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शारीरिक दंड

Lokesh Pal May 02, 2024 06:21 155 0

संदर्भ 

हाल ही में तमिलनाडु स्कूली शिक्षा विभाग ने स्कूलों में शारीरिक दंड के उन्मूलन के लिए दिशा-निर्देश (GECP) जारी किए हैं।

संबंधित तथ्य 

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने बच्चों की देखभाल और स्नेहपूर्ण व्यवहार करने की आवश्यकता पर जोर दिया है, साथ ही बच्चों को शारीरिक दंड देने की प्रथा की निंदा की है।

तमिलनाडु द्वारा जारी दिशा-निर्देश

  • मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना और जागरूकता फैलाना: स्कूली शिक्षा निदेशक और प्रारंभिक शिक्षा निदेशक द्वारा संयुक्त रूप से जारी किए गए GECP में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना तथा इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय आयोग बाल अधिकार संरक्षण (NCPCR) के दिशा-निर्देशों के संबंध में जागरूकता शिविर आयोजित करना शामिल है। 
  • सक्रिय कदम: तमिलनाडु स्कूली शिक्षा विभाग ने जिला-स्तरीय अधिकारियों को  सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के सभी स्कूली छात्रों के लिए पोषणयुक्त और सुरक्षित वातावरण बनाने हेतु सक्रिय कदम उठाए।
  • शारीरिक दंड को समाप्त करने के अलावा ध्यान केंद्रित करना: विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले किसी भी प्रकार के उत्पीड़न या परिस्थितियों को संबोधित करना तथा जारी दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी करना शामिल है। इसके अलावा, किसी भी मुद्दे का समाधान करने के लिए प्रत्येक स्कूल में स्कूल प्रमुखों, अभिभावकों, शिक्षकों और वरिष्ठ छात्रों को शामिल करते हुए निगरानी समितियों की स्थापना करने का भी लक्ष्य है।
  • सकारात्मक कार्रवाइयाँ: विभाग ने शारीरिक दंड के विरुद्ध कई सकारात्मक कार्रवाइयों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें कठिन परिस्थितियों को संबोधित करना, बच्चों के साथ सकारात्मक संबंध, सजा के बजाए सहायता पर ध्यान केंद्रित करना, शिक्षण समुदाय और बच्चों के अधिकार, बहु-विषयक हस्तक्षेप, जीवन-कौशल संबंधी शिक्षा आदि शामिल हैं। इसके फलस्वरूप बच्चों की अभिव्यक्ति और समस्याओं के लिए एक प्रणाली एवं वातावरण तैयार होगा।

शारीरिक दंड (Corporal Punishment)

  • संदर्भ: शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के अनुसार, शारीरिक दंड में शारीरिक मारपीट, मानसिक उत्पीड़न और भेदभाव शामिल किया गया है।
    • भारत में बच्चों के लिए ‘शारीरिक दंड’ की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है।
    • हालाँकि, RTE अधिनियम, 2009 की धारा 17(1) शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न को प्रतिबंधित करता है तथा इसे धारा 17(2) के तहत दंडनीय अपराध बनाता है।
  • वर्गीकरण: शारीरिक दंड को मोटे तौर पर दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
    • शारीरिक दंड (Physical Punishment): राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के अनुसार, शारीरिक दंड के अंतर्गत सभी कार्यों को शामिल किया गया है, जो किसी बच्चे के दर्द, चोट, जख्म और असुविधा का कारण बनता है।
      • उदाहरण के लिए, बेंच पर खड़ा करना, कुर्सी जैसी स्थिति में दीवार के सामने खड़ा होना, सिर पर स्कूल बैग लेकर खड़ा होना, पैरों के होकर हाथ से कान पकड़ना, घुटनों के बल बैठना, जबरदस्ती कुछ भी निगलना, कक्षा, पुस्तकालय, शौचालय आदि में देर तक रोकना आदि।
    • मानसिक उत्पीड़न (Mental Harassment): यह किसी भी प्रकार की गैर-शारीरिक गतिविधियाँ होती हैं, जो बच्चे के शैक्षणिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
      • उदाहरण के तौर पर, इसमें व्यंग्य, बच्चे के लिए अपमानजनक विशेषणों का उपयोग करना और डाँटना, डराना-धमकाना, बच्चे के लिए अपमानजनक टिप्पणियों का उपयोग करना, बच्चे का उपहास करना, शर्मिंदा करना आदि शामिल हैं।

शारीरिक दंड के विरुद्ध संरक्षण हेतु अधिनियम 

  • संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद 21 A: 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान।
    • अनुच्छेद 24: यह अनुच्छेद 14 वर्ष की आयु तक जोखिमपूर्ण उद्यमों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।
    • अनुच्छेद 39 (e): यह सुनिश्चित करना राज्यों का कर्तव्य है कि आर्थिक असमानता के कारण बच्चों के साथ दुर्व्यवहार न हो।
    • अनुच्छेद 45: 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को देखभाल की सुविधा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है।
    • अनुच्छेद 51A(k): यह सुनिश्चित करना अभिभावक का मौलिक कर्तव्य है कि उनके बच्चे को 6 से 14 वर्ष की आयु के दौरान शिक्षा का अवसर प्राप्त हो।
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा जारी दिशा-निर्देश
    • NCPCR ने शारीरिक दंड को समाप्त करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
    • इसके तहत, बच्चों के साथ सकारात्मक संबंध को बढ़ावा देना तथा शारीरिक दंड-विरोधी उपायों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक स्कूल में शारीरिक दंड निगरानी कक्ष स्थापित करना शामिल है।
    • ड्रॉप बॉक्स (Drop Box) की सुविधा होनी चाहिए, जहाँ पीड़ित व्यक्ति अपनी गोपनीयता की रक्षा करते हुए अपनी शिकायत दर्ज कर सके।
  • बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009
    • धारा 17: यह शारीरिक दंड पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है।
      • इसमें दोषी व्यक्ति के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई का प्रावधान है।
    • धारा 8 और 9: इस अधिनियम की धारा 8 और 9 के अनुसार, सरकार और स्थानीय प्राधिकारी को यह सुनिश्चित करने का कर्तव्य है कि कमजोर वर्गों एवं वंचित समूह के बच्चों के साथ भेदभाव न किया जाए और साथ ही उन्हें किसी भी आधार पर प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने से रोका न जाए।
    • शारीरिक दंड पर अंकुश लगाने के लिए संगठन: ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ और ‘राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों के साथ RTE अधिनियम, 2009 के अनुरूप व्यवहार किया जा रहा है अथवा नहीं।
  • किशोर न्याय अधिनियम (बच्चों की देखभाल और संरक्षण), 2000 
    • धारा 23: बच्चों के प्रति क्रूरता भी प्रतिबंधित है।
      • कोई भी व्यक्ति जो किसी किशोर या किशोरी को नियंत्रित करता है, हमला, बंदी बनाता है, जानबूझकर उसकी उपेक्षा आदि करता है, जिसके परिणामस्वरूप उसे मानसिक या शारीरिक पीड़ा होती है, तो दोषी व्यक्ति के लिए छह महीने तक कारावास या जुर्माना या दोनों दण्ड का प्रावधान है।
    • धारा 75: इस धारा के तहत, बच्चों के प्रति क्रूरता के लिए दंड का प्रावधान है।
  • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRC), 1989
    • अनुच्छेद 19: इस अनुच्छेद के अनुसार, हिंसा से जुड़ी किसी भी प्रकार की अनुशासनात्मक कारवाई अस्वीकार्य है।
    • इस अनुच्छेद में बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से चोट और दुर्व्यवहार से बचाने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code)
    • धारा 305: यह धारा किसी बच्चे को आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित है।
    • धारा 323: यह धारा स्वेच्छा से चोट पहुँचाने से संबंधित है।
    • धारा 325: यह धारा स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाने से संबंधित है।

शारीरिक दंड की चिंताएँ

  • मौलिक अधिकार का उल्लंघन: शारीरिक दंड संविधान के अनुरूप नहीं है, क्योंकि यह सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है।
    • यह शिक्षा के अधिकार के भी खिलाफ है, जो अनुच्छेद 21A के तहत मौलिक अधिकार है।
    • यह UNCRC के अनुच्छेद 37 (A) के भी खिलाफ है, जिस पर भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है। इस प्रावधान के अनुसार, किसी भी बच्चे को यातना, क्रूरता या अमानवीय सजा नहीं देनी चाहिए।
  • शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चिंताएँ: शारीरिक दंड के अंतर्गत शारीरिक चोट, चिंता, आत्मसम्मान को ठेस और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ शामिल हैं।
  • हिंसा: शारीरिक दंड, समाज में हिंसा को सामान्य बना देता है।
  • भेदभाव: शारीरिक दंड को लिंग, नस्ल या सामाजिक आर्थिक स्थिति जैसे कारकों के आधार पर असंगत या भेदभावपूर्ण तरीके के रूप में देखा जा सकता है।
  • शिक्षा पर प्रभाव: शारीरिक दंड के कारण कक्षाओं में भय का माहौल बनता है, जिसके कारण स्कूल छोड़ने की दर बढ़ सकती है तथा मुख्यतः सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
  • जीवनपर्यंत समस्या: शारीरिक दंड का अर्थ संवेदनशील बच्चों के लिए दीर्घकालिक आघात या जीवन भर के लिए मानसिक उत्पीड़न हो सकता है।
  • नकारात्मक परिणाम: बच्चों में लिंग, जाति आदि के अलावा अन्य आधारों पर व्यवहार संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जिसका कारण उचित देखभाल और शिक्षण शैलियों में पर्याप्त कमी है।
    • निरंतर शारीरिक सजा के कारण बच्चों के नकारात्मक परिणामों में वृद्धि हुई है। शारीरिक सजा बच्चों में सुधार नहीं करती बल्कि उन्हें और बदतर बना देती है।

एस जय सिंह और अन्य बनाम राज्य, 2018

  • यह मामला देर से स्कूल पहुँचे एक छात्र से संबंधित था जिसे ‘डक-वॉक’ (शारीरिक दंड का एक रूप) की सजा दी गई थी जिसके बाद छात्र की मृत्यु हो गई।
  • न्यायपालिका ने जोर दिया है कि सजा के लिए कानून होने के बावजूद देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में अभी भी इनका चलन जारी है।
  • न्यायपालिका ने कहा है कि कानूनों के तहत जानवर भी क्रूरता से सुरक्षित हैं और हमारे बच्चे निश्चित रूप से जानवरों से बदतर नहीं हो सकते।
  • शारीरिक दंड की गहरी पारंपरिक समस्या के प्रति न्यायपालिका का रुख भी अस्पष्ट है।

शारीरिक दंड पर विभिन्न विचारक

  • महात्मा गांधी: इन्होंने शारीरिक दंड का विरोध किया है, साथ ही अनुशासन और शिक्षा के लिए अहिंसक तरीकों की वकालत की है।
  • रवीन्द्रनाथ टैगोर: इन्होंने शारीरिक दंड की निंदा की है तथा सकारात्मक सुदृढीकरण के माध्यम से व्यक्तिगत रचनात्मकता और नैतिक विकास को बढ़ावा देने पर जोर दिया है।
  • मारिया मोंटेसरी: मारिया ने शारीरिक दंड को गलत कहा है तथा स्वतंत्रता और आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देने के लिए बाल-केंद्रित शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कही है।
  • जीन-जैक्स रूसो: इन्होंने शारीरिक दंड का विरोध किया है, बच्चों के प्राकृतिक कल्याण और शिक्षा में स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित किया है।
  • जॉन डेवी: डेवी ने शारीरिक दंड की आलोचना की है तथा अनुभवात्मक शिक्षा एवं लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर जोर दिया है।

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