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कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) व्यय

Lokesh Pal August 12, 2025 02:35 11 0

संदर्भ 

हाल ही में विकास आसूचना इकाई (Development Intelligence Unit- DIU) की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के CSR व्यय (₹29,990 करोड़, वर्ष 2022-23) का 60% छह राज्यों को प्राप्त हुआ।

विकासात्मक आसूचना इकाई (DIU) रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • CSR व्यय में वृद्धि: वर्ष 2022-23 में, CSR व्यय ₹29,989.92 करोड़ तक पहुँच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 12.8% की वृद्धि है।
  • रिपोर्ट में उठाई गई चिंताएँ
    • क्षेत्रीय आवंटन असंतुलन
      • भौगोलिक संकेंद्रण: कुल CSR निधि का 60% महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, दिल्ली और गुजरात को प्राप्त हुआ।
      • आकांक्षी जिलों की उपेक्षा: आकांक्षी जिलों (नीति आयोग के अनुसार) मुख्यतः झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों में को कुल निधि का 20% से भी कम प्राप्त हुआ।
      • निकटता-आधारित आवंटन: कंपनियाँ निगरानी में आसानी और परिचालन सुविधा के लिए विनिर्माण केंद्रों, खनन इकाइयों या कॉर्पोरेट मुख्यालयों के पास परियोजनाओं को प्राथमिकता देती हैं।
      • ‘स्थानीय क्षेत्र वरीयता’ खंड का दुरुपयोग:स्थानीय क्षेत्र वरीयता’ खंड को प्रायः अनिवार्य माना जाता है, जिससे CSR राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के बजाय व्यावसायिक परिधि तक सीमित हो जाता है।
        • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 में सुझाव दिया गया है कि कंपनियों को CSR गतिविधियाँ करते समय अपने स्थानीय क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए। हालाँकि, यह एक परामर्शात्मक उपाय है, अनिवार्य नहीं, लेकिन कई निगमों ने इसे एक अंतर्निहित प्राथमिकता आवश्यकता के रूप में व्याख्यायित किया है।
    • रणनीतिक एवं विषयगत विसंगतियाँ
      • सरकारी योजनाओं का दोहराव: अंतिम छोर तक सेवाओं की कमी को पूरा करने के बजाय, मध्याह्न भोजन, स्वच्छता अभियान और बुनियादी कौशल विकास (जो पहले से ही सार्वजनिक कार्यक्रमों के अंतर्गत आते हैं) में महत्त्वपूर्ण धनराशि व्यय की जाती है।
      • सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का कमजोर एकीकरण: CSR आवंटन में प्रायः भारत के सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) वर्ष 2030 की प्रतिबद्धताओं से सीधा संबंध नहीं होता है।
    • शासन एवं जवाबदेही अंतराल
      • पारदर्शिता और भागीदारी की कमी: परियोजना निर्माण में समुदाय की न्यूनतम भागीदारी, आवंटन के औचित्य का सीमित प्रकटीकरण, और प्रायः डेटा-आधारित आवश्यकताओं के बजाय विरासत परियोजनाओं या बोर्ड की प्राथमिकताओं द्वारा निर्देशित वित्तपोषण।
      • ‘टॉप टू बॉटम’ दृष्टिकोण: धन आवंटन में इस दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप समुदाय की सीमित भागीदारी और स्थानीय आवश्यकताओं, आकांक्षाओं या प्रणालीगत कमियों की सूक्ष्म समझ का अभाव होता है।
      • प्रभाव मापन संबंधी समस्याएँ: अधिकांश कंपनियाँ प्रभाव संकेतकों (जैसे- स्थायी रोजगार, बेहतर स्वच्छता परिणाम) के स्थान पर आउटपुट संकेतकों (जैसे- प्रशिक्षित लोगों की संख्या, निर्मित शौचालयों की संख्या) पर निर्भर करती हैं।

PWOnlyIAS विशेष

विकास आसूचना इकाई (Development Intelligence Unit- DIU) के बारे में

  • यह ‘ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया’ और ‘संबोधि रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस’ की एक संयुक्त पहल है, जो ग्रामीण डेटा और विश्लेषण समाशोधन केंद्र के रूप में कार्य करती है। यह सुलभ, उच्च-गुणवत्ता वाले ग्रामीण डेटा प्रदान करके साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण और विकास हस्तक्षेपों का समर्थन करती है।
  • उद्देश्य: सार्वजनिक, निजी और नागरिक समाज क्षेत्रों के हितधारकों के लिए ग्रामीण डेटा का लोकतंत्रीकरण।
    • मजबूत विश्लेषण के माध्यम से समतापूर्ण ग्रामीण सेवा वितरण का समर्थन करना।
    • सर्वेक्षण डिजाइन, संकेतक विकास और डैशबोर्ड निर्माण में सरकार (जैसे- मिशन अंत्योदय के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय) के साथ सहयोग करना।
  • जारी की गई रिपोर्टें
    • ग्रामीण युवाओं में रोजगार के रुझान।
    • सीमांत किसानों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
    • ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य एवं शिक्षा।
    • बाजरा उपभोग के पैटर्न।
    • मिशन अंत्योदय ग्राम पंचायत स्तरीय रैंकिंग।

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के बारे में

  • CSR वह विचार है जिसके तहत कंपनियों को पर्यावरण और सामाजिक कल्याण पर अपने प्रभाव का मूल्यांकन करना चाहिए और उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
    • यह सकारात्मक सामाजिक और पर्यावरणीय परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
  • CSR के प्रकार

प्रकार फोकस क्षेत्र / घटक उदाहरण
पर्यावरणीय उत्तरदायित्व पर्यावरणीय नुकसान को कम करना, स्थिरता को बढ़ावा देना, संसाधनों का संरक्षण करना, पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों को अपनाना। सौर पैनल लगाना, कार्बन उत्सर्जन कम करना, जल पुनर्चक्रण प्रणाली अपनाना।
नैतिक उत्तरदायित्व निष्पक्ष एवं पारदर्शी व्यावसायिक प्रथाओं को सुनिश्चित करना, मानव अधिकारों को कायम रखना, शोषण से बचना। निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं का पालन करना, कच्चे माल की ‘इथिकल सोर्सिंग’ सुनिश्चित करना।
परोपकारी / सामाजिक उत्तरदायित्व धर्मार्थ पहल, कौशल विकास और कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से कर्मचारियों, समुदायों और समाज को समर्थन देना। वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए धन उपलब्ध कराना, सामुदायिक स्वास्थ्य शिविरों को प्रायोजित करना।
आर्थिक उत्तरदायित्व निष्पक्ष व्यावसायिक प्रथाओं को सुनिश्चित करते हुए लाभप्रद रूप से परिचालन करना तथा आर्थिक विकास में योगदान देना। रोजगार सृजन, उचित करों का भुगतान, स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं को समर्थन।

CSR तथा सतत् विकास लक्ष्य (SDG)

  • गरीबी उन्मूलन (SDG 1): आजीविका कार्यक्रम, सामुदायिक विकास।
  • भूखमरी उन्मूलन (SDG 2): कृषि सहायता, खाद्य वितरण।
  • उत्तम स्वास्थ्य (SDG 3): स्वास्थ्य सेवाएँ, स्वच्छता।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (SDG 4): छात्रवृत्तियाँ, विद्यालयों का निर्माण।
  • लैंगिक समानता (SDG 5): महिला सशक्तीकरण, लैंगिक संवेदनशीलता।
  • स्वच्छ जल (SDG 6): जल शोधन, स्वच्छता सुविधाएँ।
  • स्वच्छ ऊर्जा (SDG 7): नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ।
  • आर्थिक विकास (SDG 8): रोजगार सृजन, कौशल विकास।
  • नवाचार (SDG 9): बुनियादी ढाँचे का विकास।
  • असमानता में कमी (SDG 10): समावेशी विकास कार्यक्रम।
  • सतत् शहर (SDG 11): शहरी विकास, स्मार्ट सिटी पहल।
  • जिम्मेदार उपभोग (SDG 12): अपशिष्ट प्रबंधन, पुनर्चक्रण।
  • जलवायु कार्रवाई (SDG 13): पुनर्वनीकरण, कार्बन उत्सर्जन में कमी।
  • जलीय जीवन (SDG 14): समुद्री संरक्षण।
  • स्थल पर जीवन (SDG 15): वन्यजीव संरक्षण, वनरोपण।
  • शांति और न्याय (SDG 16): कानूनी अधिकारों का संवर्धन, भ्रष्टाचार-विरोधी।
  • साझेदारी (SDG 17): गैर-सरकारी संगठनों और सरकारों के साथ सहयोग।

भारत में CSR 

  • CSR कानून में विश्व में प्रथम: भारत, कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत CSR को अनिवार्य बनाने वाला पहला देश है।
  • दशक भर का CSR निवेश पैमाना: CSR में ₹2.21 लाख करोड़ से अधिक का निवेश (वर्ष 2014- वर्ष 2024) हुआ है।

  • कृषि-केंद्रित CSR क्षमता: कृषि क्षेत्र में लगभग 45.5% कार्यबल कार्यरत है और सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 18.4% है, इसलिए कृषि स्थिरता के लिए CSR निधियों को निर्देशित करने में रुचि बढ़ रही है।
  • कानूनी ढाँचा
    • कानून: भारत पहला देश है जिसने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के अंतर्गत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) व्यय को अनिवार्य बनाया है, जिससे पात्र गतिविधियों के लिए एक संरचित ढाँचा उपलब्ध होता है।
    • नोडल मंत्रालय: कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (भारत सरकार)।
    • कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत प्रयोज्यता
      • ₹1,000 करोड़ या उससे अधिक का वार्षिक कारोबार
      • ₹500 करोड़ या उससे अधिक की निवल संपत्ति
      • ₹5 करोड़ या उससे अधिक का शुद्ध लाभ
  • CSR व्यय प्रावधान
    • अनिवार्य व्यय: कंपनियों को तीन वर्षों में अपने औसत शुद्ध लाभ का कम-से-कम 2%, कंपनी अधिनियम, 2013 में सूचीबद्ध सामाजिक कल्याण गतिविधियों पर खर्च करना होगा।
    • पात्र दान: वर्तमान में, कंपनियाँ अपनी CSR गतिविधियों के तहत ‘सोशल स्टॉक एक्सचेंज’ (SSE) के बाहर गैर-लाभकारी संगठनों को दान दे सकती हैं, लेकिन इस उद्देश्य के लिए SSE का उपयोग नहीं कर सकती हैं।
      • सोशल स्टॉक एक्सचेंज भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के अंतर्गत एक मंच है जो गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) और लाभकारी सामाजिक उद्यमों (For-Profit Social Enterprises- FPE) को मापनीय सामाजिक प्रभाव वाली परियोजनाओं के लिए निवेशकों से धन जुटाने में सक्षम बनाता है।
  • भारतीय कॉर्पोरेट्स द्वारा CSR पहल के उदाहरण
    • रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (रिलायंस फाउंडेशन): अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) शाखा रिलायंस फाउंडेशन के माध्यम से, यह ग्रामीण परिवर्तन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आपदा प्रतिक्रिया, खेल विकास और कला एवं संस्कृति पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS): यह कॉर्पोरेट कंपनी हाशिए पर स्थित समूहों के लिए अवसरों की कमी को पूरा करने हेतु शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार और उद्यमिता में निवेश करती है।
    • ITC का मिशन सुनहरा कल: इस मिशन के माध्यम से, यह सतत् कृषि, जल प्रबंधन और सामुदायिक विकास पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • महिंद्रा एंड महिंद्रा: यह ‘नन्ही कली’ कार्यक्रम संचालित करती है जो ग्रामीण और कौशल विकास पहलों के साथ-साथ बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा देता है।
    • अडानी समूह: यह समूह एक सतत् आजीविका कार्यक्रम संचालित करता है जिसका उद्देश्य विभिन्न विकास परियोजनाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।

कंपनी अधिनियम 2013 की अनुसूची VII के अंतर्गत अनुमत CSR गतिविधियाँ

वर्ग गतिविधियाँ
गरीबी और भुखमरी का उन्मूलन
  • स्वास्थ्य सेवा (निवारक एवं स्वच्छता) को बढ़ावा देना।
  • स्वच्छता के लिए स्वच्छ भारत कोष में योगदान देना।
  • सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना।
शिक्षा और कौशल विकास
  • शिक्षा (विशेष शिक्षा सहित) को समर्थन प्रदान करना।
  • बच्चों, महिलाओं, वृद्धों और दिव्यांगजनों के व्यावसायिक कौशल में वृद्धि करना।
  • आजीविका संवर्द्धन परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराना।
लैंगिक समानता और सामाजिक समता
  • लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देना।
  • महिलाओं और अनाथों के लिए घर और छात्रावास का निर्माण करना।
  • वृद्धाश्रम और ‘डे केयर सेंटर’ स्थापित करना।
  • वंचित समूहों के सामने आने वाली असमानताओं को कम करना।
पर्यावरणीय स्थिरता
  • पर्यावरण एवं पारिस्थितिक संतुलन की रक्षा करना।
  • वनस्पतियों एवं जीवों का संरक्षण, पशु कल्याण को बढ़ावा देना।
  • कृषि वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण का अभ्यास करना।
  • वायु, जल और मृदा की गुणवत्ता बनाए रखना।
  • गंगा नदी के पुनरुद्धार में योगदान देना।
संस्कृति और विरासत
  • राष्ट्रीय विरासत, कला और संस्कृति का संरक्षण।
  • ऐतिहासिक स्थलों और कलाकृतियों का जीर्णोद्धार।
  • सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना।
  • पारंपरिक कलाओं और हस्तशिल्प को बढ़ावा देना।
पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को समर्थन
  • सशस्त्र बलों के पूर्व सैनिकों, युद्ध के कारण विधवा महिलाएँ और उनके आश्रितों को लाभ प्रदान करना।
  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) और केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों (CPMF) के पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को सहायता प्रदान करना।
खेल विकास
  • ग्रामीण खेलों, राष्ट्रीय खेलों, पैरालंपिक खेलों और ओलंपिक खेलों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
सामाजिक कल्याण योगदान
  • वंचित समूहों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाएँ) के सामाजिक-आर्थिक विकास, राहत और कल्याण हेतु सरकारी निधियों में योगदान देना।
  • सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या अन्य केंद्र सरकार की निधियों में योगदान देना।
विज्ञान प्रौद्योगिकी
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और चिकित्सा (STEM) में सरकार द्वारा वित्त पोषित इनक्यूबेटरों या अनुसंधान परियोजनाओं का समर्थन करना।
अनुसंधान एवं विकास
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के लिए STEM क्षेत्रों में अनुसंधान करने वाले सार्वजनिक वित्त पोषित विश्वविद्यालयों, IIT, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और स्वायत्त निकायों में योगदान देना।
ग्रामीण और मलिन बस्ती विकास
  • ग्रामीण विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन।
  • ‘स्लम क्षेत्र विकास’ पहलों का समर्थन।
आपदा प्रबंधन
  • आपदा राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण गतिविधियों में भाग लेना।

CSR निधियों का क्षेत्रवार आवंटन

 शिक्षा (33%-40%)

CSR निधि का सबसे बड़ा हिस्सा निम्नलिखित पर व्यय किया जाता है:-

  • विद्यालयों का निर्माण।
  • छात्रवृत्तियाँ प्रदान करना।
  • शैक्षिक अवसंरचना का विकास।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना।
स्वास्थ्य देखभाल (20%-30%)

निधियों का उपयोग निम्नलिखित के लिए किया जाता है:-

  • अस्पताल स्थापित करना।
  • स्वास्थ्य शिविर आयोजित करना।
  • स्वच्छता और रोग निवारण को बढ़ावा देना।
पर्यावरणीय स्थिरता (5%-10%)

CSR परियोजनाएँ निम्नलिखित पर केंद्रित हैं:-

  • जैव विविधता संरक्षण।
  • अपशिष्ट प्रबंधन।
  • नवीकरणीय ऊर्जा पहल।
कृषि (10%-15%)

CSR निधियों का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है:-

  • कृषि अवसंरचना का निर्माण।
  • बेहतर कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना।
  • किसानों की आजीविका में सुधार लाना।

CSR के लाभ

  • सतत् विकास के लिए सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखण: नवाचार और लक्षित परियोजनाओं के माध्यम से सतत् विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में कॉर्पोरेट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण: महिलाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण SDG 1 (गरीबी उन्मूलन) और SDG 5 (लैंगिक समानता) को आगे बढ़ाता है।
    • पर्यावरणीय स्थिरता: क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्स्थापन, नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने और जल संरक्षण की पहल जलवायु लचीलेपन में योगदान करती है।
  • नवाचार और अनुसंधान एवं विकास हेतु- प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेटरों के लिए कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) (2019 संशोधन): सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा वित्त पोषित इन्क्यूबेटरों या अनुसंधान एवं विकास निकायों में योगदान कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के रूप में योग्य है, जो भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है।
  • व्यवसायों के लिए – ब्रांड प्रतिष्ठा और निष्ठा में वृद्धि: उपभोक्ता विश्वास का निर्माण करता है और समान विचारधारा वाले भागीदारों को आकर्षित करता है।
    • लागत बचत और परिचालन दक्षता: सतत् अभ्यास अपशिष्ट, उत्सर्जन और संसाधन लागत को कम करते हैं।
  • जिम्मेदार निवेशकों को आकर्षित करना: सामाजिक रूप से जिम्मेदार निवेशक (SRI) मजबूत कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) प्रदर्शन करने वालों को प्राथमिकता देते हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ: संतृप्त बाजारों में फर्मों को अलग पहचान देता है।
    • जोखिम न्यूनीकरण: प्रतिष्ठा और नियामक जोखिमों को बढ़ने से पहले ही दूर करता है।
  • कर्मचारियों के लिए प्रतिधारण और प्रेरणा: निष्ठा और मनोबल में सुधार करता है।
    • कर्मचारी जुड़ाव: कर्मचारियों से जुड़े CSR कार्यक्रम उद्देश्य प्राप्ति को बढ़ावा देते हैं।
  • शासन और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के लिए सार्वजनिक-निजी सामंजस्य: CSR कम सुविधा वाले क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं का पूरक है।
    • स्थानीय विकास: पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका में सुधार करता है।

CSR कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • भौगोलिक एवं क्षेत्रीय असमानताएँ (क्षेत्रीय असंतुलन): बिहार, झारखंड, पूर्वोत्तर राज्यों और लद्दाख में न्यूनतम प्रवाह है, जबकि DIU द्वारा हाल ही में जारी आँकड़ों के अनुसार धन मुख्यतः औद्योगिक केंद्रों में केंद्रित है।
    • क्षेत्रीय असंतुलन: शिक्षा (37%) और स्वास्थ्य (29%) का प्रभुत्व है; पर्यावरण को केवल 9% ही प्राप्त होता है।
    • उपेक्षित क्षेत्र: आपदा प्रबंधन, विरासत संरक्षण और मलिन बस्ती विकास पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।
  • संरचनात्मक कारण (परिचालन सुविधा): रसद और निगरानी लागत कम करने हेतु निधियाँ प्रायः कॉर्पोरेट संचालन के निकट आवंटित की जाती हैं।
    • क्षमता की बाधाएँ: पिछड़े क्षेत्रों में विश्वसनीय गैर-सरकारी संगठनों और कार्यान्वयन भागीदारों का अभाव है।
    • जोखिम और दृश्यता पूर्वाग्रह: प्रणालीगत सुधारों की तुलना में अल्पकालिक, उच्च-दृश्यता वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
    • विनियामक अंतराल: वर्तमान रिपोर्टिंग अनुपालन की निगरानी करती है, लेकिन समानता या विकासात्मक प्रभाव पर नहीं।
  • शासन और पारदर्शिता में अंतराल (पारदर्शिता का अभाव): अपर्याप्त खुलासे सार्वजनिक जाँच को सीमित करते हैं।
    • ग्रीनवाशिंग: प्रभाव के बजाय प्रचार के लिए अनौपचारिक कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR)।
    • कमजोर निगरानी: दीर्घकालिक सामाजिक परिवर्तन की बजाय परिणामों (जैसे- लाभार्थियों की संख्या) पर ध्यान केंद्रित करना।
  • योजना एवं समन्वय संबंधी समस्याएँ (अल्पकालिक ध्यान देना): प्रणालीगत परिवर्तन की तुलना में त्वरित परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
    • NGO समन्वय की कमी: कमजोर साझेदारियाँ और NGO निधियों पर नियामक प्रतिबंध।
    • प्रयासों का दोहराव: परियोजनाओं का कोई केंद्रीय मानचित्रण नहीं, जिसके परिणामस्वरूप ओवरलैप होता है।
  • कार्यान्वयन में देरी और अनुपालन संबंधी समस्याएँ (अनुमोदन एवं निधि आवंटन में देरी): त्वरित समाधान वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
    • कम नवाचार: उच्च-जोखिम, उच्च-प्रभाव वाली परियोजनाओं से दूरी।
    • अप्रयुक्त CSR निधि: कुछ कंपनियाँ कानूनी अनिवार्यता के बावजूद शून्य व्यय की रिपोर्ट करती हैं।

वर्तमान CSR अंतराल के निहितार्थ

  • समता संबंधी चिंताएँ: विषम कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी प्रवाह इसकी पुनर्वितरण क्षमता को कमजोर करता है और अंतर-राज्यीय असमानताओं को बढ़ाने का जोखिम उत्पन्न करता है।
  • शासन की अक्षमता: सरकारी कार्यक्रमों के साथ अतिव्यापन नवाचार और पूरकता को सीमित करता है।
  • विकासात्मक प्रभाव में कमी: उच्च आवश्यकता वाले जिलों को लक्षित किए बिना, गरीबी उन्मूलन, असमानता और सतत् विकास लक्ष्यों में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी का योगदान अपर्याप्त बना रहता है।

PWOnlyIAS विशेष

इंजेती श्रीनिवास समिति की मुख्य सिफारिशें

  • कर कटौती: CSR व्यय को कर-कटौती योग्य बनाना।
  • अव्ययित निधियों को आगे ले जाना: कंपनियों को अव्ययित CSR निधियों को 3-5 वर्षों तक आगे ले जाने की अनुमति देना।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ संरेखण: अनुसूची VII को सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ संरेखित करना, जिसमें खेल प्रोत्साहन, वरिष्ठ नागरिक कल्याण, दिव्यांगजन कल्याण, आपदा प्रबंधन और विरासत संरक्षण जैसे अतिरिक्त क्षेत्र शामिल हैं।
  • स्थानीय बनाम राष्ट्रीय प्राथमिकताएँ: CSR परियोजनाओं के लिए स्थानीय क्षेत्र की प्राथमिकताओं को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संतुलित करना।
  • प्रभाव आकलन: ₹5 करोड़ या उससे अधिक के CSR दायित्वों के लिए प्रभाव आकलन अध्ययन अनिवार्य करना।
  • कार्यान्वयन एजेंसियों का पंजीकरण: MCA पोर्टल पर CSR कार्यान्वयन एजेंसियों के पंजीकरण को अनिवार्य करना।
  • CSR एक्सचेंज पोर्टल: योगदानकर्ताओं, लाभार्थियों और कार्यान्वयन एजेंसियों को जोड़ने के लिए एक पोर्टल विकसित करना ।
  • ‘सामाजिक लाभ’ बांड: ‘सामाजिक लाभ’ बांड में CSR योगदान की अनुमति देना।
  • सामाजिक प्रभाव कंपनियाँ: सामाजिक प्रभाव कंपनियों के निर्माण और समर्थन को बढ़ावा देना।
  • तृतीय-पक्ष मूल्यांकन: प्रमुख CSR परियोजनाओं के लिए तृतीय-पक्ष मूल्यांकन लागू करना।
  • संसाधन अंतराल निधि: सरकारी योजनाओं में संसाधन अंतराल को पूरा करने के लिए CSR निधियों के उपयोग से बचना और अनुसूची VII निधियों में निष्क्रिय योगदान को हतोत्साहित करना।
  • प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान: सामाजिक मुद्दों के लिए नवीन, प्रौद्योगिकी-आधारित समाधानों पर CSR व्यय को प्रोत्साहित करना।
  • छोटी कंपनियों के लिए छूट: ₹50 लाख से कम CSR दायित्वों वाली कंपनियों को CSR समिति बनाने से छूट।
  • गैर-अनुपालन के लिए दीवानी अपराध: CSR उल्लंघनों को दीवानी अपराध घोषित करना।

आगे की राह 

  • CSR पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाना-कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट करना: ‘स्थानीय क्षेत्र वरीयता’ खंड को विवेकाधीन बनाना, बाध्यकारी नहीं।
    • संतुलित क्षेत्रीय आवंटन: परिचालन क्षेत्रों में पर्यावरणीय पुनर्जनन के लिए न्यूनतम हिस्सेदारी (जैसे- 25%) को प्रोत्साहित करना।
    • संयुक्त CSR निधि: जिला/राज्य-स्तरीय CSR ट्रस्ट बड़े पैमाने की रणनीतिक परियोजनाओं के लिए छोटे-छोटे योगदानों को एकत्रित करेंगे।
  • कानूनी एवं नीतिगत उपाय (पिछड़े क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करना): आकांक्षी जिला परियोजनाओं के लिए मान्यता पुरस्कार, कर क्षतिपूर्ति या समतुल्य अनुदान।
    • पात्र गतिविधियों का विस्तार करना: नवाचार, आपदा प्रतिरोधक क्षमता, विरासत संरक्षण को शामिल करना।
    • अनिवार्य लेखा परीक्षा और प्रभाव आकलन: CSR को वैधानिक लेखा परीक्षा में एकीकृत करना और बड़ी परियोजनाओं के लिए तृतीय-पक्ष मूल्यांकन अनिवार्य करना।
  • कार्यान्वयन सुधार (सहभागी योजना): स्थानीय समुदायों और पंचायतों के साथ परामर्श अनिवार्य करना।
    • सहयोगात्मक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व मॉडल: अस्पतालों, नवीकरणीय ऊर्जा पार्कों, जलवायु अनुकूलन के लिए विभिन्न कंपनियों के बीच साझेदारी।
    • क्षमता निर्माण: परियोजना के डिजाइन और क्रियान्वयन के लिए पिछड़े क्षेत्रों में गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय निकायों को प्रशिक्षित करना।
  • पारदर्शिता और रिपोर्टिंग (प्रभाव-आधारित रिपोर्टिंग): आउटपुट के साथ-साथ दीर्घकालिक परिणाम भी प्रकाशित करना।
    • सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप: CSR वित्तपोषण प्राथमिकताओं को निर्देशित करने के लिए विकास संकेतकों का उपयोग करना।

निष्कर्ष

राज्य के नीति-निदेशक तत्व और सामाजिक-आर्थिक न्याय के लक्ष्य पर आधारित, CSR को अपने वर्ष 2013 के अधिदेश के बाद से क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों और संरचनात्मक कमियों का सामना करना पड़ रहा है। रणनीतिक, न्यायसंगत और जवाबदेह सुधार इसे समावेशी विकास और सतत् विकास लक्ष्यों का वाहक बना सकते हैं।

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