हाल ही में चीन का चांग’ई-6 चंद्रमा के उस हिस्से से नमूने लाने वाला दुनिया का पहला अंतरिक्ष यान बन गया, जिसे पृथ्वी से नहीं देखा जा सकता।
संबंधित तथ्य
चांग’ई-6 मानव इतिहास का पहला मिशन है, जो चंद्रमा के सुदूरवर्ती भाग से नमूने लेकर आया है।
यह दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी घटना है।
चंद्रमा के सुदूरवर्ती भाग का महत्त्व
चंद्रमा के सुदूर भाग के बारे में: चंद्रमा के सुदूर भाग को अक्सर ‘डार्क साइड’ कहा जाता है क्योंकि इसे पृथ्वी से नहीं देखा जा सकता है। पृथ्वी के साथ टाइडल लॉकिंग के कारण, चंद्रमा का केवल एक ही पक्ष है, जिसे निकटतम पक्ष के रूप में जाना जाता है, जिसको पृथ्वीसे देखा जा सकता है।
विशेषताएँ: चंद्रमा के सुदूरवर्ती भाग में मोटी परत, क्रेटरों की बहुतायत और लूनर मारिया की कमी है।
महत्त्व: पृथ्वी के संपर्क और अन्य हस्तक्षेप से मुक्त, चंद्रमा का यह सुदूर भाग रेडियो खगोल विज्ञान (Radio astronomy) और अन्य वैज्ञानिक कार्यों के लिए आदर्श है।
चंद्र उत्पत्ति में अंतर्दृष्टि: इस सुदूरवर्ती भाग के नमूनों की जाँच करने से वैज्ञानिकों को चंद्रमा की उत्पत्ति एवं विकास के बारे में रहस्यों को सुलझाने में मदद मिल सकती है।
अभी तक वैज्ञानिक केवल नजदीक के नमूनों का ही विश्लेषण कर पाए हैं।
अन्वेषण के लाभ
सुदूरवर्ती भाग से नमूनों की जाँच करने से वैज्ञानिकों को चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में रहस्यों को सुलझाने में मदद मिल सकती है – अब तक, वैज्ञानिक केवल निकटपक्ष की ओर से नमूनों का विश्लेषण करने में सक्षम थे।
चीन का विशिष्ट सुदूरवर्ती चंद्रमा अन्वेषण कार्यक्रम (Exclusive Far Side Moon Exploration): चीन, चंद्रमा के सुदूर हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला एकमात्र देश है।
वर्ष 2019 में, चीन का चांग’ई-4 (Chang’e-4) मिशन चंद्रमा के सुदूरवर्ती क्षेत्र में उतरा था और एक रोवर की सहायता से चंद्रमा के वॉन कर्मन क्रेटर (Von Karman Crater) का पता लगाया था।
वॉन कर्मन एक बड़ा ‘लूनर इम्पैक्ट क्रेटर’ है, जो चंद्रमा के सुदूर दक्षिणी गोलार्द्ध में अवस्थित है। यह गड्ढा लगभग 186 किमी. व्यास का है और एक विशाल इम्पैक्ट वाले क्रेटर के भीतर अवस्थित है, जिसे दक्षिणी ध्रुव-एटकेन बेसिन (South Pole–Aitken Basin) के रूप में जाना जाता है, जिसका व्यास लगभग 2,500 किमी. और गहराई 13 किमी. है।
चांग’ई-6 मिशन (Chang’e-6 Mission)
परिचय: चांग’ई-6 मिशन53 दिनों तक चलने वाला मिशन था। इसने चंद्रमा की कक्षा में पहुँचने के बाद ऑर्बिटर ने इस प्राकृतिक उपग्रह का चक्कर लगाया जबकि इसका लैंडर चंद्रमा की सतह पर 2,500 किलोमीटर चौड़े दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन (South Pole-Aitken Basin) में उतरा।
नमूना संग्रह : स्कूपिंग और ड्रिलिंग के माध्यम से नमूने एकत्र करने के बाद, लैंडर ने एक एसेंट वाहन लॉन्च किया, जिसने नमूनों को ऑर्बिटर के सर्विस मॉड्यूल (Orbiter’s Service Module) में स्थानांतरित किया।
इसके बाद यह मॉड्यूल पृथ्वी पर वापस आया।
महत्त्व: वैज्ञानिक चंद्रमा की सतह पर निर्मित सामग्री को पुनः प्राप्त कर सकते हैं, तो वे चंद्रमा के आंतरिक इतिहास में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं।
भारत का चंद्रमा मिशन: चंद्रयान-4 मिशन (Chandrayaan-4 Mission)
परिचय:चंद्रयान-4 (Chandrayaan-4) भारत का वर्ष2040 में चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यात्री को उतारने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम है।
उद्देश्य: यह नमूने एकत्र करेगा और चंद्रमा पर जाने एवं पृथ्वी पर वापस आने के पूरे चक्र को प्रदर्शित करते हुए इसे पृथ्वी पर वापस लाएगा।
चांग’ई 6 (Chang’e 6) मिशन से अंतर: हालाँकि चांग’ई 6 (Chang’e 6) मिशन का लक्ष्य चंद्रमा के सुदूरवर्ती भाग से नमूने वापस लाना है, भारत का चंद्रयान 4 (Chandrayaan-4) मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र से नमूने लाने के लिए बनाया जा रहा है। इसके वर्ष 2027 में लॉन्च होने की उम्मीद है।
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