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Lokesh Pal
July 25, 2024 02:31
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हालिया आर्थिक सर्वेक्षण में उस बात को संबोधित किया गया है जिसे विकसित देश अक्सर स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और जिसकी भारत ने हमेशा सिफारिश की है, स्वीकृत जलवायु-उपयुक्त मार्गों को उनके मूल में इष्टतमता के साथ विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोणों को ध्यान में रखना होगा।
समीक्षा में कहा गया है कि भारत की विकास रणनीति की विशेषता जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का प्रबंधन करना और साथ ही विकासात्मक प्राथमिकताओं पर वांछित ध्यान देना है।
हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन से निपटने की तात्कालिकता तेजी से स्पष्ट हो गई है, जिससे दुनिया भर के राष्ट्र महत्त्वाकांक्षी स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं। इन देशों में, भारत सतत् विकास और जलवायु कार्रवाई में अग्रणी के रूप में उभरा है।
जलवायु कार्रवाई के प्रति भारत की प्रतिबद्धता फरवरी 1972 में राष्ट्रीय पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय समिति (National Committee for Environmental Planning and Coordination- NCEPC) की स्थापना के समय से ही चली आ रही है।
जलवायु के महत्त्व को समझते हुए और ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन देते हुए भारत द्वारा निम्नलिखित उपाय किए गए हैं:
विभिन्न विकासों के बावजूद, भारत के सामने निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं जिनका समाधान किया जाना आवश्यक है:
जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए ऊर्जा परिवर्तन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण अपनाने तथा सतत् विकास को महत्त्व देने की आवश्यकता है।
भारत मानता है कि विकास और पर्यावरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और समग्र विकास के लिए इन पर एक साथ विचार किया जाना चाहिए। जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्या को हल करने के लिए दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम्’- एक पृथ्वी, एक विश्व और एक भविष्य के सदियों पुराने भारतीय सिद्धांत पर विश्वास करने की आवश्यकता है।
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