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विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त

Lokesh Pal October 22, 2024 05:21 84 0

संदर्भ 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) का 29वाँ ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’  (COP 29) 11 से 22 नवंबर, 2024 तक बाकू, अजरबैजान में होगा।

संबंधित तथ्य

  • इस अभिसमय में जलवायु वित्त के प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किए जाने की उम्मीद है, जिससे यह जलवायु कार्रवाई के वित्तपोषण पर चर्चा के लिए एक महत्त्वपूर्ण आयोजन बन जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में की गई प्रतिबद्धताएँ

  • वर्ष 2010 में 16वें ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (COP16) में विकसित देशों ने विकासशील देशों के लिए वर्ष 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने का संकल्प लिया गया था।
  • वर्ष 2015 में 21वें ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (COP21) में इस प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की गई तथा लक्ष्य को वर्ष 2025 तक बढ़ा दिया गया।

जलवायु वित्त क्या है?

  • UNFCCC के अनुसार, जलवायु वित्त का तात्पर्य विभिन्न स्रोतों (सार्वजनिक, निजी या वैकल्पिक) से मिलने वाले वित्तपोषण से है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन को कम करने या उसके अनुकूल होने के प्रयासों का समर्थन करना है।
  • यह निजी और सार्वजनिक दोनों स्रोतों से उत्पन्न हो सकता है और अक्सर बहुपक्षीय विकास बैंकों तथा अन्य एजेंसियों जैसे मध्यस्थों द्वारा सुगम बनाया जाता है, जो विकसित देशों से विकासशील देशों में संसाधनों को स्थानांतरित करते हैं।
  • OECD रिपोर्ट: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) विकसित देशों से लेकर विकासशील देशों तक जलवायु वित्त पर रिपोर्ट प्रदान करता है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त सहित चार प्रमुख स्रोत शामिल होते हैं।
    • वित्त के प्रकार: अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त में ऋण, अनुदान, इक्विटी और अन्य वित्तीय साधन शामिल हैं। 
    • वर्ष 2022 के आँकड़े: वर्ष 2022 में, ऋण जलवायु वित्त का 69.4% हिस्से का गठन करते हैं, जबकि अनुदान 28% के लिए जिम्मेदार है।
  • विकसित देशों के दायित्व
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के तहत विकसित राष्ट्रों का दायित्व है कि वे निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों को नए और अतिरिक्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराएँ।
    • वर्ष 2015 के पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान में वृद्धि को सीमित करना था और इसमें शमन एवं अनुकूलन प्रयासों को समर्थन देने के लिए वित्तीय तंत्र शामिल हैं।

प्रमुख निधियाँ और तंत्र

  • ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF): यह विश्व का सबसे बड़ा जलवायु कोष है।
    • UNFCCC के तहत स्थापित किया गया है।
    • यह विकासशील देशों को उत्सर्जन से निपटने में मदद करता है।
  • अनुकूलन कोष (AF): यह कोष विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तनों के अनुकूल होने के लिए कमजोर समुदायों को वित्तपोषित करता है।
    • यह राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली संस्थाओं को परियोजनाओं का प्रबंधन करने और सीधे वित्तपोषण प्राप्त करने की अनुमति देता है।
  • वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF); यह एक तंत्र है, जो पर्यावरणीय मुद्दों को हल करने के लिए विकासशील देशों को वित्तपोषण प्रदान करता है।

जलवायु वित्त के सिद्धांत

  • ‘प्रदूषणकर्ता भुगतान करता है’ (Polluters Pays) सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, प्रदूषण उत्पन्न करने वाला व्यक्ति पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए इसके प्रबंधन की लागत वहन करने के लिए उत्तरदायी है।
  • सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारी और संबंधित क्षमता (CBDR–RC): यह सिद्धांत बताता है कि विकासशील देशों की पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने की अधिक जिम्मेदारी है (सभी देश जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिए भी जिम्मेदार हैं)।
    • ऐसा उनके ऐतिहासिक उत्सर्जन और कार्य करने की महान क्षमता के कारण है।

विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील क्यों हैं?

  • भौगोलिक कारक: विकासशील देशों में अक्सर ऐसी भौगोलिक विशेषताएँ होती हैं, जो उन्हें जलवायु प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती हैं।
  • आर्थिक निर्भरता: ये देश कृषि पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है।
  • सीमित संसाधन: जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने या जलवायु संबंधी आपदाओं से उबरने के लिए उनके पास आमतौर पर कम वित्तीय और मानव संसाधन होते हैं।
  • कम उत्सर्जन योगदान: अपनी कमजोरी के बावजूद, विकासशील देशों ने वैश्विक उत्सर्जन में बहुत कम योगदान दिया है वर्ष 1850 से अब तक कुल उत्सर्जन में 57% के लिए विकसित देश जिम्मेदार हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धी विकास की जरूरतें: विकासशील देशों को कई विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिए सिर्फ जलवायु संबंधी कार्रवाइयों पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है।

जलवायु वित्त में चुनौतियाँ

  • वित्तीय प्रवाह पर नजर रखना: जलवायु वित्त का उपयोग कहाँ और कैसे किया जाता है, इसका मापन तथा निगरानी करना जटिल हो सकता है।
  • न्यायसंगत समर्थन: उत्सर्जन में कमी और अनुकूलन के लिए विकासशील देशों को उचित वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है।
  • निजी क्षेत्र के प्रोत्साहन: जलवायु पहलों में निजी निवेश के लिए प्रभावी प्रोत्साहन बनाना मुश्किल हो सकता है।

जलवायु वित्त की आवश्यकता किसे है?

  • बाहरी वित्तपोषण की आवश्यकता: विकासशील देशों को प्रभावी जलवायु कार्रवाई के लिए बाहरी वित्तीय सहायता की आवश्यकता है।
  • विद्युत तक पहुँच: वर्ष 2021 में, विकासशील देशों में 675 मिलियन लोगों के पास विद्युत तक पहुँच नहीं थी, जिससे ऊर्जा की खपत में वृद्धि की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • पूँजी की उच्च लागत: विकासशील देशों को नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के लिए उच्च पूँजी लागत का सामना करना पड़ता है तथा सौर प्रौद्योगिकी की लागत विकसित देशों की तुलना में लगभग दोगुनी है।
  • विकास और जलवायु कार्रवाई में संतुलन: जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ-साथ सतत् विकास हासिल करने के लिए इन देशों के लिए बाह्य वित्त तक पहुँच अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

भारत की जलवायु वित्त आवश्यकताएँ

  • जलवायु लक्ष्य: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक महत्त्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करना है, जिनमें शामिल हैं:-
    • 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता।
    • 5 मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देना।
  • अनुमानित निवेश
    • 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा हासिल करने के लिए 16.8 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त निवेश की जरूरत है। 
    • हरित हाइड्रोजन लक्ष्य के लिए 8 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी।
  • दीर्घकालिक निवेश की आवश्यकताएँ: नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए भारत को वर्ष 2020 से 2070 तक लगभग ₹850 लाख करोड़ की आवश्यकता होगी।

जलवायु वित्त के संबंध में भारत की पहल

  • जलवायु परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC): इसे वर्ष 2015 में प्रारंभ किया गया।
    • यह भारत में राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे और प्रभाव से निपटने में मदद करता है।
    • उद्देश्य: यह जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील विभिन्न क्षेत्रों में अनुकूलन गतिविधियों का समर्थन करने पर केंद्रित है।
      • यह प्रोजेक्ट मोड में कार्य करता है।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष: इस कोष को वर्ष 2010 में स्थापित किया गया था।
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देना और वित्तपोषित करना, नवीन स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का विकास करना तथा अनुसंधान करना है।
    • समर्थित परियोजनाएँ: यह निधि हरित ऊर्जा गलियारा, नमामि गंगे और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन जैसी विभिन्न पहलों का समर्थन करती है।

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