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भूस्खलन से खतरा

Lokesh Pal May 30, 2024 04:33 120 0

संदर्भ

हाल ही में चक्रवाती वर्षा के कारण पूर्वोत्तर में भूस्खलन एवं आइजोल, मिजोरम में एक पत्थर की खदान के ढहने से बहुराज्यीय आपदा के लिए अनुकूलित करने की आवश्यकता उजागर हुई है।

भूस्खलन एवं इसके कारण

  • किसी ढलान के नीचे चट्टान, पत्थर, मिट्टी या मलबे का अचानक खिसकना भूस्खलन कहलाता है।
    • कारक: जब गुरुत्वाकर्षण बल, किसी पहाड़ी या पहाड़ की ढलान का संघटन करने वाली भू-सामग्री की क्षमता से अधिक हो जाता है।

  • कारण
    • प्राकृतिक कारक: भूस्खलन मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में होता है जहाँ मिट्टी, चट्टान, भूविज्ञान एवं ढलान की अनुकूल परिस्थितियाँ होता है। 
      • इसके प्रेरित करने वाले प्राकृतिक कारणों में भारी वर्षा, भूकंप, बर्फ का पिघलना एवं बाढ़ के कारण ढलानों का कटाव शामिल है। 
    • मानवजनित गतिविधियों के कारण: जैसे उत्खनन, पर्वतीय खनन एवं पेड़ों की कटाई, अत्यधिक बुनियादी ढाँचे का विकास तथा मवेशियों द्वारा अत्यधिक चराई।

भूस्खलन संबंधी चिंताएँ एवं संवेदनशीलता 

  • भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष पाँच भूस्खलन-प्रवण देशों में से एक है, जहाँ भूस्खलन की घटना के कारण एक वर्ष में प्रति 100 वर्ग किमी. में कम से कम एक मौत होती है।
  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey Of India- GSI) के अनुसार, भारत का लगभग 0.42 मिलियन वर्ग किमी. भूभाग, या इसके क्षेत्र का लगभग 13%, 15 राज्यों एवं चार केंद्रशासित प्रदेशों में विस्तृत है, को भूस्खलन का खतरा है। 
    • इसमें देश के लगभग सभी पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं। 
  • उत्तर पूर्वी राज्य: लगभग 0.18 मिलियन वर्ग किमी. या इस संवेदनशील क्षेत्र का 42% पूर्वोत्तर क्षेत्र में है, जहाँ का भूभाग अधिकतर पर्वतीय है।
    • वर्ष 2015 और वर्ष 2022 के बीच, सिक्किम सहित इस क्षेत्र के आठ राज्यों में 378 प्रमुख भूस्खलन की घटनाएँ दर्ज की गईं, जिसके परिणामस्वरूप जानमाल की हानि हुई या संपत्ति को नुकसान हुआ। 
    • इस अवधि के दौरान भारत में सभी प्रमुख भूस्खलनों में से 10% घटनाएँ थीं।
  • पूरे देश में, केरल में सबसे अधिक 2,239 भूस्खलन हुए, जिनमें से अधिकांश केरल में वर्ष 2018 की विनाशकारी बाढ़ के बाद हुए। 

भूस्खलन, बहु-खतरा आपदाओं को प्रेरित करता है:

  • एक घटना दूसरे को प्रेरित कर सकती है, एवं एक साथ कई आपदाओं को जन्म दे सकती है।
  • पिछले कुछ वर्षों में, भारत में ऐसी घटनाएँ देखी गई हैं जिनमें भारी वर्षा के कारण हिमनद झीलें टूट गईं, जिससे अचानक बाढ़ आ गई, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन एवं बाढ़ आई। 
    • प्रभाव: बड़े पैमाने पर विद्युत कटौती, परिवहन एवं संचार विफलता, स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान तथा बचाव एवं राहत कार्यों में कठिनाइयाँ आई हैं।
  • विनियमों का अभाव और अप्रभावी कार्यान्वयन: कई पहाड़ी क्षेत्रों में उचित भवन विनियमों का अभाव है एवं उन्हें प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है। इलाके की भार सहने की क्षमता बनाए रखने में विफलता के कारण भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। 
    • नए निर्माण, बुनियादी ढाँचे का विकास एवं कृषि पद्धतियाँ भूस्खलन के खतरे को बढ़ा सकती हैं।

भूस्खलन की भविष्यवाणी करना कठिन क्यों है?

  • भू-सामग्रियों की जटिलता: भूमि के नीचे, भू-सामग्रियाँ विभिन्न चट्टानों एवं रेत, गाद तथा मिट्टी जैसे कण पदार्थों की कई, आपस में जुड़ी हुई परतों से बनी होती हैं। 
    • उनकी क्षमता एक से 1,000 के कारक तक काफी भिन्न हो सकती है, एवं उनका स्थानिक वितरण ढलान स्थिरता को प्रभावित करता है।
  •  अधूरा डेटा और अनिश्चितता: सटीक ढलान स्थिरता मूल्यांकन के लिए इन सामग्रियों एवं उनकी शक्ति के त्रि-आयामी मानचित्रण की आवश्यकता होती है। 
    • कोई भी सेंसर यह व्यापक जानकारी प्रदान नहीं कर सकता है जो भूवैज्ञानिकों और भू-तकनीकी इंजीनियरों को चुनिंदा स्थानों से आंशिक डेटा पर विश्वास करने एवं इसे पूरे ढलान पर ‘एक्सट्रपलेशन’ करने के लिए मजबूर करता है।
  • भूस्खलन का समय: यह निर्धारित करना भी अनिश्चित है कि भूस्खलन कब होगा। 
    • केवल यांत्रिक विश्लेषण ही भूकंप की तीव्रता एवं भूजल वितरण सहित विशिष्ट परिदृश्यों के तहत ढलान की भेद्यता का अनुमान लगा सकता है। 
    • हालाँकि, इन ट्रिगर्स के समय का अनुमान लगाना मौसम एवं भूकंपीय गतिविधि की भविष्यवाणी करने जितना ही चुनौतीपूर्ण है।

सरकार द्वारा कौन से उपाय किये गये हैं जिनमें तेजी लाने की आवश्यकता है?

  • पूर्व चेतावनी 
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को अभी भी आजमाया जा रहा है एवं कुछ स्थानों पर परीक्षण के आधार पर तैनात किया जा रहा है। 
    • ये चेतावनी प्रणालियाँ IMD के वर्षा पूर्वानुमानों से जुड़ी हुई हैं। 
    • वर्षा की भविष्यवाणी को मिट्टी एवं इलाके की जानकारी के साथ जोड़कर यह गणना की जाती है कि क्या इसके परिणामस्वरूप भूमि के विस्थापन की संभावना है।
    • किसी भी मामले में, चूँकि भूकंप की स्वयं भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, इसलिए हम भूकंप के आधार पर भूस्खलन की पूर्व चेतावनी नहीं दे सकते। लेकिन भूस्खलन के लिए वर्षा-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ अच्छी तरह से कार्य करती प्रतीत होती हैं।
  •  वर्षा का पूर्वानुमान
    • विश्वसनीय स्थान-विशिष्ट भविष्यवाणियाँ कम-से-कम एक दिन पहले उपलब्ध होती हैं। 
    • वैज्ञानिक प्रत्येक भूस्खलन-प्रवण स्थान पर भूमि संचलन एवं मृदा विस्थापन के लिए वर्षा की सीमा निर्धारित करते हैं।
    •  यदि वर्षा का पूर्वानुमान सीमा से अधिक है, तो भूस्खलन की पूर्व चेतावनी जारी की जाती है।
    •  आमतौर पर, एक दिन की वर्षा से भूस्खलन नहीं होता, जब तक कि बादल फटने की घटना न हो। एक सप्ताह या 10 दिनों तक लगातार भारी वर्षा खतरनाक हो जाती है।
  • वर्ष 2019 की राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति (National Landslide Risk Management Strategy): इसमें भेद्यता मानचित्रण, सर्वाधिक संवेदनशील स्थानों की पहचान, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास एवं पर्वतीय क्षेत्र नियमों की तैयारी का उल्लेख है। 
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भूस्खलन से होने वाले खतरों को कम करने एवं प्रबंधित करने के लिए GSI और अन्य एजेंसियों के साथ कार्य कर रहा है।
  • विनियमित एवं सतत विकास की आवश्यकता: बुनियादी ढाँचे एवं आर्थिक गतिविधियों के लिए विकास आवश्यक है लेकिन इसे क्षेत्र की वहन क्षमता को बनाए रखते हुए विनियमित किया जाना चाहिए।

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