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मक्के की फसलों में समूहबद्ध रोपण: कीट प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि

Lokesh Pal September 30, 2025 04:04 15 0

संदर्भ

नीदरलैंड और स्विट्जरलैंड के सहयोग से झेजियांग विश्वविद्यालय (चीन) के शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि मक्के के पौधों का समूहन करने से पौधे-मृदा संकेतन (Plant–Soil Signalling) के माध्यम से कीट प्रतिरोध में वृद्धि होती है।

पौधों के संचार तंत्र (Plant Communication Mechanism) के बारे में

  • कार्यविधि: जब मक्के के पौधों पर कीटों का हमला होता है, तो सघन रोपाई वाली फसलें अधिक लिनालूल (Linalool) उत्सर्जित करती हैं, जिससे आस-पास के पौधे सतर्क हो जाते हैं और रक्षात्मक प्रतिक्रियाएँ शुरू हो जाती हैं।
  • अवलोकन: सघन आबादी वाले भूखंडों की बीच की पंक्तियों में लगे पौधों को किनारे के पौधों की तुलना में कीटों से कम नुकसान हुआ, जो समूहों में मजबूत सुरक्षा का संकेत देता है।
  • समझौता: कीटों से सुरक्षा तो बढ़ी, लेकिन पौधों की वृद्धि धीमी रही और जैवभार भी कम उत्पन्न हुआ, जिससे वृद्धि और सुरक्षा के बीच संतुलन को समझने में मदद मिली।

  • लिनालूल (Linalool): पुष्प में सुगंध वाला एक वाष्पशील यौगिक, जिसका उपयोग पौधों द्वारा संकेतन के लिए और मानव उद्योगों (इत्र, साबुन) में किया जाता है।
  • जैस्मोनेट्स (Jasmonates): पादप हार्मोन जो तनाव और सुरक्षा प्रतिक्रियाओं में शामिल होते हैं।
  • HDMBOA-Glc: लाभकारी बैक्टीरिया को बढ़ावा देने के लिए मृदा में उत्सर्जित किया जाने वाला सुरक्षात्मक मेटाबोलाइट है।

रक्षा का तंत्र

  • हार्मोनल संकेतन (Hormonal Signalling): लिनालूल के संपर्क में आने से पौधों की जड़ों में जैस्मोनेट का हार्मोनल संकेतन सक्रिय हो जाता है।
  • मेटाबोलाइट का उत्सर्जन: जैस्मोनेट्स मृदा में एक रक्षात्मक मेटाबोलाइट, HDMBOA-Glc, के उत्सर्जन को प्रेरित करते हैं।
  • सूक्ष्मजीवी अंतःक्रिया (Microbial Interaction): HDMBOA-Glc लाभकारी जीवाणुओं को संवर्द्धित करता है, जिससे उसके निकट स्थित पौधों में सैलिसिलिक अम्ल का संकेत प्राप्त होता है।
  • परिणाम: पौधों को विभिन्न खतरों से बचाने के लिए तैयार किया गया है।

व्यापक सुरक्षा

  • कीट जनित रोग (Insect pests): फॉल आर्मीवर्म (स्पोडोप्टेरा फ्रुजीपरडा) से होने वाली क्षति में कमी आती है।
  • निमेटोड: रूट-नॉट निमेटोड (मेलोइडोगाइन इनकॉग्निटा) से कम गाँठें निर्मित हुई।
  • कवक रोगजनक: एक्ससेरोहिलम टर्सिकम (Exserohilum Turcicum) के प्रति प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि देखी गई।
  • विषाणु रोग: चावल ‘ब्लैक-स्ट्रिप्ड ड्वार्फ’ वायरस (Black-Streaked Dwarf Virus- RBSDV) का प्रसार कम हुआ।

व्यापक निहितार्थ

  • वृद्धि-रक्षा संतुलन: पौधे संसाधनों का आवंटन या तो सुरक्षा (कीटों से) या वृद्धि (उपज) के लिए करते हैं। लिनालूल सिग्नलिंग (Linalool Signalling) इस संतुलन का मध्यस्थ है।
  • किसान की भूमिका: कीट संबंधी खतरों की व्यापक जानकारी रखने वाले किसान, ‘लिनालूल सिग्नलिंग’ को बाहरी रूप से नियंत्रित कर सकते हैं।
  • पौधों में सुधार: पौधों को इस तरह से संशोधित किया जा सकता है कि:-
    • कम कीट प्रादुर्भाव वाले लिनालूल सिग्नलिंग की उपेक्षा करना → अधिक उत्पादकता।
    • अधिक कीड़ों वाले वातावरण में तुरंत प्रतिक्रिया देना → फसल की कम हानि।
  • सतत् खेती: लिनालूल सिग्नलिंग के उपयोग से रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाई जा सकती है तथा यह उच्च घनत्व वाली खेती प्रणालियों के प्रजनन को समर्थन प्रदान कर सकता है।

मकई के बारे में (Zea mays)

  • मूल स्थान: इसकी उत्पत्ति टीओसिन्टे (Teosinte) नामक एक जंगली घास से हुई है, जिसे लगभग 9,000 वर्ष पूर्व मेसोअमेरिका में उपयोग में लाया गया था।
  • वैश्विक महत्त्व: इसकी उच्च उपज क्षमता के कारण इसे ‘अनाज की रानी’ के रूप में जाना जाता है।
  • उपयोग: इसे पशु आहार, बायोफ्यूल और औद्योगिक कच्चे माल (स्टार्च, एल्कोहल, स्वीटनर, प्लास्टिक) के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • भारत में स्थिति
    • 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत में लाया गया।
    • भारत मक्का उत्पादन में विश्व स्तर पर पाँचवें स्थान पर और 14वाँ सबसे बड़ा निर्यातक है।
    • खरीफ और रबी दोनों मौसमों में उगाई जाती है; प्रमुख राज्यों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश शामिल हैं।
    • उत्पादन और क्षेत्रफल (वर्ष 2023-24, तीसरा अग्रिम अनुमान)
      • उत्पादन: 35.67 मिलियन टन (MT)
      • क्षेत्र: 9.96 मिलियन हेक्टेयर
    • औसत उत्पादकता: भारत में यह लगभग 3.1 टन/हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत (लगभग 5.7 टन/हेक्टेयर) से कम है।
  • कृषि-जलवायु संबंधी आवश्यकताएँ
    • उच्च प्रकाश संश्लेषण क्षमता वाला एक उष्णकटिबंधीय पौधा है।
    • 21-27°C तापमान वाली गर्म, नम जलवायु में सर्वाधिक वृद्धि करता है।
    • 50-90 सेमी. वर्षा की आवश्यकता होती है, जो अच्छी तरह से वितरित हो।
    • उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ और दोमट मृदा में अच्छा प्रदर्शन करता है।
  • चुनौतियाँ: बड़े पैमाने पर एकल-कृषि कीटों और बीमारियों के प्रति संवेदनशील होती है।
    • जलवायु परिवर्तन से जोखिम और बढ़ गया है, अनुमानों के अनुसार 21वीं सदी के अंत तक वैश्विक रूप से मकई की उत्पादकता में 24% तक की गिरावट आ सकती है।

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