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जलवायु वित्त वर्गीकरण

Lokesh Pal July 24, 2024 02:53 475 0

संदर्भ

23 जुलाई, 2024 को वर्ष 2024-25 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि सरकार जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए पूँजी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए ‘जलवायु वित्त वर्गीकरण’ (Climate Finance Taxonomy) विकसित करेगी।

संबंधित तथ्य

  • इससे भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं और हरित परिवर्तन को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

जलवायु वित्त वर्गीकरण (Climate Finance Taxonomy)

  • परिचय
    • जलवायु वित्त वर्गीकरण (टैक्सोनॉमी) एक ऐसी प्रणाली है, जो वर्गीकृत करती है कि अर्थव्यवस्था के किन हिस्सों को संधारणीय निवेश के रूप में विपणन किया जा सकता है। यह निवेशकों और बैंकों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए खरबों डॉलर को प्रभावशाली निवेश की ओर निर्देशित करने में मदद करता है। 
    • कनाडा सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, “जलवायु-संबंधित वित्तीय साधनों (जैसे, ग्रीन बॉण्ड) को वर्गीकृत करने के लिए मानक निर्धारित करने के लिए वर्गीकरण का अक्सर उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका प्रयोग ऐसे अन्य मामलों में भी किया जाता है, जहाँ बेंचमार्किंग सुविधा को लाभकारी माना जाता है, जिसमें जलवायु जोखिम प्रबंधन, नेट-जीरो संक्रमण योजना और जलवायु प्रकटीकरण के क्षेत्र शामिल हैं।
  • वर्गीकरण  का महत्त्व
    • वैश्विक तापमान में वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के बढ़ने के साथ, देशों को शुद्ध-शून्य अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण करने की आवश्यकता है- जो उत्पादित ग्रीनहाउस गैस (GHG) की मात्रा तथा वायुमंडल से निष्कासित मात्रा के बीच संतुलन है।
      • ‘जलवायु वित्त वर्गीकरण’ ऐसा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है क्योंकि वे यह पता लगाने में मदद कर सकती हैं कि आर्थिक गतिविधियाँ विश्वसनीय, विज्ञान आधारित संक्रमण मार्गों के साथ संरेखित हैं या नहीं। वे जलवायु पूँजी के प्रयोग को भी बढ़ावा दे सकते हैं और ग्रीनवाशिंग के जोखिमों को कम कर सकते हैं।
      • भारत के लिए, टैक्सोनॉमी अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से अधिक जलवायु निधि ला सकती है। 
      • वर्तमान में, भारत में हरित वित्त प्रवाह देश की मौजूदा जरूरतों से बहुत कम हो रहा है – वे भारत में कुल FDI प्रवाह का केवल 3% हिस्सा हैं, जो क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव द्वारा प्रकाशित भारत में हरित वित्त के परिदृश्य 2022 रिपोर्ट के अनुसार है।
    • बेहद कम हरित वित्त प्रवाह का एक कारण इस संबंध में स्पष्टता की कमी है कि संधारणीय गतिविधियाँ क्या हैं।
  • भारत में हरित निवेश की संभावना
    • इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (IFC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 से 2030 तक 3.1 ट्रिलियन डॉलर की जलवायु-स्मार्ट निवेश क्षमता है। 
    • निवेश के लिए सबसे बड़ा क्षेत्र इलेक्ट्रिक-वाहन खंड में है, जो 667 बिलियन डॉलर है क्योंकि भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपने सभी नए वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाना है। 
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र भी 403.7 बिलियन डॉलर के साथ एक अच्छा निवेश क्षेत्र बना हुआ है।

अन्य देशों में जलवायु वित्त वर्गीकरण की स्थिति

  • कई देशों ने या तो अपने टैक्सोनॉमी पर कार्य करना शुरू कर दिया है अथवा उसे अंतिम रूप दे दिया है। 
  • दक्षिण अफ्रीका, कोलंबिया, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, कनाडा और मेक्सिको कुछ ऐसे देश हैं, जिन्होंने टैक्सोनॉमी विकसित कर ली है। 

भारत की जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताएँ

  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य अर्थव्यवस्था हासिल करना है। 
  • इसने वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 45% तक कम करने का भी संकल्प लिया है। 
  • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता हासिल करने की प्रतिबद्धता भी जताई है।

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