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फसल विविधीकरण

Lokesh Pal February 23, 2024 05:52 105 0

संदर्भ

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के मुद्दे पर किसानों के साथ चौथे दौर की चर्चा के बाद केंद्र सरकार ने पंजाब में फसल विविधीकरण (Crop Diversification) का प्रस्ताव रखा।

संबंधित तथ्य 

  • फसल विविधीकरण के तहत, सरकार ने पाँच फसलों (तुअर, उड़द दाल, मसूर, मक्का और कपास) को MSP पर ‘मात्रा पर कोई सीमा नहीं’ के साथ खरीदने के लिए पाँच वर्ष के अनुबंध की पेशकश करने के लिए सहकारी समितियों को बढ़ावा दिया है।
  • हालाँकि, किसान यूनियनों ने उपरोक्त फसलों की कृषि से जुड़े सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की केंद्र की पेशकश को खारिज कर दिया है।
  • किसान विरोध प्रदर्शन 2024: पंजाब के किसान दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। माँगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाना और तथाकथित स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुसार MSP तय करना शामिल है।

फसल विविधीकरण (Crop Diversification) क्या है?

  • फसल विविधीकरण को कृषि विविधीकरण (Agricultural Diversification) के रूप में भी जाना जाता है।
  • फसल विविधीकरण से तात्पर्य किसी विशेष खेत पर कृषि उत्पादन में नई फसलों या फसल प्रणालियों को जोड़ने से है, जो पूरक विपणन अवसरों के साथ मूल्य वर्द्धित फसलों से विभिन्न रिटर्न को ध्यान में रखते हैं।
  • फसल प्रणाली: यह फसलों, उनके अनुक्रम और प्रबंधन तकनीकों को संदर्भित करती है, जिसका उपयोग किसी विशेष कृषि क्षेत्र में वर्षों से किया जाता रहा है।
  • भारत में प्रमुख फसल प्रणाली इस प्रकार है- मोनो-क्रॉपिंग (Mono-Cropping), इंटर-क्रॉपिंग (Inter-cropping), रिले-क्रॉपिंग (Relay-Cropping), मिक्स्ड-इंटरक्रॉपिंग (Mixed Intercropping) और ऐली-क्रॉपिंग (Alley-Cropping)।
  • कई किसान अपने जीवन स्तर एवं आय को बढ़ाने के लिए मिश्रित फसल-पशुधन प्रणाली (Mixed Crop-Livestock System) का भी उपयोग करते हैं।

हमें फसल विविधीकरण की आवश्यकता क्यों है?

  • बेहतर मृदा स्वास्थ्य: विभिन्न फसलें विभिन्न मिट्टी के पोषक तत्वों और संरचनाओं में योगदान करती हैं।
    • विविध फसलों को चक्रित करने से मृदा में पोषक तत्त्वों का बेहतर चक्रण होता है और रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता कम हो जाती है, जिससे लंबे समय तक मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
    • एक समान फसल पैटर्न का उपयोग करने से मृदा में  विशिष्ट पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए, फलियाँ, जैसे- सेम और मटर, नाइट्रोजन स्थिरीकरण हेतु सहायक हैं और इसे अन्य पौधों को उपलब्ध करा सकते हैं।
  • चावल और गेहूँ का प्रभुत्व: पंजाब के 80% से अधिक भौगोलिक क्षेत्र में मुख्य रूप से चावल और गेहूँ की खेती की जाती है।
    • वर्ष 2019-20 में लगभग 41.17 लाख हेक्टेयर में गेहूँ और 31.42 लाख हेक्टेयर में धान का उत्पादन किया गया था।
    • अधिक खपत से अधिक गेहूँ एवं चावल का उत्पादन जारी रखने से भंडारण प्रणाली पर दबाव पड़ता है और साथ ही खाद्य सब्सिडी बिल भी बढ़ जाता है।
    • सीमावर्ती राज्यों में सरसों जैसी फसलों को पूरी तरह से प्रोत्साहन देकर तथा गेहूँ/चावल की तुलना में किसानों को अधिक रिटर्न सुनिश्चित करके फसल पैटर्न को शिफ्ट किया जा सकता है।
    • साथ ही इन राज्यों में कुछ जिलों को चुनकर ऐसी फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है और सुनिश्चित मूल्य पर खरीद की गारंटी दी जा सकती है।
    • रबी की फसलों में गेहूँ के स्थान पर सरसों तथा खरीफ की फसलों में मक्का को बढ़ावा देना चाहिए। परिणामतः सरसों से तेल की उपलब्धता बढ़ेगी और मक्के को एथेनॉल में बदला जा सकता है। यह देश के लिए लाभकारी कदम साबित होगा और प्रधानमंत्री के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के अनुरूप भी होगा।
    • इससे जलस्तर में गिरावट को रोका जा सकता है और पशु चारा उद्योग को भी कच्चा माल मिलेगा।
    • पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पूर्वी राज्यों में सरसों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में मूंगफली को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    • गौरतलब है कि सरसों एवं मूंगफली उच्च तेल सामग्री के साथ देश की मूल प्रमुख फसलें हैं और उनके तेलों की देशभर में व्यापक स्वीकार्यता है।
  • घटता जलस्तर: धान उत्पादन में जल की आवश्यकता अधिक होती है, 1 किलोग्राम चावल उत्पन्न करने के लिए लगभग 2,500 लीटर जल की आवश्यकता होती है।
    • कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों को रोटेशन में एकीकृत करने से चावल या गन्ने जैसी जल-गहन फसलों पर अत्यधिक निर्भर मोनोकल्चर प्रणालियों की तुलना में समग्र पानी की खपत कम हो जाती है।
  • विशिष्ट बाजारों पर निर्भरता कम करता है: केवल एक या दो फसलों पर निर्भर रहने से किसान कीमतों में उतार-चढ़ाव और MSP से संबंधित मुद्दों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
  • जोखिम कम करता है: विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने से किसान कीटों, बीमारियों या मौसमी घटनाओं के विनाशकारी प्रभावों के प्रति कम संवेदनशील होते हैं। यदि एक फसल विफल हो जाती है, तो अन्य जीवित रह सकती हैं, जिससे अधिक स्थिर आय और खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी।
    • विविध परिदृश्य मकड़ियों और पक्षियों जैसे लाभकारी जीवों एवं शिकारियों को आकर्षित करते हैं।
  • सीमित आय के अवसर: कुछ फसलों पर निर्भरता आय सृजन और ग्रामीण विकास को प्रतिबंधित करती है। इससे किसानों की एमएसपी पर निर्भरता बढ़ती है।

फसल विविधीकरण की चुनौतियाँ

  • सीमित बाजार पहुँच: कम ज्ञात फसलों के लिए सुसंगत और लाभदायक बाजार ढूँढना मुश्किल हो सकता है। यह किसानों को विविधीकरण का जोखिम लेने से हतोत्साहित कर सकता है।
  • मूल्य अस्थिरता: नई फसलें बाजार की कीमतों में अनिश्चितता ला सकती हैं, जिससे किसानों के लिए स्थापित फसलों की तुलना में अपनी आय का अनुमान लगाना कठिन हो जाएगा।
  • प्रतिकूल सरकारी नीतियाँ: विशिष्ट फसलों के पक्ष में सब्सिडी या अन्य नीतियाँ विविधीकरण को हतोत्साहित कर सकती हैं।
    • सरकार ने MSP के लिए 22 फसलों को अधिसूचित किया है, लेकिन MSP का अधिकांश हिस्सा गेहूँ, चावल आदि कुछ फसलों को दिया जाता है।
  • पूँजी की कमी: पूँजी की कमी इस कृषि पद्धति को अपनाने में सक्षम नहीं होने में एक प्रमुख भूमिका निभाती है।
    • कृषि क्षेत्र में अपर्याप्त निवेश है और बागवानी फसलों का डेटाबेस भी खराब है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, बिजली, परिवहन और संचार जैसे बुनियादी ढाँचे की कमी।
  • फसल कटाई के बाद की रखरखाव संबंधी चुनौतियाँ: दूध, मांस, फल और सब्जियों जैसे खराब होने वाले बागवानी उत्पादों की कटाई के बाद की हैंडलिंग अपर्याप्त प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढाँचे के कारण अपर्याप्त है।
  • कमजोर आपूर्ति शृंखला: कई विविध फसलें, विशेष रूप से फल, सब्जियाँ और विशिष्ट उत्पाद, खराब होने योग्य हैं। कमजोर आपूर्ति शृंखलाओं में अक्सर उचित भंडारण और परिवहन सुविधाओं का अभाव होता है, जिससे फसल खराब हो जाती है और किसानों को काफी नुकसान होता है।
  • भूमि विखंडन: भारत में, भू-स्वामित्व को कई पक्षों में विभाजित किया जाता है।
    • छोटे खेतों का आकार सीमित स्थान और संसाधनों के कारण विविधीकरण को कठिन बना सकता है।

आगे की राह 

  • सरकारी समर्थन: ऐसी नीतियाँ जो बाजार पहुँच को प्रोत्साहित करती हैं, विविध फसलों के लिए सब्सिडी प्रदान करती हैं और बुनियादी ढाँचे में निवेश करती हैं, विविधीकरण को प्रोत्साहित कर सकती हैं।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY): किसान को सहायता और वित्तीय गारंटी प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार की योजना।

  • बीज फसल बीमा: सरकार ने बीज फसल बीमा के लिए एक पायलट कार्यक्रम शुरू किया है, जो बीज के उत्पादन से जुड़े जोखिम कारकों को कवर करता है।
  • दलहन और तिलहन पर ध्यान: चुनी गई फसलों में दलहन और तिलहन शामिल हैं, जो वर्तमान में भारत में घाटे में हैं। यह इन वस्तुओं में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के सरकार के लक्ष्य के अनुरूप है।
  • दालों का आयात: भारत अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए दालों के आयात पर निर्भर है।
    • वर्ष 2020-21 में कुल उत्पादन 27.69 मिलियन टन ही रहा है।
  • सरकार का लक्ष्य: सरकार ने वर्ष 2027 तक दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है।
  • पाँच वैकल्पिक फसलें: सरकार किसानों को पानी की अधिक खपत वाली चावल और गेहूँ की फसलों से पाँच वैकल्पिक फसलों [अरहर, उड़द दाल, मसूर, मक्का और कपास] पर स्विच करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव करती है।
  • अनुसंधान और विकास: नए बीजों का विकास और जलवायु-लचीली फसल किस्मों का विकास जोखिमों को कम कर सकता है और विविध कृषि की अर्थव्यवस्था में सुधार कर सकता है।
  • सहयोग और ज्ञान साझा करना: किसानों के नेटवर्क और सहकारी समितियाँ ज्ञान के आदान-प्रदान, बाजार पहुँच और सामूहिक सौदेबाजी का समर्थन कर सकती हैं, जिससे विविधीकरण अधिक व्यवहार्य हो जाएगा।
  • सतत् कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन: वर्ष 2014-15 में, कृषि की दक्षता, जल के उपयोग और मिट्टी के स्वास्थ्य प्रबंधन में सुधार के लिए NMSA शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य देश के सभी हिस्सों में संसाधन संरक्षण का समन्वय करना भी है।
  • बाजार संपर्क बनाना: सुपरमार्केट, रेस्तराँ और डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर चैनल सहित किसानों और विश्वसनीय खरीदारों के बीच कनेक्शन की सुविधा से बाजार पहुँच और मूल्य स्थिरता में सुधार हो सकता है।
    • शांता कुमार समिति ने सिफारिश की थी कि निजी हितधारक बाजार संपर्क को मजबूत करने के लिए खाद्यान्न की खरीद और भंडारण करें।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश: विभिन्न फसलों के कुशल और लागत प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए कोल्ड स्टोरेज, परिवहन सुविधाओं और प्रसंस्करण संयंत्रों को मजबूत करना महत्त्वपूर्ण है।
  • ग्रामीण भंडारण योजना: ग्रामीण भारत में कृषि उत्पादों के लिए भंडारण सुविधाएँ प्रदान करने और उत्पादों को अधिक विपणन योग्य बनाने के लिए ग्रेडिंग, मानकीकरण, परीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2001 में बनाया गया एक कार्यक्रम।

महत्त्वपूर्ण फसलें

  • कपास
    • जलवायु: अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों (मुख्यतः दक्कन) में उगाई जाने वाली उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय फसल।
    • वर्षा: 50 से 100 सेमी. तक हल्की वर्षा।
    • पाला-मुक्त दिन: कम से कम 210 पाला-मुक्त दिन।
  • मक्का
    • मौसम: मक्का पारंपरिक रूप से मानसून में  उगाया जाता है।
    • तापमान: 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक उच्च तापमान।
    • वर्षा: 50 से 90 सेमी.।
  • दालें
    • कृषि का मौसम: दालों की कृषि खरीफ, रबी और जायद मौसम में की जाती है।
    • रबी फसल: इसके लिए हल्की ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है।
    • खरीफ फसल: बुवाई से लेकर कटाई तक पूरे जीवन काल में गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • गेहूँ
    • जलवायु: उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में उगाया जाता है।
    • वर्षा: 30-40 सेमी. वर्षा।
    • तापमान: औसत तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस।
  • चावल
    • जलवायु: गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
    • वर्षा: 150-300 सेमी.।
    • तापमान: औसत तापमान 21 से 37 डिग्री सेल्सियस।

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