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वैवाहिक अधिकार

Lokesh Pal June 06, 2024 04:21 160 0

संदर्भ

हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने जेल अधिकारियों को एक दोषी को पत्नी के संतान पैदा करने के वैवाहिक अधिकार को पूरा करने के लिए 30 दिनों के लिए पैरोल पर रिहा करने का निर्देश दिया।

संबंधित तथ्य

  • न्यायालय ने इसे एक असाधारण परिस्थिति माना और पति को सामान्य पैरोल की अवधि बढ़ाने की माँग करने की स्वतंत्रता दी, जिस पर जेल प्राधिकारियों को दोषी के पैरोल पर बाहर रहने के दौरान उसके आचरण को देखते हुए विचार करना चाहिए।

वैवाहिक अधिकार

पैरोल

  • पैरोल एक कैदी की सशर्त रिहाई है, जिसने उस अवधि का कुछ हिस्सा जेल में बिताया है जिसके लिए उसे सजा सुनाई गई थी। 
  • रिहाई सशर्त होती है, आमतौर पर व्यवहार के अधीन होती है और एक निश्चित अवधि के लिए अधिकारियों को समय-समय पर रिपोर्ट करने की आवश्यकता होती है। पैरोल को एक सुधारात्मक प्रक्रिया माना जाता है। 
  • यदि सक्षम प्राधिकारी को लगता है कि दोषी को रिहा करना समाज के हित में नहीं होगा, तो भी उसे पैरोल देने से मना किया जा सकता है, भले ही वह पर्याप्त मामला बना ले। 
  • सुनील फूलचंद शाह बनाम भारत संघ (2000) में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि पैरोल सजा के निलंबन के बराबर नहीं है। 
  • भारत निर्वाचन आयोग बनाम मुख्तार अंसारी (2017) मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने घोषणा की कि हिरासत पैरोल को जमानत के विकल्प के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है और इसे लंबे समय तक या दैनिक मुलाकातों के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता है।


  • वैवाहिक अधिकार से तात्पर्य विवाहित होने की स्थिति से उत्पन्न दो व्यक्तियों के बीच पारस्परिक अधिकारों और विशेषाधिकारों से है।
    • इन अधिकारों में साहचर्य, सहायता, आराम, यौन संबंध, स्नेह, संयुक्त संपत्ति अधिकार आदि पारस्परिक अधिकार शामिल हैं।
  • प्रयोज्यता: कानून इन वैवाहिक अधिकारों को विवाह, तलाक आदि से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों और जीवनसाथी को भरण-पोषण और गुजारा भत्ता देने की आवश्यकता वाले आपराधिक कानूनों में मान्यता देता है।
  • मान्यता
    • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 वैवाहिक अधिकारों के एक पहलू को मान्यता देती है तथा पति या पत्नी के अधिकार लागू करने के लिए अदालत जाने की अनुमति देकर इसकी रक्षा करती है। 
    • मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ-साथ तलाक अधिनियम, 1869 में भी इसी तरह के प्रावधान मौजूद हैं, जो पारिवारिक कानून को नियंत्रित करता है।

वैवाहिक मुलाकात 

  • तात्पर्य: जेलों के संदर्भ में, वैवाहिक मुलाकात से तात्पर्य एक कैदी को जेल परिसर में अपने जीवनसाथी के साथ एकांत में कुछ समय बिताने की अनुमति देने की अवधारणा से है।
  • मान्यता: कैदियों के उपचार के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियम, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वार्ता आदि के माध्यम से कैदियों के अधिकारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई है।
    • ऐसे साधनों के माध्यम से कैदियों को जीवन और अंतर्निहित गरिमा के अधिकार की गारंटी प्रदान की जाती है। 
    • इन संधियों में वैवाहिक मुलाकातों सहित पारिवारिक संबंध बनाए रखने का अधिकार शामिल है। 
    • देश भर में अधिकांश जेल अधिनियम और नियम पारिवारिक तथा सामाजिक संबंधों में निरंतरता बनाए रखने के महत्त्व को स्वीकार करते हैं।
  • आवश्यकता: सामन्यत यह तर्क दिया जाता है कि वैवाहिक मुलाकातों से कैदियों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य लाभ, वैवाहिक संबंधों के संरक्षण तथा जेलों में समलैंगिकता और यौन आक्रामकता की दरों में कमी के रूप में सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • यह भी तर्क दिया गया कि वैवाहिक मुलाकात कैदियों के जीवनसाथियों का मौलिक अधिकार है।

संबद्ध न्यायिक विचार

  • सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन, 1979: इसने स्पष्ट किया कि यदि दोषसिद्धि के बाद भी कैदियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उन्हें न्यायालय जाने का अधिकार है।
    • इस मामले ने संविधान के अनुच्छेद-32 और 226 के तहत न्यायिक प्राधिकार की पुष्टि की गई, ताकि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों को निपटाया जा सके।
  • जसवीर सिंह बनाम पंजाब राज्य: उच्च न्यायालय ने माना कि वैवाहिक संबंध का यह अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत कैदियों को प्रतिबंधों के अधीन उपलब्ध है।
    • इस मामले में, हत्या के दोषी और मृत्यु दंड पाए एक जोड़े ने न्यायालय में अपने प्रजनन के अधिकार को लागू करने के लिए याचिका दायर की। कानून के सामने प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या वैवाहिक संबंध और प्रजनन का अधिकार जीवन के अधिकार का अंग है।
  • मेहरराज बनाम राज्य, 2022 का मामला: मद्रास उच्च न्यायालय ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या वैवाहिक अधिकार अनुच्छेद-21 द्वारा प्रदान गारंटीकृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का भाग हैं, यह देखा गया कि कानून का पालन करने वालों और कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए अनुच्छेद-21 के प्रवर्तन में अलग-अलग मानक होने चाहिए।
    • न्यायालय ने कहा कि यद्यपि वैवाहिक मुलाकात को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता, फिर भी कैदी वैवाहिक मुलाकात के लिए छुट्टी लेने के लिए पात्र होगा, यदि इसके लिए ‘बाँझपन उपचार’ जैसे ‘असाधारण कारण’ हों।

रुखमाबाई और वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना

  • डॉ. रुखमाबाई एक भारतीय चिकित्सक और नारीवादी थीं तथा उन्हें औपनिवेशिक भारत में पहली महिला चिकित्सकों में से एक के रूप में जाना जाता है।
  • दादाजी भीकाजी बनाम रुखमाबाई मामला, 1885: इस मामले में वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की अवधारणा को पहली बार कानूनी परीक्षण से गुजरना  पड़ा।
    • रुखमाबाई का विवाह 11 वर्ष  की उम्र में दादाजी भीकाजी से हुआ। हालाँकि, विवाह के बाद वह अपनी विधवा माँ के घर पर ही रहीं। 1885 ई. में, भीकाजी ने “वैवाहिक अधिकारों की बहाली” की माँग की।
    • निर्णय: न्यायमूर्ति ने कहा कि रुखमाबाई एक युवा महिला थी और उसकी शादी बचपन में ही कर दी गई थी, इसलिए उसे मजबूर नहीं किया जा सकता।
    • रुखमाबाई मामला 4 वर्षों तक चलता रहा, जब तक कि 1888 ई. में दादाजी को अदालत के बाहर मुआवजा नहीं मिल गया। यह केस 1891 में  सम्मति आयु अधिनियम (Age of Consent Act) के मसौदे को तैयार करने में सहायक था।

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