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चिल्ड्रन इन इंडिया, 2025′ रिपोर्ट

Lokesh Pal September 29, 2025 02:40 10 0

संदर्भ

हाल ही में, केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) ने चंडीगढ़ में केंद्रीय और राज्य सांख्यिकी संगठनों के 29वें सम्मेलन (Conference of Central and State Statistical Organizations- CoCSSO) के दौरान ‘चिल्ड्रन इन इंडिया, 2025′ (Children in India 2025) रिपोर्ट का चौथा अंक जारी किया।

रिपोर्ट के बारे में

  • प्रकाशक: केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI)।
  • शीर्षक: चिल्ड्रन इन इंडिया, 2025′ रिपोर्ट (वर्ष 2008 के बाद यह चौथा संस्करण है)। 
  • प्रकृति: भारत में बच्चों की स्थिति और कल्याण पर तदर्थ प्रकाशन।
  • फोकस क्षेत्र: शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, बाल संरक्षण, आदि।
  • डेटा स्रोत: विभिन्न सरकारी मंत्रालयों, विभागों और संगठनों से प्राप्त द्वितीयक डेटा।

केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) के बारे में

  • प्राथमिक भूमिका: नीति निर्माण हेतु सांख्यिकीय आँकड़ों का संग्रह, विश्लेषण और प्रसार।
  • प्रमुख एजेंसियाँ
    • केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation- CSO): समष्टि-आर्थिक आँकड़े, राष्ट्रीय खाते, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO): रोजगार, उपभोग और कल्याण पर सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण।
    • कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन (Programme Evaluation Organisation- PEO): सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करता है।
  • कार्यक्रम निगरानी: मनरेगा जैसी प्रमुख योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
  • महत्त्व: साक्ष्य-आधारित नीति, पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की रिपोर्टिंग का समर्थन करता है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate- IMR): 44 (वर्ष 2011) से घटकर 25 प्रति 1,000 जीवित जन्म (वर्ष 2023) हो गई; नवजात बालकों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक अर्थात् 26 है।
    • IMR किसी वर्ष में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर एक वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु की संख्या को संदर्भित करता है।

  • पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (Under-five Mortality Rate- U5MR): वर्ष 2023 में यह बढ़कर 29 हो गई, ग्रामीण क्षेत्रों में यह 33 और शहरी क्षेत्रों में 20 हो गई।
  •  ड्रॉपआउट दर: माध्यमिक विद्यालय ड्रॉपआउट दर 13.8% (वर्ष 2022-23) से घटकर 8.2% (वर्ष 2024-25) हो गई; प्रारंभिक और माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट संख्या में भी तेजी से गिरावट आई।
  • शीघ्र विवाह: 18 वर्ष से पहले विवाहित 20-24 वर्ष की महिलाओं का प्रतिशत 26.8% (वर्ष 2015-16) से घटकर 23.3% (वर्ष 2019-21) हो गया।

  • गोद लेने के रुझान: देश में गोद लेने की संख्या बढ़कर 4,155 (वर्ष 2024-25) हो गई, जिसमें लड़कों की तुलना में लड़कियों को अधिक बार गोद लिया गया।
  • शिक्षा में लैंगिक समानता: लैंगिक मानदंड कॅरियर की संभावनाओं और कार्य समानता को प्रभावित करते हैं। GER और जनसंख्या-समायोजित पर आधारित लैंगिक समानता सूचकांक (GPI) वर्ष 2024-25 में सभी शिक्षा स्तरों में राष्ट्रीय समानता दर्शाता है, जिसमें माध्यमिक स्तर 1.1 के साथ सबसे अधिक है।

  • बच्चों में उच्च ट्राइग्लिसराइड्स (Triglycerides): 5-9 वर्ष की आयु के एक-तिहाई से अधिक भारतीय बच्चों में ट्राइग्लिसराइड का उच्च स्तर है, जिससे भविष्य में हृदय रोग, मधुमेह और मोटापे का खतरा बढ़ जाता है।
    • उच्चतम प्रसार वाले राज्य: पश्चिम बंगाल (67%), सिक्किम (64%), नागालैंड (55%), असम (57%), जम्मू और कश्मीर (50%)।
    • सबसे कम प्रसार वाले राज्य: केरल (16.6%), महाराष्ट्र (19.1%)।
    • 16% किशोरों में उच्च ट्राइग्लिसराइड्स पाया जाता है, जो जीवन शैली से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों की शीघ्र शुरुआत का संकेत देता है।
  • किशोरों में उच्च रक्तचाप: लगभग 5% भारतीय किशोर उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हैं; दिल्ली में यह सबसे अधिक (10%) है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (8.6%), मणिपुर (8.3%), छत्तीसगढ़ (7%) का स्थान है।
    • युवाओं में उभरते हृदय संबंधी जोखिमों को दर्शाता है।
  • नवजात मृत्यु के कारण: 48% नवजात मृत्यु समय से पहले जन्म और कम वजन के कारण होती है, इसके बाद जन्म के समय श्वास में उत्पन्न अवरोध और आघात (16%) और निमोनिया (9%) का स्थान आता है।
    • यह मातृ एवं नवजात शिशु देखभाल की बेहतर आवश्यकता को इंगित करता है।
  • साक्षरता दर: 63.1% बच्चे और किशोर साक्षर हैं।
    • आयु-विशिष्ट साक्षरता
      • लड़के: 7–9 वर्ष: 80%, 10–14 वर्ष: 92%, 15–19 वर्ष: 91%।
      • लड़कियाँ: 7–9 वर्ष: 81.2%, 10–14 वर्ष: 90%, 15–19 वर्ष: 86.2%।
    • सार्वभौमिक शिक्षा और लैंगिक समानता में प्रगति दर्शाता है।
  • बच्चों के विरुद्ध अपराध में वृद्धि: बच्चों के विरुद्ध अपराध की घटनाएँ (भारतीय दंड संहिता और विशेष और स्थानीय कानून) 1,28,531 (वर्ष 2020) से बढ़कर 1,62,449 (वर्ष 2022) हो गईं।
    • वर्ष 2015-2022 के बीच प्रति 1,00,000 बच्चों पर अपराध का अनुपात बढ़ रहा है।
    • बच्चों के विरुद्ध हिंसा: इसमें शारीरिक, यौन, भावनात्मक दुर्व्यवहार और उपेक्षा शामिल है; यह घर, स्कूलों और संस्थानों में देखी जाती है।
    • लैंगिक जोखिम: लड़के और लड़कियों को शारीरिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार का समान रूप से खतरा है; लड़कियों को यौन दुर्व्यवहार का अधिक खतरा है।
    • उच्च जोखिम वाले समूह: दिव्यांग बच्चे, अत्यधिक गरीबी में रहने वाले, शरणार्थी/प्रवासी, संस्थागत देखभाल में रहने वाले तथा हाशिए पर स्थित सामाजिक समूह (विविध यौन अभिविन्यास/लैंगिक पहचान सहित)।
  • अतिरिक्त संकेतक: इस रिपोर्ट में मृत्यु के कारणों, मोबाइल और डिवाइस के उपयोग, तथा समग्र प्रदर्शन तुलना पर आधारित नए आँकड़े शामिल हैं, जिससे इसकी नीतिगत प्रासंगिकता बढ़ जाती है।

बच्चों की परिभाषा

  • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention on the Rights of the Child- CRC, 1989): ‘एक बच्चे का अर्थ 18 वर्ष से कम आयु का प्रत्येक व्यक्ति है, जब तक कि बच्चे पर लागू कानून के तहत, वयस्कता पहले प्राप्त न हो जाए।”
  • भारतीय कानून
    • बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986: बालक की परिभाषा उस व्यक्ति के रूप में की गई है, जिसने 14 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की है।
    • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: बालक की परिभाषा उस व्यक्ति के रूप में की गई है, जिसने 18 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की है।
    • शिक्षा का अधिकार (RTIRTE) अधिनियम, 2009: 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों पर लागू होता है।
  • जनसंख्या एवं जनसांख्यिकी: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे भारत की जनसंख्या का 26% हैं, जिसके कारण स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा में लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

भारत में बच्चों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ

  • स्वास्थ्य एवं पोषण: कुपोषण, बौनापन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी व्यापक रूप से प्रसारित है, विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में, जो बच्चों के शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास में बाधा डाल रही है। इसके अतिरिक्त, बच्चों में उच्च ट्राइग्लिसराइड्स स्तर और उच्च रक्तचाप बढ़ते हृदय संबंधी जोखिमों का संकेत देते हैं।
  • शिक्षा: स्कूल ड्रॉपआउट दर अभी भी उच्च स्तर पर बनी हुई है, विशेषकर वंचित क्षेत्रों में, जहाँ लैंगिक असमानताएँ लड़कियों की शिक्षा और कॅरियर के अवसरों तक पहुँच को सीमित कर रही हैं। डिजिटल विभाजन ग्रामीण क्षेत्रों में ई-लर्निंग में बाधा डालता है।
  • बाल संरक्षण: बच्चों को घरों, स्कूलों और संस्थानों में शारीरिक, यौन और भावनात्मक दुर्व्यवहार सहित हिंसा का सामना करना पड़ता है तथा उच्च जोखिम वाले समूह (जैसे- विकलांग, शरणार्थी) शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
  • लैंगिक असमानता: सांस्कृतिक मानदंड लड़कियों की शिक्षा और कॅरियर के अवसरों को प्रतिबंधित करते हैं, और कम आयु में विवाह प्रचलित है, हालाँकि यह 26.8% (वर्ष 2015-16) से घटकर 23.3% (वर्ष 2019-21) हो गया है।
  • बाल श्रम एवं तस्करी: प्रगति के बावजूद, बाल श्रम, बाल विवाह और तस्करी जारी है, जो विशेष रूप से संस्थागत देखभाल में रहने वाले बच्चों को प्रभावित कर रही है।
  • शिशु एवं बाल मृत्यु दर: शिशु मृत्यु दर में कमी आई है, लेकिन लड़कों के लिए यह अभी भी अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (33) शहरी क्षेत्रों (20) की तुलना में काफी अधिक है।
  • गोद लेने की प्रवृत्ति: देश में गोद लेने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है तथा बालिकाओं को अधिक संख्या में गोद लिया जा रहा है, जो गोद लेने की प्रथाओं में लैंगिक वरीयता को दर्शाता है।

सतत् विकास के संदर्भ में बच्चों में निवेश का महत्त्व

  • भविष्य की प्रगति का आधार: बच्चे किसी भी राष्ट्र के भविष्य के निर्माण खंड हैं; उनकी स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करना समाज के सामाजिक तथा आर्थिक विकास को सीधे प्रभावित करता है।
  • मानव पूँजी विकास: बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में निवेश करने से अधिक स्वस्थ, अधिक सक्षम कार्यबल का निर्माण होता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है और सतत् विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • शिक्षा के माध्यम से सशक्तीकरण: बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने से सशक्तीकरण, आर्थिक स्वतंत्रता और लैंगिक समानता के अवसर खुलते हैं तथा निर्धनता का दुश्चक्र टूटता है।
  • सामाजिक और भावनात्मक विकास: बच्चों को हिंसा, दुर्व्यवहार और उपेक्षा से बचाना उनके मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है, जिससे वे सहानुभूतिपूर्ण वयस्क बन सकें।
  • गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ना: बाल श्रम, बाल विवाह और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों को संबोधित करने से बच्चों को सशक्त बनाया जाता है, विशेष रूप से हाशिए पर स्थित बच्चों को, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उन्हें शिक्षा तथा सामाजिक भागीदारी के समान अवसर प्राप्त हों।
  • सतत् विकास लक्ष्यों के मूल में बच्चे: शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और संरक्षण के लिए बच्चों के अधिकार वैश्विक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के केंद्रीय विषय हैं, जिनमें गरीबी उन्मूलन, भूखमरी शून्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और लैंगिक समानता शामिल हैं।
  • दीर्घकालिक समृद्धि सुनिश्चित करना: बच्चों के कल्याण, स्वस्थ, शिक्षित और उत्पादक नागरिकों का निर्माण करके दीर्घकालिक सामाजिक समृद्धि सुनिश्चित करती है, जो राष्ट्रीय विकास और स्थिरता को बढ़ावा देती है।

बच्चों के मुद्दों के समाधान के लिए उठाए गए कदम

राष्ट्रीय नीतियाँ और चार्टर
  • नेशनल पॉलिसी फॉर चिल्ड्रन (National Policy for Children- NPC): विशेष रूप से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और हाशिए पर स्थित बच्चों के लिए व्यापक स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, मनोरंजन और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • नेशनल चार्टर फॉर चिल्ड्रन (National Charter for Children) (2004): जीवन रक्षा, पोषण, शिक्षा, सशक्तीकरण और दुर्व्यवहार एवं शोषण से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध।
  • नेशनल प्लान ऑफ एक्शन फॉर चिल्ड्रन (National Plan of Action for Children) (2005): संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष सत्र के लक्ष्यों, दसवीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्यों और राज्य-विशिष्ट कार्यक्रमों के साथ संरेखित किया गया है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: UNCRC, सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (MDGs) और बाल कल्याण एवं तस्करी विरोधी सार्क सम्मेलनों के अनुरूप है।
विधिक प्रावधान
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006: बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाता है, उल्लंघन पर गैर-जमानती अपराधों के साथ दंडित करता है।
  • POSCO अधिनियम, 2012: बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण से बचाता है, बाल-अनुकूल न्यायालयों और प्रक्रियाओं की स्थापना करता है।
  • किशोर न्याय अधिनियम, 2015: पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चों और कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रम
  • एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (Integrated Child Development Services- ICDS): आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से पोषण, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच, रेफरल सेवाएँ, प्रीस्कूल शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन एवं प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना: कुपोषण को लक्षित करती है, यह विशेषतः पिछड़े एवं जनजातीय क्षेत्रों में क्रियान्वित की जा रही है।
  • प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (Reproductive and Child Health Programme- RCH): टीकाकरण, सूक्ष्म पोषक तत्त्व अनुपूरण और किशोर प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करता है।
  • पल्स पोलियो एवं सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम: पाँच वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को टीकाकरण एवं नवजात शिशु देखभाल के लिए कवर किया जाता है।
शैक्षिक पहल
  • सर्व शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan- SSA): सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करना, बुनियादी ढाँचे में सुधार करना और लैंगिक अंतर को कम करना।
  • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (Kasturba Gandhi Balika Vidyalaya- KGBV): यह वंचित वर्ग की लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय उपलब्ध कराता है, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक उनकी पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • मध्याह्न भोजन योजना: स्कूल जाने वाले बच्चों के नामांकन, ठहराव और पोषण में सहायता करती है।
  • बालिका शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम: इसका लक्ष्य स्कूल छोड़ चुकी, कामकाजी और वंचित बालिकाओं को शिक्षा तथा सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से सशक्त बनाना है।
बाल संरक्षण उपाय
  • सड़क पर रहने वाले बच्चों और किशोर न्याय योजनाओं के लिए एकीकृत कार्यक्रम: कमजोर बच्चों के लिए पुनर्वास, पालन-पोषण देखभाल और संस्थागत देखभाल प्रदान करता है।
  • चाइल्ड हेल्पलाइन (1098): 72 शहरों में 24/7 टोल-फ्री सेवा, जो संकटग्रस्त बच्चों को आपातकालीन सहायता प्रदान करती है।
  • शिशु गृह योजना: देश में गोद लेने की सुविधा प्रदान करती है तथा अनाथ/परित्यक्त बच्चों के लिए न्यूनतम देखभाल मानक निर्धारित करती है।
  • बाल श्रम उन्मूलन: 150 राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजनाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण, शिक्षा और पुनर्वास प्रदान करती हैं।
  • तस्करी से निपटने के लिए पायलट परियोजनाएँ: स्रोत और गंतव्य क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों को व्यावसायिक यौन शोषण से बचाती हैं।
वैश्विक पहल और प्रतिबद्धताएँ
  • UNCRC के साथ संरेखण: भारत के बाल कल्याण कार्यक्रम बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention on the Rights of the Child- UNCRC) के साथ संरेखित हैं, जो बच्चों के अधिकारों और संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों हेतु प्रतिबद्ध हैं।
  • सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (MDGs) और सार्क सम्मेलन: भारत बाल जीवन रक्षा, संरक्षण और कल्याण से संबंधित अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रतिबद्ध है।

सतत विकास लक्ष्य (SDG) और बच्चे – समावेशी और सतत् विकास का मार्ग

  • सतत विकास लक्ष्य (SDG): वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए वर्ष 2030 एजेंडा में 17 लक्ष्य और 169 लक्ष्य शामिल हैं, जिनका उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना है तथा बच्चों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के अंतर्गत बाल अधिकार: सतत् विकास लक्ष्य (SDG) बच्चों के मौलिक अधिकारों, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, संरक्षण, भागीदारी और समानता शामिल हैं, के संरक्षण और संवर्धन को प्राथमिकता देते हैं। ये अधिकार बच्चों के विकास और समाज में पूर्ण योगदान के लिए आवश्यक हैं।
  • परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में बच्चे: बच्चे न केवल लाभार्थी हैं, बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में परिवर्तन के वाहक भी हैं। भविष्य के नेताओं, नागरिकों और हितधारकों के रूप में, उनकी सक्रिय भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि विकास समावेशी हो और “किसी को पीछे न छोड़ना” (LNOB) के सिद्धांत के अनुरूप हो।
  • सतत् विकास लक्ष्यों में बच्चों की प्रगति की निगरानी
    • बाल-विशिष्ट संकेतक: बच्चों के कल्याण की प्रभावी निगरानी सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण है। स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, सुरक्षा और भागीदारी से जुड़े बाल-केंद्रित संकेतक प्रगति की निगरानी करने के लिए महत्त्वपूर्ण आँकड़े प्रदान करते हैं।
    • भारत का सतत् विकास लक्ष्य निगरानी ढाँचा: भारत NFHS, PLFS, ICDS और SRS जैसे सर्वेक्षणों के माध्यम से बाल-विशिष्ट आँकड़ों की निगरानी करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बाल स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और सुरक्षा राष्ट्रीय सतत् विकास लक्ष्य ढाँचे का अभिन्न अंग हैं।
    • स्थानीयकृत निगरानी: क्षेत्रीय स्तर पर अनुकूलित हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करते हैं कि बाल-केंद्रित रणनीतियाँ स्थानीय चुनौतियों का समाधान करें, जिससे सतत् विकास लक्ष्यों का अधिक प्रभावी कार्यान्वयन हो सके।
  • बच्चों से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित सतत् विकास लक्ष्य
    • लक्ष्य 1: गरीबी उन्मूलन: गरीबी उन्मूलन से बच्चों को शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सेवा तक बेहतर पहुँच प्राप्त होगी।
    • लक्ष्य 2: शून्य भुखमरी: सभी बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करना, कुपोषण और बौनेपन को कम करना।
    • लक्ष्य 3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण: टीकाकरण और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल के माध्यम से बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, बाल मृत्यु दर को कम करना।
    • लक्ष्य 4: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: सार्वभौमिक शिक्षा की गारंटी, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और स्कूल ड्रॉपआउट दर को कम करना।
    • लक्ष्य 5: लैंगिक समानता: लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने और लड़कियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • लक्ष्य 6: शांति, न्याय और मजबूत संस्थाएँ: बच्चों के लिए न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करते हुए हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा कवरेज का विस्तार: गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने, बाल जीवन रक्षा तथा सीखने के परिणामों में सुधार लाने के लिए जनजातीय एवं हाशिए पर स्थित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • डिजिटल निगरानी और बाल बजट को मजबूत करना: बाल संकेतकों की निगरानी करने के लिए UDISE+ और SRS जैसी प्रणालियों का उपयोग करते हुए वास्तविक समय के डिजिटल डैशबोर्ड को लागू करना, साथ ही बाल कल्याण के लिए अनुकूलित संसाधन आवंटन सुनिश्चित करने के लिए बाल बजट का उपयोग करना।
  • जागरूकता अभियान चलाना: स्कूलों, समुदायों और मीडिया में आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से लैंगिक समानता, बाल विवाह रोकथाम और बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देना, जिससे अधिक समावेशी समाज का निर्माण हो सके।
  • राष्ट्रीय और राज्य सतत् विकास लक्ष्यों को संरेखित करना: बेहतर नीति समन्वय के साथ न्यायसंगत और समावेशी बाल विकास सुनिश्चित करने के लिए सतत् विकास लक्ष्यों को राष्ट्रीय तथा राज्य नियोजन में एकीकृत करना।
  • सामुदायिक भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: बाल कल्याण कार्यक्रमों को सशक्त करने और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के सहयोगात्मक कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता, स्थानीय निकायों, गैर-सरकारी संगठनों तथा अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को शामिल करना।
  • बच्चों के अधिकारों और कमजोरियों के लिए लक्षित कार्रवाई: बच्चों के अधिकारों और उनकी भेद्यता को संबोधित करने हेतु लक्षित कार्रवाई आवश्यक है, जिसमें दिव्यांगता तथा सामाजिक रूप से हाशिए पर स्थित होने जैसी कमजोरियों को समाप्त कर बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा एवं सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना शामिल है।
  • बच्चों को हितधारकों के रूप में सशक्त बनाना: सतत् विकास लक्ष्यों और बाल-केंद्रित नीतियों के निर्णयन में भाग लेने के लिए बच्चों को सशक्त बनाना, यह सुनिश्चित करना कि उनके भविष्य को आकार देने में उनकी आवाज सुनी जाए।

निष्कर्ष 

‘बच्चे दुनिया के सबसे मूल्यवान संसाधन हैं और भविष्य के लिए सबसे अच्छी उम्मीद हैं।’ – जॉन एफ. कैनेडी

  • बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सुरक्षा सुनिश्चित करने से न केवल संवैधानिक अधिकारों की रक्षा होती है, बल्कि सतत् विकास लक्ष्य 3, 4, 5 और 16 को भी बढ़ावा मिलता है। लक्षित नीतियों, डिजिटल निगरानी और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से, भारत बाल कल्याण में वृद्धि कर सकता है, समानता को बढ़ावा दे सकता है और भावी मानव पूँजी का निर्माण कर सकता है।

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