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साइरटोबैगस साल्विनिया: आक्रामक खरपतवार का समाधान

Lokesh Pal August 16, 2024 03:30 77 0

संदर्भ

ब्राजील के कीट ‘साइरटोबैगस साल्विनिया’ (Cyrtobagous Salviniae) के प्रवेश से मध्य प्रदेश में आक्रामक जलीय खरपतवार ‘साल्विनिया मोलेस्टा’ (Salvinia Molesta) के लिए एक प्रभावी और लागत-कुशल समाधान उपलब्ध हुआ। 

  • साल्विनिया मोलेस्टा का संक्रमण: मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के एक गाँव को जलीय खरपतवार साल्विनिया मोलेस्टा, जिसे स्थानीय रूप से ‘चीनी झालर’ (Chinese Jhalar) के नाम से जाना जाता है, के संक्रमण के कारण आजीविका संबंधी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
  • संक्रमण की समयरेखा
    • साल्विनिया मोलेस्टा का संक्रमण वर्ष 2018 में शुरू हुआ था। 
    • वर्ष 2022 तक यह जलाशय में पूरी तरह से फैल गया, जिससे गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होनी शुरू हो गई।

 

साल्विनिया मोलेस्टा (Salvinia Molesta)

  • परिचय: यह एक घना, आक्रामक, स्वतंत्र रूप से तैरने वाला पौधा है, जो मिट्टी से चिपकता नहीं है, बल्कि जल की सतह पर तैरता रहता है।  
    • अपनी तीव्र वृद्धि तथा जल सतह पर घनी परत बनाने की क्षमता के कारण यह विभिन्न क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण समस्या बन गई है। 
  • उत्पत्ति और प्रसार
    • साल्विनिया मोलेस्टा मूलतः ब्राजील और अर्जेंटीना का पौधा है। 
    • यह मछलीघर और बागवानी उद्योगों के माध्यम से दुनिया भर में फैल गया है, तथा ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, मेडागास्कर, भारत, श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, फिजी और न्यूजीलैंड तक पहुँच गया है। 

  • खरपतवार (Weeds) वे पौधे हैं जिन्हें बगीचों, कृषि क्षेत्रों या प्राकृतिक आवासों जैसे क्षेत्रों में अवांछनीय, आक्रामक या हानिकारक माना जाता है। 
  • वे जल, पोषक तत्त्वों और सूर्य के प्रकाश जैसे संसाधनों के लिए खेती वाले पौधों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं। 
  • कुछ सामान्य खरपतवारों के उदाहरण हैं: कैरेट ग्रास (Carrot Grass), नट ग्रास (Nut Grass), सिल्वरलीफ नाइटशेड (Silverleaf Nightshade), आदि। 

  • भारत में इसका प्रसार
    • भारत में यह खरपतवार पहली बार वर्ष 1955 में तिरुवनंतपुरम् के वेली झील (Veli Lake) में देखा गया था।
    • वर्ष 1964 तक इसे भारत में ‘कीट’ (Pest) के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया था।
  • पारिस्थितिक प्रभाव
    • साल्विनिया मोलेस्टा में नदियों, नहरों, लैगूनों और अन्य जल स्रोतों को अवरुद्ध करने की महत्त्वपूर्ण क्षमता होती है, जिससे गंभीर पारिस्थितिकी व्यवधान उत्पन्न होता है। 
    • यह स्थानीय जलीय पौधों को नष्ट कर देता है तथा उनकी जगह ले लेता है, जिससे पशुओं और जलपक्षियों के भोजन के स्रोत तथा आवास प्रभावित होते हैं।
  • IUCN में स्थिति: अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने विशालकाय साल्विनिया को दुनिया की सबसे खराब आक्रामक विदेशी प्रजातियों की सूची में शामिल किया है।

साल्विनिया मोलेस्टा के आक्रमण का प्रभाव

  • पारिस्थितिक एवं आर्थिक क्षति
    • खरपतवार के घने आवरण के कारण जल का निकालना असंभव हो गया।
    • संक्रमण के कारण मछलियाँ मर गईं और कमल के पौधे सड़ गए। 
  • स्थानीय आजीविका पर प्रभाव
    • खरपतवार की भयंकर वृद्धि से स्थानीय मछुआरों की आजीविका बाधित हो गई। 
    • इस संक्रमण के कारण उत्पन्न आर्थिक कठिनाई के कारण कई मछुआरे कार्य के लिए पलायन करने को मजबूर हो गए। 

समाधान के रूप में साइरटोबैगस साल्विनिया का परिचय

  • साइरटोबैगस साल्विनिया (Cyrtobagous Salviniae) के बारे में: इसका उपयोग हानिकारक जलीय पौधे विशाल साल्विनिया (साल्विनिया मोलेस्टा-Salvinia Molesta) के विरुद्ध जैविक कीट नियंत्रण एजेंट के रूप में किया जाता है। 
    • ‘साइरटोबैगस साल्विनिया’ को वर्ष 1982 में ऑस्ट्रेलिया से भारत लाया गया था, मध्य भारत पहुँचने से पहले बंगलूरू और केरल में इसका सफल परीक्षण किया गया था। ]

  • प्रस्तावित समाधान (Proposed Solution)
    • जबलपुर की एक टीम ने साल्विनिया मोलेस्टा के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए ब्राजील के कीट ‘साइरटोबैगस साल्विनिया’ के उपयोग का प्रस्ताव रखा, जो इसका उपभोग करने के लिए जाना जाता है। 
    • इन कीटों का प्रजनन जबलपुर स्थित खरपतवार अनुसंधान निदेशालय में किया जाता है, जहाँ इनके प्रभावों के अध्ययन के लिए अनुसंधान भी किया जाता है। 
  • कार्यान्वयन: इस कीट को सितंबर 2022 में प्रभावित तालाबों में डाला गया था। तब से लेकर मार्च 2023 तक इस कीट को नियमित तौर पर प्रभावित तालाबों में डाला गया। 
  • परिणाम
    • इस कार्यक्रम को महत्त्वपूर्ण सफलता मिली, तथा खरपतवार अपेक्षित समय सीमा से पहले ही 18 महीने के भीतर पूरी तरह से विघटित हो गया। 
    • इस कार्यक्रम की प्रभावशीलता के कारण पहले से प्रभावित झीलों में जल एकदम स्वच्छ हो गया। 
  • मेजबान पौधों के साथ साइरटोबैगस साल्विनिया को बनाए रखना
    • जैसे-जैसे साल्विनिया मोलेस्टा की उपस्थिति कम होती जाती है, कीटों की आबादी को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त हरी खरपतवारें डाली जाती हैं। 
    • ये कीट अपने मेजबान के रूप में खरपतवार पर निर्भर रहते हैं और यदि खरपतवार मौजूद न हो, तो कीट जीवित नहीं रह सकते हैं। 
    • हरे खरपतवार की खेती टैंकरों में की जाती है, जहाँ इसे उगाया जाता है और बाद में तालाब में डाला जाता है। 

जैविक समाधान के लाभ

  • लागत प्रभावी: ‘साइरटोबैगस साल्विनिया’ का उपयोग मैन्युअली हटाने के तरीकों की तुलना में काफी अधिक लागत प्रभावी था, जिनकी अनुमानित लागत 15-20 करोड़ रुपये थी और 5-6 वर्ष लगते थे। 
  • जोखिम न्यूनतम: जैविक विधि ने न केवल समस्या को कुशलतापूर्वक हल किया, बल्कि खरपतवारों को मैन्युअल रूप से हटाने से जुड़े जोखिम को भी न्यूनतम कर दिया।

आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (Invasive Alien Species- IAS)

  • परिचय: इसमें आक्रामक विदेशी प्रजातियों (IAS) को ‘ऐसी प्रजातियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनका अपने प्राकृतिक अतीत या वर्तमान वितरण के बाहर प्रवेश और/या प्रसार जैविक विविधता के लिए खतरा उत्पन्न करता है’। 
    • जैव विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity- CBD) के लिए जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल में आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता को मान्यता दी गई है। 
  • इसमें शामिल हैं: इनमें पशु, पौधे, कवक और यहाँ तक ​​कि सूक्ष्मजीव भी शामिल हैं, और ये सभी प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्रों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • उदाहरण: प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis Juliflora), लैंटाना कैमरा (Lantana Camara), जलकुंभी (Water Hyacinth), मिमोसा (Mimosa), सियाम (Siam) आदि। 
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियों (IAS) के प्रसार के कारण 
    • वैश्वीकरण: व्यापार, परिवहन और पर्यटन में वृद्धि ने आक्रामक विदेशी प्रजातियों की शुरुआत और प्रसार को सुगम बनाया। 
      • मालवाहक जहाज, हवाई जहाज और वाहन अनजाने में आक्रामक प्रजातियों को माल में, बैलास्ट जल के माध्यम से, या उनकी सतहों से चिपकाकर परिवहन करके फैला सकते हैं। 
    • जलवायु परिवर्तन: तापमान में वृद्धि आक्रामक विदेशी प्रजातियों के विस्तार में सहायक होती है, जैसे कि एशियन लॉन्गहॉर्न्ड बीटल (Asian Longhorned Beetle) ठंडे क्षेत्रों में जीवित रहता है। 
    • आवास क्षरण: शहरीकरण, वनों की कटाई और असंवहनीय भूमि उपयोग मूल पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करते हैं, जिससे आक्रामक विदेशी प्रजातियों के वितरण में सहायता मिलती है। 
    • मानवजनित कारण (Anthropogenic Reasons): कृषि या सजावटी उपयोग जैसे आर्थिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की गई आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ फैल सकती हैं, उदाहरण के लिए, लैंटाना कैमरा (Lantana Camara)। 
    • अपर्याप्त जैव सुरक्षा उपाय: आयातित वस्तुओं और आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आवागमन का अपर्याप्त निरीक्षण और विनियमन उनके प्रसार में योगदान देता है। 
    • जागरूकता का अभाव: जनता की अज्ञानता और अपर्याप्त वित्त पोषण एवं संसाधन आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रभावी प्रबंधन और उन्मूलन में बाधा डालते हैं। 
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन के लिए वैश्विक नियामक ढाँचा (Global Regulatory Framework for Management of Invasive Alien Species):
    • जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention on Biological Diversity), 1992: यह उन आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश को रोकने, नियंत्रित करने या उन्मूलन करने की आवश्यकता पर बल देता है जो पारिस्थितिकी तंत्र, आवासों या प्रजातियों के लिए खतरा उत्पन्न करती हैं। 
    • कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework), 2022: इस पर संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (United Nations Convention on Biological Diversity- UNCBD) के तहत सहमति व्यक्त की गई है और इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश और स्थापना की दर को कम-से-कम 50% तक कम करना है। 
    • प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (Convention on the Conservation of Migratory Species), 1979: इसका उद्देश्य प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण करना है तथा इसमें पहले से मौजूद आक्रामक विदेशी प्रजातियों को नियंत्रित या समाप्त करने के उपाय शामिल हैं। 
    • वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES), 1975: यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है, जिससे वन्य जीवों और पौधों के अस्तित्व को खतरा न हो तथा व्यापार में शामिल आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव पर विचार किया जाता है। 
    • वैश्विक आक्रामक प्रजाति कार्यक्रम: यह दुनिया भर में आक्रामक प्रजातियों के मुद्दों के समाधान के लिए अनुसंधान, क्षमता निर्माण और प्रबंधन रणनीतियों का समर्थन करता है। 

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