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DPDP अधिनियम की धारा 44(3) से संबंधित चिंताएँ

Lokesh Pal March 28, 2025 02:53 52 0

संदर्भ

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (Digital Personal Data Protection Act-DPDP) के कुछ प्रावधानों ने विशेष रूप से सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम, 2005 पर इसके प्रभाव के संबंध में महत्त्वपूर्ण बहस छेड़ दी है।

संबंधित तथ्य

  • विवाद का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा DPDP अधिनियम की धारा 44(3) है, जिससे पारदर्शिता और सूचना तक सार्वजनिक पहुँच पर इसके प्रभाव के संबंध में चिंताएँ पैदा हो रही हैं।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 के बारे में

  • पृष्ठभूमि: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017 के ऐतिहासिक मामले में भारतीय संविधान के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
    • वर्ष 2023 में भारत ने व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम लागू किया।
  • DPDP अधिनियम का उद्देश्य डिजिटल व्यक्तिगत डेटा प्रोसेसिंग को विनियमित करना है, जिसमें व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों को वैध प्रोसेसिंग आवश्यकताओं के साथ संतुलित किया जाता है।
  • हालाँकि, मौजूदा RTI अधिनियम के साथ अधिनियम का अतिव्यापन सार्वजनिक सूचना तक पहुँच के बारे में सवाल उठाता है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 की विशेषताएँ

  • प्रयोज्यता: भारत में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा का प्रसंस्करण डिजिटल तथा गैर-डिजिटल दोनों रूपों में एकत्र किए गए डेटा या बाद में डिजिटल किए गए डेटा पर लागू होता है।
    • भारत के बाहर व्यक्तिगत डेटा का प्रसंस्करण तभी लागू होता है, जब इसमें भारत के भीतर वस्तुओं या सेवाओं की प्रस्तुति शामिल हो।
  • सूचित सहमति: व्यक्तिगत डेटा को केवल डेटा प्रिंसिपल की सहमति से वैध उद्देश्यों के लिए संसाधित किया जा सकता है, जो किसी भी समय सहमति वापस ले सकता है।
  • भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड (Data Protection Board of India- DPBI): केंद्र सरकार अनुपालन की निगरानी, ​​दंड आरोपित करने, डेटा उल्लंघन के मामले में डेटा न्यासी को निर्देश देने और शिकायतों की सुनवाई सहित प्रमुख कार्यों के साथ DPBI की स्थापना करती है।
  • डेटा प्रिंसिपल के अधिकार और कर्तव्य: डेटा प्रिंसिपल को प्रसंस्करण के बारे में जानकारी प्राप्त करने, व्यक्तिगत डेटा में सुधार करने, शिकायत निवारण और मृत्यु या अक्षमता के मामले में अधिकारों का प्रयोग करने के लिए किसी व्यक्ति को नामित करने का अधिकार है।
  • डेटा न्यासी के दायित्व: डेटा न्यासी को डेटा की सटीकता और पूर्णता सुनिश्चित करनी चाहिए, उचित सुरक्षा उपायों को लागू करना चाहिए, उल्लंघन के मामले में DPBI और प्रभावित व्यक्तियों को सूचित करना चाहिए तथा जब उद्देश्य पूरा हो जाए एवं कानूनी उद्देश्यों के लिए प्रतिधारण आवश्यक न हो तो व्यक्तिगत डेटा को समाप्त कर देना चाहिए।
  • महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्युसरी (Significant Data Fiduciaries- SDF): केंद्र सरकार संसाधित किए गए डेटा की मात्रा और संवेदनशीलता, डेटा प्रिंसिपल के अधिकारों के लिए जोखिम, भारत की संप्रभुता और अखंडता पर संभावित प्रभाव, राज्य की सुरक्षा, चुनावी लोकतंत्र और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए जोखिम जैसे कारकों के आधार पर किसी भी डेटा फिड्युसरी को SDF के रूप में अधिसूचित कर सकती है।
    • SDF के पास अतिरिक्त दायित्व भी हैं, जिनमें डेटा संरक्षण अधिकारी और स्वतंत्र डेटा लेखा परीक्षक की नियुक्ति करना तथा प्रभाव आकलन करना शामिल है।

DPDP अधिनियम की धारा 44(3)

  • यह धारा 44(3) RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) में संशोधन करती है, जिससे किस तरह की जानकारी का खुलासा किया जा सकता है, इसका दायरा सीमित हो जाता है।
  • मूल प्रावधान व्यक्तिगत जानकारी को तब तक रोके रखने की अनुमति देता है, जब तक कि सार्वजनिक हित में इसे जारी करना उचित न हो।
  • DPDP अधिनियम के संशोधन के तहत, यह खंड अधिक प्रतिबंधात्मक हो जाता है, जो संभावित रूप से अधिक व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक जाँच से बचाता है।

RTI  अधिनियम के निहितार्थ

  • RTI अधिनियम पारदर्शिता की आधारशिला है, जो नागरिकों को सूचना तक पहुँच प्रदान करता है।
  • DPDP अधिनियम की धारा 44(3) के तहत संशोधन व्यक्तिगत सूचना प्रकटीकरण के लिए छूट को व्यापक बनाकर इस पहुँच को सीमित कर सकता है।
  • यह परिवर्तन लोक सेवकों के बारे में आवश्यक जानकारी, जैसे कि संपत्ति प्रकटीकरण, को गोपनीय रहने की अनुमति देकर RTI अधिनियम की प्रभावशीलता को कमजोर करने का जोखिम उठाता है।
  • चिंताएँ: DPDP अधिनियम की धारा 44(3) सार्वजनिक उत्तरदायित्व को कम करती है और सूचित नागरिकों तथा लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण जानकारी को अवरुद्ध करती है।
    • चिंताएँ विशेष रूप से इस बात पर केंद्रित हैं कि इन परिवर्तनों का उपयोग गोपनीयता संरक्षण की आड़ में महत्त्वपूर्ण जानकारी तक पहुँच को सीमित करने के लिए कैसे किया जा सकता है।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005

  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना माँगने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।
  • यह 12 अक्टूबर, 2005 को अधिनियमित किया गया था और 13 अक्टूबर, 2005 को पूर्ण रूप से लागू हुआ।
  • RTI अधिनियम सरकारी अभिलेखों तक पहुँच सुनिश्चित करके, भ्रष्टाचार को कम करके और निर्णय लेने में जनता की भागीदारी को बढ़ाकर लोकतंत्र को मजबूत करता है।
  • प्रयोज्यता: कुछ छूट प्राप्त संगठनों (जैसे, सुरक्षा एजेंसियों) को छोड़कर, केंद्रीय, राज्य और स्थानीय प्राधिकरणों सहित सभी सरकारी निकायों को शामिल करता है।
  • लोक सूचना अधिकारी (Public Information Officers- PIO): नामित अधिकारियों को 30 दिनों के भीतर सूचना प्रदान करनी होगी।
  • छूट: सूचना की कुछ श्रेणियों (जैसे, राष्ट्रीय सुरक्षा, व्यक्तिगत गोपनीयता) को छूट दी गई है।
  • अपील प्रक्रिया: यदि सूचना देने से इनकार किया जाता है या देरी होती है, तो नागरिक केंद्रीय/राज्य सूचना आयोगों तक अपील कर सकते हैं।
  • गैर-अनुपालन के लिए जुर्माना: बिना वैध कारणों के जानकारी उपलब्ध कराने में विफल रहने पर अधिकारियों पर जुर्माना लगाया जा सकता है।

आगे की राह 

  • व्यापक सार्वजनिक परामर्श: RTI अधिनियम पर धारा 44(3) के निहितार्थों पर चर्चा करने के लिए सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से व्यापक दर्शकों को शामिल करना।
    • विविध दृष्टिकोणों को एकत्रित करने तथा एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित करने के लिए कानूनी विशेषज्ञों, RTI कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों सहित हितधारकों को आमंत्रित करना।
  • निगरानी तंत्र को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित करें कि व्यक्तिगत जानकारी के लिए छूट का दुरुपयोग न हो।
    • यूनाइटेड किंगडम का सूचना आयुक्त कार्यालय (ICO) डेटा सुरक्षा कानूनों के अनुपालन की देखरेख करता है, यह सुनिश्चित करता है कि संगठन गोपनीयता आवश्यकताओं को बनाए रखें।
  • सूचना प्रकटीकरण के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश: सार्वजनिक हित और पारदर्शिता बनाम गोपनीयता सुरक्षा निर्धारित करने के मानदंडों को रेखांकित करने वाले विस्तृत दिशा-निर्देश विकसित और प्रसारित करना।
    • यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा सुरक्षा विनियमन (GDPR) डेटा प्रसंस्करण के लिए वैध आधार और सार्वजनिक हित का आकलन करने के मानदंडों के बारे में विशिष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
  • आवधिक समीक्षा और संशोधन: RTI अधिनियम की आवधिक समीक्षा लागू करना, जिसमें संशोधन के प्रावधान हों, यदि पाया जाता है कि कानून सूचना तक सार्वजनिक पहुँच को अनुचित रूप से सीमित करता है।
  • डिजिटल साक्षरता और जागरूकता को बढ़ावा देना: RTI अधिनियम के तहत नागरिक अधिकारों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता और समझ को बढ़ाना।
    • ऑस्ट्रेलिया में, सूचना आयुक्त नागरिकों को गोपनीयता अधिनियम और सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम के तहत उनके अधिकारों को समझने में मदद करने के लिए शैक्षिक अभियान संचालित करते हैं।

निष्कर्ष

गोपनीयता संबंधी अधिकारों और जनता के सूचना के अधिकार के बीच संघर्ष RTI अधिनियम पर बहस के केंद्र में है। धारा 44(3) में प्रस्तावित परिवर्तन इन अधिकारों के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी अधिकार का अनुचित रूप से उल्लंघन न हो। हितधारकों से निरंतर संवाद और जाँच की आवश्यकता होती है, जो इन चिंताओं को दूर करने तथा RTI अधिनियम में निहित पारदर्शिता की भावना को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण होती है।

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