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भारत में गठबंधन सरकार

Lokesh Pal June 10, 2024 05:15 359 0

संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance- NDA) ने केंद्र में लगातार तीसरी बार ऐतिहासिक कार्यकाल के लिए सत्ता में वापसी की है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) स्वयं 272 के बहुमत के आँकड़े से पीछे रह गई है, अतः वह अपने सहयोगी दलों के समर्थन से गठबंधन सरकार का निर्माण करेगी।

संबंधित तथ्य 

  • वर्ष 1991 के बाद से भारत के आर्थिक इतिहास पर नजर डालने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि गठबंधन सरकारों ने कुछ सबसे साहसिक और दूरदर्शी आर्थिक सुधार किए हैं, जिन्होंने भारत के पुनरुत्थान की नींव रखी।

भारत में गठबंधन सरकार 

  • परिचय: गठबंधन सरकार वह होती है, जिसमें कई राजनीतिक दल एक साथ आते हैं और अक्सर उस पार्टी का प्रभुत्व कम कर देते हैं, जिसने सबसे अधिक सीटें जीती हों।
    • भारत की 71 वर्ष की चुनावी यात्रा में देश में 32 वर्ष तक गठबंधन सरकार का दौर रहा है।
    • 10 वर्ष के अंतराल के बाद गठबंधन की राजनीति वापस आई है और साथ ही ‘गठबंधन धर्म’ भी वापस आ जाएगा, जो कि भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा गढ़ा गया शब्द है।
      • गठबंधन धर्म का मतलब गठबंधन सहयोगियों को उचित सम्मान देना है।

  • विशेषताएँ
    • गठबंधन सरकार का तात्पर्य कम-से-कम दो साझेदारों के अस्तित्व से है।
    • गठबंधन की राजनीति स्थिर नहीं बल्कि गतिशील होती है, क्योंकि गठबंधन के घटक और समूह विघटित हो जाते हैं और नए समूह बनाते हैं।
    • गठबंधन राजनीति की पहचान विचारधारा नहीं बल्कि व्यावहारिकता है।
  • वर्गीकरण
    • चुनाव पूर्व गठबंधन: यह काफी लाभकारी है क्योंकि यह राजनीतिक पार्टियों को संयुक्त घोषणा-पत्र के आधार पर मतदाताओं को लुभाने के लिए एक साझा मंच प्रदान करता है।
    • चुनाव पश्चात् गठबंधन: यह घटकों को राजनीतिक शक्ति साझा करने और सरकार चलाने में सक्षम बनाता है।
  • केंद्र में पहली गठबंधन सरकार: स्वतंत्र भारत में वर्ष 1977 में आपातकाल के ठीक बाद पहली बार राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र में गठबंधन सरकार का गठन किया था।
    • भारतीय जनसंघ (भाजपा का पूर्ववर्ती नाम) सहित 11 राजनीतिक दलों ने मिलकर जनता सरकार बनाई। यह गठबंधन वर्ष 1979 तक सफलतापूर्वक चला।
    • भारत में, जहाँ लोग तीन दशकों से खंडित जनादेश दे रहे हैं, गठबंधन की राजनीति आदर्श रही है। 1980, 90 के दशक और इस सदी के पहले दशक के अधिकांश समय में, किसी भी एक राजनीतिक दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था।
  • गठबंधन: ‘गठबंधन’ शब्द लैटिन शब्द ‘कोएलिशन’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘एक साथ बढ़ना’।
    • इस प्रकार, तकनीकी रूप से, गठबंधन का अर्थ है हिस्सों को एक निकाय या संपूर्ण रूप में एकजुट करने का कार्य। राजनीतिक दृष्टि से गठबंधन का अर्थ अलग-अलग राजनीतिक दलों का एक साथ आना है।
  • गठबंधन निर्माण: आधुनिक संसदों में गठबंधन आम तौर पर तब होता है, जब कोई भी एक राजनीतिक दल बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है।
    • दो या दो से अधिक दल, जिनके पास बहुमत प्राप्त करने के लिए पर्याप्त निर्वाचित सदस्य हैं, तब एक सामान्य कार्यक्रम पर सहमत होने में सक्षम हो सकते हैं, जिसमें उनकी व्यक्तिगत नीतियों के साथ बहुत अधिक कठोर समझौते की आवश्यकता नहीं होती है और वे सरकार बनाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं।
    • गठबंधन सरकारें इसलिए बनती हैं क्योंकि शायद ही कभी कोई राजनीतिक दल अपनी क्षमता के आधार पर सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्या में सीटें जीत पाता है।


  • भारत में पहली: भारत में अपना पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाली पहली गठबंधन सरकार वर्ष 1999 से वर्ष 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार थी।
  • निहितार्थ: हालाँकि कुछ लोगों का कहना है कि गठबंधन सरकारें अधिक समावेशी नीतियाँ बनाती हैं, वहीं अन्य लोगों का मानना ​​है कि गठबंधन सरकारें नीति निर्माण में बाधाएँ डालती हैं।
    • मोंटेक सिंह अहलूवालिया (पूर्व योजना आयोग के उपाध्यक्ष) के शब्दों में, गठबंधन सरकार कमजोर सुधारों के लिए एक मजबूत आम सहमति है।

भारत में गठबंधन सरकारों का गठन

  • मोरारजी देसाई (मार्च 1977-जुलाई 1979): भारत में पहली बड़ी गठबंधन सरकार का उदय जनता पार्टी के रूप में हुआ। वर्ष 1977 में, विपक्षी दलों के गठबंधन जनता पार्टी ने मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाकर सत्ता सँभाली। 
  • चौधरी चरण सिंह (जुलाई 1979-जनवरी 1980): उन्होंने 28 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री का पद सँभाला।
    • वह भारतीय क्रांति दल के संस्थापक और पूर्व गृह मंत्री थे।
    •  हालाँकि, उनका कार्यकाल 23 दिनों तक ही चला।
    • वह अब तक के एकमात्र भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान संसद सत्र का सामना नहीं किया
  • वी. पी. सिंह (दिसंबर 1989 – नवंबर 1990): वर्ष 1989 में, जनता दल के विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन सत्ता में आया, वर्ष 1990 में चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल (समाजवादी) प्रशासन सत्ता में आया।
  • चंद्रशेखर (नवंबर 1990 – जून 1991): कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाकर, चंद्रशेखर ने 10 नवंबर, 1990 को प्रधानमंत्री का पद सँभाला।
  • एच. डी. देवेगौड़ा (जून 1996 – अप्रैल 1997): उन्होंने 2 जून, 1996 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। कांग्रेस ने ‘संयुक्त मोर्चा’ के नाम से जानी जाने वाली इस गठबंधन सरकार को बाहरी समर्थन दिया।
  • इंद्र कुमार गुजराल (अप्रैल 1997 – मार्च 1998): 30 मार्च, 1997 को कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।
    • राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, एच. डी. देवेगौड़ा प्रशासन में पूर्व विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल उत्तराधिकारी के रूप में उभरे।
    • 28 नवंबर, 1997 को, कांग्रेस ने गुजराल प्रशासन से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे प्रधानमंत्री के रूप में गुजराल का सात महीने का कार्यकाल समाप्त हो गया।
  • अटल बिहारी बाजपेई (मार्च 1998 – मई 2004): भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सत्ता में आया, वर्ष 1998 से वर्ष 2004 तक अटल बिहारी बाजपेई प्रधानमंत्री रहे। 
  • मनमोहन सिंह (मई 2004 – मई 2014): कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (United Progressive Alliance-UPA), जिसमें वर्ष 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे।

पिछली गठबंधन सरकारों द्वारा लाए गए उल्लेखनीय सुधार

  • पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार
    • आर्थिक उदारीकरण: लाइसेंस-परमिट राज को हटाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिए खोल दिया गया।
    • WTO सदस्यता: भारत विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया।
  • एच. डी. देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार
    • ड्रीम बजट: इस सरकार का बजट आज भी ‘ड्रीम बजट’ के नाम से जाना जाता है। इसने भारतीय करदाताओं पर भरोसा जताया और कर दरों (व्यक्तिगत आयकर, कॉर्पोरेट कर और सीमा शुल्क दोनों) में कटौती की।
  • अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार
    • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (Fiscal Responsibility & Budget Management- FRBM) कानून: इसने राजकोषीय शुद्धता के लिए FRBM कानून तैयार किया और सरकार की विवेकपूर्ण सीमा के भीतर उधार लेने की क्षमता को सीमित कर दिया। 
    • घाटे में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Public Sector Undertakings- PSU) का विनिवेश: इसने घाटे में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को विनिवेश की दिशा में आगे बढ़ाया।
    • ग्रामीण बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी: इसने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया 
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह वर्ष 2000 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम भी लाया गया, जिसने भारत में आज के ई-कॉमर्स दिग्गज की नींव तैयार की।
  • मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार
    • अधिकार आधारित दृष्टिकोण: इसने अधिकार आधारित दृष्टिकोण के अंतर्गत कई सुधार लाए, जो किसी व्यक्तिगत नेता की व्यक्तिगत गारंटी से कहीं अधिक मजबूत थे।
      • सूचना का अधिकार अधिनियम, जिसने भारत के लोकतंत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया।
      • भोजन का अधिकार, जिसने सुनिश्चित किया कि कोई भी भारतीय भूखा न सोए।
    • मनरेगा: यह सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) लेकर आई, जिसने ग्रामीण गरीबों को न्यूनतम रोजगार उपलब्ध कराया।
    • ईंधन की कीमतों और अन्य का विनियमन: इसने पद छोड़ने से पहले ईंधन की कीमतों को भी विनियमन मुक्त कर दिया था और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के साथ-साथ आधार तथा GST पर भी कार्य शुरू कर दिया था।

गठबंधन सरकारों के लाभ

  • आर्थिक विकास: गठबंधन सरकार उच्च आर्थिक विकास हासिल करने में मदद करती है।
    • BJP के नेतृत्व वाली बहुमत वाली सरकार के 10 वर्ष की अवधि के लिए औसत विकास दर 6% थी, जिसमें कोविड-संबंधी व्यवधानों के बीच वित्त वर्ष 2021 में अर्थव्यवस्था में आई 5.8% की गिरावट भी शामिल है।
    • वर्ष 2014 में भाजपा सरकार से पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने अपने पाँच वर्षों में 6.7% की वृद्धि हासिल की थी तथा अपने पहले कार्यकाल के पिछले पाँच वर्षों में 6.9% की वृद्धि हासिल की थी।
      • UPA के 10 वर्ष के शासन के दौरान चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 6.8% थी, जो भारत के इतिहास में सबसे तीव्र थी।
    • वर्ष 1991 में जब पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस ने जनता दल के साथ अल्पमत गठबंधन बनाया था, तथा वर्ष 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA अपने पूरे पाँच साल के कार्यकाल के लिए सत्ता में लौटी थी, दोनों के बीच विकास दर औसतन 5.6% रही थी।
  • विविध हितों का समायोजन: गठबंधन सरकारों में, अलग-अलग एजेंडे और प्राथमिकताओं वाले कई राजनीतिक दल मिलकर सरकार बनाते हैं। यह विविधता सरकार के भीतर विभिन्न सामाजिक, क्षेत्रीय और वैचारिक समूहों के प्रतिनिधित्व की अनुमति देती है।
    • परिणामस्वरूप, गठबंधन सरकारें विविध जनसंख्या की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने तथा शासन में समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए बेहतर ढंग से सक्षम हो सकती हैं।
      • उदाहरण: संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार (वर्ष 2004-2014) में DMK, NCP, तथा RJD, जैसी पार्टियाँ शामिल थीं, जो विभिन्न क्षेत्रों और हितों का प्रतिनिधित्व करती थीं।
  • नियंत्रण और संतुलन: कानून पारित करने और नीतियों को लागू करने के लिए गठबंधन सहयोगियों के बीच आम सहमति बनाने और सहयोग की आवश्यकता होती है।
    • राजनीतिक दलों के बीच पारदर्शिता, जवाबदेही और संवाद को बढ़ावा देना, जिससे अधिक जवाबदेह और उत्तरदायी शासन में योगदान मिल सके।
    • उदाहरण: वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार (वर्ष 1989-1990) एक गठबंधन थी, जो उस समय प्रचलित कांग्रेस विरोधी भावना का प्रतिनिधित्व करती थी।
  • आम सहमति आधारित राजनीति: सरकार की नीतियों के लिए सभी गठबंधन सहयोगियों की सहमति की आवश्यकता होती है। इसलिए, गठबंधन सरकार आम सहमति आधारित राजनीति को बढ़ावा देती है।
    • गठबंधन सरकारों ने बहुत कठिन सुधार किए, 73वें और 74वें संशोधन से लेकर राज्य सरकारों के माध्यम से पंचायती राज और नगरपालिका प्रणाली लाई गई, और यह NDA सरकार के शुरुआती वर्षों तक भी जारी रहा।
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA सरकार (वर्ष 1999-2004) ने विदेश नीति और आर्थिक सुधार जैसे प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनाई।
  • संघीय ढाँचे को मजबूत बनाना: गठबंधन की राजनीति भारतीय राजनीतिक प्रणाली के संघीय ढाँचे को मजबूत बनाती है, क्योंकि गठबंधन सरकार क्षेत्रीय माँगों के प्रति अधिक संवेदनशील और उत्तरदायी होती है।
    • उदाहरण: वी. पी. सिंह की सरकार ने केंद्र-राज्य संघवाद को बेहतर बनाने के लिए अंतरराज्यीय परिषद की स्थापना की।
      • यह पाया गया कि अंतरराज्यीय परिषद ने तब कार्य किया जब क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख भूमिका थी।
  • निरंकुश शासन की संभावना कम हो जाती है: गठबंधन सरकार सरकारी संचालन में किसी एक राजनीतिक दल के प्रभुत्व को कम कर देती है। निर्णय लेने में गठबंधन के सभी सदस्यों की भागीदारी शामिल होती है।
    • उदाहरण: जनता पार्टी सरकार (वर्ष 1977-1979) ने कांग्रेस के एकल-दलीय प्रभुत्व को समाप्त कर दिया
    • वर्ष 2014 में तेलंगाना राज्य बनाने का UPA सरकार का निर्णय उसके गठबंधन सहयोगी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के दबाव का परिणाम था।

गठबंधन सरकारों के दोष

  • अस्थिरता: गठबंधन सरकारें अधिकतर अस्थिर होती हैं या अस्थिरता की ओर प्रवृत्त होती हैं। गठबंधन के सदस्यों के बीच मतभेद सरकार के पतन का कारण बन सकते हैं।
    • उदाहरण: छह बार गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपा नेता को प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया है, लेकिन वे पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हैं। 
      • कांग्रेस पार्टी द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण चौधरी चरण सिंह सरकार (1979) केवल कुछ महीनों तक ही चल पाई थी।
  • प्रधानमंत्री का सीमित नेतृत्व: गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री का नेतृत्व सीमित होता है, क्योंकि महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले प्रधानमंत्री को गठबंधन सहयोगियों से परामर्श करना होता है।
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (2004-2014) को अक्सर प्रमुख नीतिगत मामलों पर DMK और तृणमूल कांग्रेस जैसे गठबंधन सहयोगियों से परामर्श करना पड़ता था और उनके विचारों को ध्यान में रखना पड़ता था।
  • मंत्रिमंडल की भूमिका को कमतर आँकना: गठबंधन सहयोगियों की समन्वय समिति एक ‘सुपर-कैबिनेट’ के रूप में कार्य करती है, जिससे प्रशासनिक तंत्र के संचालन में मंत्रिमंडल की भूमिका कम हो सकती है।
    • उदाहरण: UPA सरकार के दौरान, सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (National Advisory Council- NAC) को एक समानांतर सत्ता केंद्र के रूप में देखा जाता था, जो मंत्रिमंडल की भूमिका को कमजोर कर रहा था।
  • छोटी पार्टियाँ ‘किंग-मेकर’ की भूमिका निभा रही हैं: छोटे गठबंधन सहयोगी व्यापक माँगें करके असंगत प्रभाव डाल सकते हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 1996 में हरियाणा विकास पार्टी ने मात्र एक सांसद के साथ भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को समर्थन देकर सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय कारकों को आगे ला रहे हैं: क्षेत्रीय दलों के नेता राष्ट्रीय निर्णय लेने में क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य का योगदान करते हैं, केंद्रीय कार्यकारिणी पर उनकी प्राथमिकताओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने का दबाव डालते हैं। 
    • उदाहरण: UPA सरकार में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने अक्सर केंद्र सरकार पर श्रीलंकाई तमिलों से संबंधित मुद्दों पर अनुकूल रुख अपनाने के लिए दबाव डाला।
  • विफलताओं के लिए जिम्मेदारी का अभाव: गठबंधन सरकारें अक्सर दोषारोपण में उलझकर प्रशासनिक विफलताओं और चूक के लिए जवाबदेही से बचती हैं, इस प्रकार सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों जिम्मेदारियों से बचती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2011 के दौरान 2G स्पेक्ट्रम घोटाले, DMK जैसे UPA सरकार के गठबंधन सहयोगियों ने खामियों के लिए कांग्रेस पार्टी को दोषी ठहराते हुए, घोटाले से स्वयं को दूर करने की कोशिश की।
  • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: पिछले तीन दशकों के आँकड़े दर्शाते हैं कि गठबंधन सरकारों को मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने में संघर्ष करना पड़ा है।
    • उदाहरण: पिछले दशक में जब भाजपा के पास पूर्ण बहुमत था, औद्योगिक श्रमिकों के लिए मुद्रास्फीति 5.4% थी, लेकिन UPA के दूसरे कार्यकाल के दौरान यह 10.3% और पहले कार्यकाल में 6% थी
    • जबकि वर्ष 1999 से 2004 के बीच वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में यह कम थी, वर्ष 1991 से 1999 के बीच औद्योगिक श्रमिक मुद्रास्फीति 9.6% थी।

भारत में गठबंधन पर सिफारिशें

  • पुंछी आयोग की सिफारिशें: इसने राज्यपालों के लिए त्रिशंकु विधानसभाओं में मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति हेतु स्पष्ट नियम स्थापित किए और ये राष्ट्रपति के लिए भी हैं।
    • यदि चुनाव पूर्व गठबंधन है, तो उसे एक राजनीतिक दल माना जाना चाहिए। यदि ऐसा गठबंधन बहुमत प्राप्त करता है, तो राज्यपाल ऐसे गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेगा।
    • यदि किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो राज्यपाल को निम्नलिखित क्रम में मुख्यमंत्री का चयन करना चाहिए:
      • चुनाव पूर्व गठबंधन करने वाले दलों के समूह की संख्या सबसे अधिक है।
      • सबसे बड़ी पार्टी दूसरों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा करती है।
      • चुनाव के बाद का गठबंधन जिसमें सभी साझेदार सरकार में शामिल होंगे।
      • चुनाव के बाद का गठबंधन, जिसमें कुछ पार्टियाँ सरकार में शामिल होती हैं और बाकी, जिनमें निर्दलीय भी शामिल हैं, सरकार को बाहर से समर्थन देते हैं।
  • सरकारिया आयोग: इसने पाया कि भारतीय संघवाद में समस्याएँ केंद्र और राज्यों के बीच परामर्श और संवाद की कमी से आईं।
    • यह गठबंधन सरकार की भूमिका को दर्शाता है जिसमें क्षेत्रीय दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • न्यायमूर्ति एम. एन. वेंकटचलैया आयोग की रिपोर्ट: इसमें स्थायी गठबंधन का विचार सुझाया गया है और कहा गया है कि यह सबसे अच्छा होगा कि भारत में सभी सरकारें अनिवार्य रूप से 50 से अधिक वोट शेयर हासिल करें।
    • इसका अर्थ यह था कि केवल 50% से अधिक वोट शेयर वाली सरकार ही शासन करने के लिए आवश्यक वैधता प्राप्त कर सकेगी।

निष्कर्ष

गठबंधन सरकारों को सभी को साथ लेकर चलने की आवश्यकता होती है और उनका रुझान अधिक उदार, सहमतिपूर्ण और संघवाद के प्रति अधिक सम्मानजनक होना चाहिए। भारत में गठबंधन सरकारों ने, अपनी चुनौतियों के बावजूद, ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण सुधार किए हैं और विविध हितों को संतुलित किया है, जिससे मजबूत आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति में योगदान मिला है।

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