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आउटर स्पेस संधि पर UNSC के प्रस्ताव पर विवाद

Lokesh Pal April 29, 2024 06:36 160 0

संदर्भ 

संयुक्त राज्य अमेरिका ने आउटर स्पेस संधि के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को वीटो करने के लिए रूस की आलोचना की है।

संबंधित तथ्य 

  • देशों का मौलिक दायित्व: संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का उद्देश्य परमाणु हथियारों सहित सामूहिक विनाश के हथियारों (WMD) की पृथ्वी की कक्षा में तैनाती को प्रतिबंधित करना है तथा इसके लिए कानूनी बाध्यता की स्थापना करना है।
  • कक्षीय परमाणु हथियार की तैनाती के परिणाम: किसी देश द्वारा पृथ्वी की कक्षा में परमाणु हथियार रखना, आउटर स्पेस संधि का उल्लंघन है, साथ ही यह उपग्रहों द्वारा प्रदान की जाने वाली आवश्यक सेवाओं को भी बाधित कर सकता है।
  • बाहरी अंतरिक्ष में हथियार नियंत्रण को मजबूत करना: यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो राजनीतिक समझौतों और अन्य आवश्यक संधियों जैसे अतिरिक्त उपायों के महत्त्व को रेखांकित किया जा सकता है।
    • ‘आउटर स्पेस’ में किसी भी प्रकार की हथियारों की होड़ को व्यापक रूप से प्रतिबंधित करने के लिए यह कानून आवश्यक है।

आउटर स्पेस (Outer Space)

  • परिचय: पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर का क्षेत्र ‘आउटर स्पेस’ कहलाता है। यह समुद्र तल से लगभग 100 किलोमीटर (62 मील) के ऊपर शुरू होता है। वायुमंडल और आउटर स्पेस को अलग करने वाली काल्पनिक रेखा को कार्मन रेखा (Karman Line) कहा जाता है।
    • आमतौर पर, आउटर स्पेस और ब्रह्मांड शब्द को लगभग समान अर्थों में उपयोग किया जाता है किंतु सूक्ष्म स्तर पर, ‘आउटर स्पेस’ केवल ग्रहों के बीच के क्षेत्र को संदर्भित करता है, जबकि ब्रह्मांड में ग्रहों को भी शामिल किया गया है।

आउटर स्पेस को नियंत्रित करने वाली संयुक्त राष्ट्र की अन्य संधियाँ

  • वर्ष 1968 का बचाव समझौता (Rescue Agreement): संकट में फंसे अंतरिक्ष यात्रियों को बचाने, सहायता पहुँचाने और उन्हें पृथ्वी पर वापस लाने के लिए समझौता।
  • वर्ष 1972 का लाइबिलिटी कन्वेंशन (Liability Convention): इस सम्मेलन के प्रावधानों के तहत, कोई भी देश पृथ्वी की सतह पर अपने अंतरिक्ष साधनों या विमान के कारण होने वाली क्षति के रूप में मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा तथा अंतरिक्ष में अपनी गतिविधियों के कारण संभावित क्षति के लिए उत्तरदायी होगा।
  • वर्ष 1976 का पंजीकरण कन्वेंशन (Registration Convention): इस कन्वेंशन में देशों को अंतरिक्ष साधनों की पहचान में सहायता करने हेतु प्रावधानों का निर्माण किया गया।
  • वर्ष 1979 का चंद्रमा समझौता (Moon Agreement): यह चंद्रमा पर सैन्य अड्डों, प्रतिष्ठानों और किलेबंदी की स्थापना, किसी भी प्रकार के हथियारों के परीक्षण और चंद्रमा पर सैन्य युद्धाभ्यास के संचालन पर रोक लगाता है।

भारत ने उपरोक्त सभी संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं किंतु केवल तीन का अनुसमर्थन किया है। भारत ने चंद्रमा समझौते पर हस्ताक्षर किया है परंतु इसका अनुमोदन नहीं किया है।

आउटर स्पेस संधि, 1967 

  • परिचय: संयुक्त राष्ट्र की ‘आउटर स्पेस संधि’ एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो सदस्य देशों को बाहरी अंतरिक्ष का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए करने हेतु बाध्य करता है।
    • यह चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों सहित बाहरी अंतरिक्ष की खोज एवं उपयोग में देशों की गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
    • भारत ने वर्ष 1982 में इस संधि का अनुमोदन (Ratified) किया था।
  • उद्देश्य: यह संधि मुख्य रूप से बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग को संबोधित करता है और अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों की तैनाती पर रोक लगाता है। इसमें अंतरिक्ष अपशिष्ट एवं अन्य वस्तुओं की पृथ्वी पर वापसी से संबंधित प्रावधान भी शामिल किए गए हैं।
  • अधिदेश: यह मुख्य रूप से अंतरिक्ष में उपस्थित वस्तुओं द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित अन्य संपत्तियों को होने वाले नुकसान से संबंधित है।
    • इस संधि के प्रावधान पृथ्वी पर वस्तुओं के गिरने से होने वाली क्षति को भी संबोधित करते हैं।
  • शासकीय सिद्धांत: यह संधि निम्नलिखित शासकीय सिद्धांतों का निर्धारण करती है-
    • सभी देशों के हित में बाहरी अंतरिक्ष का उपयोग किया जाएगा तथा इस क्षेत्र पर सम्पूर्ण मानव जाति का अधिकार होगा।
    • ‘आउटर स्पेस’ सभी देशों के लिए अन्वेषण और उपयोग हेतु निःशुल्क होगा।
    • आउटर स्पेस की संप्रभुता पर किसी देश द्वारा दावा नहीं किया जा सकता है।
    • अंतरिक्ष यात्रियों को मानव जाति का दूत माना जाएगा।
    • कोई देश तथा उसकी सरकारी या गैर-सरकारी संगठन अंतरिक्ष की गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होगा।
    • देश अंतरिक्ष में अपने संसाधनों से होने वाली क्षति के लिए खुद उत्तरदायी होगा।
    • देशों को अंतरिक्ष और आकाशीय पिंडों के प्रदूषण से बचना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC)

  • संयुक्त राष्ट्र का अंग: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है। इसकी स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी।
    • संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंग हैं- महासभा (UNGA), ट्रस्टीशिप काउंसिल, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और सचिवालय
  • इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में स्थित है।
  • मुख्य जिम्मेदारी: अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम करना।
  • परिषद की संरचना
    • सदस्यता: इसमें 15 सदस्य होते हैं जिनमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी होते हैं।
    • पाँच स्थायी सदस्य: चीन, फ्राँस, रूसी, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • गैर-स्थायी सदस्यों को महासभा द्वारा दो वर्ष के कार्यकाल के लिए चुना जाता है।
  • वीटो का अधिकार: पाँच स्थायी सदस्यों को ‘वीटो’का अधिकार प्राप्त है तथा किसी भी निर्णय के लिए पाँचों की सहमति अनिवार्य होती है।
  • अध्यक्षता: सुरक्षा परिषद में प्रत्येक महीने अध्यक्ष की जिम्मेदारी प्रत्येक देश को बारी-बारी से प्रदान की जाती है तथा यह परिवर्तन देशों के नामों के वर्णमाला क्रम पर आधारित है। 

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