दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीकों को अपनाने के लिए विभिन्न एजेंसियों के साथ सहयोग को बढ़ावा दे रही है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसका उद्देश्य बादलों में सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव करके कृत्रिम रूप से वर्षा कराना है।
ये कण नाभिक के रूप में कार्य करते हैं, जिसके चारों ओर नमी संघनित हो सकती है, जिससे अंततः वर्षा की बूँदें निर्मित हो सकती हैं।
यह कैसे कार्य करता है?
सीडिंग मैटेरियल: सामान्य मैटेरियल में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, सूखी बर्फ या तरल प्रोपेन शामिल हैं।
वितरण विधि: बीजों को विमान या सतह पर आधारित स्प्रेयर का उपयोग करके फैलाया जा सकता है।
संघनन प्रक्रिया: प्रक्षेपित कण जल की छोटी बूँदों के संघनन को बड़ी बूँदों में तब तक उत्प्रेरित करते हैं, जब तक कि वे वर्षा के रूप में गिरने के लिए पर्याप्त रूप से भारी न हो जाएँ।
अनुप्रयोग तथा उदाहरण
भारत: महाराष्ट्र के सोलापुर में क्लाउड सीडिंग से लगभग 18% वर्षा में वृद्धि हुई।
संयुक्त अरब अमीरात (UAE): शुष्क क्षेत्रों में वर्षा बढ़ाने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया गया है।
चीन: वर्ष 2008 बीजिंग ओलंपिक के दौरान, वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया गया था।
पक्ष
विपक्ष
वायु प्रदूषण में कमी: क्लाउड सीडिंग के माध्यम से उत्पन्न वर्षा की बूँदें PM कण सहित वायु में उपस्थित प्रदूषकों को समाहित कर सकती हैं।
वनाग्नि नियंत्रण: वनाग्नि के प्रबंधन और रोकथाम में सहायता करता है।
कोहरा और ओला प्रबंधन: कोहरे के फैलने और ओलावृष्टि से होने वाली क्षति को कम करने के लिए उपयोगी।
कृषि सहायता: वर्ष 2017 में कर्नाटक की ‘प्रोजेक्ट वर्षाधारी(Project Varshadhari)’ जैसी पहल का उद्देश्य फसलों के लिए आवश्यक नमी उपलब्ध कराना है।
नमी की आवश्यकताएँ: सफल बीजारोपण के लिए बादलों में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।
पर्यावरणीय जोखिम: सिल्वर आयोडाइड जैसी बीजारोपण सामग्री के जैव संचयन और विषाक्तता पर चिंताएँ।
मौसम पैटर्न में बदलाव: क्लाउड सीडिंग से स्थानीय मौसम पैटर्न में संभावित परिवर्तन हो सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय संबंध: एक क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग से पड़ोसी क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है, जिससे विवाद उत्पन्न हो सकता है।
वायु को स्वच्छ करने में वर्षा की भूमिका
अवशोषण: जब वर्षा की बूँदें गिरती हैं, तो वे पार्टिकुलेट मैटर (PM), सल्फर ऑक्साइड (SOx) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) जैसे प्रदूषकों को अवशोषित कर लेती हैं।
रासायनिक अभिक्रियाएँ: जब वर्षा की बूँदें प्रदूषकों से टकराती हैं, तो उनमें रासायनिक अभिक्रियाएँ होती हैं, जो इन हानिकारक पदार्थों को कम हानिकारक यौगिकों में परिवर्तित कर देती हैं।
उदाहरण के लिए, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड, जल और अन्य वायुमंडलीय घटकों के साथ अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक एसिड बना सकते है।
साफ करना: वर्षा की बूँदें, जो अब प्रदूषकों या उनके परिवर्तित उत्पादों से भरी हुई हैं, इन पदार्थों को सतह पर बहा ले जाती हैं। इस प्रक्रिया को “वाशआउट” के रूप में जाना जाता है।
स्क्रबिंग (Scrubbing): जब बारिश की बूँदें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं तो वे वायु में मौजूद प्रदूषकों से टकराकर उन्हें हटाकर उन्हें साफ भी कर सकती हैं। इस प्रक्रिया को ‘स्क्रबिंग’ कहा जाता है।
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