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जलवायु जोखिम सूचकांक 2025

Lokesh Pal February 15, 2025 02:56 553 0

संदर्भ 

जलवायु जोखिम सूचकांक (Climate Risk Index-CRI) 2025 में भारत को छठा स्थान दिया गया है, जो चरम मौसम की घटनाओं के प्रति इसकी उच्च संवेदनशीलता को दर्शाता है।

जलवायु जोखिम सूचकांक (CRI) के बारे में

  • जलवायु जोखिम सूचकांक (CRI) एक वार्षिक रिपोर्ट है, जो दुनिया भर के देशों पर चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव का आकलन करती है।
  • इसे वर्ष 2006 से जर्मनवॉच द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है।
  • यह सूचकांक जलवायु से संबंधित आपदाओं जैसे- तूफान, बाढ़, हीटवेव और सूखे के कारण होने वाले मानवीय और आर्थिक नुकसान के आधार पर देशों को रैंक करता है।
  • डेटा का स्रोत: अंतरराष्ट्रीय आपदा डेटाबेस (Em-dat) से चरम मौसम की घटना का डेटा और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) से सामाजिक-आर्थिक डेटा।
  • कार्यप्रणाली: CRI कार्यप्रणाली में तीन जोखिम श्रेणियों के माध्यम से चरम मौसम की घटनाओं के प्रभावों का विश्लेषण करना शामिल है: जल विज्ञान, मौसम विज्ञान और जलवायु विज्ञान।
    • सूचकांक प्रकाशन से दो वर्ष पहले और पिछले 30 वर्ष की अवधि में देशों पर इन घटनाओं के प्रभाव को दर्शाता है।

  • संकेतक: सूचकांक छह प्रमुख संकेतकों का उपयोग करके पूर्ण और सापेक्ष प्रभावों पर विचार करता है: आर्थिक नुकसान, मौतें और प्रभावित लोग (प्रत्येक पूर्ण और सापेक्ष शब्दों में)।

जलवायु जोखिम सूचकांक, 2025 के प्रमुख निष्कर्ष

  • भारत की रैंकिंग: वर्ष 1993 से 2022 के बीच चरम मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत छठे स्थान पर है।
  • वैश्विक प्रभाव: भारत का योगदान
    • चरम मौसम की घटनाओं के कारण वैश्विक मृत्यु का 10% हिस्सा होता है।
    • वैश्विक आर्थिक हानि (डॉलर के संदर्भ में) के 4.3% के लिए ऐसी घटनाएँ उत्तरदायी हैं।
  • चरम घटनाएँ: इस अवधि के दौरान भारत को बाढ़, लू और चक्रवातों सहित 400 से अधिक चरम मौसम की घटनाओं का सामना करना पड़ा।
  • मानवीय और आर्थिक क्षति
    • इन घटनाओं के कारण 80,000 मौतें दर्ज की गईं।
    • आर्थिक नुकसान 180 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।

भारत की चरम मौसमी घटनाएँ (वर्ष 1993-2022)

  • बाढ़: वर्ष 1993, वर्ष 1998 और वर्ष 2013 में बड़ी बाढ़ आई, जिसमें वर्ष 2013 की उत्तराखंड बाढ़ विशेष रूप से विनाशकारी थी।
  • हीटवेव: वर्ष 2002, 2003 और 2015 में भीषण हीट वेव दर्ज की गईं, जिसमें तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया।
  • चक्रवात: वर्ष 1998 के गुजरात चक्रवात, 1999 के ओडिशा चक्रवात, चक्रवात हुदहुद (2014) और चक्रवात अम्फान (2020) जैसे विनाशकारी चक्रवातों ने व्यापक क्षति पहुँचाई।

वैश्विक निष्कर्ष

  • सबसे अधिक प्रभावित देश: जलवायु जोखिम सूचकांक में भारत से ऊपर रैंक वाले देश डोमिनिका, चीन, होंडुरास, म्याँमार और इटली हैं।
  • वैश्विक नुकसान: दुनिया भर में, चरम मौसम की घटनाओं के कारण:
    • 8,00,000 मौतें।
    • 4.2 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक हानि।

भारत असुरक्षित क्यों है?

  • भौगोलिक कारक: भारत की विविध जलवायु और भूगोल इसे बाढ़, चक्रवात और हीटवेव सहित कई तरह की चरम मौसम की घटनाओं के लिए प्रवण बनाते हैं।
  • जनसंख्या घनत्व: उच्च जनसंख्या घनत्व आपदाओं के मानवीय और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाता है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: सीमित बुनियादी ढाँचा और तैयारियाँ चरम मौसम की घटनाओं के प्रभावों को बढ़ाती हैं।

जलवायु वित्त और वैश्विक प्रतिक्रिया

  • रिपोर्ट में बढ़ते जलवायु संकट से निपटने के लिए वैश्विक जलवायु वित्त की अपर्याप्तता पर प्रकाश डाला गया है
    • जलवायु वित्त अंतर: वर्ष 2035 तक सालाना 300 बिलियन डॉलर का वादा किया गया है, जिसे जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए न्यूनतम आवश्यकता माना जाता है।
    • नुकसान और क्षति: जलवायु वित्त पर नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) नुकसान और क्षति को संबोधित करने के उपायों को शामिल करने में विफल रहा, जो एक महत्त्वपूर्ण अंतर है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

मुख्य सिफारिशें

  • कार्रवाई का आह्वान: उच्च आय और उच्च उत्सर्जन वाले देशों को भविष्य में मानवीय और आर्थिक लागतों को कम करने के लिए शमन और अनुकूलन प्रयासों में तेजी लानी चाहिए।
  • हानि और क्षति कार्रवाई: चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित कमजोर समुदायों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • उच्च जोखिम वाले देशों के लिए चेतावनी: CRI में सबसे ऊपर रैंकिंग वाले देशों को इन निष्कर्षों को चेतावनी के रूप में लेना चाहिए।
    • उन्हें जोखिमों को कम करने और समुदायों को भविष्य की जलवायु आपदाओं से बचाने के लिए तत्काल तैयारी उपायों की आवश्यकता है।
  • मानवीय और आर्थिक लागत का बढ़ना: जलवायु से संबंधित मानवीय क्षति और आर्थिक क्षति तब तक बढ़ती रहेगी जब तक कि:
    • प्रभावी मजबूत शमन नीतियों को लागू नहीं किया जाता है।
    • कमजोर देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान नहीं की जाती है।

जर्मनवाच के बारे में

  • जर्मनवॉच एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन है, जो वैश्विक समानता और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।

  • इसकी स्थापना वर्ष 1991 में हुई थी और इसका मुख्यालय बॉन, जर्मनी में है।
  • यह नीति वकालत, अनुसंधान और सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से सतत् विकास, जलवायु कार्रवाई और सामाजिक न्याय की दिशा में कार्य करता है।

प्रमुख प्रकाशन और रिपोर्टें

  • जलवायु जोखिम सूचकांक (Climate Risk Index-CRI): देशों पर चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव का आकलन करता है।
  • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (Climate Change Performance Index-CCPI): ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में देशों की प्रगति का मूल्यांकन करता है।

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