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भारत में बाँध सुरक्षा

Lokesh Pal September 15, 2025 03:06 54 0

संदर्भ

IISER, भोपाल द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि अवसादन के कारण पूरे भारत में जलाशयों के भंडारण में 50% की कमी आई है। इससे विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण और जल सुरक्षा, विशेष रूप से हिमालय, नर्मदा-तापी बेसिन तथा पश्चिमी घाट में, खतरे में पड़ रही है।

  • विशेषज्ञ आपदाओं और संसाधन संकटों को रोकने के लिए अवसाद प्रबंधन और व्यापक सुरक्षा उपायों का आग्रह करते हैं।

बाँधों के बारे में

  • परिभाषा: बाँध किसी नदी या नाले पर जल को संगृहीत करने, मोड़ने या नियंत्रित करने के लिए बनाया गया एक अवरोध है। संगृहीत जल एक जलाशय का निर्माण करता है, जिसका उपयोग सिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, नौवहन, पेयजल आदि के लिए किया जाता है।

भारत में बाँधों से संबंधित महत्त्वपूर्ण आँकड़े

  • बड़े बाँधों की संख्या: भारत में 5,200 से अधिक बड़े बाँध हैं, जो इसे चीन और अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा बाँध वाला देश बनाता है।
    • ये बाँध सिंचाई, जल आपूर्ति, बिजली उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण का आधार हैं।
  • भंडारण क्षमता: कुल मिलाकर, भारतीय बाँधों की कुल भंडारण क्षमता लगभग 330 अरब घन मीटर (Billion Cubic Metres- BCM) है, जो कृषि, खाद्य सुरक्षा, पेयजल और औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • पुरानी संरचनाएँ: वर्ष 2030 तक, भारत के लगभग 80% बड़े बाँध 50 वर्ष से अधिक पुराने हो जाएँगे। वर्तमान में, 200 से अधिक बाँध पहले से ही 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं। पुरानी संरचनाएँ संरचनात्मक अखंडता को कम करती हैं, रखरखाव लागत बढ़ाती हैं, और अत्यधिक दबाव की स्थिति में बाँधों के टूटने की संभावना को बढ़ाती हैं।
  • अवसादन क्षति: संयुक्त राष्ट्र के एक आकलन में चेतावनी दी गई है कि वर्ष 2050 तक भारत के 3,700 बांधों में अवसादन के कारण औसतन 26% जल भंडारण क्षमता का नुकसान होगा।
    • इससे सिंचाई क्षमता कम होगी, जल संकट और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा।

बाँध विफलता के बारे में

  • बाँध की विफलता का अर्थ है किसी बाँध का संरचनात्मक या परिचालनात्मक रूप से ढह जाना, जिसके परिणामस्वरूप जमा जल अनियंत्रित रूप से बाहर निकल जाता है। इससे जान-माल की हानि, संपत्ति का विनाश, पारिस्थितिकी क्षति और आजीविका में व्यवधान हो सकता है।

बाँध विफलताओं के कारण

  • प्राकृतिक कारण: अत्यधिक वर्षा, बाढ़, बादल फटना, भूकंप, भूस्खलन।
    • जलवायु परिवर्तन चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ाता है।
  • संरचनात्मक/डिज़ाइन संबंधी विफलताएँ: अपर्याप्त ‘स्पिलवे’ क्षमता।
    • बाढ़ या भूकंपीय घटनाओं के संदर्भ में असंगत या त्रुटिपूर्ण डिजाइन धारणाएँ।
    • पुराना बुनियादी ढाँचा।
  • परिचालन एवं रखरखाव संबंधी समस्याएँ: समय पर निरीक्षण और मरम्मत का अभाव।
    • गाद जमने से जलाशय की क्षमता कम हो जाती है।
    • संचार की कमी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों का अभाव।
  • मानवीय/प्रशासनिक कारक: भ्रष्टाचार, लापरवाही, खराब निगरानी।
    • बाँध प्राधिकरणों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों के मध्य समन्वय में विफलता।

भारत में बाँध सुरक्षा से जुड़ी चिंताएँ

  • पुराना बुनियादी ढाँचा: कई बाँध अपनी डिजाइन अवधि से अधिक समय तक बने  हुए रहते हैं, जिससे संरचनात्मक क्षरण, कम दक्षता और समय पर पुनर्वास न होने पर बाँध विफलता की बढ़ती संभावना के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • भूकंपीय संवेदनशीलता: कई बाँध भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में स्थित हैं, जिससे वे भूकंपीय तनावों के प्रति संवेदनशील हैं।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2001 में भुज में आए भूकंप के कारण गुजरात के चांग बाँध की नींव का द्रवीकरण हो गया था, जिससे भूकंपीय जोखिम स्पष्ट हुए।
  • बाढ़ और अतिप्रवाह का जोखिम: हिमनद झीलों के फटने, बादल फटने और अत्यधिक वर्षा की बढ़ती घटनाओं से बाँध डूब सकते हैं।
    • सिक्किम का चुंगथांग बाँध वर्ष 2023 में अचानक आई ‘ग्लेशियल फ्लड’ के कारण बह गया, जिससे हिमालयी बाँधों की भेद्यता का पता चलता है।
  • अवसादन: अवसादों के जमा होने से जलाशय की भंडारण क्षमता और दक्षता कम हो जाती है, जलविद्युत टरबाइनों को नुकसान पहुँचता है और संरचनात्मक दबाव बढ़ जाता है, जिससे जलाशय के ऊपर से जल भर जाने और अंततः ढह जाने की संभावना बढ़ जाती है।
  • वित्तीय बाधाएँ: कई राज्यों को बजट की कमी का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण अनियमित निरीक्षण, खराब रखरखाव और बाँध पुनर्वास कार्यों में देरी होती है, जिससे जोखिम बढ़ जाता है।
  • सिफारिशों का पालन न करना: मध्य प्रदेश में गांधी सागर बाँध के संबंध में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा किए गए ऑडिट में यह सामने आया कि राज्य बाँध सुरक्षा संगठन (SDSO) केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा सुझाए गए सुधारात्मक उपायों को लागू करने में विफल रहा।
  • उच्च मानवीय भेद्यता: लाखों लोग प्रमुख बाँधों के निचले इलाकों में रहते हैं, जिससे बाँध सुरक्षा न केवल एक तकनीकी मुद्दा बन जाती है, बल्कि एक मानवीय चिंता का विषय भी बन जाती है। किसी भी तरह की विफलता से जान-माल और आजीविका का भारी नुकसान हो सकता है।

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बाँध सुरक्षा के लिए अवसादन क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • भंडारण क्षमता में कमी: गाद के लगातार जमा होने से जलाशय की क्षमता कम हो जाती है, जिससे पेयजल, सिंचाई और उद्योगों के लिए जल की उपलब्धता सीमित हो जाती है।
  • बाढ़ नियंत्रण में कमी: भंडारण क्षमता में कमी से बाँध की अधिकतम जल प्रवाह को अवशोषित करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  • ऊर्जा की कमी: जलविद्युत परियोजनाओं में, अवसादन के कारण जल शीर्ष और प्रवाह में कमी से विद्युत उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।
  • संरचनात्मक और परिचालन जोखिम: अवसाद हाइड्रोलिक प्रवाह को बदल देता है, जिससे टरबाइनों में घर्षण होता है, प्रवेश द्वार अवरुद्ध हो जाते हैं, और ‘स्पिलवे’ पर दबाव पड़ता है।
  • पारिस्थितिक प्रभाव: अवसादन जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करता है, घुलित ऑक्सीजन को कम करता है और जैव विविधता को खतरा पहुँचाता है।

संभावित प्रयास

बाँध जलाशयों की सुरक्षा और दीर्घकालिक लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए भारत को बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी:

  • अवसाद प्रबंधन: मृदा अपरदन को रोकने के लिए जलग्रहण क्षेत्रों में वनरोपण और पुनर्वनरोपण।
    • ऊपरी मृदा संरक्षण के लिए चेकडैम, सिल्ट ट्रैप और समोच्च बाँधों का निर्माण।
    • जहाँ तकनीकी रूप से संभव हो, अवसाद निस्तारण, जल निकासी या ड्रेजिंग का कार्यान्वयन।
  • निगरानी और मूल्यांकन: गाद और भंडारण हानि का पता लगाने के लिए नियमित जल सर्वेक्षण सर्वेक्षण करना।
    • अपरदित हॉटस्पॉट की पहचान के लिए रिमोट सेंसिंग और GIS का उपयोग करना।
    • नियमित बाँध सुरक्षा ऑडिट में अवसादन सूचकांकों को एकीकृत करना।
  • नीति एवं संस्थागत सुधार: बाँध सुरक्षा प्राधिकरणों के कार्यक्षेत्र का विस्तार करके उसमें केवल संरचनात्मक सुरक्षा ही नहीं, बल्कि कार्यात्मक क्षमता और पारिस्थितिकी स्वास्थ्य को भी शामिल करना।
    • जल, वन, कृषि और भूमि-उपयोग निकायों के मध्य अंतर-एजेंसी समन्वय को सुदृढ़ करना।
  • निवेश एवं वित्तपोषण: जलग्रहण प्रबंधन और अवसाद निष्कासन के लिए समर्पित निधियों की स्थापना।
    • मृदा एवं जल संरक्षण को मनरेगा, हरित भारत मिशन और जलग्रहण कार्यक्रमों से जोड़ना।
    • बाँध रखरखाव में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • सामुदायिक सहभागिता एवं जागरूकता: जल स्तर और गाद सीमा की निगरानी में स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
    • मृदा संरक्षण और सतत् भूमि-उपयोग प्रथाओं पर जागरूकता अभियान चलाना।

भारत में बाँध सुरक्षा के लिए पहल

  • बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021: भारत तीसरा सबसे बड़ा बाँध-स्वामित्व वाला देश है और इसके लगभग 80% बड़े बाँध वर्ष 2030 तक 50 वर्ष की सीमा को पार कर जाएँगे, बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 जल अवसंरचना में संरचनात्मक अखंडता, आपदा तैयारी और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
    • उद्देश्य: बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 का उद्देश्य भारत में निर्दिष्ट बाँधों की निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन और रखरखाव सुनिश्चित करना है ताकि विनाशकारी विफलताओं को रोका जा सके तथा जान-माल की सुरक्षा की जा सके।
    • इस अधिनियम से पूर्व, बाँध सुरक्षा केंद्रीय जल आयोग के गैर-बाध्यकारी दिशा-निर्देशों द्वारा निर्देशित थी।
  • संस्थागत ढाँचा
    • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति (National Committee on Dam Safety- NCDS): पूरे भारत में बाँध प्रबंधन के लिए सुरक्षा नीतियाँ, दिशा-निर्देश और मानक तैयार करती है।
    • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority- NDSA): बाँध सुरक्षा नीतियों को लागू करने, अनुपालन सुनिश्चित करने और बाँध संचालन से संबंधित अंतरराज्यीय विवादों को सुलझाने के लिए एक नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
    • राज्य बाँध सुरक्षा समितियाँ (SCDS) और राज्य बाँध सुरक्षा संगठन (SDSO): स्थानीय जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए, राज्य स्तर पर निरीक्षण करते हैं और बाँध सुरक्षा को लागू करते हैं।
    • हितधारक जिम्मेदारियाँ: भारत में बाँधों का स्वामित्व और प्रबंधन राज्य सरकारों, राज्य विभागों, बोर्डों, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (CPSU) और निजी एजेंसियों के पास होता है। सभी हितधारकों के लिए बाँध सुरक्षा मानकों का पालन करना अनिवार्य है।
    • प्रवर्तन प्रावधान: इस अधिनियम के तहत बाँध मालिकों को बाँध सुरक्षा इकाइयाँ (Dam Safety Units- DSU) स्थापित करने, आपातकालीन कार्य योजनाएँ (EAP) तैयार करने और नियमित अंतराल पर व्यापक सुरक्षा मूल्यांकन (CSE) करने की आवश्यकता होती है। इस अधिनियम के तहत उल्लंघन करने पर दंड, जुर्माना या दो वर्ष तक का कारावास हो सकता है, जिससे यह जवाबदेही के लिए एक कठोर ढाँचा बन जाता है।
  • नेशनल रजिस्टर ऑफ लार्ज डैम्स (National Register of Large Dams- NRLD): केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा अनुरक्षित, यह रजिस्टर भारत के सभी बड़े बाँधों पर व्यापक डेटा संकलित करता है, जिससे प्रभावी नीति नियोजन, निगरानी और सुरक्षा मूल्यांकन संभव होता है।
  • बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना (Dam Rehabilitation and Improvement Project- DRIP): वर्तमान में अपने दूसरे और तीसरे चरण में, DRIP 19 राज्यों के 736 बाँधों को कवर करता है। विश्व बैंक और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank- AIIB) से ऋण द्वारा समर्थित, यह पुराने बाँधों के आधुनिकीकरण, सुरक्षा प्रोटोकॉल में सुधार और अधिकारियों के प्रशिक्षण पर केंद्रित है।
  • बाँधों की भूकंप सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय केंद्र: जयपुर के मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Malaviya National Institute of Technology- MNIT) में स्थित, यह केंद्र, बाँधों की संरचनात्मक और भूकंपीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है तथा भूकंपरोधी डिजाइन प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
  • भारत जल संसाधन सूचना प्रणाली (Water Resources Information System- WRIS): एक भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)-आधारित प्लेटफॉर्म, जो बाँधों, जलग्रहण क्षेत्रों और जल संसाधनों पर वास्तविक समय के डेटा के लिए एकल-विंडो समाधान प्रदान करता है, जिससे सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • बाँध स्वास्थ्य एवं पुनर्वास निगरानी अनुप्रयोग (Dam Health and Rehabilitation Monitoring Application- DHARMA): यह एक डिजिटल अनुप्रयोग है, जो बाँध के प्रदर्शन और रखरखाव पर महत्त्वपूर्ण डेटा रिकॉर्ड करता है, जिससे बाँध की विफलताओं की भविष्यवाणी करने और निवारक उपायों की योजना बनाने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • भूकंपीय जोखिम विश्लेषण सूचना प्रणाली (Seismic Hazard Analysis Information System- SHAISYS): भूकंपीय शक्तियों और बाँध सुरक्षा पर उनके प्रभावों का आकलन करने के लिए विकसित एक विशेष उपकरण, जो भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में सक्रिय तैयारी सुनिश्चित करता है।
  • बाँध सुरक्षा समीक्षा पैनल (Dam Safety Review Panels- DSRP): कई राज्यों ने बाँधों का व्यापक ऑडिट करने और उनके सुरक्षा मानकों को बढ़ाने के लिए उपचारात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने हेतु इन स्वतंत्र विशेषज्ञ पैनलों की स्थापना की है।

बाँध सुरक्षा और प्रशासन के लिए प्रमुख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थान

  • इंडियन नेशनल कमिटी ऑन लार्ज डैम्स (Indian National Committee on Large Dams- INCOLD): ICOLD के अंतर्गत भारत का प्रतिनिधि निकाय, INCOLD अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है और भारतीय बाँध सुरक्षा के लिए सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं को अपनाने में सहायता करता है।
  • इंटरनेशनल कमिशन ऑन लार्ज डैम्स (International Commission on Large Dams- ICOLD, 1928): एक गैर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय निकाय, जो दुनिया भर में डैम इंजीनियरिंग में तकनीकी विशेषज्ञता, ज्ञान के आदान-प्रदान और सुरक्षा मानकों को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • वर्ल्ड कमिशन ऑन डैम्स (World Commission on Dams- WCD, 1998): विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा स्थापित, WCD बड़े बाँधों की वैश्विक प्रभावशीलता का मूल्यांकन करता है और योजना, निर्माण एवं संचालन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देश विकसित करता है।

बाँध सुरक्षा में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ और नवाचार

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): यह ‘नेशनल इन्वेंटरी ऑफ डैम्स’ (NID) रखता है और सेना के इंजीनियरों द्वारा समय-समय पर निरीक्षण कराना अनिवार्य करता है, जिससे बाँध सुरक्षा में पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
  • जापान: भूकंपीय गतिविधियों की अत्यधिक बारंबारता के कारण, जापान ने भूकंप-रोधी बाँध डिजाइनों और उन्नत निगरानी प्रणालियों में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिससे आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे में वैश्विक मानक स्थापित हुए हैं।
  • चीन: यलो नदी जैसी नदी घाटियों में अवसाद निस्तार तकनीकों और बड़े पैमाने पर जलग्रहण क्षेत्र में वनरोपण का उपयोग करता है, जिससे बाँधों का जीवनकाल बढ़ाने और भंडारण क्षमता बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • यूरोपीय संघ (EU): बाँध सुरक्षा को पर्यावरणीय निर्देशों में शामिल करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सुरक्षा मानक जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन के अनुरूप हों।
  • जापान के उप-सतही बाँध: जापान में नवीन भूमिगत बाँध सतह के पास भूजल को संगृहीत करते हैं, जिससे भूमि जलमग्नता, वाष्पीकरण हानि और अवसादन को रोका जा सकता है, साथ ही विनाशकारी बाँध विफलताओं के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।

आगे की राह

  • असुरक्षित बाँधों का पुनर्निर्माण: पुराने और असुरक्षित बाँधों को पुनर्वास और प्रवाह क्षेत्र की सुरक्षा संबंधी स्पष्ट योजनाओं के साथ, जोखिमों को कम करने के लिए व्यवस्थित रूप से पुनर्निर्मित किया जाना चाहिए।
  • आधुनिक इंजीनियरिंग मानक: सभी नए बाँधों में भूकंपीय, जलवायु और जलविज्ञान संबंधी कारकों को ध्यान में रखते हुए, खतरे के प्रति लचीलेपन वाले अत्याधुनिक डिजाइन अपनाए जाने चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: GIS, AI, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों का व्यापक उपयोग, वास्तविक समय की निगरानी और पूर्वानुमानित प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को सक्षम बना सकता है।
  • जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन: जलग्रहण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनरोपण, मृदा संरक्षण और चेक डैम अवसाद के प्रवाह को कम कर सकते हैं, जिससे बाँधों की आयु और दक्षता में सुधार हो सकता है।
  • नवोन्मेषी वित्तपोषण: हरित बॉण्ड, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और बहुपक्षीय वित्तपोषण का उपयोग बाँधों के पुनर्निर्माण तथा रखरखाव के लिए वित्तीय अंतराल को समाप्त कर सकता है।
  • सामुदायिक तैयारी: आपदाओं के दौरान हताहतों की संख्या को कम करने के लिए ‘डाउनस्ट्रीम’ में रहने वाले समुदायों को आपातकालीन अभ्यास, बाढ़ चेतावनी प्रणालियों और निकासी योजना के माध्यम से शामिल किया जाना चाहिए।
  • वैश्विक प्रथाओं से सीखना: भारत को बाँध संबंधी क्षमता में वृद्धि करने के लिए जापान के उप-सतही बाँधों, अमेरिका के कठोर निरीक्षण मॉडल और चीन की अवसाद प्रबंधन रणनीतियों जैसे अंतरराष्ट्रीय नवाचारों को अपनाना चाहिए।

निष्कर्ष:

नेहरू ने बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कहा था, बाँधों का आधुनिकीकरण सुरक्षा और स्थायित्व के साथ किया जाना चाहिए। इन्हें मजबूत करने से सतत् विकास लक्ष्य 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता) और सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) को बढ़ावा मिलता है, आजीविका सुरक्षित रहती है, आपदा की संवेदनशीलता कम होती है, और भावी पीढ़ियों के लिए समान, दीर्घकालिक राष्ट्रीय विकास सुनिश्चित होता है।

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