यह लेख वर्ष 2029 तक बाल विवाह को समाप्त करने तथा बाल विवाह मुक्त राष्ट्र बनाने के भारत के प्रयासों पर प्रकाश डालता है।
बाल विवाह क्या है?
बाल विवाह से तात्पर्य किसी लड़की या या लड़के की 18 वर्ष की आयु से पूर्व विवाह से है।
प्रकार: इसमें शामिल हैं:
औपचारिक विवाह: बच्चों को के विवाह के बंधन में बाँधने वाली कानूनी या पारंपरिक रस्में।
अनौपचारिक विवाह: ऐसी स्थितियाँ जहाँ 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे अपने साथी के साथ ऐसे रहते हैं, जैसे कि वे विवाहित हों।
बाल विवाह के विरुद्ध भारत की प्रगति की स्थिति
उल्लेखनीय गिरावट: भारत में बाल विवाह वर्ष 2006 से आधे से भी कम हो गए हैं, जो वर्ष 2019-20 में 47.4% से घटकर 23.3% हो गए हैं।
निवारक उपाय: पिछले वर्ष लगभग 2 लाख बाल विवाह रोके गए।
वैश्विक रुझान: भारत बाल विवाह दरों में वैश्विक गिरावट में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता है, खासकर दक्षिण एशिया में।
लगातार चुनौती: तमाम प्रगति के बावजूद, भारत में पाँच में से एक लड़की अभी भी 18 वर्ष से कम उम्र में शादी कर लेती है।
भारत में बाल विवाह को बढ़ावा देने वाले कारक
शिक्षा का अभाव: लड़कियों की सीमित शिक्षा के कारण उनकी जागरूकता और अवसर कम हो जाते हैं, जिससे वे कम उम्र में विवाह के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
लड़कियों को बोझ के रूप में देखना: कई परिवारों में लड़कियों को अक्सर वित्तीय बोझ के रूप में देखा जाता है, क्योंकि दहेज प्रथा के कारण कम उम्र में विवाह को बढ़ावा मिलता है।
बाल विवाह के परिणाम
स्वास्थ्य प्रभाव
मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में गिरावट
मनोवैज्ञानिक तनाव, अवसाद और चिंता
सामाजिक एवं भावनात्मक प्रभाव
बचपन में जिम्मेदारियो का बोझ
लड़कियों का अपने परिवार और साथियों से अलग-थलग पड़ना।
शैक्षणिक एवं आर्थिक परिणाम
स्कूल छोड़ने के कारण सीमित शैक्षिक अवसर
शिक्षा की कमी लड़कियों को कमजोर बनाती है और उनके आर्थिक अवसरों को सीमित करती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: ग्रामीण क्षेत्रों और अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों जैसे वंचित समुदायों में बाल विवाह अधिक आम है।
लैंगिक असमानता: सीमित अवसर और लड़कियों के प्रति भेदभाव परिवारों को सुरक्षा के साधन के रूप में कम उम्र में विवाह करने के लिए मजबूर करते हैं।
क्या लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जानी चाहिए?
पक्ष
विपक्ष
लड़कियों की शादी की उम्र में वृद्धि से मातृ मृत्यु दर में कमी, शिशु मृत्यु दर में कमी, समग्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।
इससे लड़कियों के जीवन पर माता-पिता का नियंत्रण बढ़ सकता है, जिससे उनकी स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्ति सीमित हो सकती है।
इससे शिक्षा पूरी करने की संभावना बढ़ जाती है एवं बेहतर कॅरियर की संभावनाएँ और आर्थिक स्वतंत्रता हासिल होती है।
लड़कियों को रूढ़िवादी समुदायों और पारंपरिक प्रथाओं से अधिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा।
सशक्त महिलाएँ आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन में योगदान देती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों और वंचित समुदायों में कानून को लागू करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
इससे बच्चों के बीच बेहतर अंतराल और योजना बनाने में मदद मिलती है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार होता है।
इससे विवाहपूर्व यौन क्रियाकलापों में वृद्धि हो सकती है, जिसके सामाजिक और नैतिकता में कमी देखने को मिलती हैं।
भारत में बाल विवाह से संबंधित विधायी ढाँचा
विधायी ढाँचा
बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006: यह अधिनियम बाल विवाहों को प्रतिबंधित करता है और उन्हें रोकने तथा उनसे निपटने के लिए तंत्र प्रदान करता है।
यह विवाह के लिए कानूनी आयु लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष की आयु निर्धारित करता है।
बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929: पहले अधिनियम का उद्देश्य बाल विवाहों पर रोक लगाना था, लेकिन इसे PCMA, 2006 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000: यह 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को बच्चा मानता है।
यह अधिनियम किशोर अपराध को रोकने और उससे निपटने पर केंद्रित है।
यह बच्चों की सुरक्षा, उपचार और पुनर्वास के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
यह किशोर न्याय प्रणाली के अंतर्गत बच्चों की उचित देखभाल और सहायता सुनिश्चित करता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRC) का हस्ताक्षरकर्ता है और सतत् विकास लक्ष्य 5 को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करना है।
सरकार की पहल
बाल विवाह मुक्त भारत अभियान: सरकार ने बाल विवाह से निपटने के लिए ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान शुरू किया।
फोकस क्षेत्र
सर्वाधिक बाल विवाह वाले राज्य: पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, राजस्थान, त्रिपुरा, असम और आंध्र प्रदेश।
लगभग 300 जिले जहाँ बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
लक्ष्य: वर्ष 2029 तक बाल विवाह दर को 5% से नीचे लाना।
बाल विवाह को समाप्त करने के लिए कार्रवाई में तेजी लाने के लिए UNFPA-UNICEF वैश्विक कार्यक्रम।
बाल विवाह मुक्त भारत पोर्टल: जागरूकता, मामलों की रिपोर्टिंग और प्रगति की निगरानी के लिए एक मंच।
सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना: बाल विवाह रोकने वाली ग्राम पंचायतों को ₹50,000 का इनाम मिलेगा।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: वर्ष 2015 में शुरू की गई, यह पहल बालिकाओं को बचाने और शिक्षित करने पर केंद्रित है, जिससे बाल विवाह के मूल कारणों का समाधान किया जा सके।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: लड़कियों के लिए शिक्षा को बढ़ावा देती है, जो बाल विवाह को रोकने में महत्त्वपूर्ण है।
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