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जलवायु जोखिम सूचकांक (CRI) 2026

Lokesh Pal November 13, 2025 03:32 17 0

संदर्भ

जर्मनवॉच द्वारा प्रकाशित जलवायु जोखिम सूचकांक (CRI), 2026 के अनुसार, जो COP30 (बेलेम, ब्राजील, नवंबर 2025) में जारी किया गया था, भारत, चरम मौसमी घटनाओं से सर्वाधिक प्रभावित देशों (वर्ष 1995- वर्ष 2024) में 9वें स्थान पर है।

मुख्य निष्कर्ष

  • दक्षिण-दक्षिण सुभेद्यता: सभी शीर्ष दस सर्वाधिक प्रभावित देश (वर्ष 1995-2024) वैश्विक दक्षिण से संबंधित हैं।
    • सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस वर्ष 2024 में सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए, उसके बाद ग्रेनेडा और चाड का स्थान रहा है।
  • निरंतर खतरा: भारत, फिलीपींस, निकारागुआ और हैती जैसे देशों को ‘निरंतर खतरे’ की श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि वे बार-बार चरम मौसमी घटनाओं का सामना करते हैं, जिससे उबरना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • वे बाढ़, लू या तूफान से इतनी नियमित रूप से प्रभावित होते हैं कि पूरा क्षेत्र अगली घटना घटित होने तक उनके प्रभावों से मुश्किल से उबर पाता है।

  • असामान्य रूप से चरम मौसमी घटनाएँ: डोमिनिका, म्यांमार, होंडुरास और लीबिया को और भी अधिक जोखिम में रखा गया है क्योंकि वे असामान्य रूप से चरम मौसमी घटनाओं का अनुभव करते हैं।
  • वैश्विक मृत्यु दर: विश्व में 9,700 चरम मौसमी घटनाओं (वर्ष 1995-2024) में 832,000 से अधिक लोग मारे गए।
    • वर्ष 2008 में म्यांमार में आया चक्रवात ‘नरगिस’ पिछले तीन दशकों की सबसे भीषण आपदाओं में से एक था, जिसमें लगभग 1,40,000 लोग मारे गए और इस अवधि में देश में हुई कुल मौतों का 95% से अधिक हिस्सा इसी चक्रवात के कारण हुआ।
  • आर्थिक नुकसान: इसी अवधि में इन घटनाओं के कारण वैश्विक स्तर पर 4.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ।
    • केवल वर्ष 2024 में, बाढ़ ने विश्व में लगभग 5 करोड़ लोगों को प्रभावित किया, इसके बाद लू (3.3 करोड़) और सूखे (2.9 करोड़ से अधिक) का स्थान रहा है।

भारत-विशिष्ट निष्कर्ष

  • भारत सर्वाधिक प्रभावित देशों (वर्ष 1995-2024) की सूची में नौवें स्थान पर है, और वर्ष 2024 में 15वें स्थान पर था।
  • आवृत्ति: भारत ने पिछले 30 वर्षों में लगभग 430 चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया है, जिसका प्रभाव एक अरब से अधिक लोगों पर पड़ा है।
  • आर्थिक प्रभाव: मुद्रास्फीति-समायोजित कुल नुकसान लगभग 170 अरब डॉलर का है।
  • मृत्यु: इन घटनाओं में 80,000 से अधिक लोग मारे गए।
  • प्रमुख घटनाएँ
    • वर्ष 1993 में कई उत्तरी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, आदि) में बाढ़ (925 मौतें) आई।
    • वर्ष 1998 गुजरात चक्रवात (1,173 मौतें)
    • वर्ष 1998 देश के कई हिस्सों (ओडिशा, बिहार, आदि) में भीषण गर्मी (2,800 मौतें)।
    • वर्ष 1999 में ओडिशा सुपर साइक्लोन (9,885 मौतें), 2002-03।
    • अन्य चरम मौसमी घटनाएँ: भारत में हाल के वर्षों में कई जलवायु आपदाएँ देखी गई हैं, जैसे- वर्ष 2013 की उत्तराखंड बाढ़ (लगभग 5,000 मृतक), वर्ष 2015 की भीषण गर्मी (2,000 से अधिक मृतक), वर्ष 2019 की बाढ़ एवं चक्रवात, तथा वर्ष 2020 का चक्रवात ‘अम्फान’ आदि।
  • वर्ष 2024 का मानसून: विशेष रूप से गंभीर, जिससे 80 लाख से अधिक लोग प्रभावित होंगे, मुख्यतः गुजरात, महाराष्ट्र और त्रिपुरा में।
  • वर्ष 2024 में, चरम मौसमी घटनाओं से सर्वाधिक प्रभावित लोगों के मामले में भारत दुनिया भर में तीसरे स्थान (बांग्लादेश और फिलीपींस के बाद) पर था।
  • खतरे: भारत बार-बार आने वाली आपदाओं से उबरने के प्रयास में है। बाढ़, लू और चक्रवात जैसी चरम मौसमी घटनाओं की उच्च और बढ़ती आवृत्ति ने उनके संचयी प्रभाव को और अधिक विनाशकारी बना दिया है।।
  • इस रिपोर्ट में ग्लोबल साउथ के आँकड़ों में अंतराल को भी उजागर किया गया है, जिसका अर्थ है कि भारत के वास्तविक प्रभावों की रिपोर्टिंग कम हो सकती है।

जलवायु जोखिम सूचकांक (CRI) के बारे में

  • परिभाषा: CRI जर्मनवॉच द्वारा विकसित एक विश्लेषणात्मक सूचकांक है जो चरम मौसमी घटनाओं (EWE) के मानवीय और आर्थिक प्रभावों के आधार पर देशों को रैंकिंग प्रदान करता है।
  • उत्पत्ति: वर्ष 2006 से प्रतिवर्ष प्रकाशित CRI, म्यूनिख रे नेटकैटसर्विस और IMF के आँकड़ों का प्रयोग करता है।
    • यह एक बाध्यकारी संयुक्त राष्ट्र सूचकांक नहीं है, लेकिन UNFCCC और IPCC की वार्ताओं में इसका व्यापक रूप से उल्लेख किया गया है।
  • मानदंड/विधि
    • प्रति 100,000 निवासियों पर मृत्यु दर और आर्थिक नुकसान (PPP अमेरिकी डॉलर में) के आधार पर।
    • चरम मौसमी घटनाओं, जैसे-बाढ़, तूफान, लू, सूखा, वनाग्नि, ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट पर केंद्रित है।
    • समुद्र तल में वृद्धि या महासागरीय अम्लीकरण जैसी धीमी गति से शुरू होने वाली घटनाओं को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
  • उद्देश्य: जलवायु भेद्यता और हानि व क्षति के जोखिम को दर्शाता है; COP वार्ताओं के अंतर्गत जलवायु वित्त पोषण और अनुकूलन उपायों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • निहितार्थ: भारत ‘खतरों से निरंतर प्रभावित’ की श्रेणी में है (फिलीपींस, हैती, निकारागुआ के साथ), जिसका अर्थ है कि बार-बार होने वाली आपदाएँ प्रगति में बाधा डालती हैं।
  • CRI रैंकिंग COP-30 में ‘लॉस एंड डैमेज’ फंड के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए भारत के दावे को सशक्त बनाती है।

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