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कपास संकट और बोल्गार्ड-3

Lokesh Pal March 07, 2025 04:06 82 0

संदर्भ

उत्तर भारत में कपास उद्योग को सफेद मक्खियों (Whiteflies) और पिंक बॉलवर्म (Pink Bollworms) के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

बैसिलस थुरिंजिएंसिस (Bt) टेक्नोलॉजी

  • परिभाषा: बैसिलस थुरिंजिएंसिस (Bacillus thuringiensis-Bt) तकनीक में Bt जीवाणु के जीन को फसलों में डाला जाता है, जिससे वे कीटों के प्रति प्रतिरोधी बन जाते हैं।
  • यह कैसे कार्य करता है: Bt जीन एक विष उत्पन्न करता है, जो विशिष्ट कीट लार्वा को लक्षित करता है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है और फसल की उपज में सुधार होता है।
  • Bt फसलों के उदाहरण
    • Bt कॉटन: बॉलवर्म कीटों के प्रति प्रतिरोधी।
    • Bt बैंगन: ‘फ्रूट्स एंड शूट्स बोरर’ कीटों से सुरक्षा करता है।
    • Bt मक्का: ‘स्टेम बोरर’ कीटों से सुरक्षा करता है।

कपास उत्पादन से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • पंजाब में कपास की खेती तीन दशक पहले 8 लाख हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2024 में केवल  1 लाख हेक्टेयर रह गई है।
  • कपास उत्पादन में गिरावट ने ओटाई उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है, पंजाब में चालू ओटाई इकाइयों की संख्या वर्ष 2004 में 422 से घटकर मात्र 22 रह गई है।
  • किसान बोल्गार्ड-3 को मंजूरी देने की माँग कर रहे हैं, जो एक आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) कपास किस्म है, जिसमें कीट प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है।

Cry1Ab, Cry1Ac, and Vip3A के बारे में 

  • Cry1Ab: मकई बोरर और बॉलवर्म जैसे कैटरपिलर (लेपिडोप्टेरान कीट) को मारता है।
  • Cry1Ac: बॉलवर्म, विशेष रूप से पिंक बॉलवर्म के विरुद्ध अधिक प्रभावी है।
  • Vip3A: एक नया बीटी प्रोटीन जो आर्मीवर्म सहित कीटों की एक विस्तृत शृंखला को लक्षित करता है।
    • Vip3A का लाभ: Cry1Ac के प्रति प्रतिरोधी कीटों के विरुद्ध अधिक प्रभावी है।

बोल्गार्ड-3 के बारे में

  • यह एक नई कीट-प्रतिरोधी GM कपास किस्म है, जिसे मोनसेंटो ने एक दशक से भी पहले विकसित किया है।
  • उद्देश्य: कीटों, विशेष रूप से पिंक बॉलवर्म और अन्य लेपिडोप्टेरान कीटों के विरुद्ध बेहतर प्रतिरोध प्रदान करता है। 
  • बोल्गार्ड-3 की विशेषताएँ
    • इसमें तीन Bt प्रोटीन, Cry1Ac, Cry2Ab और Vip3A होते हैं, जो कीटों की आँत कार्यप्रणाली को बाधित करके उन्हें मारते हैं।
    • बोल्गार्ड-2 से अधिक प्रभावी, जिसमें केवल दो Bt प्रोटीन (Cry1Ac और Cry2Ab ) होते हैं।

बोल्गार्ड-3 कैसे कार्य करता है?

  • बैसिलस थुरिंजिएंसिस (Bt) एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला मिट्टी का जीवाणु है, जिसमें कीटनाशक गुण होते हैं।
  • कपास के पौधों में डाले गए Bt जीन कीटों के लिए विषाक्त प्रोटीन उत्पन्न करते हैं।
  • जब कीट पौधे को खाते हैं, तो ये प्रोटीन उनके पाचन तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।

बोल्गार्ड-3 भारत के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • वर्तमान Bt कॉटन (बोल्गार्ड-2) अपनी प्रभावशीलता खो रहा है: इसे वर्ष 2006 में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन कीट प्रतिरोध के कारण यह अब पिंक बॉलवर्म के विरुद्ध प्रभावी नहीं है।
  • कीटनाशकों पर निर्भरता कम करता है: कीटनाशकों के उपयोग को कम करता है, जिससे किसानों के लिए लागत और स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं।
  • उपज और लाभप्रदता बढ़ाता है: कपास की उत्पादकता बढ़ाता है और कीटों के कारण फसल के नुकसान को कम करता है।

विनियामक चुनौतियाँ

  • भारत में अभी तक स्वीकृत नहीं है: अन्य देशों में उपयोग किया जाता है, लेकिन भारत के नियामक निकायों से अनुमोदन की प्रतीक्षा है।
  • पूर्व स्वीकृतियाँ
    • बोल्गार्ड-1 (2002): जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति (GEAC) द्वारा एकल-जीन तकनीक के रूप में स्वीकृत किया गया है।
    • बोल्गार्ड-2 (2006): दोहरी-जीन तकनीक के रूप में स्वीकृत किया गया है।
  • विनियामक विलंब: अगली पीढ़ी की GM कपास किस्मों के लिए अनुमोदन प्रक्रिया धीमी रही है।

निष्कर्ष

  • बोल्गार्ड-3 जैसी उच्च उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी किस्मों के बिना, पंजाब के कपास उद्योग का भविष्य अनिश्चित है।
  • ब्राजील जैसे अन्य देश पहले से ही उन्नत तकनीकों (जैसे, बोल्गार्ड-5) का उपयोग कर रहे हैं और काफी अधिक उपज प्राप्त कर रहे हैं।
  • भारत में कीटों के संक्रमण से निपटने और कपास की खेती को पुनर्स्थापित करने के लिए किसान बोल्गार्ड-3 की स्वीकृति के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं।

सफेद मक्खी (Whiteflies) के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: बेमिसिया तबासी (Bemisia Tabaci) 
  • सफेद मक्खियाँ एक प्रकार के कीट हैं, जो कपास के पौधों का रस अवशोषित करते हैं।
  • वे गर्म और शुष्क परिस्थितियों में तीव्र दर से फैलते हैं, जिससे कपास के खेत अत्यधिक असुरक्षित हो जाते हैं।
  • ये कीट वायरल रोग फैलाते हैं, जैसे कि ‘कॉटन लीफ कर्ल वायरस’ (CLCuV), जो फसल के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है।
  • सफेद मक्खियाँ तेजी से प्रजनन करती हैं, जिससे उनकी आबादी को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है।

उत्पादकता पर प्रभाव

  • विकास अवरुद्ध: रस की कमी से पौधे कमजोर हो जाते हैं, जिससे विकास अवरुद्ध हो जाता है और उपज कम हो जाती है।
  • पत्तियों को नुकसान: संक्रमित पत्तियाँ पीली और सूखी हो जाती हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण और पौधे का विकास बाधित होता है।
  • ‘कॉटन लीफ कर्ल वायरस’ (Cotton Leaf Curl Virus-CLCuV): कर्लिंग, शिराओं का मोटा होना और बीजकोषों का कम विकसित होना, जिससे फसल का काफी नुकसान होता है।
  • गुणवत्ता में कमी: संक्रमित पौधों से प्राप्त कपास के रेशे खराब गुणवत्ता के होते हैं, जिससे बाजार मूल्य कम हो जाता है।
  • कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग: किसान अत्यधिक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं, जिससे उत्पादन लागत और पर्यावरणीय जोखिम बढ़ जाता है।

पिंक बॉलवर्म (Pink Bollworms) के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला (Pectinophora Gossypiella) 
  • पिंक बॉलवर्म एक लेपिडोप्टेरान कीट है, जो मुख्य रूप से कपास के बीजकोषों को प्रभावित करता है।
  • लार्वा कपास के बीजकोषों में छेद करके अंदर से बीज और रेशों को खाते हैं।
  • इनका संक्रमण गर्म परिस्थितियों में होता है और यदि जल्दी नियंत्रित नहीं किया गया तो यह तेजी से फैलता है।
  • यह कीट कई कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी है, जिससे रासायनिक नियंत्रण कठिन हो जाता है।

उत्पादकता पर प्रभाव

  • कपास की कम पैदावार: क्षतिग्रस्त बीजकोष के कारण प्रति हेक्टेयर कपास का उत्पादन कम हो जाता है।   
  • खराब फाइबर गुणवत्ता: संक्रमित कपास बीजकोष कमजोर और हल्के रेशे उत्पन्न करते हैं, जिससे कपड़ा उद्योग प्रभावित होता है।
  • देरी से फसल पकना: संक्रमित बीजकोष समय से पहले खुल जाते हैं, जिससे अपरिपक्व और कम गुणवत्ता वाला कपास प्राप्त होता है।
  • Bt कॉटन (बोल्गार्ड-3) के प्रति प्रतिरोध: पिंक बालवर्म ने बोल्गार्ड-3 के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया है, जिससे कीट नियंत्रण एक चुनौती बन गया है।
  • आर्थिक नुकसान: कीटों से होने वाले नुकसान में वृद्धि से किसानों को कीट प्रबंधन में अधिक निवेश करना पड़ता है, जिससे लाभ मार्जिन कम हो जाता है।

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