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Lokesh Pal
May 15, 2025 03:02
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भारत के राजनीतिक विमर्श में हालिया बहसें चुनावी राजनीति में मुफ्तखोरी, ग्राहकवाद और संरक्षण की लोकतांत्रिक वैधता तथा आर्थिक स्थिरता पर प्रश्न चिह्न लगाती हैं।
मुफ्तखोरी और पुनर्वितरण की राजनीति की आलोचना कुछ संदर्भों में मान्य है, लेकिन ऐसी सभी प्रथाओं को एक साथ रखने से अनौपचारिक तथा अत्यधिक ग्राहकवाद का वास्तविक मुद्दा अस्पष्ट हो जाता है। पारदर्शिता, प्रभाव आकलन और लोकतांत्रिक जवाबदेही पर सुधारों को केंद्रित करने से यह सुनिश्चित होगा कि राजनीतिक वितरण चुनावी लाभ के बजाय विकासात्मक लक्ष्यों के साथ संरेखित हो।
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