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पराली जलाने का पूर्ण उन्मूलन

Lokesh Pal May 14, 2025 05:00 121 0

संदर्भ

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की प्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए 19 सूत्री दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) के बारे में

  • वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • अधिकार क्षेत्र और कवरेज: CAQM राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और उसके आस-पास के क्षेत्रों को कवर करता है।
    • यह उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) की वायु गुणवत्ता को सीधे प्रभावित करते हैं।
    • इसका कार्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आस-पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण नियंत्रण संबंधी रणनीति तैयार करना है।

पराली जलाने के बारे में

  • परिभाषा: पराली जलाने में चावल और गेहूँ की कटाई के बाद बचे हुए फसल अवशेष (भूसे) को आग लगाना शामिल है।
    • किसान इस विधि का उपयोग अगले फसल चक्र के लिए खेत को जल्दी से तैयार करने के लिए करते हैं।
  • पराली जलाने के कारण: यह खेतों को साफ करने का एक किफायती और आसान तरीका है।
    • कीटों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • पर्यावरणीय परिणाम: वायु में बड़ी मात्रा में धुआँ और पार्टिकुलेट मेटर उत्सर्जित होते हैं।
    • वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता उत्तरी भारत के राज्य है।
      • यह अनुमान लगाया गया है कि एक टन धान की पराली जलाने से 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलोग्राम CO2, 199 किलोग्राम राख और 2 किलोग्राम SO2 उत्सर्जित होती है।
    • इससे मृदा पोषक तत्त्वों और कार्बनिक पदार्थों की हानि होती है, साथ ही मृदा की भौतिक गुणवत्ता भी खराब होती है, जिससे दीर्घकालिक उर्वरता कम हो जाती है।
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: धुएँ के कारण श्वसन और हृदय संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • बच्चों, वृद्धों और पहले से ही किसी बीमारी से पीड़ित लोगों जैसे संवेदनशील समूहों को सर्वाधिक जोखिम होता है।

फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) के बारे में

  • फसल अवशेष प्रबंधन का तात्पर्य फसल कटाई के बाद खेतों में बचे फसल अवशेषों (जैसे पुआल और ठूँठ) के सतत् प्रबंधन और उपयोग से है।
    • इसका उद्देश्य इन्हें खुले में जलाने से बचना है और इसके स्थान पर बचे हुए बायोमास के प्रबंधन के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देना है।
  • इन-सीटू CRM तकनीक (खेत के भीतर अवशेषों का प्रबंधन)
    • हैप्पी सीडर: पराली को हटाए बिना बीज बोने की प्रक्रिया होती है।
    • मल्चिंग: फसल अवशेषों को मृदा पर एक सुरक्षात्मक परत के रूप में छोड़ दिया जाता है।
  • एक्स-सीटू CRM तकनीक (क्षेत्र के बाहर अवशेषों का उपयोग)
    • बायोमास आधारित विद्युत उत्पादन (बॉयलर या बायोमास संयंत्रों में भूसे का उपयोग करके)।
    • थर्मल पॉवर प्लांट या ईंट भट्टों में ‘को-फायरिंग’ के लिए भूसे का पेलेटाइजेशन।
    • पशु चारा, खाद निर्माण या औद्योगिक उपयोग।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा जारी निर्देशों के बारे में

  • पराली सुरक्षा बल और प्रवर्तन: जिला/ब्लॉक स्तर पर एक समर्पित पराली सुरक्षा बल का गठन करना।
    • पुलिस, कृषि और नागरिक अधिकारियों से बना पराली सुरक्षा बल, पराली जलाने की घटनाओं पर बारीकी से निगरानी रखेगा तथा देख-रेख और सुरक्षा करेगा।
    • रात में पराली जलाने और सेटेलाइट निगरानी से बचने के लिए शाम को गश्त बढ़ाना।
    • भूमि अभिलेखों में ‘लाल प्रविष्टियों’ (Red Entries) और पर्यावरण क्षतिपूर्ति जुर्माने के साथ उल्लंघनों को दंडित करना।
  • खेतों की मैपिंग और अधिकारियों को टैग करना: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को प्रत्येक गाँव के प्रत्येक खेत का मानचित्र बनाना होगा और
    • प्रत्येक जिले में 50 से अधिक किसानों की निगरानी के लिए एक नोडल अधिकारी को टैग करना होगा।
  • मशीनरी समीक्षा और खरीद: मौजूदा फसल-अवशेष-प्रबंधन (CRM) मशीनों की व्यापक समीक्षा और अंतर विश्लेषण करना।
    • अगस्त 2025 तक नई CRM मशीनों की खरीद पूरी करना।
  • किसानों के लिए CRM मशीन की पहुँच: कृषि-सहकारी या सरकारी केंद्रों के माध्यम से लघु और सीमांत किसानों के लिए CRM मशीनों के लिए निःशुल्क सुविधा सुनिश्चित करना।
    • कटाई के शेड्यूल के अनुरूप इष्टतम मशीन उपलब्धता की गारंटी देना।
  • तकनीक-संचालित कार्यान्वयन: मशीनों की वास्तविक समय की योजना, बुकिंग और उपयोग के लिए IT उपकरण विकसित करना।
    • वास्तविक समय में फसल अवशेष डेटा और निगरानी के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित करना।
  • भूसा भंडारण और आपूर्ति शृंखला: जिला-स्तरीय आपूर्ति शृंखला योजनाएँ बनाना।
    • भूसे की गाँवों के भंडारण के लिए सरकारी/पंचायत भूमि की पहचान करना।
    • अवशेष प्रबंधन के लिए बेलर, रेकर और अन्य उपकरणों का उपयोग करना।
  • आर्थिक प्रोत्साहन: पंजाब और उत्तर प्रदेश में धान की पराली के लिए एक समान खरीद मूल्य तय किया जाए, ताकि पराली के संग्रह और पुनः उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सके।
  • धान की पराली का औद्योगिक उपयोग: औद्योगिक इकाइयों में भाप उत्पन्न करने के लिए धान की पराली पर आधारित पायलट बॉयलर स्थापित किया जाएँ।
    • ईंट भट्टों में धान की पराली के छर्रों के उपयोग को बढ़ावा देना, जैसा कि थर्मल पॉवर प्लांट (TPP) में किया जाता है।
  • नागरिक सहभागिता और निगरानी: नागरिकों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से पराली जलाने की घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • बाह्य क्षेत्र आधारित (Ex-Situ) पराली प्रबंधन का समर्थन करने वाली सरकारी योजनाओं को बढ़ावा देना।
  • सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी: राज्यों को कार्यान्वयन की निगरानी के लिए समितियाँ बनानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायलय के निर्देशों के अनुसार, जून 2025 से CAQM को मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।

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