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फसल अवशेष जलाना और इसके बहुआयामी परिणाम

Lokesh Pal August 25, 2025 03:27 10 0

संदर्भ

साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट (Science of the Total Environment) में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया है कि फसल अवशेषों को जलाना, जो एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में सामान्य है, वायु प्रदूषण का कारण बनता है, जैव विविधता को बाधित करता है, कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर कर मृदा की उर्वरता को भी हानि पहुँचाता  है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

फसल अवशेष के बारे में

  • फसल अवशेष से तात्पर्य पौधों के उस भाग से है, जो फसल का मुख्य भाग कट जाने के बाद खेत में शेष बच जाते हैं, जैसे- डंठल, पत्तियाँ और जड़ें।
  • महत्त्व
    • यह बचा हुआ बायोमास मृदा स्वास्थ्य, कटाव नियंत्रण और कृषि उत्पादकता में अपनी विशेष भूमिका के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • आधुनिक कृषि पद्धतियाँ मृदा सुधार और पर्यावरण संरक्षण के लिए बिना जुताई वाली खेती जैसी विधियों के माध्यम से फसल अवशेषों को पुनः मृदा में मिलाने पर केंद्रित हैं।

कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (Agroecosystem) के बारे में

  • कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र एक प्रकार का पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसका प्रबंधन मानव द्वारा कृषि उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • इसमें किसी खेत या अन्य कृषि परिवेश में रहने वाले जीव (पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव) और उनका पर्यावरण शामिल होता है, जिन्हें भोजन, ईंधन, रेशे और अन्य संसाधनों के उत्पादन के लिए संशोधित किया जाता है।

  • जैव विविधता का ह्रास: मकड़ियाँ (हिप्पासा ग्रीनैली-Hippasa Greenalliae), लेडीबर्ड बीटल (Ladybird Beetles), ईयरविग (Earwigs), शिकारी माइट (Predatory Mites), भृंग और मेंढक जैसे प्राकृतिक परभक्षी जीवों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है।
    • अन्य अपघटक जैसे- सो बग, रेड इम्पॉर्टिड फायर ऐंट (Red Imported Fire Ant) , मिलीपेड, केंचुए और जलीय मेसोफौना की संख्या में भी कमी आ रही है।
    • आर्थ्रोपोड्स (चींटियाँ, कीड़े, तितलियाँ, मक्खियाँ, तिलचट्टे) की संख्या में कमी से पोषक चक्रण, मृदा वातन और प्राकृतिक कीट नियंत्रण बाधित हो रहा है, जिससे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता बढ़ रही है।
  • मृदा क्षरण: जलाने से मृदा का तापमान 33.8-42.2°C तक बढ़ जाता है, जिससे नाइट्रोजन की हानि, कार्बनिक पदार्थों और 2.5 सेमी. गहराई तक सूक्ष्मजीवों की संख्या में कमी होती है।
    • मृदा संरचना की गुणवत्ता और उर्वरता में कमी होती है, जिससे दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता कम होती है।
    • वायु प्रदूषण के प्रभाव: कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon Monoxide- CO), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O), सल्फर ऑक्साइड (SOx), भारी धातुएँ, विषैले यौगिक और कणिकीय पदार्थ (PM₂.₅, PM₁₀) उत्सर्जित होते हैं।
    • श्वसन संबंधी समस्याएँ, प्रजनन संबंधी विफलता, भारी धातु संदूषण और भोजन की उपलब्धता में कमी लाकर लाभकारी कीटों (परागण, आर्थ्रोपोडा) और पक्षियों को नुकसान पहुँचाता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक प्रभाव: आर्थ्रोपोड्स की कमी से मृदा के रंध्र खुले रह जाते हैं, जिससे असंवहनीय शिकार की प्रवृत्ति बढ़ती है और अंततः पक्षियों और उच्च पोषी स्तरों पर प्रभाव पड़ता है।
    • कीटों का प्रकोप बढ़ता है, फसलें अधिक असुरक्षित हो जाती हैं और रसायन-प्रधान खेती में वृद्धि होती है।
    • खाद्य जाल और कृषि-पारिस्थितिकी लचीलापन कमजोर होता है, जिससे स्थायी कृषि को खतरा होता है।

पराली जलाने के बारे में

  • परिभाषा: पराली जलाने में चावल और गेहूँ की कटाई के बाद बचे फसल अवशेषों (पुआल के ठूँठ [Straw Stubble]) को आग लगाना शामिल है।
    • किसान अगले फसल चक्र के लिए खेत को जल्दी तैयार करने के लिए इस विधि का उपयोग करते हैं।
  • पराली जलाने के कारण: यह खेतों को साफ करने का एक वहनीय और तीव्र तरीका है।
    • कीटों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • पर्यावरणीय परिणाम: वायु में भारी मात्रा में धुआँ और ‘पार्टिकुलेट मैटर’ उत्सर्जित होते हैं।
    • वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता, विशेष रूप से उत्तरी भारत में।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि एक टन धान की पराली जलाने से 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम CO, 1460 किलोग्राम CO2, 199 किलोग्राम राख और 2 किलोग्राम SO2 उत्सर्जित होती है।
    • इससे मृदा के पोषक तत्त्वों और कार्बनिक पदार्थों की हानि होती है और साथ ही मृदा की गुणवत्ता में गिरावट आती है, जिससे दीर्घकालिक उर्वरता कम होती है।
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: धुएँ से श्वसन और हृदय संबंधी समस्याएँ होती हैं।
    • बच्चों, बुजुर्गों और पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त लोगों जैसे संवेदनशील समूहों को सर्वाधिक खतरा है।

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