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विद्युत आपूर्ति के लिए सहकारी आधारित वितरण मॉडल पर विचार-विमर्श

Lokesh Pal June 04, 2024 03:13 116 0

संदर्भ

हाल ही में राजस्थान में किसानों तक बिजली आपूर्ति में अनियमितता के बाद विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत किसानों के लिए सहकारी आधारित वितरण मॉडल की स्थापना की सिफारिश की गई है।

संबंधित तथ्य 

इस मॉडल की स्थापना हेतु संवाद का आयोजन जयपुर स्थित सेंटर फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड पीपल (CEEP) द्वारा इस सप्ताह की शुरुआत में ‘विद्युत संवाद’ शृंखला के भाग के रूप में किया गया।

सहकारी समिति (Cooperatives)

  • परिभाषा: ‘सहकारी समिति’ साझा जरूरतों वाले व्यक्तियों का स्वैच्छिक समूह होता है, जो आम आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए साथ कार्य करता है।
  • उद्देश्य: किसी भी सहकारी समिति का प्राथमिक लक्ष्य अपने सदस्यों को सहायता प्रदान करना है, विशेष रूप से स्व-सहायता और पारस्परिक सहायता के माध्यम से समाज के वंचित वर्गों के उत्थान को प्राथमिकता दिया जाता है।
  • संचालन का दृष्टिकोण: सहकारी समितियों की स्थापना के माध्यम से व्यक्ति सामूहिक रूप से एकजुट होते हैं, अपने व्यक्तिगत संसाधनों को सामूहिक उपयोग के लिए अनुकूलित बनाते हैं और अंततः पारस्परिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
    • सहकारी समिति में व्यक्ति स्वेच्छा से शामिल होते हैं और समिति छोड़ने के लिए भी वे स्वतंत्र हैं, हालाँकि वे अपने शेयरों को हस्तांतरित नहीं कर सकते हैं।
  • भारत में सहकारी समितियों के प्रकार: उपभोक्ता सहकारी समितियाँ, उत्पादक सहकारी समितियाँ, सहकारी ऋण समितियाँ, सहकारी कृषि समितियाँ, आवास सहकारी समितियाँ और विपणन सहकारी समितियाँ।
    • विश्व स्तर पर 300 सबसे बड़ी सहकारी समितियों में भारत की अमूल, IFFCO और KRIBHCO शामिल हैं।

ऊर्जा, पर्यावरण और लोगों हेतु केंद्र (CENTER FOR ENERGY, ENVIRONMENT & PEOPLE- CEEP)

  • परिचय: CEEP मानव-केंद्रित अनुसंधान और नीतियों से संबंधित पहल है, जो महत्त्वपूर्ण अनुसंधान में उल्लेखनीय योगदान करती है और कम कार्बन संक्रमण एवं जलवायु न्याय के लिए लोकतांत्रिक गठबंधन को बढ़ावा देती है।
  • उद्देश्य: ऊर्जा, पर्यावरण और लोगों के अंतरसंबंध को संस्थागत प्रतिक्रिया, निवेश, स्वच्छ ऊर्जा एवं सतत् प्रक्रियाओं की दिशा में राजनीतिक बदलाव को सक्षम बनाना।

भारत में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए उठाए गए सरकारी कदम

  • सहकारिता मंत्रालय (Ministry of Cooperation): सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के उद्देश्य से अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत संरचना के साथ इस मंत्रालय की स्थापना की गई।
  • बैंकिंग विनियमन संशोधन अधिनियम, 2020: यह अधिनियम RBI को सहकारी बैंकों के बोर्ड को परिवर्तित करने का अधिकार देता है तथा सहकारी बैंकों को सार्वजनिक निर्गमों या शेयरों की निजी बिक्री के माध्यम से पूँजी जुटाने की अनुमति देता है।
  • राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (National Agricultural Cooperative Marketing Federation- NAFED): यह संघ सहकारी समितियों को उनके विपणन कार्यों को बढ़ाने और अपने सदस्यों को सेवाओं में सुधार करने में सहायता करता है।
  • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC): वर्ष 1963 में स्थापित यह सहकारी समिति चीनी, कताई और बुनाई मिलों में विपणन, प्रसंस्करण, भंडारण और शेयर पूँजी के लिए ऋण और सब्सिडी में सहायता प्रदान करता है।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 को रद्द करना: इसका उद्देश्य अनुच्छेद-19(1)(c) में संशोधन करके अनुच्छेद-43B और भाग IXB को सम्मिलित करना था, ताकि सहकारी समितियों के हितों की रक्षा की जा सके। हालाँकि न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि संविधान का भाग-IXB केवल राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सीमा के अंदर बहु-राज्यीय सहकारी समितियों पर लागू होगा। 
    • संविधान के भाग-IXB में सहकारी समितियों के संचालन संबंधी नियमों की रूपरेखा दी गई है।

विद्युत अधिनियम 2003 (Electricity Act)

भारत सरकार के विद्युत अधिनियम 2003 का उद्देश्य देश भर के विद्युत क्षेत्र का पुनर्गठन और सुधार करना है।

मुख्य प्रावधान

  • राज्य विद्युत बोर्ड का विघटन: प्रतिस्पर्द्धा और दक्षता के कारण SEBs को अलग-अलग उत्पादन और वितरण संस्थाओं में विभाजित करने का लक्ष्य।
  • उत्पादन हेतु लाइसेंस की अनिवार्यता को हटाना: उत्पादन के लिए लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को समाप्त करना तथा निजी निवेश एवं विविधीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • संचरण और वितरण विनियमन (Transmission and distribution regulation): विश्वसनीय आपूर्ति की सुविधा सुनिश्चित करना और एकाधिकार को रोकने के लिए लाइसेंसिंग का प्रबंधन।
  • नवीकरणीय ऊर्जा का संवर्धन: नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिए अनिवार्य रूप से प्रोत्साहन देना।
  • खुली पहुँच और व्यापार: पारदर्शी विद्युत व्यापार और उपभोक्ताओं के लिए बेहतर विकल्प।
  • नियामक निकायों की स्थापना: टैरिफ, अनुपालन और विवादों को विनियमित करने के लिए SECs और CERC की स्थापना।

राष्ट्रीय ग्रामीण विद्युतीकरण नीति (National Rural Electrification Policy)

  • परिचय: राष्ट्रीय ग्रामीण विद्युतीकरण नीति को केंद्र सरकार द्वारा विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 4 और 5 के अनुपालन हेतु अधिसूचित किया गया था।
  • लक्ष्य: ऐसे गाँव/ बस्तियाँ जहाँ ग्रिड को स्थापित करना लागत प्रभावी या अन्य कारणों से संभव नहीं है, वहाँ बिजली की आपूर्ति के लिए स्टैंड-अलोन (Stand-alone) प्रणाली पर आधारित ऑफ-ग्रिड इकाई का निर्माण किया जा सकता है।
    • राज्य सरकार को 6 महीने के अंदर ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की जानकारी अधिसूचित करनी चाहिए, जिसमें विद्युतीकरण वितरण तंत्र का मानचित्रण और विवरण का समावेश हो।
    • इस योजना को जिले की अन्य विकास योजनाओं के साथ एकीकृत किया जा सकता है।

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