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चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम में परिवर्तन

Lokesh Pal May 16, 2025 03:09 19 0

संदर्भ

हाल ही में भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश का नाम अपनी भाषा में बदलने संबंधी प्रयासों को लेकर मानचित्रण संबंधी आक्रामकता (Cartographic Aggression) को खारिज कर दिया।

  • भारत ने पुनः पुष्टि की  है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है।

मानचित्रण संबंधी आक्रामकता (Cartographic Aggression) क्या है?

  • मानचित्रण संबंधी आक्रामकता से तात्पर्य किसी देश द्वारा जानबूझकर मानचित्रों का उपयोग करके उन क्षेत्रों पर क्षेत्रीय दावा जताना है, जिन पर उसका वास्तव में नियंत्रण नहीं है, जिसका उद्देश्य है:-
    • स्वामित्व या संप्रभुता की धारणाओं को बदलना।
    • भविष्य के दावों या सैन्य कार्रवाइयों को उचित ठहराना।
    • भ्रम या कूटनीतिक दबाव उत्पन्न करना।

संबंधित तथ्य 

  • यह कोई नई रणनीति नहीं है; चीन ने वर्ष 2017 से समय-समय पर अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के लिए ‘मानकीकृत’ वाली सूचियाँ जारी की हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश मंत्रिमंडल ने चीन सीमा के पास 2,626 मेगावाट (MW) की संयुक्त क्षमता वाली पाँच मेगा जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी है:-
    • हीओ (Heo), टाटो I (Tato I), टाटो II (Tato II), नैयिंग (Naying) और हिरोंग (Hirong)।
    • हीओ और टाटो I परियोजनाएँ, दोनों यारजेप नदी (Yarjep River) पर स्थित हैं।

विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • शिमला संधि (1914) और मैकमोहन रेखा (McMahon Line): ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के बीच सिमला (अब शिमला), ब्रिटिश भारत में शिमला सम्मेलन आयोजित किया गया।
    • मैकमोहन रेखा को ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमा के रूप में खींचा गया था, जिसने अरुणाचल प्रदेश (तब NEFA) को ब्रिटिश भारत के अंतर्गत रखा था।

    • चीन का रुख: चीनी पूर्णाधिकारी (Chinese Plenipotentiary) ने समझौते की शुरुआत की, लेकिन बाद में उसे अस्वीकार कर दिया।
      • चीन का दावा है कि तिब्बत में संप्रभुता का अभाव है, इसलिए उसके पास संधियों पर हस्ताक्षर करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
    • भारत की स्थिति: मैकमोहन रेखा को कानूनी सीमा के रूप में मान्यता देता है।
  • तिब्बत पर चीन का अधिकार (1950) एवं निहितार्थ
    • पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने वर्ष 1950 में तिब्बत में प्रवेश किया।
    • भारत ने चिंता व्यक्त की, लेकिन वर्ष 1954 में तिब्बत को चीन के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में मान्यता दी।
    • चीन ने अरुणाचल प्रदेश सहित मैकमोहन रेखा के दक्षिण के क्षेत्रों पर अपना दावा जताना शुरू कर दिया।
    • यह राज्य पर चीन के दावे का आधार बन गया।
  • अरुणाचल प्रदेश का भारत द्वारा प्रशासनिक एकीकरण
    • वर्ष 1951: मेजर रालेंगनाओ ‘बॉब’ खाथिंग ने तवांग में भारतीय ध्वज फहराया, जिससे इस क्षेत्र का औपचारिक एकीकरण हुआ।
    • उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी (NEFA) को भारतीय नियंत्रण में प्रशासित किया गया।
    • वर्ष 1987: नेफा (NEFA) का नाम बदलकर अरुणाचल प्रदेश कर दिया गया और इसे भारतीय संघ में पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
  • वर्ष 1962 का चीन-भारत युद्ध: सीमा पर बढ़ते तनाव और विवादित क्षेत्रों में भारतीय बुनियादी ढाँचे और गश्त पर चीनी आपत्तियों के कारण वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ।
    • पूर्वी क्षेत्र में, PLA ने तवांग और अन्य क्षेत्रों पर आक्रमण किया और अधिकार कर लिया, लेकिन युद्ध विराम की घोषणा करने के बाद एकतरफा वापस चले गए।
    • अरुणाचल प्रदेश, विशेष रूप से तवांग, के ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व के कारण, चीन की रणनीतिक रुचि की सीमा का पता चला।
  • वर्ष 1962 के बाद के घटनाक्रम: भारत और चीन के बीच सीमा वार्ता 1980 के दशक में शुरू हुई थी, लेकिन कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ।
    • वर्ष 2005 का समझौता: दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि बसी हुई आबादी और हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जिसे भारत ने अरुणाचल की स्थिति की सुरक्षा के रूप में व्याख्यायित किया।
    • हालाँकि, चीन ने अपना रुख कड़ा कर लिया, विशेषतः वर्ष 2006 के बाद, अरुणाचल को ‘दक्षिण तिब्बत’ कहा और राज्य में भारतीय नेताओं के दौरे का विरोध किया।

अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा और औचित्य

  • ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंध: चीन का तर्क है कि तवांग और उसके आस-पास के इलाकों के तिब्बत के साथ ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, विशेषतः तवांग मठ के ल्हासा के साथ संबंध हैं।
    • 6वें दलाई लामा (त्सांगयांग ग्यात्सो) का जन्म तवांग में हुआ था और ऐतिहासिक विवरण बताते हैं कि मठ ने वर्ष 1951 से पहले ल्हासा शासन के साथ प्रशासनिक संबंध बनाए रखे थे।
    • चीन का तर्क: चूँकि तिब्बत चीनी संप्रभुता के अधीन है, इसलिए ऐतिहासिक रूप से इससे जुड़े सभी क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश सहित चीन का हिस्सा होने चाहिए।
  • मैकमोहन रेखा की अस्वीकृति: ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच वर्ष 1914 के शिमला सम्मेलन के दौरान खींची गई मैकमोहन रेखा ने पूर्वी सीमा का सीमांकन किया।
    • चीन, मैकमोहन रेखा की वैधता को अस्वीकार करते हुए दावा करता है:-
      • तिब्बत एक संप्रभु राज्य नहीं था और इसलिए वह संधियों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता था।
      • यह सीमा ब्रिटिश साम्राज्यवाद की देन है और इसमें वैधता का अभाव है।
    • चीन इस बात पर जोर देता है कि इस रेखा को स्वीकार करने का अर्थ औपनिवेशिक आक्रमण को वैध बनाना होगा, जो उसके आधिकारिक ऐतिहासिक आख्यान के विपरीत है।
  • रणनीतिक दावे के लिए तिब्बती स्वायत्तता का उपयोग: चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश राज्य को ‘जंगनान’ (Zangnan) अर्थात ‘दक्षिणी तिब्बत’ कहता है।
    • भारत में दलाई लामा की मौजूदगी और उनके उत्तराधिकारी की पहचान तवांग से होने की अटकलों को तिब्बत पर चीन के अधिकार के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
    • चीन, अरुणाचल पर क्षेत्रीय दावों का प्रयोग भारत के तिब्बत संबंधी प्रतिरोध को संतुलित करने और धार्मिक उत्तराधिकार संबंधी अधिकारों पर नियंत्रण का संकेत देने के लिए करता है।
  • घरेलू राष्ट्रवाद और राजनीतिक वैधता: साम्यवाद के वैचारिक पतन के साथ, CCP ने वैधता के स्रोत के रूप में राष्ट्रवाद की ओर रुख किया है।
    • अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों पर दावा जताना राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देता है।
    • चीन में व्यापक राष्ट्रवाद प्रायः ताइवान और तिब्बत जैसे ‘मुख्य मुद्दों’ पर सख्त रुख की माँग करता है, जो अरुणाचल तक विस्तृत है।
  • सैन्य-रणनीतिक तर्क: अरुणाचल पूर्वी हिमालय में रणनीतिक गहराई प्रदान करता है।
    • अरुणाचल (विशेष रूप से तवांग) पर नियंत्रण से चीन को ये लाभ होंगे:-
      • भारत के विरुद्ध लाभकारी स्थलाकृति के रूप में।
      • सीमा का विस्तार करके तिब्बती अशांति को कम करने की क्षमता के रूप में।
    • अरुणाचल के पास चीन की सैन्य तैनाती (जिसमें हवाई क्षेत्र, मिसाइल और त्वरित प्रतिक्रिया बल (RRF) शामिल हैं) इस क्षेत्र में उसके दीर्घकालिक हित को इंगित करते हैं।
  • कानूनी और कार्टोग्राफिक युद्ध: चीन अपने दावों का समर्थन इस प्रकार करता है:-
    • स्थानों का समय-समय पर नाम बदलना (वर्ष 2017, 2021, 2023, 2024, 2025 में)।
    • अरुणाचल को चीनी क्षेत्र के रूप में दर्शाने वाले मानचित्र।
    • अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक विरोध और आपत्तियाँ (जैसे- अरुणाचल को ADB ऋण, 2009)।
    • यह अंतरराष्ट्रीय धारणाओं को बदलने और ‘ऐतिहासिक अधिकारों’ का दावा करने के लिए एक व्यापक ‘तीन युद्ध’ सिद्धांत (मनोवैज्ञानिक युद्ध, कानूनी युद्ध और मीडिया युद्ध) का हिस्सा है।
  • अन्य क्षेत्रीय विवादों की तुलना: दक्षिण चीन सागर (जैसे- स्प्रैटली एवं पैरासेल द्वीप) में भी चीन द्वारा इसी तरह की रणनीति अपनाई जाती है।
    • दस्तावेजों में तथ्य के रूप में प्रस्तुत कर, चीन समय के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने दावों को सामान्य बनाने का प्रयास करता है।

अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने के पीछे चीन का उद्देश्य

  • संप्रभुता और क्षेत्रीय दावा: स्थानों का नाम बदलना अरुणाचल प्रदेश पर एकतरफा दावा करने के चीन के प्रयास का हिस्सा है, जिसे वह ‘जंगनान’ (दक्षिण तिब्बत) कहता है।
    • इस प्रतीकात्मक दावे का उद्देश्य भारत द्वारा पूरी तरह से प्रशासित क्षेत्र पर वास्तविक संप्रभुता को प्रदर्शित करना है।
  • कानूनी युद्ध (तीन युद्ध सिद्धांत का हिस्सा): चीन ‘कानूनी युद्ध’ (फालू झान) का उपयोग करता है। यह विदेशी क्षेत्रों पर दावा करने वाले कानून, नक्शे और नाम जारी करके विवादित क्षेत्रों की अंतरराष्ट्रीय धारणाओं को बदलने की रणनीति है।
    • भौगोलिक नाम विनियम (1986, संशोधित 2022) चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय को मानक प्रक्रिया के हिस्से के रूप में विदेशी क्षेत्रों का नाम बदलने का अधिकार देता है।
    • लक्ष्य: भविष्य में सीमा वार्ता या अंतरराष्ट्रीय मंचों में उपयोग किए जाने के लिए दीर्घकालिक प्रशासनिक नियंत्रण के छद्म-कानूनी साक्ष्य तैयार करना।
  • मनोवैज्ञानिक और प्रचार उपकरण: नाम बदलने से प्रतीकात्मक मनोवैज्ञानिक युद्ध के माध्यम से भारत की संप्रभुता को कमजोर किया जाता है, जिसका उद्देश्य है:-
    • अरुणाचल की स्थिति के बारे में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को भ्रमित करना।
    • भारत को कूटनीतिक रूप से डराना या हतोत्साहित करना।
    • वैश्विक समुदाय को यह संदेश देना कि यह क्षेत्र विवादित है, सुलझा हुआ नहीं है।
  • कूटनीतिक संकेत एवं दबाव: चीन प्रायः भारत द्वारा की गई ऐसी कार्रवाइयों के तुरंत बाद नाम बदलने की सूची जारी करता है, जिनका वह विरोध करता है, जैसे:-
    • दलाई लामा की तवांग यात्रा (2017)
    • भारतीय प्रधानमंत्रियों या रक्षा मंत्रियों की यात्राएँ
    • अरुणाचल में बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं को मंजूरी
    • यह एक कूटनीतिक रणनीति है, जिसका उद्देश्य भारत को इस क्षेत्र में अपना नियंत्रण बढ़ाने या अपनी उपस्थिति बढ़ाने से रोकना है।
    • उदाहरण: भारत द्वारा सेला सुरंग परियोजना या ऑपरेशन सिंदूर के बाद, चीन ने अपने नामकरण प्रयासों को बढ़ा दिया है।
  • निर्वासित तिब्बती सरकार को कमजोर करना: चीन, तवांग को तिब्बती बौद्ध नेटवर्क में एक महत्त्वपूर्ण बिंदु के रूप में देखता है।
    • यदि अगला दलाई लामा तवांग से चुना जाता है, तो यह तिब्बती उत्तराधिकार पर चीन के नियंत्रण को कमजोर करेगा।
    • नाम बदलने से चीन को अपने दावे को मजबूत करने और तिब्बती धार्मिक मामलों में किसी भी भारतीय भूमिका को अवैध ठहराने का प्रयास करने में मदद मिलती है।
  • घरेलू राष्ट्रवाद और शासन की वैधता: क्षेत्रों का नाम बदलना घरेलू राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति करता है:-
    • भारत के सामने खड़े होकर हान राष्ट्रवादी गौरव को बढ़ावा देता है।
    • बाहरी खतरों का हवाला देकर आंतरिक मुद्दों से ध्यान भटकाना।
    • सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी प्रतीकात्मक जीत के माध्यम से शासन की वैधता को मजबूत करने के लिए ऐसे कदमों का उपयोग करती है।
  • अन्य मुद्दों से रणनीतिक उदाहरण प्रस्तुत करना: इसी तरह की रणनीति निम्नलिखित अन्य मुद्दों में देखी गई है:-
    • दक्षिण चीन सागर (प्रवाल रीफ का नामकरण, कृत्रिम द्वीपों का निर्माण)
    • पूर्वी चीन सागर (सेनकाकू/डियाओयू द्वीप)
    • ‘नाम दो, दावा करो’ दृष्टिकोण चीनी विदेश नीति में एक सुसंगत भू-राजनीतिक उपकरण है।

अरुणाचल प्रदेश पर भारत की स्थिति

  • कानूनी और संवैधानिक संप्रभुता: अरुणाचल प्रदेश वर्ष 1987 से एक पूर्ण भारतीय राज्य है, जिसमें एक कार्यशील विधायिका और प्रशासन है।
    • भारत कानूनी, प्रशासनिक और संवैधानिक एकीकरण के आधार पर निर्विवाद संप्रभुता का दावा करता है।
  • चीनी नाम बदलने और दावों की अस्वीकृति: भारत, चीन द्वारा स्थानों के नाम बदलने को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता है, इसे ‘निराधार एवं बेतुका’ प्रयास कहता है।
    • विदेश मंत्रालय ने दोहराया है कि ‘चीन द्वारा आविष्कृत नाम वास्तविकता को नहीं बदल सकते हैं।’
  • मैकमोहन रेखा का पालन: भारत वर्ष 1914 के शिमला सम्मेलन के दौरान खींची गई मैकमोहन रेखा को कानूनी सीमा के रूप में स्वीकार करता है।
    • चीन की आपत्तियों के बावजूद, यह सीमा को तय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानता है।
  • रणनीतिक और बुनियादी ढाँचा विकास: भारत सीमावर्ती बुनियादी ढाँचे में निवेश करता है:-
    • सेला सुरंग, सड़कें, हवाई पट्टियाँ और उन्नत लैंडिंग ग्राउंड।
    • ये परियोजनाएँ सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिक उपस्थिति को सुदृढ़ करती हैं और रणनीतिक प्रतिरोध को बढ़ावा देती हैं।
  • राजनयिक स्थिरता और वैश्विक समर्थन: भारत का मानना ​​है कि किसी भी सीमा वार्ता में अरुणाचल को विवादित क्षेत्र के रूप में शामिल नहीं किया जा सकता है।
    • अमेरिका, फ्राँस और ऑस्ट्रेलिया जैसे रणनीतिक साझेदारों ने भारत के क्षेत्रीय दावों का स्पष्ट रूप से समर्थन किया है।
  • सैन्य तत्परता एवं रक्षात्मक मुद्रा: भारत ने इस क्षेत्र में माउंटेन स्ट्राइक कोर, मिसाइल सिस्टम (जैसे- ब्रह्मोस) और लड़ाकू जेट तैनात किए हैं।
    • सैन्य निर्माण का उद्देश्य तनाव बढ़ाए बिना संप्रभुता की रक्षा करना है।

तवांग का सामरिक महत्त्व

  • भू-राजनीतिक स्थिति: पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश भारत-चीन-भूटान का निकट क्षेत्र है।
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के निकट, जो इसे भारत-चीन सीमा गतिशीलता में एक अग्रणी क्षेत्र बनाता है।
  • सामरिक महत्त्व: सेला दर्रे जैसे प्रमुख पर्वतीय दर्रों को नियंत्रित करता है, जो रक्षा रसद के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • पूर्वी हिमालयी सीमा पर भारत की सैन्य तैनाती और निगरानी के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • दलाई लामा के उत्तराधिकारी संबंधी भय: चीन को डर है कि अगला दलाई लामा तवांग से चुना जा सकता है, जो तिब्बत पर उसके नियंत्रण को चुनौती देता है।
    • अरुणाचल प्रदेश पर चीन के क्षेत्रीय और धार्मिक दावों को सिद्ध करता है।
  • भारतीय संप्रभुता का प्रतीक: भारतीय नेताओं की नियमित यात्राएँ प्रशासनिक और राजनीतिक नियंत्रण की पुष्टि करती हैं।
    • ऐसी यात्राओं पर चीन का विरोध द्विपक्षीय तनावों में तवांग के प्रतीकात्मक महत्त्व को प्रदर्शित करता है।
  • चीनी दावों का लक्ष्य: चीन प्रायः ‘दक्षिण तिब्बत’ के संदर्भ में तवांग का नाम लेता है।
    • व्यापक सीमा विवाद के अंतर्गत इसे सर्वाधिक विवादित एवं संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है।

सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व

  • छठे दलाई लामा का जन्मस्थान: तवांग 17वीं शताब्दी में छठे दलाई लामा, त्सांगयांग ग्यात्सो का जन्मस्थान है।
    • यह ऐतिहासिक तथ्य तिब्बती बौद्ध परंपरा में तवांग को गहरा आध्यात्मिक महत्त्व देता है और इसे वैश्विक स्तर पर तिब्बतियों के लिए एक पवित्र स्थल बनाता है।
  • तवांग मठ: तवांग मठ ल्हासा के बाद दूसरा सबसे बड़ा तिब्बती बौद्ध मठ है।
    • यह ऐतिहासिक रूप से मोनपा समुदाय और तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए एक धार्मिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में कार्य करता रहा है।
  • ल्हासा मठ के साथ ऐतिहासिक संबंध: वर्ष 1951 से पूर्व, तवांग मठ में नियमित रूप से भिक्षुओं का आदान-प्रदान होता था।
    • तवांग में न्यायिक और भूमि संबंधी मामले ल्हासा द्वारा जारी प्रशासनिक निर्देशों का उपयोग करके संचालित किए जाते थे।
  • चीनी दावे में धार्मिक औचित्य: चीन अपने क्षेत्रीय दावे को आंशिक रूप से तवांग और ल्हासा के मध्य आध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक संबंधों पर आधारित बताता है।
    • बीजिंग का तर्क है कि चूँकि तिब्बत चीन का हिस्सा है, इसलिए तवांग को भी ‘दक्षिणी तिब्बत’ के रूप में एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • दलाई लामा के उत्तराधिकार संबंधी मुद्दे की राजनीति में भूमिका: चीन को डर है कि वर्तमान दलाई लामा तवांग से अपने उत्तराधिकारी की पहचान कर सकते हैं, जिससे तिब्बती बौद्ध धर्म पर चीन के नियंत्रण को चुनौती मिल सकती है।
    • यदि ऐसा होता है, तो तवांग चीनी प्रभाव से बाहर आध्यात्मिक सत्ता का केंद्र बिंदु बन जाएगा।
  • तिब्बती पहचान और प्रतिरोध का प्रतीक: तवांग निर्वासित तिब्बती समुदाय के लिए सांस्कृतिक लचीलेपन और धार्मिक निरंतरता का प्रतीक बना हुआ है।
    • चीन तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और दलाई लामा की तवांग यात्रा को उकसावे तथा खतरे के रूप में देखता है।

अरुणाचल प्रदेश में चीनी आक्रमण के अंतरराष्ट्रीय निहितार्थ

  • इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता: यह विवाद भारत-चीन भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता विशेषतः व्यापक इंडो-पैसिफिक रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा को मजबूत करता है।
    • क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ भारत का गठबंधन आंशिक रूप से अरुणाचल प्रदेश में चीन की कार्रवाइयों से प्रभावित है।
  • भारत की स्थिति को अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा मान्यता: संयुक्त राज्य अमेरिका ने अरुणाचल प्रदेश को भारत के हिस्से के रूप में खुले तौर पर मान्यता दी है, विशेषकर आधिकारिक भारत-अमेरिका संयुक्त वक्तव्यों में।
    • यह चीन के ‘दक्षिणी तिब्बत’ के दावे के बिल्कुल विपरीत है और इस मुद्दे पर चीन के कूटनीतिक अलगाव को बढ़ाता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करने वाले सीमा तनाव: LAC पर बार-बार होने वाली घटनाएँ दक्षिण एशिया में शांति को प्रभावित करती हैं, जो पहले से ही परमाणु प्रतिस्पर्द्धा और सीमा विवादों से ग्रस्त क्षेत्र है।
    • यह द्विपक्षीय विश्वास निर्माण उपाय (Confidence Building Measures-CBM) को जटिल बनाता है और सीमा समाधान वार्ता को बाधित करता है।
  • बहुपक्षीय मंच और भारत का रुख: भारत ने वर्ष 2009 में ADB जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में अरुणाचल मुद्दे को उठाने के चीन के प्रयासों का विरोध किया है।
    • भारत इस बात पर जोर देता है कि अरुणाचल में विकास सहायता एक संप्रभु निर्णय है।
  • राजनयिक संघर्ष और द्विपक्षीय व्यापार तनाव: अरुणाचल पर तनाव प्रायः राजनयिक विरोध, निवासियों के लिए वीजा प्रतिबंध और यहाँ तक ​​कि व्यापार बाधाओं में बदल जाता है।
    • भारतीय नेताओं के अरुणाचल दौरे पर चीन की समय-समय पर आपत्तियाँ द्विपक्षीय सामान्य स्थिति को बाधित करती हैं।
  • चीन की वैश्विक छवि और विश्वसनीयता: चीन की मानचित्रण संबंधी आक्रामकता और नाम बदलने की रणनीति एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी विश्वसनीयता को कम करती है।
    • अन्य देश ऐसे कदमों को संशोधनवादी एवं विस्तारवादी मानते हैं, जो दक्षिण चीन सागर में चीन के व्यवहार के समान है।

अरुणाचल प्रदेश में चीनी आक्रामकता पर भारत के लिए आगे की राह

  • सीमावर्ती क्षेत्रों में रणनीतिक सड़कों, सुरंगों (जैसे- सेला सुरंग), पुलों एवं हवाई पट्टियों के निर्माण में तेजी लाना।
    • नागरिकों और सशस्त्र बलों दोनों के लिए दूरदराज के सीमावर्ती गाँवों तक वर्ष भर पहुँच सुनिश्चित करना।
  • सैन्य प्रतिरोध को मजबूत करना: पूर्वी क्षेत्र में माउंटेन स्ट्राइक कोर, लड़ाकू स्क्वाड्रन और मिसाइल प्रणालियों की संवर्द्धित तैनाती बनाए रखना।
    • चीनी दुस्साहस को रोकने के लिए LAC पर निगरानी और रसद को उन्नत करना।
  • कूटनीतिक रुख को मजबूती से अपनाना: वैश्विक मंचों और द्विपक्षीय वार्ताओं में चीनी नाम बदलने और झूठे दावों को खारिज करना जारी रखना।
    • अरुणाचल प्रदेश की भारत के अभिन्न और अविभाज्य हिस्से के रूप में स्थिति को सार्वजनिक रूप से दोहराना।
  • स्थानीय समुदायों को शामिल करना: सीमा प्रशासन, निर्णय लेने और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में स्वदेशी जनजातियों को शामिल करना।
    • प्रभावित परिवारों के लिए स्थानीय क्षेत्र विकास निधि के तहत उचित मुआवजा और कल्याण सुनिश्चित करना।
  • नागरिक उपस्थिति और ‘जीवंत’ गाँवों को बढ़ावा देना: चीन के सीमावर्ती गाँव मॉडल का विरोध करने के लिए जीवंत गाँव कार्यक्रम जैसी योजनाओं का विस्तार करना।
    • स्थायी नागरिक उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए सीमा क्षेत्रों में पर्यटन, कृषि और व्यापार को प्रोत्साहित करना।
  • जलविद्युत के माध्यम से ऊर्जा कूटनीति विकसित करना: पारिस्थितिकी सुरक्षा उपायों के साथ जलविद्युत परियोजनाओं (जैसे- हेओ, टाटो I) के कार्यान्वयन में तेजी लाना।
    • इन परियोजनाओं का उपयोग स्थानीय नौकरियों का सृजन करने, राजस्व उत्पन्न करने और दूरदराज के क्षेत्रों पर आर्थिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए करना।
  • रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना: अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फ्राँस जैसे प्रमुख भागीदारों के साथ रक्षा तथा कूटनीतिक सहयोग को गहरा करना।
    • चीनी बयानों का मुकाबला करने और भारत की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए बहुपक्षीय प्लेटफॉर्मों का उपयोग करना।

निष्कर्ष

अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलना चीन द्वारा एकतरफा दावों को लागू करने का एक रणनीतिक कदम है, जिसे भारत दृढ़ता से खारिज करता है, अरुणाचल की अभिन्न स्थिति पर जोर देता है। चीन की कूटनीति का मुकाबला करने और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए भारत के लिए बुनियादी ढाँचे, सैन्य प्रतिरोध तथा वैश्विक गठबंधनों को मजबूत करना महत्त्वपूर्ण है।

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