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CITES ने रोजवुड की प्रजातियों के व्यापार पर दिशा-निर्देश अपनाए

Lokesh Pal July 15, 2024 01:46 89 0

संदर्भ

प्लांट्स कमेटी की 27वीं बैठक के दौरान, CITES ने रोजवुड के नमूनों की सतत् फसल एवं व्यापार में शामिल अपने सदस्यों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। 

  • CITES– सूचीबद्ध रोजवुड वृक्ष प्रजातियों [लेग्युमिनोसी (फैबिएसी)] [Leguminosae (Fabaceae)] के संरक्षण एवं व्यापार पर रिपोर्ट CITES द्वारा प्रकाशित की गई थी।
    • रिपोर्ट में प्रभावी डेटा संग्रह एवं प्रबंधन योजनाओं में विभिन्न राज्यों की सहायता के लिए मौजूदा रोजवुड NDFs के स्थान शामिल थे।
  • CITES ने रोजवुड की प्रजातियों को मान्यता दी: CITES रोजवुड की प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करता है, जिनमें डालबर्गिया, अफजेलिया, खाया एवं टेरोकार्पस प्रजातियाँ शामिल हैं। उन्हें परिशिष्ट II में सूचीबद्ध किया गया है। जो दर्शाता है, कि उन्हें तुरंत विलुप्त होने का खतरा नहीं है, लेकिन यदि उनके व्यापार को विनियमित नहीं किया गया तो वे खतरे की श्रेणी  में आ सकते हैं।

बैठक की मुख्य बिंदु

  • सर्वाधिक संकटग्रस्त रोजवुड की प्रजातियाँ: पश्चिम अफ्रीका की स्थानीय प्रजाति टेरोकार्पस एरीनेसियस (Pterocarpus Erinaceus) अर्थात अफ्रीकन रोजवुड (African Rosewood) अत्यधिक दोहन एवं अवैध व्यापार के कारण रोजवुड की सबसे अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक मानी जाती है। 
    • व्यापार निलंबन: CITES ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि अफ्रीकी रोजवुड के रेंज स्टेट में व्यापार की स्थिरता और वैधता के विषय में चिंताओं के कारण व्यापार निलंबन की सिफारिशें की जा रही हैं।
  • क्षमता निर्माण प्रयास: CITES सचिवालय को CITES-सूचीबद्ध रोजवुड प्रजातियों के लिए क्षमता निर्माण प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें 13 उच्च प्राथमिकता एवं 14 मध्यम प्राथमिकता वाली प्रजातियों को लक्षित किया गया था।
  • गैर-हानिकारक निष्कर्षों (Non Detriment Findings- NDF) पर मॉड्यूल: CITES-NDF मार्गदर्शन के तहत वृक्ष प्रजातियों के लिए गैर-हानिकारक निष्कर्षों (NDF) पर मॉड्यूल के साथ कनेक्शन को मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • साक्ष्य आधारित NDFs, CITES का एक मूलभूत तत्त्व हैं। वे प्रजातियों में स्थायी व्यापार की अनुमति देते हैं, अपने मूल देशों में आजीविका का समर्थन करते हैं एवं उत्पादन तथा गंतव्य देशों में उद्योगों का समर्थन करते हैं एवं उन्हें भविष्य में विलुप्त होने से बचाते हैं।
  • विभिन्न रोजवुड प्रजातियों की पहचान: रिपोर्ट IUCN एवं संरक्षण प्राथमिकता के अनुसार मूल देश तथा प्रजातियों की सुभेद्यता की पहचान करती है एवं प्रजातियों की विशेषताओं, उनकी पारिस्थितिकी भूमिकाओं, पुनर्जनन दरों तथा कानूनी एवं अवैध दोनों तरह के वैश्विक व्यापार स्तरों को भी रेखांकित करती है।
  • NDFs निर्धारित करने के लिए मूल्यांकन: CITES वैज्ञानिक अधिकारियों के लिए विस्तृत प्रजातियों की जानकारी महत्त्व ]पूर्ण है, ताकि वे सूचित NDFs तैयार कर सकें एवं वन में उनके दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करते हुए निर्यात कोटा निर्धारित करने के लिए CITES -सूचीबद्ध रोजवुड प्रजातियों की लकड़ी की मात्रा का आकलन कर सकें।

रोजवुड के बारे में

  • परिवार: रोजवुड एक वाणिज्यिक/व्यापारिक शब्द है, जिसका प्रयोग लेग्युमिनोसी (फैबिएसी) परिवार के उष्णकटिबंधीय वृक्षों  की एक श्रेणी से प्राप्त लकड़ी के लिए किया जाता है।
  • वितरण: रोज़वुड दक्षिण-पूर्व एशिया, पापुआ न्यू गिनी, ब्राजील, अफ्रीका एवं इंडोनेशिया का स्थानीय  वृक्ष है।

भारतीय रोजवुड

  • पूर्वी भारतीय शीशम, लाल-भूरा रोजवुड (डालबर्गिया लैटिफोलिया- Dalbergia Latifolia): इसे बीटल एवं सिसल भी कहा जाता है, यह दक्षिण-पूर्व भारत के कम ऊँचाई वाले उष्णकटिबंधीय मानसून वनों की मूल प्रजाति एक प्रमुख वृक्ष प्रजाति है।
  • उत्तर भारतीय रोजवुड (डालबर्गिया सिस्सू- Dalbergia Sissoo): यह तेजी से बढ़ने वाला, कठोर, पर्णपाती अनियमित आकर का रोजवुड का वृक्ष हिमालय की तलहटी की  मूल प्रजाति है, जो पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में भारत के बिहार तक है। इसमें लंबे, चमड़े जैसे पत्ते एवं सफेद या गुलाबी फूल होते हैं।
    • शीशम का पेड़ 15-25 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ सकता है एवं इसकी कैनोपी घनी एवं फैली  हुई  होती है।
  • उपयोग: इनकी कटाई एवं व्यापार मुख्य रूप से एशिया में पारंपरिक फर्नीचर के निर्माण के लिए किया जाता है, लेकिन लकड़ी के अन्य उपयोगों में टर्नरी, पैनलिंग, गिटार बनाना एवं चाकू के हैंडल का निर्माण शामिल हैं।
  • अत्यधिक दोहन: एशिया में शीशम वृक्ष प्रजातियों के अत्यधिक दोहन के कारण व्यापार में लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों में पाई जाने वाली समान विशेषताओं वाली प्रजातियों की ओर रुझान बढ़ा है।
  • संरक्षण स्थिति: CITES परिशिष्ट II, इनमें से कई प्रजातियाँ अब अपने अस्तित्व पर व्यापार के प्रभाव के बारे में चिंताओं के कारण CITES परिशिष्ट II में सूचीबद्ध हैं।
    • सबसे हालिया सूची में वर्ष 2017 में CoP-17 में सभी डालबर्गिया प्रजातियाँ एवं वर्ष 2022 में CoP-19 में अफ्जेलिया, खाया तथा टेरोकार्पस प्रजातियों की सभी अफ्रीकी आबादी शामिल हैं।

वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) 

  • यह सरकारों के बीच एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों एवं पौधों के नमूनों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा न हो।
  • अंगीकरण: CITES का मसौदा वर्ष 1963 में IUCN सदस्यों की एक बैठक में अपनाए गए एक प्रस्ताव के परिणामस्वरूप तैयार किया गया था एवं यह 1 जुलाई, 1975 को लागू हुआ।
  • सदस्यता: भारत सहित 184 सदस्य देश।
  • कानूनी रूप से बाध्यकारी: CITES पार्टियों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है, लेकिन राष्ट्रीय कानूनों को प्रतिस्थापित नहीं करता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि CITES को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए, प्रत्येक पार्टी को अपना घरेलू कानून अपनाना होगा।
  • परिशिष्ट: CITES द्वारा कवर की गई प्रजातियों को उनकी सुरक्षा की आवश्यकता के अनुसार तीन परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया गया है;
    • परिशिष्ट I में विलुप्त होने की कगार पर पहुँची प्रजातियाँ शामिल हैं। इन प्रजातियों के नमूनों में व्यापार की अनुमति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जाती है।
    • परिशिष्ट II: इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं, जो आवश्यक रूप से विलुप्त होने के खतरे में नहीं हैं, लेकिन जिनके अस्तित्व के साथ असंगत उपयोग से बचने के लिए व्यापार को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
    • परिशिष्ट III: इसमें कम-से-कम एक देश में संरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं, जिन्होंने अन्य CITES पार्टियों से व्यापार को नियंत्रित करने में सहायता माँगी है।

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