छत्तीसगढ़ ने एक अभिनव योजना शुरू की है, जो इसके वनों की पारिस्थितिकी सेवाओं को हरित सकल घरेलू उत्पाद (ग्रीन जीडीपी) से जोड़ती है।
यह कदम स्वच्छ वायु, जल संरक्षण, जैव विविधता जैसे वनों के महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय योगदान और राज्य की आर्थिक प्रगति के बीच सीधे संबंध को उजागर करता है।
हरित सकल घरेलू उत्पाद (ग्रीन जीडीपी)
ग्रीन जीडीपी आर्थिक विकास को मापने के लिए एक वैकल्पिक मानदंड है, जो आर्थिक गतिविधियों से जुड़े पर्यावरणीय परिणामों को ध्यान में रखता है।
ग्रीन जीडीपी की उत्पत्ति का पता वर्ष 1993 के संयुक्त राष्ट्र प्रकाशन, ‘हैंडबुक ऑफ नेशनल अकाउंटिंग: इंटीग्रेटेड एनवायरनमेंटल एंड इकोनॉमिक अकाउंटिंग’ से लगाया जा सकता है।
पर्यावरण-आर्थिक लेखांकन प्रणाली (SEEA) के ढाँचे के तहत विकसित इस पुस्तिका में प्राकृतिक संसाधनों के मौद्रिक मूल्यांकन की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।
ग्रीन जीडीपी की गणना
मूलतः इसमें आर्थिक कल्याण का अधिक सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिए पारंपरिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से प्राकृतिक संसाधनों की कमी एवं पर्यावरण क्षरण की लागत को घटाने का प्रस्ताव रखा जाता है।
इस समायोजित आँकड़े को ‘ग्रीन जीडीपी’ या ‘पर्यावरणीय रूप से समायोजित घरेलू उत्पाद’ (Environmentally Adjusted Domestic Product) कहा गया है।
वनों का आर्थिक मूल्य निर्धारित करने के लिए प्रमुख मूल्यांकन मापदंड
कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration): पेड़ों द्वारा अवशोषित CO₂ और उत्पादित O₂ की मात्रा निर्धारित करना तथा हरित सकल घरेलू उत्पाद में शामिल करने के लिए बाजार मूल्य निर्धारित करना।
जल संसाधन: नदियों, झरनों और जलग्रहण क्षेत्रों के माध्यम से वनों द्वारा संरक्षित और आपूर्ति किए जाने वाले जल के आर्थिक प्रभाव का मूल्यांकन करना।
जैव विविधता: पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने और कृषि को समर्थन देने में वन्य जीवों (पशु, पक्षी, कीड़े) की भूमिका का आकलन करना।
मृदा संरक्षण: मृदा के कटाव का नियंत्रण एवं सतत् कृषि तथा भूमि उत्पादकता में इसके योगदान को मापना।
जलवायु विनियमन: आर्थिक मूल्यांकन के लिए तापमान विनियमन, वर्षा पैटर्न एवं जलवायु स्थिरता में वनों की भूमिका का विश्लेषण करना।
मनोरंजन एवं पर्यटन: वन क्षेत्रों में पर्यावरण-पर्यटन एवं मनोरंजक गतिविधियों से उत्पन्न राजस्व का अनुमान लगाना।
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