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चीन-अफ्रीका शिखर सम्मेलन 2024

Lokesh Pal September 12, 2024 01:18 44 0

संदर्भ

हाल ही में चीन ने चीन-अफ्रीका सहयोग मंच (Forum on China-Africa Cooperation- FOCAC) के 9वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी की।

चीन-अफ्रीका शिखर सम्मेलन, 2024 का अवलोकन

  • वित्तपोषण प्रस्ताव: चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अफ्रीकी देशों को 51 बिलियन डॉलर के सॉफ्ट लोन, अनुदान और निवेश की घोषणा की।
    • यह पैकेज व्यापार संपर्क, हरित विकास, औद्योगिक शृंखला सहयोग और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  • मानव पूँजी विकास
    • महिलाओं और युवाओं के लिए 60,000 प्रशिक्षण अवसरों का प्रावधान।
    • 1,000 अफ्रीकी राजनीतिक दल के सदस्यों को चीन आने का निमंत्रण।
    • 7,000 अफ्रीकी सैन्य और पुलिस कर्मियों के लिए प्रशिक्षण।
  • व्यापार लाभ: सभी 33 अफ्रीकी अल्प विकसित देशों (Least Developed Countries- LDCs) के लिए 100% टैरिफ लाइनों के लिए शून्य टैरिफ उपचार, जिसका उद्देश्य चीन को अफ्रीकी निर्यात को बढ़ावा देना है।

चीन-अफ्रीका सहयोग मंच (Forum on China-Africa Cooperation- FOCAC) के बारे में 

  • स्थापना: FOCAC की शुरुआत वर्ष 2000 में बीजिंग में अपने पहले शिखर सम्मेलन के साथ हुई थी।
  • शिखर सम्मेलन: तब से, बीजिंग, इथियोपिया, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका और सेनेगल में शिखर सम्मेलन आयोजित किए गए हैं।
  • सदस्य: FOCAC 53 अफ्रीकी देशों [एस्वातिनी (Eswatini) को छोड़कर पूरा महाद्वीप] को अपने सदस्यों के रूप में गणना करता है, जिनके चीन की ‘वन चाइना’ नीति के खिलाफ ताइवान के साथ राजनयिक संबंध हैं। 
  • उद्देश्य: पिछले 24 वर्षों में, FOCAC चीन एवं अफ्रीकी देशों के बीच संवाद, बातचीत और सहयोग के लिए एक प्रभावी मंच बन गया है।
    • कभी-कभी आपत्तियों के बावजूद, अफ्रीकी देश इस मंच को चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने का एक उपयोगी तरीका मानते हैं।

नवीनतम शिखर सम्मेलन के बीजिंग घोषणा-पत्र के मुख्य तत्त्व

यह दस्तावेज, जो मुख्यतः चीनी प्रारूपण (Chinese Drafting) से प्रभावित है, छह खंडों में संरचित है।

  • संयुक्त रूप से बातचीत से तैयार किया गया दस्तावेज: यह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), अफ्रीका के एजेंडा 2063 (Agenda 2063) और सतत् विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र के 2030 एजेंडा के बीच तालमेल को बढ़ावा देता है।
    • इसमें चीन की वैश्विक विकास पहल (Global Development Initiative- GDI), वैश्विक सुरक्षा पहल (Global Security Initiative- GSI) और वैश्विक सभ्यता पहल (Global Civilization Initiative- GCI) के साथ-साथ FOCAC की समीक्षा एवं दृष्टिकोण भी शामिल किया गया है।
  • शासन और विकास के प्रति प्रतिबद्धता: चीन और अफ्रीका दोनों ही अपनी-अपनी सभ्यतागत विशेषताओं के आधार पर शासन, आधुनिकीकरण और गरीबी उन्मूलन पर सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
    • चीन अफ्रीका को G20 में शामिल करने का समर्थन करता है तथा दोनों पक्ष बहुध्रुवीय विश्व तथा संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करने के लिए सुधारों के पक्ष में हैं।
  • आर्थिक साझेदारी: चीन ने अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (African Continental Free Trade Area- AfCFTA) में प्रगति को मान्यता दी है और आर्थिक साझेदारी के लिए एक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है।
  • चीन की प्रमुख पहल: GDI, GSI और GCI संयुक्त रणनीति में अंतर्निहित हैं, जिसका उद्देश्य व्यापक सुरक्षा और विकास को बढ़ावा देना है।
    • चीन अफ्रीका के स्वतंत्र शांति स्थापना, आतंकवाद निरोध और समुद्री सुरक्षा प्रयासों के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा दी जाने वाली धनराशि में वृद्धि का समर्थन करता है।
  • FOCAC अगला शिखर सम्मेलन: दसवाँ FOCAC शिखर सम्मेलन वर्ष 2027 में कांगो में आयोजित होने की पुष्टि की गई है।

चीन-अफ्रीका बढ़ते सहयोग से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

चीन और अफ्रीका के बीच बढ़ते सहयोग से अवसर एवं चिंताएँ दोनों उत्पन्न हुई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख चिंताएँ दी गई हैं:-

  • ऋण निर्भरता (Debt Dependency): कई अफ्रीकी देशों ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) के तहत बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए महत्त्वपूर्ण ऋण लिया है, इससे ‘ऋण-जाल कूटनीति’ (Debt-trap Diplomacy) को बढ़ावा मिल सकता है।
    • जाम्बिया एवं जिबूती जैसे कई देशों को अपने ऋण प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

  • संप्रभुता की हानि (Loss of Sovereignty): यदि अफ्रीकी देश ऋण चुकाने में असमर्थ हैं, तो यह चिंता का विषय हो सकता है कि चीन, बंदरगाहों या खदानों जैसी रणनीतिक संपत्तियों पर नियंत्रण कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता को खतरा हो सकता है।
    • चीन की बढ़ती आर्थिक उपस्थिति उसे अफ्रीकी देशों के राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों में प्रभाव प्रदान कर सकती है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: विशेष रूप से खनन और बुनियादी ढाँचे में कई परियोजनाओं की पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने एवं वनों की कटाई, जल प्रदूषण और जैव विविधता को नुकसान पहुँचाने के लिए आलोचना की गई है।
  • व्यापार असंतुलन: आपूर्ति शृंखला में अफ्रीका की भूमिका अक्सर कच्चे माल के निर्यात के इर्द-गिर्द घूमती है, जबकि मूल्य-वर्द्धित उद्योग अविकसित रहते हैं, जिससे स्थानीय आर्थिक विकास बाधित होता है।
  • शासन एवं पारदर्शिता के मुद्दे: अफ्रीकी सरकारों और चीनी कंपनियों या बैंकों के बीच कई समझौते पारदर्शी नहीं होते हैं।
    • खुलेपन की यह कमी भ्रष्टाचार एवं समझौतों की शर्तों के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करती है, जो हमेशा अफ्रीकी हितों के अनुकूल नहीं होतीं हैं।
  • सुरक्षा निहितार्थ: चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव के साथ अक्सर उसकी सैन्य उपस्थिति भी बढ़ती है, जैसे कि जिबूती में उसका पहला विदेशी सैन्य अड्डा स्थापित करना।
  • निगरानी और डेटा संबंधी चिंताएँ: अफ्रीका में चीनी तकनीकी कंपनियों की वृद्धि संभावित चीनी नियंत्रण और निगरानी को लेकर चिंताएँ बढ़ाती है, जिससे डेटा गोपनीयता और सुरक्षा को खतरा होता है।

भारत और विश्व के लिए चीन-अफ्रीका के मध्य बढ़ते सहयोग से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

चीन और अफ्रीका के बीच बढ़ते सहयोग के वैश्विक निहितार्थ हैं, जो भारत सहित विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर रहे हैं।

आधार

भारत के लिए चिंताएँ

संपूर्ण विश्व के लिए चिंताएँ

सामरिक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा चीन के साथ बढ़ते संबंधों को भारत अपनी व्यापक ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ रणनीति का हिस्सा मानता है। चीन की बढ़ती उपस्थिति से अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा बढ़ सकती है, जिससे प्रमुख क्षेत्रों में भू-राजनीतिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।
आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा और व्यापार असंतुलन अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है, चीनी निवेश इन सामग्रियों तक भारत की पहुँच को सीमित कर सकता है। चीन का प्रभुत्व वैश्विक बाजारों को प्रभावित कर सकता है, महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि कर सकता है तथा विश्व भर के उद्योगों पर प्रभाव डाल सकता है।
ऋण कूटनीति चीन के विशाल निवेश ने विकास सहायता और शैक्षिक पहल के माध्यम से भारत के प्रयासों को कम महत्त्वपूर्ण बना दिया है, जिससे भारत को अफ्रीका में अपनी विकास रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कई अफ्रीकी देश पहले से ही बढ़ते ऋण स्तर का सामना कर रहे हैं, अफ्रीका में वित्तीय पतन का वैश्विक बाजारों पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
सैन्य विस्तार और सुरक्षा जोखिम जिबूती में चीन का सैन्य अड्डा, जिसका सामरिक दृष्टि से महत्त्व अधिक है क्योंकि यह समुद्री संचार मार्गों के निकट स्थित है, जो भारत के ऊर्जा आयात के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। चीन का बढ़ता प्रभाव उसे स्वेज नहर और बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य सहित महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों में नौसैनिक शक्ति प्रदर्शित करने की अनुमति देता है।
वैश्विक शासन और संस्थाओं पर प्रभाव भारत ने पारंपरिक रूप से स्वयं को ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में स्थापित किया है। हालाँकि, चीन का बढ़ता प्रभाव भारत की भूमिका और नेतृत्व को चुनौती देता है। चीन का प्रभाव समानांतर वैश्विक संस्थाओं के निर्माण की उसकी क्षमता को मजबूत कर सकता है, जो पश्चिमी प्रभुत्व वाले ढाँचे, जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) या विश्व बैंक को चुनौती दे सकें।

भारत-अफ्रीका संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम

भारत ने अफ्रीका महाद्वीप के सामरिक महत्त्व को समझते हुए उसके साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कई प्रमुख कदम उठाए हैं।

  • भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (India-Africa Forum Summit-IAFS): भारत ने वर्ष 2008 में भारत और अफ्रीकी देशों के बीच संवाद तथा सहयोग के लिए एक मंच के रूप में भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS) की शुरुआत की।
  • विकास सहायता और ऋण: भारत पड़ोसी चीन के बाद अफ्रीका को ऋण देने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
    • पिछले दस वर्षों में, भारत ने 42 अफ्रीकी देशों को 32 बिलियन डॉलर का ऋण दिया है। भारत ने अफ्रीका भर में लगभग 12 बिलियन डॉलर मूल्य की 195 परियोजना-आधारित ऋण लाइनें भी खोली हैं।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देना: भारत टेली-शिक्षा और टेलीमेडिसिन के उद्देश्य से पैन अफ्रीकन ई-नेटवर्क जैसी संस्थाओं की स्थापना का समर्थन कर रहा है।
  • ड्यूटी-फ्री टैरिफ प्रेफरेंस (Duty-Free Tariff Preference- DFTP) योजना: अफ्रीकी देशों, विशेष रूप से सबसे कम विकसित देशों (Least Developed Countries- LDCs) का समर्थन करने के लिए, भारत ने DFTP योजना लागू की है, जो अफ्रीकी देशों को कम या शून्य टैरिफ पर भारत को अपने सामान निर्यात करने की अनुमति देती है।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग: भारत केन्या और तंजानिया जैसे देशों को नौसेना प्रशिक्षण, समुद्री निगरानी सहायता और समुद्री डकैती रोकने संबंधी सहायता प्रदान करता है। 

  • संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान: भारत अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में एक प्रमुख योगदानकर्ता है। भारतीय सेना को कांगो, सूडान और दक्षिण सूडान जैसे संघर्षशील क्षेत्रों में तैनात किया गया है, जो अफ्रीका की शांति और सुरक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 
  • बहुपक्षीय मंचों में समर्थन: भारत और अफ्रीका जलवायु परिवर्तन, UNSC जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार और बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने जैसे वैश्विक मुद्दों पर समान हित साझा करते हैं। 
    • भारत ने वैश्विक शासन संरचनाओं में अधिक प्रतिनिधित्व के लिए अफ्रीका की माँग का लगातार समर्थन किया है। 
  • वैश्विक दक्षिण एकजुटता पर ध्यान: भारत अफ्रीका को वैश्विक दक्षिण के मुद्दों को उठाने में एक प्रमुख भागीदार के रूप में देखता है। भारत और अफ्रीकी देश समान वैश्विक शासन की सिफारिश करने के लिए ब्रिक्स, G77 और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) जैसे मंचों पर सहयोग करते हैं। 
  • दवा निर्यात: भारत अफ्रीका को सस्ती जेनेरिक दवाइयों के अग्रणी आपूर्तिकर्ताओं में से एक है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने अपनी वैक्सीन मैत्री (Vaccine Friendship) पहल के तहत कई अफ्रीकी देशों को टीके की आपूर्ति की।

बढ़ते चीन-अफ्रीका सहयोग के जवाब में भारत के लिए आगे की राह

  • रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना: इसमें द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS) जैसे मंचों का लाभ उठाना शामिल है।
    • व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे पारस्परिक हित के क्षेत्रों पर जोर देने से भारत को अफ्रीका में एक प्रमुख खिलाड़ी बने रहने में मदद मिल सकती है।
  • विकास सहायता का विस्तार: चीन के महत्त्वपूर्ण वित्तीय निवेशों को संतुलित करने के लिए, भारत को अफ्रीका हेतु अपनी ऋण और विकास सहायता बढ़ानी चाहिए।
    • पहलों को आगे बढ़ाकर भारत अफ्रीकी देशों के साथ मजबूत, दीर्घकालिक संबंध बना सकता है तथा स्वयं को एक पसंदीदा साझेदार के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना: शुल्क मुक्त टैरिफ वरीयता (Duty-Free Tariff Preference- DFTP) योजना के तहत भारत को अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार की मात्रा बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए। 
  • ऋण कूटनीति पर ध्यान देना: भारत को चीन के निवेश से उत्पन्न ऋण चुनौतियों का समाधान विकसित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और अफ्रीकी देशों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।
    • वैकल्पिक वित्तीय सहायता और ऋण राहत तंत्र की पेशकश करके भारत अफ्रीका की वित्तीय स्थिति को स्थिर करने में मदद कर सकता है।
  • क्षेत्रीय एकीकरण का समर्थन: क्षेत्रीय संगठनों और ढाँचों के साथ जुड़कर, भारत को अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) जैसे अफ्रीकी क्षेत्रीय एकीकरण प्रयासों का समर्थन करना चाहिए।
  • क्षमता निर्माण पर ध्यान: पैन अफ्रीकन ई-नेटवर्क के समान शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार, अफ्रीका में भारत की भूमिका को मजबूत कर सकता है।

निष्कर्ष

भारत को अफ्रीका में चीन के बढ़ते प्रभाव का प्रभावी ढंग से प्रतिकार करने तथा अपनी भूमिका को सुदृढ़ करने के लिए रणनीतिक साझेदारी को तीव्र करना होगा, सहायता बढ़ानी होगी तथा क्षेत्रीय एकीकरण को समर्थन देना होगा।

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