीय पदार्थ हैं, जो धात्विक आयनों  को कार्बन-आधारित कार्बनिक लिंकरों से जोड़कर बनते हैं, जिससे त्रि-आयामी नेटवर्क का निर्माण होता है, जिनमें विशाल रिक्त स्थान होते हैं, इनमें गैसें या तरल पदार्थ आसानी से प्रवेश और निकास कर सकते हैं।
  • तंत्र: धात्विक आयन “एंकर” या जॉइंट्स (Joints) का कार्य करते हैं, जबकि कार्बनिक अणु लचीले सेतु की तरह कार्य करते हैं, जो छल्ले या शृंखलाएँ (Rings or Chains) का निर्माण करते हैं। इस प्रकार की संरचना में बने सुव्यवस्थित छिद्र (Ordered Pores) को रासायनिक और स्थानिक रूप से अनुकूलित किया जा सकता है।
  • कार्य: इन रिक्त स्थानों में अन्य अणुओं जैसे गैसों या जल अणुओं को अस्थायी रूप से फँसाकर रखा जा सकता है, जो बाद में छोड़े जा सकते हैं, जैसे एक ‘स्पंज’ या ‘फोम’ का व्यवहार होता है।
  •  साधारण यौगिकों और MOFs के बीच का अंतर वैसा है, जैसा एक ठोस ईंटों से बनी इमारत और खंभों व बीमों द्वारा निर्मित संरचना में होता है, MOFs अणु-स्तर पर नियंत्रित रिक्त स्थान प्रदान करते हैं।

MOFs का विकास 

  • रिचर्ड रॉब्सन का नवाचार (वर्ष 1970s): मेलबर्न विश्वविद्यालय में शिक्षण के दौरान उन्होंने यह विचार प्रस्तुत किया कि धातु परमाणुओं को अन्य अणुओं से जोड़कर विस्तारित आणविक संरचनाएँ निर्मित की जा सकती हैं। उनके प्रारंभिक MOFs स्थायी नहीं थे, परंतु यह विचार संकल्पनात्मक रूप से महत्त्वपूर्ण था।

  • सुसुमु कितागावा का योगदान: जापान के कितागावा ने इन ढाँचों को स्थायित्व प्रदान किया और यह प्रदर्शित किया कि गैसें उनसे गुजर सकती हैं, जिससे उनकी व्यावहारिक कार्यक्षमता सिद्ध हुई।
  • ओमर याघी का अनुसंधान (वर्ष 1995):  अमेरिका में कार्यरत याघी (जॉर्डन–USA) ने रासायनिक अभिक्रियाओं को पूर्वानुमानित और नियंत्रित बनाने का लक्ष्य रखा। उनकी टीम ने ताँबा  या कोबाल्ट  से जुड़े द्वि-आयामी MOFs बनाए, जो 350°C तक स्थिर थे और “गेस्ट मॉलिक्युल्स” (Guest Molecules) को समाहित कर सकते थे। उन्होंने ही “मेटल–ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क” शब्द को नेचर पत्रिका (वर्ष 1995) में प्रकाशित किया।
  • रेटिक्युलर केमिस्ट्री: इनकी खोज ने रासायनिक ढाँचे जोड़ने की इस नई शाखा की नींव रखी, जो पूर्वानुमानित संबंधों का उपयोग करके विस्तारित ढाँचे के निर्माण पर केंद्रित थी।
  • मान्यता: नोबेल समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि रसायनशास्त्री अब हजारों MOFs डिजाइन कर सकते हैं, जिससे “नए रासायनिक चमत्कार” संभव हो सकेंगे।

रेटिक्युलर केमिस्ट्री: ‘रेटिक्युलर केमिस्ट्री’ वह क्षेत्र है, जो मजबूत बंधों द्वारा आणविक इकाइयों को जोड़कर विस्तारित, क्रमबद्ध, क्रिस्टलीय संरचनाएँ, जैसे- MOFs और COFs निर्माण के सिद्धांतों और विधियों का अध्ययन करता है।

मुख्य विशेषताएँ

  • अनुकूलन योग्य छिद्रता: MOFs में छिद्रों के आकार, ज्यामिति और रासायनिक गुणों को उचित रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, ये प्राकृतिक पदार्थों (जैसे स्पंज) की तरह यादृच्छिक नहीं होते।
  • डिजाइन: रसायनज्ञ विशिष्ट अणुओं को लक्षित करने के लिए MOFs को डिजाइन कर सकते हैं, ये परिभाषित करते हैं कि वे कौन से पदार्थों को, कितनी मात्रा में, और किन परिस्थितियों में कैप्चर कर सकेंगे।
  • पर्यावरणीय प्रासंगिकता:छिद्रयुक्त संरचना’ के कारण CO जैसे गैसों का चयनात्मक अवशोषण संभव है, जिससे जलवायु परिवर्तन शमन में उपयोगी भूमिका निभाई जा सकती है।
  • रासायनिक स्थायित्व: कुछ MOFs अत्यधिक तापमान और रासायनिक परिस्थितियों में भी स्थिर रहते हैं, जिससे उनका औद्योगिक प्रयोग संभव है।

MOFs के वास्तविक उपयोग

  • जल-संग्रहण: MOFs रेगिस्तानी शुष्क वायु से जल निष्कर्षण में सक्षम हैं, जो शुष्क क्षेत्रों के लिए स्थायी समाधान है।
  • प्रदूषक निष्कासन: ये जल से PFAS जैसे प्रदूषकों को फिल्टर कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण शुद्धिकरण में सहायता मिलती है।
  • कार्बन कैप्चर: MOFs CO अणुओं को चयनात्मक रूप से कैप्चर करने में सक्षम हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्त्वपूर्ण है।
  • हाइड्रोजन भंडारण: इनकी छिद्रयुक्त संरचना सुरक्षित और कुशल हाइड्रोजन संग्रहण के लिए आदर्श है, जो हरित ऊर्जा परिवर्तन के लिए आवश्यक है।
  • भोजन संरक्षण: MOFs फलों से उत्सर्जित होने वाली एथिलीन गैस को अवशोषित कर उनकी पकने की प्रक्रिया धीमी कर देते हैं, जिससे खाद्य अपव्यय कम होता है

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