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डार्क इज ब्यूटीफुल: गहरी जड़ें जमाए हुए रंगभेद संबंधी समस्या की चुनौती

Lokesh Pal April 02, 2025 02:55 49 0

संदर्भ 

केरल की मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन की त्वचा के रंग पर की गई अपमानजनक टिप्पणी के कारण भारत में गहरी जड़ें जमाए हुए रंगभेद पर पुनः बहस शुरू हो गई है।

  • उनकी पोस्ट में काली त्वचा के प्रति समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह को उजागर किया गया है, जिसका सामना विशेष रूप से भारत में महिलाएँ करती हैं।

रंगभेद की ऐतिहासिक जड़ें: कैसे काली त्वचा को ‘हीन’ बनाया गया

  • औपनिवेशिक अधीनता: यूरोपीय उपनिवेशवादियों ने नस्लीय पदानुक्रम लागू किया, जहाँ काली त्वचा हीनता का प्रतीक थी, जबकि गोरी त्वचा शक्ति का प्रतीक थी।
  • जाति और वर्ग सुदृढ़ीकरण: दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में गोरी त्वचा अभिजात वर्ग की स्थिति से जुड़ी हुई थी, जबकि गहरी त्वचा को श्रम और निचली जातियों से जोड़ा गया था।

वर्तमान  में रंगभेद के प्रचलन के कारण

  • मीडिया का प्रभाव: फिल्मों, विज्ञापनों और लोकप्रिय संस्कृति में गोरी त्वचा को आदर्श के रूप में दर्शाया जाता है, जिससे सामाजिक प्राथमिकताएँ मजबूत होती हैं।
  • पश्चिमी सौंदर्य मानक: वैश्वीकरण ने पश्चिमी आदर्शों का प्रसार किया है, जिसमें गोरी त्वचा को सुंदरता और सफलता का प्रतीक माना जाता है।

  • आर्थिक कारक: त्वचा को गोरा करने वाले उत्पादों का आकर्षक बाजार, बेहतर अवसरों से जुड़ी गोरी त्वचा की सामाजिक माँग को दर्शाता है।
  • मीडिया और वैवाहिक विज्ञापन: भारतीय सिनेमा और वैवाहिक विज्ञापनों में गोरी त्वचा की प्राथमिकता व्यापक है, जिससे सुंदरता को गोरेपन से जोड़कर देखा जाता है।
  • जाति और क्षेत्रीय गतिशीलता: कुछ संस्कृतियों में, गोरी त्वचा को उच्च जाति की स्थिति से जोड़ा जाता है, जिससे रंग-आधारित भेदभाव गहरा होता है।
  • मनोवैज्ञानिक स्थिति: आंतरिक रंगवाद आत्म-सम्मान के मुद्दों और गोरी त्वचा के मानकों के अनुरूप होने के सामाजिक दबावों को जन्म देता है।
  • ऐतिहासिक आख्यान: साहित्य और कला ने लंबे समय से गोरी त्वचा को आदर्श बनाया है, जिससे गहरे रंग के प्रति पूर्वाग्रह को बल मिला है।

रंगभेद के परिणाम

  • कम आत्मसम्मान: ‘डार्क’ रंग की त्वचा वाले व्यक्ति कम सामाजिक वरीयता के कारण खराब शारीरिक छवि और आत्म-मूल्य से पीड़ित हो सकते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: रंग आधारित भेदभाव को सहन करने से हीनता, चिंता और अवसाद की भावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • पीढ़ीगत आघात चक्र: रंगभेद का सामना करने वाले माता-पिता अनजाने में बच्चों को पूर्वाग्रह दे सकते हैं।
    • उदाहरण: एक माँ अपनी बेटी को टैनिंग से बचने के लिए बाहर खेलने से हतोत्साहित करती है।
  • हाशिए पर स्थित: ‘डार्क’  रंग के लोगों को अक्सर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है और जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे- रिश्तों, सामाजिक स्थिति और कार्य वातावरण में उन्हें हीन माना जाता है।
    • उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि साँवली त्वचा वाले अश्वेत पुरुषों को गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने की संभावना अधिक होती है।
  • बाजार का शोषण: अरबों डॉलर मूल्य का त्वचा को गोरा करने वाले उत्पाद उद्योग रंगभेदी आदर्शों पर फलता-फूलता है, जो इस धारणा को कायम रखता है कि गोरी त्वचा अधिक मूल्यवान है।
  • संसाधनों तक असमान पहुँच: विवाह और व्यावसायिक तंत्र में गोरी त्वचा को प्राथमिकता देने का आशय अक्सर यह होता है कि गहरे रंग के लोगों को नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • उदाहरण: अध्ययनों से पता चलता है कि गोरी त्वचा वाले लोगों को नौकरी मिलने, पदोन्नति मिलने और उच्च वेतन मिलने की संभावना अधिक होती है।
  • पूर्वाग्रह का सामान्यीकरण: सुंदरता के मानक के रूप में गोरी त्वचा को लगातार चित्रित करना सामाजिक मानदंडों को आकार देता है और पूर्वाग्रह को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण: मीडिया अक्सर गोरी त्वचा वाले व्यक्तियों को मुख्य भूमिकाओं में दिखाता है, जबकि गहरे रंग वाले व्यक्तियों को हाशिए पर रखा जाता है या नकारात्मक भूमिकाओं में रखा जाता है।
  • जाति के साथ अंतर्संबंध: भारत जैसे देशों में, रंगभेद अक्सर जातिगत भेदभाव से जुड़ा होता है, जहाँ गोरी त्वचा को उच्च सामाजिक स्थिति और जाति से जोड़ा जाता है, जिससे सामाजिक विभाजन गहरा होता है।

रंगभेद से निपटने के लिए आगे की राह

  • शिक्षा और जागरूकता: विद्यालयों में विविधता और समावेश पर पाठों को एकीकृत करने से युवाओं को पूर्वाग्रहों को जल्दी पहचानने और उन्हें चुनौती देने में सहायता मिल सकती है।
    • उदाहरण: विद्यालयों के पाठ्यक्रम में रंगभेद पर एक अध्याय जोड़ना (उदाहरण के लिए, दासता, जाति और उपनिवेशवाद से इसके संबंधों के बारे में पढ़ाना)।
      • शिक्षकों को रंगभेद संबंधी समस्या को पहचानने और उससे निपटने के लिए प्रशिक्षित करना।
      • ऐसी किताबें/खिलौने प्रस्तुत करना, जिनमें गहरे रंग के नायक हों।
  • मीडिया प्रतिनिधित्व: फिल्मों, विज्ञापनों और फैशन में विविधतापूर्ण प्रतिनिधित्व पारंपरिक सौंदर्य मानकों को चुनौती देने में सहायता करता है।
  • सशक्तीकरण: सोशल मीडिया आंदोलन #डार्कइजब्यूटीफुल (भारत), #ब्लैकइजब्यूटीफुल (वैश्विक), #अनफेयरएंडलवली (पाकिस्तान/अमेरिका) लोगों को अपनी प्राकृतिक त्वचा के रंग को अपनाने और सशक्तीकरण की कहानियाँ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  • कार्यस्थल समानता के लिए प्रयास: उदाहरण: ‘डार्क’ रंग वाले व्यक्तियों की नियुक्ति की प्रथाओं का समर्थन करने की आवश्यकता है, जहाँ उम्मीदवारों का मूल्यांकन शारीरिक बनावट के बजाय कौशल और योग्यता के आधार पर किया जाता है, ताकि पूर्वाग्रह को कम किया जा सके तथा विविधता को बढ़ावा दिया जा सके।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: समाज को पारंपरिक सौंदर्य मानकों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित करने से त्वचा के रंग के बारे में धारणाएँ परिवर्तित हो सकती हैं।
    • उदाहरण: डार्क इज ब्यूटीफुल एक समर्थन अभियान है, जो रंगभेद के विरुद्ध लड़ने और कार्यशालाओं तथा कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को अपना आत्म-सम्मान वापस पाने में मदद करने के लिए मौजूद है। 

निष्कर्ष 

‘ब्लैक आइडेंटिटी’ को अपनाना सुंदरता के स्थापित मानकों को चुनौती देता है और वैश्विक आंदोलनों के साथ जुड़ता है, जो रंगभेद से हटकर विविधता की ओर बढ़ने का आग्रह करता है। प्रतिरोध का यह कार्य समानता और समावेशिता की दिशा में व्यापक सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देता है।

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